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कालबेलिया नृत्य (Kalbelia Dance)

प्रारम्भिक परीक्षा भारतीय विरासत और संस्कृति
मुख्य परीक्षा - सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र -2

चर्चा में क्यों 

भोपाल में राष्ट्रीय लोककला और जनजातीय कला महोत्सव के दौरान राजस्थान के कलाकारों द्वारा 'कालबेलिया' नृत्य प्रस्तुत किया गया।

प्रमुख तथ्य

  • कालबेलिया नृत्य राजस्थान के कालबेलिया जनजाति के द्वारा किया जाता है। 
  • यह नृत्य कालबेलिया समुदाय के पारंपरिक जीवनशैली की एक अभिव्यक्ति है। कालबेलिया नृत्य राजस्थान के प्रसिद्ध लोक नृत्यों में से एक है। कालबेलिया नृत्य में सिर्फ़ स्त्रियाँ ही भाग लेती हैं।

kalbelia-dance

  • यह नृत्य और इससे जुड़े गीत इनकी जनजाति के लिए अत्यंत गौरव का विषय है। 
  • यह नृत्य संपेरो की एक प्रजाति द्वारा बदलते हुए सामाजिक-आर्थिक परस्थितियों के प्रति रचनात्मक अनुकूलन का एक शानदार उदाहरण है। 
  • कालबेलिया जनजाति की सर्वाधिक आबादी राजस्थान के पाली जिले में पायी जाती है और इसके पश्चात् क्रमशः अजमेर, चित्तौणगढ़और उदयपुर का स्थान आता है।
  • राजस्थान की प्रसिद्ध लोक नर्तकी गुलाबो ने इस नृत्य को देश-विदेश में बहुत नाम दिलाया है। इस नृत्य में पुरुष सिर्फ़ 'इकतारा' या 'तंदूरा' लेकर महिला नर्तकी का साथ देते हैं।
  • कालबेलिया नृत्य को वर्ष 2010 में संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक और सांस्कृतिक संगठन (UNESCO) की अमूर्त सांस्कृतिक विरासत (ICH) की सूची में शामिल किया गया था।
  • इस नृत्य में गजब का लोच और गति है, जो दर्शकों को सम्मोहित कर देती है। यह नृत्य दो महिलाओं द्वारा किया जाता है। पुरुष केवल वाद्य बजाते हैं।
  • कालबेलिया नृत्य करने वाली महिला बहुत घेरदार वाला काले रंग का घाघरा पहनती हैं, जिस पर कशीदा होता है। काँच लगे होते हैं और इसी तरह का ओढ़ना और काँचली-कुर्ती होते हैं।

कशीदाकारी

कशीदाकारी कला कपड़ों पर कपड़े सुई और धागा या सूत के साथ अन्य सामग्री की हस्तकला है। कढ़ाई में धातु स्ट्रिप्स, मोती,पंख, सीपियां, सितारे, शीशा एवं विभिन्न अन्य सामग्री को शामिल करते हैं। 

कढ़ाई की एक विशेषता यह है कि बुनियादी तकनीकों से ही आज भी काम कर सकते हैं। इसमें टांके-चैनस्टिच, फंदा या कंबल टांका, साटन टांका, उल्टे हाथ सिलाई आदि बहुत से तरीके होते हैं।कशीदाकारी को अभी हल ही में जीआई टैग प्राप्त हुआ है 

नृत्य विशेषता 

  • नृत्यांगनाएँ साँप की तरह बल खाते हुए और फिरकनी की तरह घूमते हुए नृत्य प्रस्तुत करती हैं।
  • इस नृत्य के दौरान नृत्यांगनाओं द्वारा आंखों की पलक से अंगूठी उठाना, मुँह से पैसे उठाना, उल्टी चकरी खाना आदि कई प्रकार की कलाबाजियाँ दिखाई जाती हैं।
  • कालबेलिया जनजाति विशेषता 
  • प्राचीन युग में यह जनजाति एक-जगह से दूसरी जगह घुमंतू जीवन व्यतीत करती थी। इनका पारंपरिक व्यवसाय साँप पकड़ना, साँप के विष का व्यापार और सर्प दंश का उपचार करना है। 
  • इसी कारण इस लोक नृत्य का स्वरूप और इसको प्रस्तुत करने वाले कलाकारों के परिधान में साँपों से जुड़ी चीज़ें झलकती हैं।
  • इन्हें सपेरा, सपेला जोगी या जागी भी कहा जाता है। 
  • परंपरागत रूप से कालबेलिया पुरुष बेंत से बनी टोकरी में साँप को बंद कर घर-घर घूमते थे और उनकी महिलाएँ नाच-गा कर भीख मांग कर जीवन-यापन थी।
  • यह साँप का बहुत आदर करते हैं और उसकी हत्या को निषिद्ध मानते हैं। गांवों में अगर किसी घर में साँप निकलता है तो कालबेलिया को बुलाया जाता है और वे बिना उसे मारे पकड़ कर ले जाते है।

