(मुख्य परीक्षा: सामान्य अध्ययन, प्रश्न पत्र -2 विषय- एवं अप्रत्यक्ष कृषि सहायता तथा न्यूनतम समर्थन मूल्य से संबंधित विषय, जन वितरण प्रणाली – उद्देश्य, कार्य सीमाएं, सुधार, बफर स्टॉक तथा खाद्य सुरक्षा संबंधी विषय)
संदर्भ
- हाल ही में, केंद्र सरकार ने रबी फसलों के लिये न्यूनतम समर्थन मूल्य में वृद्धि की घोषणा की है। फसल के मूल्यों में की गई वृद्धि का उद्देश्य फसलों की खेती के रकबे को बढ़ाना तथा किसानों की आय में वृद्धि करना है।
- कृषि विशेषज्ञों को मानना है कि न्यूनतम समर्थन मूल्य में वृद्धि किसानों के लिये वास्तविक रूप में लाभकारी नही हैं। किसानों की आय में वृद्धि के लिये पशुपालन, मत्स्य पालन तथा फल एवं सब्जियों की कृषि में निवेश की आवश्यकता है।
किसानों की आय दोगुनी करना- एक महत्त्वकांक्षी लक्ष्य
- केंद्र सरकार ने वर्ष 2022-23 तक किसानों की आय को दोगुनी करने का महत्त्वाकांक्षी लक्ष्य निर्धारित किया है। इस लक्ष्य की प्राप्ति के संबंध में सुझाव प्रस्तुत करने के लिये वर्ष 2016 में अशोक दलवई समिति का गठन किया गया था। समिति के अनुसार, इस लक्ष्य की प्राप्ति के लिये प्रतिवर्ष 10.4 प्रतिशत की वृद्धि दर आवश्यक है।
- किसानों की आय को दोगुना करने के लिये कृषि मंत्रालय सात सूत्री कार्ययोजना पर कार्य कर रहा है, जो अधोलिखित हैं-
* प्रति बूँद अधिक फसल के लक्ष्य के साथ सिंचाई पर विशेष बल
* हर खेत की मृदा स्वास्थ्य के आधार पर श्रेष्ठ बीजों एवं पोषकता पर बल
* उपज के बाद नुकसान को कम करने के लिये ग्रामीण भण्डारण एवं एकीकृत शीत शृंखला पर बड़े पैमाने पर निवेश
* खाद्य प्रसंस्करण के माध्यम से कृषि में गुणवत्ता को बढ़ावा
* राष्ट्रीय कृषि बाज़ार की स्थापना
* किसानों का जोखिम कम करने के लिये प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना की शुरुआत
* सहायक गतिविधियों जैसे- मुर्गीपालन, मधुमक्खी पालन, पशुपालन, डेयरी विकास एवं मत्स्य पालन के माध्यम से किसानों की आय में वृद्धि
- नाबार्ड द्वारा जारी आँकड़ों के अनुसार, वर्ष 2015 -16 में किसानों की औसत मासिक आय 8931 रुपए थी। हालाँकि, जब तक 2022-23 में किसानों का आय सर्वेक्षण नहीं किया जाता, यह जान पाना कठिन है कि किसानों की आय को दोगुना करने का लक्ष्य कहाँ तक सफल रहा है।
वर्तमान स्थिति
- राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय द्वारा हाल ही में वर्ष 2018-19 के लिये खेतिहर परिवारों से संबंधित आँकड़े जारी किये गए। इसके अनुसार, वर्ष 2018-19 में कृषि परिवार की औसत मासिक आय 10,218 रुपए दर्ज की गई, जबकि वर्ष 2012-13 में यह आय 6,426 रुपए थी। इस प्रकार 2012 -13 से 2018-19 के मध्य चक्रवृद्धि वार्षिक दर 8 प्रतिशत हो गई है।
