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भारत में भूस्खलन और संबंधित मुद्दे

संदर्भ

पूर्वोत्तर में चक्रवाती बारिश के कारण हुए भूस्खलन ने आपदाओं के प्रति लचीलेपन की आवश्यकता पर प्रकाश डाला है। 15 राज्यों और चार केंद्र शासित प्रदेशों में फैला भारत का लगभग 13% क्षेत्र भूस्खलन की दृष्टि से संवेदनशील है।

क्या है भूस्खलन

  • किसी ढलान से चट्टान, पत्थर, मिट्टी या मलबे का अचानक खिसकना भूस्खलन कहलाता है।
  • भूस्खलन एक प्रकार का “बड़े पैमाने पर विनाश” है, जो गुरुत्वाकर्षण के प्रत्यक्ष प्रभाव के तहत मिट्टी और चट्टान के नीचे की ओर होने वाली गति को दर्शाता है। 
  • भूस्खलन मुख्य रूप से स्थानीय कारणों से उत्पन्न होते हैं। इसलिए भूस्खलन के बारे में आँकड़े एकत्र करना और इसकी संभावना का अनुमान लगाना न सिर्फ मुश्किल अपितु काफी महँगा पड़ता है।
  • भूस्खलन को मोटे तौर पर तीन प्रकार से वर्गीकृत किया जाता है : 
    • भूस्खलन में शामिल सामग्री का प्रकार जैसे चट्टान, मलबा, मिट्टी, ढीली मिट्टी।
    • स्खलित सामग्री की गति का प्रकार जैसे गिरना, पलटना, खिसकना, घूर्णी खिसकना या स्थानान्तरणीय खिसकना या धंसना।
    • सामग्री के प्रवाह के प्रकार के आधार पर जैसे तीव्र संचलन, नीचे की ओर ढलान के साथ चिपचिपा प्रवाह या धीमा (लगभग स्थिर) प्रवाह।

भूमि का अधोगमन या धंसना

  • पृथ्वी की उप-सतह सामग्री के हटने या विस्थापन के कारण पृथ्वी की उपरी सतह का धीरे-धीरे नीचे बैठने या अचानक धंसने की स्थिति भूमि का अधोगमन कहा जाता है।
  • ऐसा अक्सर पंपिंग, फ्रैकिंग या खनन गतिविधियों द्वारा पानी, तेल, प्राकृतिक गैस या खनिज संसाधनों को जमीन से बाहर निकालने के कारण होता है।
  • इसके अलावा, भूकम्प, मृदा संघनन, हिमानी आइसोस्टैटिक समायोजन, कटाव, सिंकहोल निर्माण और हवा द्वारा जमा की गई महीन मिट्टी (लोएस जमाव) में पानी मिलाने जैसी प्राकृतिक घटनाओं के कारण भी धंसाव हो सकता है।
  • जोशीमठ की हालिया घटना को भूमि धंसाव के उदाहरण के रूप में देखा जा सकता है। 

भूस्खलन के संभावित कारण क्या हो सकते हैं?

  • भूस्खलन के कारणों को दो भागों में वर्गीकृत किया जा सकता है : प्राकृतिक कारक और मानव जनित कारक। 

प्राकृतिक कारक 

  • भूवैज्ञानिक स्थितियाँ :  भारत में विविध भू-आकृतियाँ जैसे नरम चट्टानें, खड़ी ढलान और अस्थिर मिट्टी की स्थितियाँ मौजूद हैं। गुरुत्वाकर्षण के कारण इन भू-आकृतियों के फिसलने का खतरा बना रहता है जो भूस्खलन का कारण बनता है।
    • भारतीय और यूरेशियन प्लेट के अभिसरण के निर्मित हिमालय पर्वत की भू-आकृति में लगातार दबाव पड़ता है जिससे यहाँ भूस्खलन और भूकंप का खतरा हमेशा बना रहता है।
    • नीलगिरी के अलावा कोंकण तट पर खड़ी ढलानों पर लैटेराइटिक कैप की विशेषता वाले विभिन्न प्रकार के भूस्खलन दक्षिण में पश्चिमी घाटों के लिए लगातार खतरा पैदा करते हैं।
  • भूकंप:  भारत भूकंपीय रूप से सक्रिय क्षेत्र में स्थित है और भूकंप ढलानों को अस्थिर करके भूस्खलन का कारण बन सकते हैं।
  • भारी वर्षा:  भारत में मानसून के दौरान भारी वर्षा होती है, जो मिट्टी को संतृप्त कर सकती है और उसका वजन बढ़ा सकती है, जिससे उसकी ताकत कम होती है तथा भूस्खलन हो सकता है।
  • मिट्टी कटाव : हवा और पानी के कारण ढलानों का प्राकृतिक कटाव मिट्टी को कमजोर कर सकता है, जिससे यह भूस्खलन के प्रति अधिक संवेदनशील हो जाता है।

