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विधि आयोग द्वारा समान नागरिक संहिता पर सुझाव की मांग

प्रारंभिक परीक्षा – समान नागरिक संहिता, विधि आयोग
मुख्य परीक्षा : सामान्य अध्ययन प्रश्नप्रत्र 2 - सरकारी नीतियों और विभिन्न क्षेत्रों में विकास के लिये हस्तक्षेप और उनके अभिकल्पन तथा कार्यान्वयन के कारण उत्पन्न विषय

सन्दर्भ 

  • हाल ही में, 22वें विधि आयोग ने समान नागरिक संहिता पर सार्वजनिक और धार्मिक संगठनों सहित विभिन्न हितधारकों से अपने-अपने सुझाव साझा करने को कहा है।

समान नागरिक संहिता (UCC)

  • समान नागरिक संहिता का अर्थ पूरे देश के लिये एक समान कानून से है, जो सभी धार्मिक समुदायों पर उनके व्यक्तिगत मामलों, जैसे- विवाह, तलाक, विरासत, गोद लेने आदि पर लागू होगा।
  • गोवा भारत का एकमात्र ऐसा राज्य है, जहां समान नागरिक संहिता लागू है।

ucc

संवैधानिक प्रावधान 

  • संविधान के अनुच्छेद 44 के अनुसार राज्य, भारत के समस्त नागरिकों के लिये एक समान नागरिक संहिता लागू करने का प्रयास करेगा।
  • अनुच्छेद 44 भारतीय संविधान के अंतर्गत राज्य के नीति निदेशक तत्त्वों मे से एक है।
    • अनुच्छेद 37 में परिभाषित है, कि राज्य के नीति निदेशक तत्त्व संबंधी प्रावधानों को किसी भी न्यायालय द्वारा प्रवर्तित नहीं किया जा सकता है, लेकिन इसमें निहित सिद्धांत शासन व्यवस्था में मौलिक प्रकृति के होंगे।

देश में लागू विभिन्न पर्सनल लॉ

  • हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 - हिंदुओं, बौद्धों, जैनियों और सिखों पर लागू
  • पारसी विवाह और तलाक अधिनियम, 1936 - पारसियों से संबंधित मामलों पर लागू
  • भारतीय ईसाई विवाह अधिनियम, 1872 - ईसाईयों से संबंधित मामलों पर लागू
  • मुस्लिम पर्सनल लॉ (शरीयत) आवेदन अधिनियम, 1937 - मुसलमानों से संबंधित मामलों पर लागू

पक्ष में तर्क

  • एक धर्मनिरपेक्ष देश को धार्मिक प्रथाओं के आधार पर विभेदित नियमों की जगह पर, सभी नागरिकों के लिए एक समान कानून की आवश्यकता होती है।
  • UCC से धार्मिक आधार पर लैंगिक भेदभाव को समाप्त करने, और राष्ट्र के धर्मनिरपेक्ष ढांचे को मजबूत करने में मदद मिलेगी।
  • धार्मिक रुढ़ियों की वजह से समाज के किसी वर्ग के अधिकारों का हनन रोका जाना चाहिये, साथ ही 'विधि के समक्ष समता' की अवधारणा के तहत सभी के साथ समानता का व्यवहार होना चाहिये
  • इससे महिलाओं के साथ उचित व्यवहार करने और उन्हे समान अधिकार प्राप्त करने के लक्ष्य की दिशा में अग्रसर होने मे सहायता मिलेगी
  • समान नागरिक संहिता से विभिन्न समुदायों में प्रचलित अन्यायपूर्ण और तर्कहीन रीति-रिवाजों और परंपराओं को समाप्त करने में मदद मिलेगी।
  • समान नागरिक संहिता पूरे देश में एक समान नागरिक कानूनों को लागू करने में सक्षम होगी।
  • UCC, भारत के विशाल जनसंख्या आधार को प्रशासित करना आसान बनाएगी, इससे देश का कानूनी एकीकरण होगा।
  • उच्चतम न्यायालय ने भी अपने कई निर्णयों में विशेष रूप से शाह बानो मामले में दिए गए अपने निर्णय में कहा है, कि सरकार को एक ‘समान नागरिक संहिता’ लागू करने की दिशा में अग्रसर होना चाहिए।
  • अनुच्छेद 25 के तहत किसी व्यक्ति की धार्मिक स्वतंत्रता सार्वजनिक व्यवस्था एवं  सदाचार के अधीन है, इसीलिए इसके उल्लंघन के आधार पर समान नागरिक संहिता का विरोध नहीं किया जा सकता।