- किसानों की आय में होने वाली वास्तविक वृद्धि के लिये डिफ्लेटर का प्रयोग महत्त्वपूर्ण हो जाता है। यदि किसानों की आय में वृद्धि की गणना में कृषि श्रम के लिये उपभोक्ता मूल्य सूचकांक को ध्यान में रखा जाए तो किसानों की आय में चक्रवृद्धि वार्षिक वृद्धि दर 3 प्रतिशत हो जाती है। यदि इस गणना के लिये थोक मूल्य सूचकांक का प्रयोग किया जाता है तो चक्रवृद्धि वार्षिक वृद्धि दर 6.1 प्रतिशत हो जाती है।
राज्यों के मध्य असमानता
- राज्यों के मध्य कृषि विकास दर में बहुत अधिक असमानता है। राज्यों की कृषि जीडीपी वृद्धि अस्थिर है। यह काफी हद तक मानसून पर निर्भर करती है। वे राज्य जहाँ सिंचाई की सुविधा कम है, वहां अस्थिरता ज्यादा होगी।
- पंजाब का लगभग 99 प्रतिशत कृषि क्षेत्र सिंचित है, जबकि महाराष्ट्र का मात्र 19 प्रतिशत क्षेत्र ही सिंचित है। ऐसी स्थिति में पंजाब में महाराष्ट्र की तुलना में आय स्थिरता अधिक होगी।
- राज्य स्तरीय विश्लेषण राज्यों के कृषि सकल घरेलू उत्पाद एवं किसानों की आय में वृद्धि के मध्य महत्त्वपूर्ण अंतर प्रदर्शित करता है।
- वर्ष 2018-19 में गुजरात में दीर्घावधिक औसत की तुलना में 27 प्रतिशत कम वर्षा हुई, जिससे गुजरात की कृषि जीडीपी नकारात्मक (-8.7 प्रतिशत) रही। परंतु 2002-03 से 2018-19 में गुजरात की कृषि जीडीपी 6.5 प्रतिशत रही। यह भारत में सर्वाधिक है।
पशुपालन, मत्स्य पालन तथा फलों एवं सब्जियों में निवेश आवश्यक
- स्थिति आकलन सर्वेक्षण 2002-03, 2012-13 और 2018-19 के तीनों दौरों के सर्वेक्षणों का तुलनात्मक अध्ययन करने पर किसानों की वास्तविक आय की बदलती संरचना को दर्शाता है। इसके अध्ययन से स्पष्ट होता है कि –
* पशुपालन से होने वाली आय (मत्स्य पालन सहित) 2002-03 के 4.3 प्रतिशत से बढ़कर 15.7 प्रतिशत हो गई है।
* फसलों की कृषि से होने वाली आय का भाग 45.8 प्रतिशत से घटकर 37.7 प्रतिशत हो गया है।
* वेतन का हिस्सा 38.7 प्रतिशत से बढ़कर 40.3 प्रतिशत हो गया है।
* गैर-कृषि व्यवसाय से होने वाली आय का प्रतिशत 11.2 प्रतिशत से घटकर 6.4 प्रतिशत हो गया है।
- इन सर्वेक्षणों से स्पष्ट है कि किसानों की आय में वृद्धि के लिये पशुपालन (मत्स्य पालन सहित) क्षेत्र में निवेश एवं विकास आवश्यक है। गौरतलब है कि पशुपालन के उत्पादों के लिये न्यूनतम समर्थन मूल्य जैसी कोई व्यवस्था नही है। यह माँग संचालित व्यवस्था है तथा आहार में विविधता को बढ़ावा देती है।
निष्कर्ष
- यह मानना कि कृषि उत्पादों के न्यूनतम समर्थन मूल्य में वृद्धि एवं खरीद को बढ़ाकर किसानों की आय में वृद्धि की जा सकती है, पुर्णतः उचित नही है। वर्तमान में सरकार के पास अनाजों का स्टॉक बफर स्टॉक से अधिक है। इसके साथ ही सरकार के लिये यह एक महंगी प्रणाली है।
- किसानों की आय में वृद्धि के लिये आवश्यक है कि पशुपालन, फलों एवं सब्जियों में निवेश को बढ़ावा दिया जाए। सरकार के द्वरा इस दिशा में काफी प्रयास किये जा रहे हैं, परंतु अभी और प्रयास किये जाने की आवश्यकता है।