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पशु चिकित्सा सेवाओं में विस्तार की आवश्यकता

(प्रारंभिक परीक्षा : राष्ट्रीय महत्त्व की सामायिक घटनाओं से सबंधित प्रश्न)
(सामान्य अध्ययन, मुख्य परीक्षा प्रश्नपत्र- 3: आर्थिक विकास तथा पशुपालन अर्थशास्त्र से संबंधित विषय)

संदर्भ

हाल ही में, सरकार ने ग्रामीण क्षेत्रों में पशु चिकित्सा सेवाओं की पहुँच सुनिश्चित करने के लिये ‘पशुधन स्वास्थ्य एवं रोग नियंत्रण कार्यक्रम’ के संशोधित प्रावधानों के तहत ‘सचल पशु चिकित्सा सेवा इकाईयों’ (Mobile Veterinary Services Unit: MVU) की शुरुआत की है।

क्या है सचल पशु चिकित्सा इकाई?

  • यह एक वाहन है, जिसमें एक पशु चिकित्सक, एक पैरा-पशु चिकित्सक और एक चालक-सह-अटेंडेंट होते हैं। इसमें पशु-रोगों के निदान, उपचार और सामान्य सर्जरी के लिये उपकरण तथा अन्य बुनियादी आवश्यकताएँ उपलब्ध होती है।
  • इसमें जागरूकता के लिये ऑडियो-विजुअल विज्ञापन के साथ जी.पी.एस. ट्रैकिंग की भी व्यवस्था है। यह पशु-चिकित्सा सेवाओं की दरवाज़े तक पहुँच (Door Step Delivery) सुनिश्चित करेगा।
  • ‘पशुधन स्वास्थ्य और रोग नियंत्रण कार्यक्रम’ में एक लाख पशुओं के लिये एक एम.वी.यू. की परिकल्पना की गई है। एम.वी.यू. से देश भर में पशु-चिकित्सकों और सहायकों के लिये रोज़गार के अवसरों में वृद्धि होगी।

20वीं पशुधन गणना : महत्त्वपूर्ण तथ्य

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  • 20वीं पशुधन गणना के अनुसार, भारत की कुल पशुधन आबादी का लगभग 95.8% ग्रामीण क्षेत्रों में केंद्रित है।
  • देश में कुल पशुधन आबादी 535.78 मिलियन है जो पशुधन गणना-2012 की तुलना में 4.6 प्रतिशत अधिक है।
  • कुल गोजातीय आबादी (मवेशी, भैंस, मिथुन एवं याक) वर्ष 2019 में 302.79 मिलियन है, जो पिछली गणना की तुलना में लगभग 1 प्रतिशत अधिक है।
  • वर्ष 2019 में मवेशियों की कुल संख्‍या पिछली गणना की तुलना में 0.8 प्रतिशत अधिक है। मादा मवेशी (गायों की कुल संख्‍या) पिछली गणना की तुलना में 18 प्रतिशत अधिक हैं।
  • स्‍वदेशी/अवर्गीय मवेशियों की कुल संख्‍या वर्ष 2019 में पिछली गणना की तुलना में 6 प्रतिशत कम हो गई है, जबकि विदेशी/संकर नस्‍ल वाली मवेशियों की कुल संख्‍या वर्ष 2019 में पिछली गणना की तुलना में 26.9 प्रतिशत बढ़ गई है।
  • देश में भैंसों की कुल संख्‍या 109.85 मिलियन है जो पिछली गणना की तुलना में लगभग 1.0 प्रतिशत अधिक है।
  • देश में भेड़ की कुल संख्‍या वर्ष 2019 में पिछली गणना की तुलना में 14.1 प्रतिशत अधिक है।
  • देश में बकरियों की कुल संख्‍या वर्ष 2019 में पिछली गणना की तुलना में 10.1 प्रतिशत अधिक हैं, जबकि सुअरों की कुल संख्‍या में पिछली गणना की तुलना में 12.03 प्रतिशत की कमी आई है।
  • मिथुन, याक, घोड़े, टट्टू, खच्चर, गधे, ऊंट सहित अन्य पशुधन की संख्या कुल पशुधन में लगभग 0.23 प्रतिशत है।
  • देश में कुल पोल्‍ट्री संख्‍या वर्ष 2019 में 16.8 प्रतिशत की वृद्धि दर्शाती है, जबकि वाणिज्यिक पोल्‍ट्री की कुल संख्‍या पिछली गणना की तुलना में 4.5 प्रतिशत अधिक है।

