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एड्स के प्रति जागरूकता की कमी

(मुख्य परीक्षा : सामान्य अध्ययन, प्रश्नपत्र- 2: स्वास्थ्य संबंधी विषय; सामान्य अध्ययन, प्रश्नपत्र- 3: आपदा एवं आपदा प्रबंधन से संबंधित मुद्दे)

संदर्भ

  • चार दशक पहले 5 जून, 1981 को ‘रोग नियंत्रण और रोकथाम केंद्र’ ने लॉस एंजिल्स में 5 समलैंगिक पुरुषों के फेफड़ों में ‘असामान्य फंगल संक्रमण (न्यूमोसिस्टिस कैरिनी निमोनिया)’ की जानकारी दी थी।
  • यह विश्व में पहली बार था जब लोगों ने ‘कमज़ोर प्रतिरक्षा प्रणाली’ वाले व्यक्तियों में ‘ह्यूमन इम्यूनो डेफिसिएंसी वायरस (HIV)’ के कारण होने वाले ‘विनाशकारी संक्रमण’ के बारे में जाना।
  • विश्व पुनः एक नए वायरस (कोविड-19) से जूझ रहा है।

 भारत और एच.आई.वी./एड्स

  • भारत में एड्स का पहला मामला वर्ष 1986 में सामने आया और वर्ष 1997 से वर्ष 2010 के मध्य भारत ने एच.आई.वी./एड्स से लड़ने में सबसे बड़ी सफलता हासिल की।      
  • वर्ष 2012 में केंद्र सरकार के द्वारा एड्स को नियंत्रित करने की उपलब्धि को एक छोटी सी जीत के रूप में चिह्नित किया और इस बीमारी को स्वीकार करने, समझने और लड़ने की बात कही। परंतु, जल्द ही भारत अपने इस लक्ष्य से विचलित हो गया। 
  • विश्व स्वास्थ्य संगठन ने एच.आई.वी./एड्स के संबंध में एक लक्ष्य को प्रस्तुत करते हुए कहा कि वर्ष 2020 तक इस बीमारी से पीड़ित 90 प्रतिशत लोगों को ‘एंटी-रेट्रोवायरल थेरेपी’ प्रदान की जाए। बाद में इस समयावधि को 5 वर्ष आगे बड़ा दिया गया। 
  • इसी प्रकार, भारत सरकार ने अपनी वर्ष 2017 की ‘राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति’ एवं संयुक्त राष्ट्र के ‘सतत् विकास लक्ष्यों’ में वर्ष 2030 तक ‘एड्स को समाप्त करने’ की प्रतिबद्धता दर्शायी। किंतु, ऐसा प्रतीत होता है कि इस लक्ष्य को प्राप्त करने में अभी और अधिक समय लग सकता है।          

भारत द्वारा एड्स संक्रमण के प्रसार को रोकने के लिये किये गए प्रयास  

  • भारत में 1990 के दशक में ‘सूचना और शिक्षा अभियानों’ के माध्यम से एच.आई.वी. संक्रमण के संचरण को दो तरीकों से रोकने का प्रयास किया गया। इसमें वायरस का पहला संचरण ‘माँ से बच्चे’ तक तथा दूसरा ‘रक्त आधान’ के माध्यम से होता है।
  • सरकार के द्वारा ‘सख्त प्रसवपूर्व प्रोटोकॉल’ स्थापित किये गए और ‘ब्लड बैंकों’ को बेहतर परीक्षण सुविधाओं के साथ अपग्रेड किया गया था। साथ ही, ‘खून की बिक्री’ पर भी रोक लगा दी गई।  
  • ‘उत्कृष्ट जागरूकता कार्यक्रमों’ और ‘गहन अनुवर्ती कार्य योजनाओं’ के कारण बीमारी के प्रसार में उल्लेखनीय गिरावट आई, लेकिन बीमारी की कम दृश्यता के कारण किये जा रहे प्रयासों में भी कमी आने लगी।
  • यद्यपि, सरकारों के अहंकार और बीमारी के प्रसार में आई गिरावट की प्रसन्नता ने वर्ष 2013 से वर्ष 2019 के मध्य देश भर में ‘एड्स नियंत्रण कार्यक्रमों’ के कार्यान्वयन को धीमा कर दिया और साथ ही सरकारों ने एड्स को ‘प्राथमिक स्वास्थ्य’ की सूची से भी बाहर हो जाने दिया।  

