(प्रारंभिक परीक्षा : राष्ट्रीय महत्त्व की सामयिक घटनाएँ, आर्थिक एवं सामाजिक विकास के लिये की गई पहलों से संबंधित मुद्दे)
(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र – 1 : गरीबी और विकासात्मक विषय; सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र – 2 : सरकारी नीतियों और विभिन्न क्षेत्रों में विकास के लिये हस्तक्षेप; सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र – 3 : भारतीय अर्थव्यवस्था तथा योजनाओं से संबंधित विषय)
संदर्भ
हाल ही में हुए लॉकडाउन को देखते हुए कई रेटिंग एजेंसियों ने भारतीय सकल घरेलू उत्पाद अनुमानों को संशोधित किया है। उदाहरणार्थ, नोमूरा ने वित्त वर्ष 2021-22 के लिये जी.डी.पी. अनुमान 12.4% से घटाकर 11.5% कर दिया है।
मनरेगा योजना के प्रमुख उद्देश्य
- इस ‘महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी अधिनियम, 2005’ के माध्यम से आरंभ किया गया था। इसके तहत अकुशल श्रम करने के इच्छुक ग्रामीण परिवारों के वयस्कों को एक वित्तीय वर्ष में 100 दिनों के रोज़गार की गारंटी दी जाती है।
- यह योजना कींस के सिद्धांत पर आधारित है। जिसके अनुसार, मंदी के दौरान सरकारें लोगों के हाथों में पैसा देकर रोज़गार और माँग बढ़ाने का प्रयास करती हैं।
- मनरेगा योजना का उद्देश्य रोज़गार पैदा करना और बुनियादी ढाँचे का निर्माण करना है। इससे आर्थिक गतिविधियों को गति मिलती है। सरकारों ने पिछले कई वर्षों में इस योजना को प्रौद्योगिकी के साथ जोड़ा है और इसकी दक्षता में वृद्धि की है।
योजना का आर्थिक महत्त्व
- ग्रामीण रोज़गार की बढ़ती माँग संगठित और लघु, दोनों प्रकार की औद्योगिक इकाइयों में आनुपातिक श्रम की कमी का सूचक है।
- ऐसे में, राज्य आर्थिक गतिविधियों को गति देने के लिये प्रतिबंधों को निरंतर कम कर रहे हैं तथा प्रयास कर रहे हैं कि औद्योगिक इकाइयों में श्रम की कमी न हो। प्रवासी मज़दूर इस श्रमापूर्ति में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं तथा अर्थव्यवस्था को गति देते हैं।
मनरेगा के तहत नौकरियों की माँग
- कोविड-1.0 के दौरान प्रवासियों की पुनर्वापसी के कारण मनरेगा में नौकरियों की माँग में वृद्धि देखी गई, जो मई-जून 2020 में रिकॉर्ड ऊँचाई पर थी, जबकि कोविड-2.0 के दौरान मनरेगा के तहत नौकरी प्राप्त करने के उद्देश्य से हुए पंजीकरणों की संख्या मई-जून 2020 की अपेक्षा दोगुनी हो गई है।
- मनरेगा के तहत नौकरियों के लिये पंजीकरण कराने वालों की संख्या मार्च 2021 में 36 मिलियन थी, जो अप्रैल 2021 में बढ़कर 40 मिलियन हो गई है।
योजना के माध्यम से अर्थव्यवस्था को लाभ
- ‘घरेलू खपत’ भारतीय अर्थव्यवस्था का नेतृत्व करती है। भारतीय सकल घरेलू उत्पाद का 80% घरेलू बाजार पर निर्भर करता है।
- भारत की कुल जनसंख्या के लगभग 65% लोग ग्रामीण क्षेत्रों में निवास करते हैं। ग्रामीण आबादी की निरंतर बढ़ती माँग ने संकट के समय में अर्थव्यवस्था को उबारा है।
- वर्ष 2008-09 के सब-प्राइम संकट के दौरान ‘महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी योजना’ से ग्रामीणों की क्रय शक्ति में कमी नहीं आई, इसी का परिणाम रहा कि इस दौर में भी भारतीय अर्थव्यवस्था वैश्विक वित्तीय संकट से अछूती रही थी।
- लचीली ग्रामीण अर्थव्यवस्था के कारण महामारी की पहली लहर से क्षतिग्रस्त हुई अर्थव्यवस्था अपेक्षाकृत तेज़ी से रिकवर हुई।
समाज की प्रतिक्रिया
- मनरेगा केवल एक बफर के रूप में जारी रहना चाहिये। वर्तमान समय की माँग है कि विनिर्माण क्षेत्र तथा बुनियादी ढाँचे के विकास पर ज्यादा ध्यान केंद्रित किया जाना चाहिये, ताकि संकट के दौरान प्रवासियों की सुरक्षा की जा सके।
- प्रवासी मजदूरों को रोज़गार देकर नियोक्ता अपने मानव संसाधन क्षितिज का विस्तार कर सकते हैं। इस हेतु प्रवासियों के लिये आवास, स्वास्थ्य सुविधाएँ तथा भोजन की व्यवस्था करने पड़ सकती है।
- केंद्र सरकार को शहरी गरीबों के लिये समान रोज़गार के अवसर विकसित करने का प्रयास करना चाहिये, ताकि प्रवासियों पुनर्वापसी को कम किया जा सके।