संदर्भ
हाल ही में एक अध्ययन में अष्टमुडी रामसर आर्द्रभूमि में सीमा से अधिक माइक्रोप्लास्टिक संदूषण पर प्रकाश डाला गया है, जो निरंतर निगरानी और "संभावित सार्वजनिक स्वास्थ्य चिंताओं" को संबोधित करने की आवश्यकता को रेखांकित करता है।
अष्टमुडी झील में माइक्रोप्लास्टिक संदूषण
- झील में जाने वाले अनुपचारित नगरपालिका ठोस अपशिष्ट और प्लास्टिक मलबे, झील के नज़दीक स्थित आवास एवं रिसॉर्ट घरेलू अपशिष्ट को सीधे जलाशयों में प्रवाहित कर दिया जाता है। जिसके कारण मछलियों में 19.6% और शेलफ़िश (विभिन्न मोलस्क जीव) में 40.9% तक माइक्रोप्लास्टिक पाया गया।
- इन माइक्रोप्लास्टिक में फाइबर और खतरनाक भारी धातुओं (नायलॉन, पॉलीयुरेथेन, पॉलीप्रोपाइलीन, पॉलीइथिलीन और पॉलीसिलोक्सेन) की मौजूदगी का पता चला है।
अष्टमुडी झील (Ashtamudi Lake)
- अष्टमुडी झील केरल के कोल्लम ज़िले में स्थित एक अनूप झील है। इसका आकार आठ-भुजाओं वाला है।
- यह झील केरल की दूसरी सबसे बड़ी झील है, जो लगभग 61 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैली हुई है।
- 2002 में अष्टमुडी वेटलैंड को रामसर स्थल घोषित किया गया था।
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क्या है माइक्रोप्लास्टिक
- माइक्रोप्लास्टिक पांच मिलीमीटर से भी कम लंबाई के छोटे प्लास्टिक के टुकड़े होते हैं।
- प्रकार : माइक्रोप्लास्टिक दो प्रकारों से वर्गीकृत किया जा सकता है : प्राथमिक और द्वितीयक।
- प्राथमिक माइक्रोप्लास्टिक के उदाहरणों में शामिल हैं- माइक्रोबीड्स (स्वास्थ्य और सौंदर्य उत्पादों, जैसे-क्लीन्ज़र और टूथपेस्ट में एक्सफ़ोलिएंट), औद्योगिक विनिर्माण में उपयोग किए जाने वाले प्लास्टिक छर्रे (नर्डल्स) और सिंथेटिक वस्त्रों में उपयोग किए जाने वाले प्लास्टिक फाइबर (जैसे- नायलॉन )।
- ये छोटे कण आसानी से जल निस्पंदन प्रणालियों से गुज़रते हैं और समुद्र एवं झील में पहुँच जाते हैं, जिससे जलीय जीवन के लिए संभावित ख़तरा पैदा होता है।
- द्वितीयक माइक्रोप्लास्टिक बड़े प्लास्टिक के टूटने से बनते हैं; यह आमतौर पर तब होता है जब बड़े प्लास्टिक धीरे-धीरे अपक्षय होता है। उदाहरण के लिए, तरंग क्रिया, वायु घर्षण और सूर्य के पराबैंगनी विकिरण के प्लास्टिक का अपक्षय।
विश्व में माइक्रोप्लास्टिक प्रदूषण
- 2024 प्लास्टिक ओवरशूट डे (POD) रिपोर्ट के अनुसार, 217 देश विश्व के जलमार्गों में 3,153,813 टन माइक्रोप्लास्टिक छोड़ेंगे जिसमें चीन, भारत, संयुक्त राज्य अमेरिका और जापान में इस मात्रा का 51 प्रतिशत हिस्सा होगा।
- स्विस गैर-लाभकारी “ईए अर्थ एक्शन” (EA Earth Action) द्वारा किए गए विश्लेषण से पता चला है कि भारत 391,879 टन माइक्रोप्लास्टिक जारी करेगा और दुनिया में चीन (787,069 टन) के बाद जल निकायों को प्रदूषित करने वाला दूसरा सबसे बड़ा देश होगा।
- समुद्री प्लास्टिक प्रदूषण : इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंजर्वेशन ऑफ नेचर (IUCN) के अनुसार, प्रत्येक वर्ष न्यूनतम 8 मिलियन टन प्लास्टिक महासागरों में पहुंच जाता है।
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माइक्रोप्लास्टिक प्रदूषण के स्वास्थ्य और पारिस्थितिकी तंत्र पर प्रभाव
मानव स्वास्थ्य पर
- एक अनुमान के अनुसार, एक औसत मानव प्रत्येक वर्ष भोजन में माइक्रोप्लास्टिक के कम से कम 50,000 कणों का उपभोग करता है।