विपक्ष में तर्क

  • भारत में व्यक्तिगत कानूनों का लंबा इतिहास रहा है, इन्हे सरलता से समाप्त नहीं किया जा सकता है। 
  • धार्मिक संस्थाएं, इस आधार पर एक समान नागरिक संहिता का विरोध करती हैं, कि यह धार्मिक मामलों में हस्तक्षेप होगा, जो संविधान के अनुच्छेद 25 के तहत प्रदत्त मौलिक अधिकारों का उल्लंघन होगा।
  • इससे विभिन्न समुदायों की धार्मिक पहचान के कमजोर हो जाने की संभावना पैदा  हो सकती है।
  • इससे, भारत की विविधता, रीति-रिवाजों, स्थानीय परंपराओं को खतरा हो सकता है।
  • भारतीय समाज की बहुसांस्कृतिक पहचान में कमी आ सकती है।

आगे की राह

  • समान नागरिक संहिता, हालांकि अत्यधिक वांछनीय है, परंतु इसे जल्दबाजी में लागू करना देश के सामाजिक सौहार्द के प्रतिकूल हो सकता है। 
  • इसे धीरे-धीरे क्रमिक सुधारों के रूप में लागू किया जाना चाहिये। 
  • सर्वप्रथम रीति-रिवाजों और परंपराओं के उन तत्वों को एक एकीकृत कानून के दायरे में लाया जाना चाहिए, जो व्यक्तियों के अधिकारों का अतिक्रमण करते हैं।
  • विभिन्न व्यक्तिगत कानूनों में भी कुछ अच्छे और न्यायसंगत प्रावधान हैं, उन्हे एकीकृत कानून में शामिल किये जाने पर विचार किया जाना चाहिये। 
  • विभिन्न समुदायों की संस्कृति को बचाए रखने के लिए, उनसे संबंधित अच्छे रीति-रिवाजों और परंपराओं का संरक्षण किया जाना चाहिए।
  • इससे भारत को अपनी ताकत यानी विविधता में एकता की रक्षा करने में मदद मिलेगी।
  • समान नागरिक संहिता जैसी गंभीर प्रभाव वाली नीतियों को लागू करने के लिए सभी हितधारकों की आम सहमति बनाने का प्रयास किया जाना चाहिये। 

विधि आयोग

  • विधि आयोग, केंद्र सरकार द्वारा गठित एक गैर-सांविधिक निकाय है।
  • यह कानून और न्याय मंत्रालय के सलाहकार निकाय के रूप में काम करता है।
  • इसे एक तदर्थ निकाय के रूप में संदर्भित किया जा सकता है, जिसका गठन किसी विशेष उद्देश्य की पूर्ति के लिए किया जाता है।
  • इसका लक्ष्य समाज में न्याय को सुलभ बनाने और विधि के शासन के तहत सुशासन को बढ़ावा देने के लिये कानूनों में सुधार का सुझाव देना है।
  • विधि आयोग के विचारार्थ विषयों में अन्य बातों के साथ-साथ अप्रचलित कानूनों की समीक्षा/निरसन, गरीबों को प्रभावित करने वाले कानूनों की जांच करना और सामाजिक-आर्थिक विधानों के लिये पोस्ट-ऑडिट करना, न्यायिक प्रशासन की प्रणाली की समीक्षा करना शामिल है।
  • इसका कार्य कुछ निर्धारित संदर्भ के साथ कानून के क्षेत्र में अनुसंधान करना है। 
  • आयोग अपने संदर्भ शर्तों के अनुसार सरकार को (रिपोर्ट के रूप में) सिफारिशें करता है। 
  • विधि आयोग ने अभी तक 277 रिपोर्ट प्रस्तुत की हैं।
  • स्वतंत्र भारत का पहला विधि आयोग वर्ष 1955 में स्थापित किया गया था, जिसकी अध्यक्षता एम. सी. सीतलवाड़ ने की थी।
  • भारत की आजादी के बाद से अब तक 22 विधि आयोग गठित हो चुके हैं,  वर्तमान विधि आयोग (22 वां) के अध्यक्ष न्यायमूर्ति रितु राज अवस्थी हैं।
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