भारत में पशुपालन के लाभ

  • पशुपालन ग्रामीण क्षेत्रों में छोटे व सीमांत किसानों तथा खेतिहर मजदूरों के लिये अतिरिक्त आय सृजन के अवसर उपलब्ध कराता है।
  • यह ग्रामीण तथा अर्ध-ग्रामीण क्षेत्रों के कम आय समूहों के लिये पौष्टिक आहार के रूप में दूध, मांस आदि की उपलब्धता सुनिश्चित करता है।
  • मवेशियों के गोबर से निर्मित खाद मृदा की उर्वरा शक्ति बढ़ाने में महत्त्वपूर्ण है। ग्रामीण क्षेत्रों में वर्तमान में भी कृषि-कार्यों के लिये इन पशुओं का प्रयोग किया जाता है।

चुनौतियाँ

  • 20वीं पशुधन जनगणना के अनुसार, भारत में अधिकांश पशुधन आबादी ग्रामीण क्षेत्रों में केंद्रित है। ग्रामीण क्षेत्रों में पशु-चिकित्सा सेवाओं तक पहुँच एक बड़ी चुनौती है।
  • केंद्रीय मत्स्य पालन, पशुपालन एवं डेयरी मंत्रालय द्वारा गठित स्थाई समिति के अनुसार पशु चिकित्सा रोगों के लिये अपर्याप्त परीक्षण और उपचार सुविधाएँ एक बड़ी चुनौती है।
  • ग्रामीण क्षेत्रों में समय पर चिकित्सा सेवाओं तक पर्याप्त पहुँच न होने के कारण पशुओं की आयु तथा उत्पादकता पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।
  • ग्रामीण क्षेत्रों में अप्रशिक्षित पशु स्वास्थ्य कार्यकर्ता की उपलब्धता आसान होती है, जिनके त्रुटिपूर्ण इलाज (विशेषकर मास्टिटिस रोग के संबंध में) ने एंटीबायोटिक प्रतिरोध जैसी समस्याओं को बढ़ावा दिया है।
  • ग्रामीण समुदायों में दवा वितरकों के सेल्समैन की बढ़ती उपस्थिति से पशु स्वास्थ्य का मुद्दा जटिल हो गया है, क्योंकि ये ग्रामीण पशुपालकों की अनभिज्ञता का लाभ उठाते हुए पशुओं को तत्काल राहत प्रदान करने वाली दवाओं को बेचते हैं, जो पशुओं के दीर्घकालिक स्वास्थ्य के लिये हानिकारक होती है।
  • पशुधन पर गठित ‘एम.के. जैन समिति’ की रिपोर्ट के अनुसार, पारंपरिक किसानों की तुलना में पशुपलकों को ऋण और पशुधन बीमा तक पहुँच में अधिक चुनौतियों का सामना करना पड़ता है।
  • भारत में पशुपालन से संबंधित सहकारी समितियों का अभाव है जो इसके माध्यम से स्थापित होने वाले डेयरी उद्योग की संभावनाओं को सीमित करता है।

आगे की राह

  • ग्रामीण क्षेत्रों में पशु चिकित्सा सेवाओं की बेहतर पहुँच सुनिश्चित करने के लिये सरकार द्वारा पशु चिकित्सा इकाईयों की संख्या में वृद्धि की जानी चाहिये। इसके लिये निजी भागीदारी को बढ़ावा देने की आवश्यकता है।
  • अप्रशिक्षित पशु स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं को उचित प्रशिक्षण प्रदान कर ग्रामीण तथा दूरदराज़ के क्षेत्रों में उत्कृष्ट चिकित्सा सेवाओं की उपलब्धता सुनिश्चित की जा सकती है।
  • ग्रामीण क्षेत्रों में केवल सरकार द्वारा प्रशिक्षित तथा मान्यता प्राप्त सेल्समेन को दवा बिक्री की अनुमति दी जानी चाहिये ताकि पशुपालकों को उचित परामर्श के साथ दवा उपलब्ध कराई जा सके।
  • पारंपरिक कृषकों के समान पशुपालकों तक भी ऋण तथा पशुधन बीमा तक पहुँच सुनिश्चित किया जाना चाहिये।
  • पशुपालन क्षेत्र में सहकारी समितियों को बढ़ावा दिया जाना चाहिये ताकि उन्नत डेयरी उद्योग का विकास किया जा सके।
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