- वायुजनित धूल, पीने के पानी (उपचारित नल के जल और बोतलबंद जल सहित) के द्वारा मानव संपर्क में आने से माइक्रोप्लास्टिक सांस लेने पर वायुमार्ग और फेफड़ों में ऑक्सीडेटिव तनाव पैदा कर सकता है।
- इससे खांसी, छींकने और सूजन एवं क्षति के कारण सांस लेने में तकलीफ जैसे श्वसन लक्षण हो सकते हैं, साथ ही थकान और चक्कर भी आ सकते हैं।
- माइक्रोप्लास्टिक्स हमारे पेट तक पहुंच सकते हैं जहां वे पेट और आंतों को प्रभावित कर सकते हैं या रक्त जैसे शरीर के तरल पदार्थों में स्वतंत्र रूप से प्रवाह कर सकते हैं, जिससे शरीर के विभिन्न अंगों और ऊतकों तक पहुंच सकते हैं।
- तंत्रिका तंत्र, हार्मोन, प्रतिरक्षा प्रणाली को नकारात्मक रूप से प्रभावित करता है और इसमें कैंसर उत्पन्न करने वाले गुण होते हैं।
पारिस्थितिकी तंत्र और वन्य जीवन पर प्रभाव
- माइक्रोप्लास्टिक्स बायोडिग्रेड नहीं होते, इसलिए वे मिट्टी, हवा और महासागरों में फैलना शुरू कर देते हैं। अपने बड़े सतह क्षेत्र के कारण, वे भारी धातुओं और लगातार कार्बनिक प्रदूषकों सहित विभिन्न प्रदूषकों को सोख सकते हैं, जिससे जानवरों और मानव कल्याण के लिए गंभीर परिणाम हो सकते हैं।
- माइक्रोप्लास्टिक प्रजनन प्रणाली को बाधित करने, ऊतकों में सूजन पैदा करने और मछलियों तथा अन्य समुद्री जीवों में भोजन करने के व्यवहार को बदल सकता है।
- माइक्रोप्लास्टिक जो निगले जाते हैं, वे छोटे जानवरों के जठरांत्र संबंधी मार्ग को अवरुद्ध कर सकते हैं और आंतरिक रूप से शारीरिक क्षति भी पहुंचा सकते हैं। इसके अलावा, जब निगले जाते हैं तो वे भूख समाप्त होने की झूठी भावना पैदा कर सकते हैं।
- विभिन्न अकशेरुकी समुद्री जानवरों के पेट में विषाक्त प्लास्टिक के संचित होने से भुखमरी तथा मृत्यु हो जाती है, विषाक्त प्लास्टिक के संचित होने से वृद्धि और प्रजनन पर भी प्रभाव पड़ता है।
माइक्रोप्लास्टिक को कम करने के उपाय
- प्लास्टिक का प्रयोग कम करना, पुन: उपयोग करना और पुनर्चक्रण करना विश्व में माइक्रोप्लास्टिक के संकट को समाप्त करने का सबसे महत्वपूर्ण विकल्प है।
- पारंपरिक प्लास्टिक के स्थायी विकल्प के साथ माइक्रोप्लास्टिक प्रदूषण को खत्म करना चाहिए।
- घरेलू अपशिष्टों के निष्पादन हेतु प्रायः खुले में भराव और खुली हवा में जलाने पर प्रतिबंध लगाना और उपयोग किए गए प्लास्टिक के 100% संग्रहण और पुनर्चक्रण लागू किया जाना चाहिए।
- माइक्रोप्लास्टिक के विकल्प के रूप में जैव प्लास्टिक को प्रोत्साहन प्रदान किया जा सकता है।
- यह उद्योग में निवेश और सरकारी सहायता से किया जा सकता है जिससे उत्पादन की लागत कम होगी और विभिन्न उद्योगों के लिए इसके आकर्षण में वृद्धि होगी।
- स्वच्छ भारत मिशन (SBM) की तर्ज पर जनता के मध्य माइक्रोप्लास्टिक व्युत्पन्न उत्पादों, हानिकारक प्रभावों और इसके उपयोग को कम करने के तरीकों के बारे में जागरूकता अभियान चलाए जाने चाहिए।
- सभी हितधारकों (समुदाय, उद्योग, सरकार एवं नागरिक समाज संगठनों) के मध्य सहकारी और सहयोगात्मक साझेदारी का उद्देश्य प्रभावी प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन और पश्चातवर्ती माइक्रोप्लास्टिक प्रदूषण में कमी सुनिश्चित करना है।
- माइक्रोप्लास्टिक प्रदूषण जैसे संकट से निपटने के लिए पेरिस समझौते की तर्ज पर वैश्विक सहयोग समय की मांग है।
- प्लास्टिक प्रदूषण को रोकने और हमारे पारिस्थितिकी तंत्र की रक्षा करने के उद्देश्य से सामूहिक सार्वजनिक प्रयास ही सुरक्षित पृथ्वी ग्रह सुनिश्चित करने हेतु आगे का मार्ग है।