मानवजनित कारक

  • वनों की कटाई :  पेड़ों और वनस्पतियों को काटने से ढलान की स्थिरता कम हो जाती है एवं मिट्टी का कटाव बढ़ जाता है जिससे भूस्खलन हो सकता है।
  • खनन गतिविधियाँ :  खनन कार्य ढलानों को अस्थिर कर सकते हैं और विस्फोट, उत्खनन, मिट्टी एवं चट्टान का कटाव भूस्खलन का कारण बन सकते हैं।
  • निर्माण गतिविधियाँ :  अनुचित निर्माण पद्धतियाँ, जैसे अनुचित ग्रेडिंग या खुदाई ढलानों को अस्थिर कर सकती हैं और भूस्खलन का कारण बन सकती हैं।
  • भूमि उपयोग में परिवर्तन :  भूमि उपयोग में परिवर्तन, जैसे शहरीकरण, अभेद्य सतहों में वृद्धि कर सकता है, जिससे जल को मिट्टी द्वारा सोखे जाने की प्रक्रिया में बाधा उत्पन्न हो सकती है और अपवाह बढ़ सकता है, जिससे भूस्खलन हो सकता है।
  • जल प्रबंधन :  खराब जल प्रबंधन, जैसे अनुचित बांध संचालन या अनुचित जल निकासी, ढलानों पर पानी का दबाव बढ़ा सकते हैं और स्थिरता को कम कर सकते हैं, जो भूस्खलन का प्रेरक हो सकता है।

भूस्खलन का प्रभाव क्या हो सकता है?

सामाजिक प्रभाव

  • जान-माल की हानि :  भूस्खलन से प्रभावित क्षेत्रों में रहने वाले लोगों की जान-माल को क्षति पहुँच सकती है।
    • कई मामलों में, भूस्खलन अचानक होता है, जिससे लोगों को निकलने के लिए पर्याप्त समय नहीं मिल पता या बहुत कम समय मिलता है, जो स्थिति को और गंभीर बना देता है।
  • समुदायों का विस्थापन :  भूस्खलन लोगों को अपने घर खाली करने के लिए मजबूर कर सकता है, जिससे अस्थायी या स्थायी विस्थापन हो सकता है। 
    • इसका विशेषकर, महिलाओं, बच्चों और बुजुर्गों जैसे कमजोर समूहों पर महत्वपूर्ण सामाजिक प्रभाव हो सकता है।

आर्थिक प्रभाव

  • कृषि क्षेत्र :  ग्रामीण क्षेत्रों, जहां कृषि आय का मुख्य स्रोत है, में फसलों, पशुधन और बुनियादी ढांचे को नुकसान होने से आय कम हो सकती है और खाद्य असुरक्षा बढ़ सकती है।
  • बुनियादी ढांचे को नुकसान :  भूस्खलन से सड़कें, पुल, इमारतें और अन्य बुनियादी ढांचे को नुकसान पहुंच सकता है, जिससे परिवहन और संचार नेटवर्क बाधित हो सकते हैं। 
  • पर्यटन राजस्व में कमी :  भूस्खलन भारत में पर्यटन उद्योग को भी प्रभावित कर सकता है, खासकर उन क्षेत्रों में जो अपनी प्राकृतिक सुंदरता या सांस्कृतिक विरासत के लिए जाने जाते हैं।

