(प्रारंभिक परीक्षा- पर्यावरणीय पारिस्थितिकी, जैव-विविधता और जलवायु परिवर्तन संबंधी सामान्य मुद्दे)
(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 3 : संरक्षण, पर्यावरण प्रदूषण और क्षरण, पर्यावरण प्रभाव का आकलन)
संदर्भ
हाल ही में, लक्षद्वीप द्वीप समूह में नए प्रशासक द्वारा पारित कानूनों और सुधारों का स्थानीय स्तर पर विरोध हो रहा है। इन सबके बीच, एक महत्त्वपूर्ण और वास्तविक मुद्दा जलवायु परिवर्तन की तेज़ी से बढ़ती हुई समस्या है।
लक्षद्वीप : एक नज़र में
- लक्षद्वीप भारत के दक्षिण-पश्चिम तट से लगभग 400 किमी. दूर स्थित ‘कोरल एटॉल’ (प्रवालद्वीप- अंगूठी के आकार की मूंगा चट्टानें) का एक द्वीप समूह (Archipelago) है। इस द्वीपसमूह में 10 द्वीपों पर जनसंख्या निवास करती है, जो निर्जन द्वीपों, टापू, रेत के किनारे, जलमग्न और खुली चट्टानों के समूहों से घिरे हैं।
- इन सभी द्वीपों को मिलाकर इस केंद्र-शासित प्रदेश का कुल क्षेत्र लगभग 32 वर्ग किमी. है, जो भारत का सबसे छोटा द्वीप है। इस द्वीप पर 70,000 से अधिक लोग निवास करते हैं। इस प्रकार, घनत्व के अनुसार यह देश के सबसे अधिक जनसंख्या वाले क्षेत्रों में शामिल हैं।
समस्याएं
- यद्यपि इन द्वीपों ने कभी भी बड़ी राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक समस्याओं का अनुभव नहीं किया है परंतु वे प्राकृतिक चुनौतियों का सामना कर रहे हैं।
- लक्षद्वीप में वर्ष 1996 से कार्य कर रहे प्रकृति संरक्षण फाउंडेशन के अध्ययन के अनुसार, इन द्वीपसमूहों की निरंतर निवास के योग्य बने रहने की क्षमता का संबंध प्रत्येक द्वीप के आस-पास की चट्टानों से है। ये चट्टानें तूफ़ानों व चक्रवातों से सुरक्षा प्रदान करने के साथ-साथ तटीय कटाव को कम करती हैं और ताजे पानी के संसाधनों को सुरक्षित रखने में मदद करती हैं।
- हालाँकि, समुद्र के बढ़ते तापमान, जल्दी-जल्दी होने वाली अल-नीनों की घटनाओं से प्रवाल अपक्षय और ओखी, माहा और ताऊते जैसे तूफ़ानों ने पिछले चार वर्षों में चट्टानों को काफी नुकसान पहुँचाया है।
- चट्टानों और प्रवाल भित्तियों की क्षति जैव-विविधता और पारिस्थितिकी तंत्र के प्रकार्यों में गिरावट को प्रदर्शित करती है। वर्तमान परिस्थितियों के अनुसार, यदि इसकी संपूर्ण रिकवरी (पुनर्प्राप्ति) की बात की जाए तो बिना किसी बड़े जलवायु परिवर्तन बाधा के भी इसमें 30 वर्ष लग सकते हैं। तीव्र होती और बढ़ती हुई जलवायु विसंगतियों के बीच यह एक कल्पना मात्र ही है।
चुनौतियाँ
- यदि यही स्थितियाँ अनवरत जारी रहती हैं तो इन द्वीपों के निवासी जल्द ही ‘जलवायु शरणार्थी’ के संकट का सामना कर सकते हैं। द्वीपवासियों द्वारा वर्तमान जीवन शैली में बदलाव व विनाशवादी गतिविधियों के विरोध के बावजूद सरकार विकास के एजेंडे को आगे बढ़ाना चाहती है।
- पर्यावरणीय व विकासवादी दोनों ही दृष्टिकोण से ये तरीके संधारणीय नहीं हैं और जलवायु के प्रति अतिवादी दृष्टिकोण को प्रदर्शित करते हैं, जबकि द्वीपीय विकास के लिये लचीले दृष्टिकोण की आवश्यकता होती है।
- इससे पारिस्थितिक आत्मतुष्टि और प्रबंधन शिथिलता को बढ़ावा मिलने के साथ-साथ स्थानीय निर्णय निर्माताओं के निष्क्रियता को सही ठहरा दिया जाता है, जो द्वीपों के पारिस्थितिक लचीलेपन को खतरे में डाल रहा है।
उपाय
- इसके लिये बीच के रास्ते की ज़रूरत है। जलवायु और विकास के बीच सामंजस्य के साथ-साथ सरकार-समर्थकों और समुदाय-समर्थकों के बीच भी सामंजस्य की आवश्यकता है।
- लक्षद्वीप में वर्ष 2020 के दौरान कोविड-19 का एक भी मामला दर्ज नहीं किया गया। हालाँकि, इस वर्ष जनवरी के बाद से वायरस के प्रसार में तेज़ी आई है और प्रवेश संबंधी प्रतिबंधों के सख्त होने के कारण द्वीपों की यात्रा और समुदाय का कार्य मुश्किल हो गया है।
- जलवायु परिवर्तन से निपटना कोविड-19 के प्रकोप से निपटने से बहुत अलग नहीं है। दोनों के लिये सरकार और लोगों के बीच सहयोग की आवश्यकता है। इस सहयोग को सही सूचना के प्रसार से मज़बूत किया जा सकता है, जिसके लिये सशक्त संवाद और निस्वार्थ सहयोग की आवश्यकता है।
- किसी समुदाय में जागरूकता फैलाने या हितधारकों के साथ जुड़ने के लिये उन तक पहुँच आवश्यक है। इसके लिये संवाद का एक अलग तरीका खोजना होगा। इसे लक्षद्वीप को हाई-स्पीड इंटरनेट प्रदान करने के लिये अंडरसी ऑप्टिकल फाइबर केबल लिंक परियोजना के माध्यम से महसूस किया जा सकता है।
- कोविड के बाद की दुनिया में, सोशल मीडिया, ऐप्स और वेबसाइटों के माध्यम से जलवायु परिवर्तन के संदेश का प्रसार करने के लिये इंटरनेट की शक्ति का लाभ उठाना महत्त्वपूर्ण साबित हो सकता है। जलवायु परिवर्तन के प्रभावों पर सामूहिक रूप से काबू पाने और सहयोग की आवश्यकता है।