लक्ष्य प्राप्ति में आई शिथिलता के परिणाम 

  • वर्ष 2014 के बाद आई नवीनतम सरकार ने विश्व को यह दिखाना चाहा कि भारत एड्स से निजात पाने के करीब है।
  • जागरूकता में शिथिलता के परिणामस्वरूप ‘एच.आई.वी. संक्रमण निदान दर’ जो वर्ष 2010 में 60% थी, वह वर्ष 2019 तक आते-आते गिरकर 23% हो गई; मृत्यु दर दोगुनी हो गई और साथ ही इस अवधि में एड्स के नए मामलों में 5 गुना अधिक वृद्धि हुई।  
  • ‘राष्ट्रीय एड्स नियंत्रण संगठन (NACO)’ की वर्ष 2019 की वार्षिक एच.आई.वी. अनुमान रिपोर्ट के अनुसार 58,000 से अधिक मौतें एड्स के कारण से हुईं, वहीं 69,000 से अधिक नए मामले सामने आए।
  • ऐसा इसलिये हुआ क्योंकि कमज़ोर समुदायों एम.एस.एम. (पुरुषों के साथ यौन संबंध रखने वाले पुरुष), आई.डी.यू. (नशीले पदार्थों का इंजेक्शन लगाने वाले), प्रवासी, यौनकर्मियों और ट्रक ड्राइवरों को शिक्षित और सशक्त बनाने के अभियान में शिथिलता दर्ज की गई।

एड्स के मामलों में वृद्धि का कारण 

  • वर्तमान की नई पीढ़ी इंटरनेट ज्ञान के माध्यम से शिक्षित हो रही है तथा उनके अंदर एड्स को लेकर जागरूकता का भी अभाव है। 
  • इस अभाव के परिणामस्वरूप नई पीढ़ी ऐसे लोगों के साथ अपने यौन संबंध बना रही है, जिनसे उनकी मुलाक़ात इंटरनेट पर उपस्थित विभिन्न ‘डेटिंग एप्स’ के माध्यम से हुई है। 
  • प्राकृतिक इच्छाओं और यौन व्यवहार को बदला नहीं जा सकता, फिर भी सुरक्षित यौन संबंध पर किशोरों के साथ विचार-विमर्श को समाप्त कर दिया गया है।

भारत सरकार की पुरातन नीति 

  • एड्स आंदोलन के अग्रदूतों ने समझा कि आंदोलन के सफल संचालन में एक मज़बूत राजनीतिक नेतृत्व, वित्तीय सहायता, समर्थन और सक्रियता गैर-परक्राम्य (non-negotiable) की आवश्यकता थी।
  • भारत में एच.आई.वी. की वास्तविकता सामने आने के बाद केंद्र सरकार ने अपने अल्पकालिक हितों को उपेक्षित करते हुए स्वास्थ्य क्षेत्र और महामारी के सामाजिक-आर्थिक प्रभावों से इतर एड्स के बारे में एक दीर्घकालिक दृष्टिकोण अपनाया।  

राष्ट्रीयकृत एड्स उपचार योजना 

  • इस योजना ने संक्रमित लोगों का जल्द पता लगाने, उनके निदान तथा उपचार के माध्यम से ने विभिन्न लोगों की जान बचाने के क्रम में एक आदर्श उदाहरण प्रस्तुत किया है।
  • इस योजना ने ‘राष्ट्रीय एड्स नियंत्रण कार्यक्रम (NACP)’ की शुरुआत की। इसके माध्यम से प्रत्येक राज्य और केंद्रशासित प्रदेश ने अपना स्वयं का ‘एड्स नियंत्रण संगठन’ स्थापित किया और नाको की देखरेख में महामारी की निगरानी और एकीकृत कार्य योजनाओं पर काम करने के लिये स्वतंत्र सहयोग और वित्त प्रदान किया गया।