पर्यावरणीय क्षरण

  • भूस्खलन से महत्वपूर्ण पर्यावरणीय क्षति हो सकती है, जिसमें मिट्टी का कटाव, वनों की कटाई और जैव विविधता का नुकसान शामिल है।
  • इसके अलावा, ऐसी आपदा से वन्यजीव भी नकारात्मक तौर पर प्रभावित हो सकते हैं। 

भारत की भूस्खलन संवेदनशीलता

  • भारत को वैश्विक स्तर पर भूस्खलन की आशंका वाले शीर्ष पांच देशों में से एक माना जाता है, जहाँ हर साल भूस्खलन की घटना के कारण हर 100 वर्ग किलोमीटर में कम से कम एक मौत की सूचना मिलती है।
  • भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण (GSI) के अनुसार, भारत का 15 राज्यों और चार केंद्र शासित प्रदेशों में फैला लगभग 0.42 मिलियन वर्ग किमी भूभाग (लगभग 13%) भूस्खलन की चपेट में है।
    • इसमें देश के लगभग सभी पहाड़ी क्षेत्र शामिल हैं, जिसमें लगभग 0.18 मिलियन वर्ग किमी (संवेदनशील क्षेत्र का 42%) पूर्वोत्तर क्षेत्र में है, जहां का अधिकतर भूभाग पहाड़ी है।
    • भूस्खलन की लगभग 66.5 प्रतिशत घटनाएं उत्तर-पश्चिमी हिमालय से, लगभग 18.8 प्रतिशत उत्तर-पूर्वी हिमालय से और लगभग 14.7 प्रतिशत पश्चिमी घाट से रिपोर्ट की जाती हैं।
    • यह क्षेत्र भूकंप के प्रति भी संवेदनशील है, जो भूस्खलन का एक प्रमुख कारण है।
  • सरकारी आंकड़ों के अनुसार वर्ष 2015 से 2022 के बीच, सिक्किम सहित इस क्षेत्र के आठ राज्यों में 378 बड़े भूस्खलन की घटनाएं दर्ज की गईं। 
    • पूरे देश में, केरल में सबसे ज़्यादा (2,239) भूस्खलन हुए, इनमें से ज़्यादातर वर्ष 2018 की विनाशकारी बाढ़ के बाद हुए थे।

भूस्खलन से निपटने के लिए क्या प्रयास किए जा रहे हैं?

भूस्खलन एटलस

इसे भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) द्वारा जारी किया गया है। इसके अनुप्रयोगों में शामिल हैं-

  • आपदा प्रबंधन :  भूस्खलन एटलस का उपयोग भूस्खलन की आशंका वाले क्षेत्रों की पहचान करने और जान-माल के नुकसान से बचने के लिए निवारक उपाय करने के लिए किया जा सकता है।
  • भूमि उपयोग योजना :  एटलस का उपयोग उन क्षेत्रों की पहचान करने के लिए किया जा सकता है जो भूस्खलन के जोखिम के कारण विकास या मानव निवास के लिए अनुपयुक्त हैं।
  • बुनियादी ढांचे की योजना :  इसका उपयोग भूस्खलन से सुरक्षित क्षेत्रों में सड़क, रेलवे और इमारतों जैसे बुनियादी ढांचे के निर्माण की योजना बनाने के लिए किया जा सकता है।
  • भूवैज्ञानिक अध्ययन :  यह भूवैज्ञानिकों को भूस्खलन के कारणों और संबंधित घटना में योगदान देने वाले कारकों का अध्ययन करने में मदद कर सकता है।
  • शोध :  एटलस का उपयोग भूस्खलन और जलवायु परिवर्तन, मिट्टी के कटाव और प्राकृतिक आपदाओं जैसे संबंधित विषयों पर शोध के लिए एक संदर्भ के रूप में किया जा सकता है।

राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (NDMA) दिशानिर्देश

  • खतरे का मानचित्रण :  NDMA भूस्खलन के खतरे के मानचित्र तैयार करने की सिफारिश करता है, जिससे भूस्खलन के जोखिम वाले क्षेत्रों की पहचान करने और भूमि उपयोग योजना और विकास गतिविधियों का मार्गदर्शन करने में मदद मिल सकती है।
  • प्रारंभिक चेतावनी प्रणालियाँ :  NDMA प्रारंभिक चेतावनी प्रणालियों की आवश्यकता पर जोर देती है जो आसन्न भूस्खलन के बारे में अलर्ट प्रदान कर सकती हैं, जिससे लोगों को खाली करने और अन्य एहतियाती उपाय करने की अनुमति मिल सके।
  • भूमि-उपयोग योजना :  विकास गतिविधियों को भूस्खलन के जोखिमों को ध्यान में रखना चाहिए, और जोखिमों को कम करने के लिए उचित उपाय किए जाने चाहिए।
  • ढलान स्थिरीकरण :  इसके लिए रिटेनिंग दीवारों का निर्माण या मिट्टी की पकड़ मजबूत करने के लिए अधिक पेड़ लगाने पर बल दिया जाना चाहिए। 
  • तैयारी :  नालियां साफ रखें, नालियों का निरीक्षण करें, कूड़े, पत्ते, प्लास्टिक की थैलियाँ, मलबा आदि को इकट्ठा ना होने दें।
    • चट्टानों के गिरने और इमारतों के धंसने के क्षेत्रों, भूस्खलन का संकेत देने वाली दरारों की पहचान करें और भूस्खलन के किसी भी तरह का संकेत मिलने पर त्वरित रूप से जिम्मेदार संस्था को इसकी सूचना दें।
  • भूस्खलन के बाद के उपाय :  NDMA ने सिफारिश की है कि आवश्यक सेवाओं और बुनियादी ढांचे को बहाल करने के साथ-साथ प्रभावित समुदायों को सहायता प्रदान करने के लिए भूस्खलन के बाद के उपाय किए जाने चाहिए।
    • प्रमुख भूस्खलनों के स्थल-विशिष्ट का अध्ययन करें और उपचार उपायों की योजना बनाएं तथा राज्य सरकारों को इन उपायों को क्रियान्वित करने के लिए प्रोत्साहित करें।

आगे की राह

  • प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली :  सरकार को प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली में निवेश जारी रखना चाहिए जो भूस्खलन-प्रवण क्षेत्रों में रहने वाले लोगों को सचेत कर सके।
  • बुनियादी ढांचे का विकास :  सरकार को भूस्खलन के प्रति लचीला बुनियादी ढांचा विकसित करने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए। 
  • इसमें रिटेनिंग दीवारें बनाना, ढलानों को स्थिर करना और जल निकासी व्यवस्था में सुधार और मजबूत सड़क एवं पुल का निर्माण करना शामिल हो सकता है।
  • वनरोपण : भूस्खलन की आशंका वाले क्षेत्रों में वनरोपण और टिकाऊ भूमि उपयोग को बढ़ावा देना चाहिए।
  • शोध और मानचित्रण : भूस्खलन के लिए सबसे अधिक संवेदनशील क्षेत्रों की पहचान करने के लिए और अधिक शोध एवं मानचित्रण में निवेश करना चाहिए।
  • आपदा प्रबंधन योजना : योजनाओं की नियमित रूप से समीक्षा की जानी चाहिए और उन्हें अद्यतन किया जाना चाहिए ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि वे बदलते परिदृश्य एवं स्थानीय समुदायों की ज़रूरतों के लिए प्रासंगिक हैं।
  • सामुदायिक जागरूकता और क्षमता का निर्माण :  सरकार द्वारा स्थानीय समुदायों को भूस्खलन के जोखिमों और उन्हें रोकने व प्रबंधित करने के तरीकों से संबंधित आपातकालीन प्रतिक्रिया, प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली तथा टिकाऊ भूमि उपयोग प्रथाओं का प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए।

निष्कर्ष

भारत में भूस्खलन को कम करने के लिए बहुआयामी दृष्टिकोण की आवश्यकता है जिसमें बुनियादी ढांचे, पुनर्वनीकरण, स्थायी भूमि उपयोग प्रथाओं, अनुसंधान और सामुदायिक भागीदारी में निवेश शामिल है। इस क्रम में, भूस्खलन एटलस और प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली के साथ-साथ नए नवाचारों पर भी बल देना होगा जिससे प्रभावितों के जीवन स्तर में गुणात्मक वृद्धि किया जा सके।

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