प्रारंभिक परीक्षा – कीलाडी, संगम युग मुख्य परीक्षा : सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र 1 – भारतीय संस्कृति में प्राचीन काल से आधुनिक काल तक के कला के रूप, साहित्य और वास्तुकला के मुख्य पहलू
सन्दर्भ
हाल ही में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) ने कीलाडी में खुदाई के दौरान प्राप्त निष्कर्षों पर एक विस्तृत रिपोर्ट प्रस्तुत की।
कीलाडी संगम काल की एक बस्ती है, जिसकी खुदाई भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण और तमिलनाडु पुरातत्व विभाग द्वारा की जा रही है।
कीलाडी
कीलाडी, दक्षिण तमिलनाडु के शिवगंगा जिले में एक छोटा सा गांव है।
यह मंदिरों के शहर मदुरै से लगभग 12 किमी दक्षिण-पूर्व में है और वैगई नदी के किनारे स्थित है।
2015 से यहां हुई खुदाई से साबित होता है, किसंगम युग में वैगई नदी के तट पर एक शहरी सभ्यता मौजूद थी।
इस सभ्यता का वर्णन संगम काल के तमिल कवियों ने किया है, इसका देश और विदेश के अन्य क्षेत्रों के साथ व्यापारिक संबंध था।
कीलाडी स्थल से ऐसी कलाकृतियाँ मिली हैं, जिनके बारे में माना जाता है कि ये छठी शताब्दी ईसा पूर्व और पहली शताब्दी ईसा पूर्व के बीच की अवधि की थीं।
इस प्रकार कीलाडी कलाकृतियों की इन खुदाई और निष्कर्षों ने संगम काल की समय-सीमा को पहले की तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व की तुलना में लगभग 300 वर्ष पहले (580 ईसा पूर्व) निर्धारित कर दिया है।
कीलाडी और सिन्धु घाटी के चिह्नों की शिल्पकृतियों में मिले प्रतीकों में भी समानता पाई गई है।
कीलाडी से मिट्टी के बर्तनों के ढेर, सोने के आभूषण, तांबे के लेख, अर्ध-कीमती पत्थर, शंख की चूड़ियां, हाथी दांत की चूड़ियां और हाथी दांत की कंघी,स्पिंडल वोर्ल्स, तांबे की सुई, टेराकोटा सील, सूत के लटकते हुए पत्थर आदि प्राप्त हुए हैं।
संगम युग
ऐतिहासिक युग के प्रारंभ में दक्षिण भारत का क्रमबद्ध इतिहास हमें जिस साहित्य से ज्ञात होता है उसे संगम साहित्य कहा जाता है।
संगम शब्द का अर्थ परिषद् अथवा गोष्ठी होता है जिनमें तमिल कवि एवं विद्वान एकत्र होते थे।
प्रत्येक कवि अथवा लेखक अपनी रचनाओं को संगम के समक्ष प्रस्तुत करता था तथा इसकी स्वीकृति प्राप्त हो जाने के बाद ही किसी भी रचना का प्रकाशन संभव था।
समयावधि - दक्षिण भारत (कृष्णा एवं तुंगभद्रा नदी के दक्षिण में स्थित क्षेत्र) में लगभग तीन सौ ईसा पूर्व से तीन सौ ईस्वी के बीच की अवधि को संगम काल के नाम से जाना जाता है।
संगम युग के दौरान दक्षिण भारत पर तीन राजवंशों- चेरों, चोलों और पाण्ड्यों का शासन था।
संगम साहित्य मुख्य रूप से तमिल भाषा में लिखा गया है, संगम युग की प्रमुख रचनाओं में तोलकाप्पियम्, एतुत्तौके, पत्तुप्पातु, पदिनेकिल्लकणक्कु इत्यादि ग्रंथ तथा शिलप्पादिकारम्, मणिमेखलै और जीवक चिंतामणि शामिल हैं।
उपलब्ध संगम साहित्य का विभाजन तीन भागों में किया जाता है -
पत्थुप्पात्तु
इत्थुथोकै
पादिनेन कीलकन्क्कु
पाण्ड्य राजाओं के संरक्षण में कुल में तीन संगमों (तमिल कवियों का समागम) का आयोजन किया गया -
प्रथम संगम - मदुरै में आयोजित किया गया था, इसका कोई साहित्यिक ग्रंथ उपलब्ध नहीं है।
दूसरा संगम - कपाटपुरम् में आयोजित किया गया था, इस संगम का एकमात्र उपलब्धग्रंथ तोलकाप्पियम् है।
तीसरा संगम - मदुरै में आयोजित किया गया था, इस संगम के अधिकांश ग्रंथ नष्ट हो गए हैं।