कोविड-19 के परिप्रेक्ष्य में एच.आई.वी. नीति की भूमिका 

  • 21,000 एकीकृत परामर्श और परीक्षण केंद्रों (ICTC) में मौजूदा कार्यबल अच्छी तरह से जागरूकता प्रसार के लिये शिक्षित है।
  • यह कार्यबल शीघ्रता से संक्रमण का पता लगाने में मदद कर सकते हैं, संचरण के तरीकों पर बुनियादी जानकारी प्रदान कर सकते हैं, व्यवहार परिवर्तन को बढ़ावा दे सकते हैं, भेद्यता को कम कर सकते हैं और लोगों को देखभाल और उपचार सेवाओं से जोड़ सकते हैं।
  • अधिकांश आई.सी.टी.सी. की आंतरिक क्षेत्रों में उत्कृष्ट पहुँच है। साथ ही, इसके कर्मचारियों का उपयोग आसानी से कोविड-19 से निपटने के लिय भी किया जा सकता है।
  • सरकार को अपनी प्राथमिकताओं में बदलाव करने और 32,000 से अधिक प्राथमिक और शहरी स्वास्थ्य केंद्रों के साथ-साथ आई.सी.टी.सी. को पुनः सक्रिय करने की आवश्यकता है, ताकि उपचार के अधिकार और एड्स, कोविड-19 या किसी अन्य बीमारी से प्रभावित व्यक्तियों की गरिमा को सुरक्षित रखा जा सके।

आगे की राह 

  • भारत सरकार को एड्स के बारे में जागरूकता प्रसार के लिये अर्थशास्त्रियों, वैज्ञानिकों, चिकित्सकों, शोधकर्ताओं, तकनीशियनों, समाज के प्रतिनिधियों और नीति-निर्माताओं के व्यापक गठबंधन पर ध्यान केंद्रित करते हुए उनके मध्य बातचीत जारी रखने की आवश्यकता है।
  • एड्स को नियंत्रित करने के लिये एक बहु-क्षेत्रीय और बहु-आयामी रणनीति की आवश्यकता पर बल देना चाहिये।
  • सरकार को किसी भी चिकित्सा संकट से निपटने के लिये विज्ञान संचालित प्रतिक्रियाओं, अच्छी गुणवत्ता वाले डेटा व अनुभवजन्य साक्ष्य और समेकित दिशानिर्देशों का समर्थन करने के समान सूत्र पर भरोसा करने की आवश्यकता है।
  • सार्वभौमिक एहतियात और रोकथाम एन.ए.सी.पी. का आधार थे। विशेषज्ञों का मानना है कि एच.आई.वी. से निपटने में एन.ए.सी.पी. के अनुभव का उपयोग करने की आवश्यकता है।
  • वर्ष 2030 तक नए एच.आई.वी. संक्रमण को कम करने के लिये रोडमैप को पुनः संशोधित करने की आवश्यकता है। 
  • केंद्र सरकार को वैज्ञानिक जाँच के अच्छे आँकड़ों तथा सूचनाओं को एकत्रित करके बड़े पैमाने पर संसाधन उपलब्ध कराने की आवश्यकता है। 

निष्कर्ष 

स्वास्थ्य देखभाल प्रणाली में उपलब्ध उपकरणों का उपयोग करना स्वास्थ्य संकट को मुख्यधारा में लाने का सबसे अच्छा तरीका है। शिक्षा और जागरूकता पहुँच कार्यक्रमों को एकीकृत करके तथा समय पर वित्त को पुन:आवंटित और जारी करने से किसी भी पुराने (टी.बी./ एच.आई.वी./मलेरिया), तीव्र (हैजा  प्लेग) या नए प्रकोप से निपटने में सहायता प्राप्त की जा सकती है।

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