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बहुआयामी निर्धनता सूचकांक (Multidimensional Poverty Index)-2023

प्रारंभिक परीक्षा – बहुआयामी निर्धनता सूचकांक
मुख्य परीक्षा : सामान्य अध्ययन प्रश्नप्रत्र 3 – महत्त्वपूर्ण अंतर्राष्ट्रीय संगठन और रिपोर्ट, निर्धनता, सतत विकास लक्ष्य

चर्चा में क्यों?

  • वैश्विक बहुआयामी निर्धनता सूचकांक (एमपीआई)-2023 के अनुसार, 2005-2006 से 2019-2021 तक की केवल 15 वर्षों की अवधि में भारत के कुल 415 मिलियन(41.5 करोड़) लोग निर्धनता की सीमा से बाहर आ गए हैं। 

वैश्विक बहुआयामी निर्धनता सूचकांक क्या है?

  • यह एक प्रमुख अंतरराष्ट्रीय सूचकांक है जो 100 से अधिक विकासशील देशों में (सालाना) तीव्र बहुआयामी निर्धनता को मापता है।
  • पहली बार 2010 में यूएनडीपी और ऑक्सफोर्ड निर्धनता और मानव विकास पहल (ओपीएचआई) द्वारा लॉन्च किया गया।  
  • वैश्विक बहुआयामी निर्धनता सूचकांक सतत विकास लक्ष्य (एसडीजी)-1 को आगे बढ़ाता है जिसका लक्ष्य है-हर जगह निर्धनता को उसके सभी रूपों में समाप्त करना।
  • यह ‘एसडीजी’-1, 2, 3, 4, 6, 7 और 11 से संबंधित संकेतकों में परस्पर संबंधित अभावों को भी मापता है।

वैश्विक बहुआयामी निर्धनता सूचकांक: निर्धनता के आयाम और संकेतक

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बहुआयामी निर्धनता को कैसे मापा जाता है?

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  • स्वास्थ्य, शिक्षा और जीवन स्तर के 10 संकेतकों के आधार पर प्रत्येक घर और व्यक्ति के लिए एक अभाव प्रोफ़ाइल बनाना।
  • एक व्यक्ति बहुआयामी रूप से गरीब है यदि वह 10 संकेतकों में से एक तिहाई/33% या अधिक भारित संकेतकों से वंचित है।
  • जो लोग भारित संकेतकों के आधे या अधिक से वंचित हैं, उन्हें अत्यधिक बहुआयामी निर्धनता में रहने वाला माना जाता है।

वैश्विक एमपीआई का महत्व: 

  • यह निर्धनता में कमी की निगरानी करता है और यह दर्शाता है कि लोग अपने दैनिक जीवन के विभिन्न पहलुओं में निर्धनता का अनुभव कैसे करते हैं।

कहाँ रहते हैं सबसे निर्धन लोग?

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अच्छी खबर: 

  • इस रिपोर्ट से यह पता चलता है कि भारत सहित 25 देशों ने 15 वर्षों के भीतर अपने वैश्विक एमपीआई मूल्यों को सफलतापूर्वक आधा कर दिया।

चिंताएँ:

  • इस रिपोर्ट के अनुसार बाल गरीबी एक गंभीर मुद्दा बनी रहेगी, विशेषकर स्कूल में उपस्थिति और अल्पपोषण के संबंध में। 
  • बच्चों में गरीबी दर 27.7% है, जबकि वयस्कों में 13.4% है।
  • गरीबी मुख्य रूप से ग्रामीण क्षेत्रों को प्रभावित करती है, सभी गरीब लोगों में से 84% ग्रामीण क्षेत्रों में रहते हैं।
  • COVID-19 महामारी की अवधि के दौरान व्यापक डेटा की कमी के कारण तत्काल संभावनाओं का आकलन करने में चुनौतियाँ पैदा होती हैं।
  • शिक्षा जैसे आयामों में महामारी के नकारात्मक प्रभाव महत्वपूर्ण हैं और इसके दीर्घकालिक परिणाम हो सकते हैं।

भारत की स्थिति:

  • 2005/2006 में, भारत में लगभग 645 मिलियन लोग बहुआयामी गरीबी में थे, 2015/2016 में यह संख्या घटकर लगभग 370 मिलियन और 2019/2021 में 230 मिलियन हो गई।
  • इस प्रकार, 2005/2006 से 2019/2021 तक 415 मिलियन गरीब लोग गरीबी से बाहर निकले।
  • सभी संकेतकों में अभाव में गिरावट आई।
  • सबसे गरीब राज्यों और समूहों, जिनमें बच्चे और वंचित जाति समूहों के लोग भी शामिल हैं, में सबसे तेज़ पूर्ण प्रगति हुई।

आगे की राह:

  • सबसे अधिक नकारात्मक रूप से प्रभावित आयामों को समझने के प्रयासों को तेज़ करना होगा।
  • गरीबी उन्मूलन को पटरी पर लाने के लिए डेटा संग्रह और नीतिगत प्रयासों को मजबूत करना होगा।
  • बच्चों पर महामारी के प्रभावों को शामिल करने के लिए उपयुक्त डाटा का विस्तार से अध्ययन करना होगा।

निष्कर्ष: 

  • रिपोर्ट दर्शाती है कि गरीबी में कमी लाना संभव है, जो एसडीजी के इस लक्ष्य की व्यवहार्यता को प्रदर्शित करता है - 2030 तक हर जगह सभी रूपों में गरीबी को समाप्त करना।

स्रोत : https://hdr.undp.org/system/files/documents/hdp-document/2023mpireportenpdf.pdf 

https://ophi.org.uk/wp-content/uploads/CB_IND_2023.pdf 

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