कालबेलिया जनजाति का समाज

  • आम तौर पर कालबेलिया समाज से कटे-कटे रहतें हैं और इनके अस्थाई आवास, जिन्हें डेरा कहा जाता है, अक्सर गावों के बाहरी हिस्सों में बसे होते हैं। कालबेलिया अपने डेरा को एक वृत्ताकार पथ पर बने गावों में बारी-बारी से लगाते रहतें हैं। 
  • पीढ़ियों से चले आ रहे इस क्रम के कारण इन्हे स्थानीय वनस्पति और जीव-जंतुओं की ख़ासी जानकारी हो जाती है। इसी ज्ञान के आधार पर वे कई तरह की व्याधियों के आयुर्वेदिक उपचार के भी जानकार हो जाते हैं, जो उनकी आमदनी का एक और वैकल्पिक ज़रिया हो जाता है।

वस्त्र

  • शरीर के ऊपर भाग में पहने जाने वाला वस्त्र अंगरखा कहलाता है, सिर को ऊपर से ओढनी द्वारा ढँका जाता है और निचले भाग में एक लहंगा पहना जाता है।

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  • इनके सभी वस्त्र काले और लाल रंग के संयोजन से बने होते हैं और इन पर इस तरह की कशीदाकारी होती है कि जब नर्तक नृत्य की प्रस्तुति करते हैं तो यह दर्शकों के आँखो के साथ-साथ पूरे परिवेश को एक शांतिदायक अनुभव प्रदान करते हैं।

अन्य तथ्य

  • पुरुष सदस्य इस प्रदर्शन के संगीत पक्ष की ज़िम्मेदारी उठाते हैं। वे नर्तकों के नृत्य प्रदर्शन में सहायता के लिए कई तरह के वाद्य यंत्र जैसे कि पुँगी (फूँक कर बजाया जाने वाला काठ से बना वाद्य यंत्र जिसे परंपरागत रूप से साँप को पकड़ने के लिए बजाया जाता है), डफली, खंजरी, मोरचंग, खुरालिओ और ढोलक आदि की सहायता से धुन तैयार करते हैं। 
  • नर्तकों के शरीर पर परंपरागत गोदना बना होता है और वे चाँदी के गहने तथा छोटे-छोटे शीशों और चाँदी के धागों की मीनकारी वाले परिधान पहनती हैं। प्रदर्शन जैसे-जैसे आगे बढ़ता है धुन तेज होती जाती है और साथ ही नर्तकों के नृत्य की थाप भी।
  • कालबेलिया नृत्य के गीत आम तौर पर लोककथा और पौराणिक कथाओं पर आधारित होते हैं और होली के अवसर पर विशेष नृत्य किया जाता है। कालबेलिया जनजाति प्रदर्शन के दौरान ही स्वतः स्फूर्त रूप से गीतों की रचना और अपने नृत्यों में इन गीतों के अनुसार बदलाव करने के लिए ख्यात हैं। 
  • ये गीत और नृत्य मौखिक प्रथा के अनुसार पीढ़ी-दर-पीढ़ी हस्तांतरित होते हैं और इनका ना तो कोई लिखित विधान है ना कोई प्रशिक्षण नियमावली।
  • राजस्थान के अन्य पारंपरिक लोक नृत्य- घूमर, कच्छी घोड़ी, घूमर, गैर तथा भवई आदि हैं।

प्रारम्भिक परीक्षा : लोक नर्तकी गुलाबो देवी का सम्बन्ध किस नृत्य से है? 

(a) घूमर 

(b) कालबेलिया 

(c) भवई

(d) कच्छी घोड़ी

उत्तर: (b) 

मुख्य परीक्षा प्रश्न : कालबेलिया जनजाति कि प्रमुख विशेषताओं कि चर्चा कीजिए?

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