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सांसदों के निलंबन संबंधी विविध पहलू

(प्रारंभिक परीक्षा- भारतीय राज्यतंत्र और शासन- संविधान, राजनीतिक प्रणाली)
(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 2: संसद और राज्य विधायिका- संरचना, कार्य, कार्य-संचालन, शक्तियाँ एवं विशेषाधिकार और इनसे उत्पन्न होने वाले विषय)

संदर्भ

हाल ही में, 12 राज्यसभा सांसदों को शीतकालीन सत्र की शेष अवधि के लिये निलंबित किया गया है। चूँकि मानसून सत्र के दौरान इन्होंने कदाचार, सदन की अवमानना, अनियंत्रित और हिंसक व्यवहार तथा सुरक्षा कर्मियों पर हमले किये थे, इसलिये इन्हें निलंबित किया गया है।

कार्यवाही में व्यवधान और पीठासीन अधिकारियों के अधिकार

  • लोकसभा की नियम पुस्तिका के अनुसार, संसद सदस्यों को शांति बनाए रखने के साथ-साथ दूसरों के भाषण और बहस के दौरान कार्यवाही में बाधा नहीं डालनी चाहिये।
  • विरोध के स्वरूपों में बदलाव के कारण वर्ष 1989 में इन नियमों को अद्यतन किया गया। इसके अनुसार, संसद सदस्यों को नारे लगाने और तख्तियाँ दिखाने जैसे अनुचित व्यवहार नहीं करने चाहिये।
  • साथ ही, सदस्यों द्वारा विरोधस्वरूप दस्तावेज़ों को फाड़ना और सदन में कैसेट या टैप रिकॉर्डर बजाना भी अनुचित है। राज्यसभा में भी ऐसे ही नियम हैं।
  • कार्यवाही के सुचारू संचालन के लिये नियम पुस्तिका में दोनों सदनों के पीठासीन अधिकारियों को कुछ समान शक्तियाँ प्राप्त हैं।
  • प्रत्येक सदन का पीठासीन अधिकारी किसी सदस्य को अत्यधिक अनुचित आचरण के लिये विधायी सदन से बाहर जाने का निर्देश दे सकता है। इसके बाद वह सदस्य उस दिन की शेष कार्यवाही में भाग नहीं ले सकता है।
  • पीठासीन अधिकारी सदन की कार्यवाही में ‘निरंतर और जानबूझकर बाधा डालने’ वाले किसी सांसद को उसके नाम के साथ स्पष्ट रूप से इंगित कर सकता है। ऐसे मामलों में प्राय: संसदीय कार्य मंत्री उस सदस्य को सदन से निलंबित करने का प्रस्ताव पेश करते हैं। यह निलंबन उस सत्र के अंत तक जारी रह सकता है।
  • वर्ष 2001 में लोकसभा के नियम में संशोधन कर एक नया नियम 374ए शामिल किया गया और अध्यक्ष को एक अतिरिक्त शक्ति प्रदान की गई। इसके अनुसार, ‘अध्यक्ष’ सदन के कामकाज को बाधित करने वाले किसी सदस्य को अधिकतम पाँच दिनों के लिये स्वत: निलंबित कर सकता है। इसी नियम के तहत वर्ष 2015 में लोकसभा अध्यक्ष ने 25 सांसदों को निलंबित किया था।

निलंबन और नियम

  • ‘राज्यसभा की प्रक्रिया और कार्य संचालन नियम’ के नियम 256 के तहत सदस्यों को शेष शीतकालीन सत्र के लिये निलंबित किया गया है। अतीत में, वर्ष 1962 से 13 बार इस नियम का प्रयोग किया जा चुका है।
  • नियम 256 में सांसदों के निलंबन का प्रावधान है, जबकि नियम 255 में लघुतर सज़ा का प्रावधान है। नियम 256 के अनुसार, सभापति के अधिकारों की उपेक्षा करने या जानबूझकर राज्यसभा की कार्यवाही में बाधा डालने वाले सदस्य को सभापति चाहे, तो शेष सत्र के लिये निलंबित कर सकता है।
  • वहीं, लोकसभा में नियम 373 और 374 के तहत अध्यक्ष किसी भी सांसद को निलंबित करता है। वर्ष 1989 में इंदिरा गाँधी की हत्या पर ठाकर (ठक्कर) आयोग की रिपोर्ट पर चर्चा के दौरान 63 सांसदों को लोकसभा से निलंबित कर दिया गया था।
  • वर्ष 2010 में मंत्री से महिला आरक्षण बिल छीनने के कारण 7 सांसदों को राज्यसभा से निलंबित कर दिया गया था।
  • यदि किसी सदस्य को लोकसभा से निलंबित कर दिया गया है और सदन के सदस्य उसका निलंबन हटवाना चाहते हैं तो वे मिलकर इसके लिये प्रस्ताव ला सकते हैं। प्रस्ताव पास होने पर निलंबन समाप्त हो सकता है।
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