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कोविड के बाद शिक्षा का स्वरुप

(मुख्य परीक्षा : सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र 2 : विषय : स्वास्थ्य, शिक्षा, मानव संसाधनों से सम्बंधित सामाजिक क्षेत्र/सेवाओं के विकास और प्रबंधन से सम्बंधित विषय।)

कोविड-19 महामारी की वजह से लगभग सभी उद्योगों और संलग्न क्षेत्रों में अभूतपूर्व उतार चढ़ाव देखने को मिला है और शिक्षा क्षेत्र कोई अपवाद नहीं है। ऐसे कठिन समय में महामारी के कारण हुए व्यवधानों से भविष्य में बचाव के लिये समाज के सभी वर्गों में कार्य को विकेंद्रीकृत करने अर्थात घर से काम (work-from-home)या कहीं से भी काम करने (work-from-anywhere) की माँग तेज़ हो गई है।

इसी तरह, अधिकांश कॉलेजों और विश्वविद्यालयों में ऑनलाइन शिक्षा की अवधारणा अब नई मानक हो गई है। हालाँकि, ऑनलाइन शिक्षा भारत में एक प्रकार के अंकीय विभाजन (डिजिटल डिवाइड) का कारण भी बन रही है और इसकी कुछ सीमाएँ भी हैं।

इस संदर्भ में, सरकार और शिक्षा क्षेत्र से जुड़े अन्य हित धारकों को महामारी के कारण हुए इस व्यवधान को नकारात्मक रूप में ना देख कर सार्वजनिक शिक्षा प्रणाली को बेहतर बनाने और इसे अधिक समतावादी बनाने के उद्देश्य के रूप में देखना चाहिये।

ऑनलाइन शिक्षा के साथ जुड़ी चुनौतियाँ:

  • डिजिटल डिवाइड: ई-शिक्षा जहाँ उच्च और मध्यम वर्ग के छात्रों के लिये एक सामान्य बात है वहीँ निम्न मध्यम वर्ग के और गरीबी रेखा से नीचे के छात्रों के लिये यह अभी भी एक सपना ही है।
    • अनेक गरीब छात्र जिनके पास ई-संसाधन जैसे कम्प्यूटर, लैपटॉप, इंटरनेट कनेक्टिविटी आदि नहीं है, वे अपने घरों से कक्षाएँ नहीं ले पाएंगे।
  • शिक्षा का व्यावसायीकरण: ऐसी सम्भावना है कि महामारी काल के बाद ऑनलाइन शिक्षा के लिये कॉर्पोरेट घराने, प्रौद्योगिकी फर्म और शैक्षणिक संस्थान शिक्षा के क्षेत्र में आपसी सामंजस्य के साथ मिलकर काम करने की पूरी कोशिश करेंगे।
  • हालाँकि इससे शिक्षा जगत पर सकारात्मक और नकारात्मक दोनों तरह के प्रभाव पड़ेंगे, सकारात्मक यह कि शिक्षा का व्यावसायीकरण बढ़ेगा तो आम जन तक शिक्षा की बेहतर पहुँच सुनिश्चित होगी और नकारात्मक यह कि घर घर जाकर ट्यूशन देने वाले शिक्षक इस प्रकार प्रतिस्पर्धा से बाहर हो सकते हैं।

सम्भावित कदम:

  • केंद्र और राज्य सरकारों को सार्वजनिक शिक्षा प्रणाली में प्रौद्योगिकी को और अधिक व्यवहार्य एवं सर्वसुलभ किये जाने पर ध्यान देना चाहिये।
    • इसके अलावा कॉर्पोरेट सोशल रेस्पोंसिबिलिटी के रूप में, निजी स्तर के बड़े उद्यमी इन तकनीकों को गाँव और निचले तबकों तक सर्वसुलभ बनाने के लिये प्रयास कर सकते हैं।
  • शिक्षा के अधिकार के दायरे में विस्तार: शिक्षा के अधिकार की परिभाषा को ऑनलाइन शिक्षा से जोड़कर और अधिक प्रचार करने की आवश्यकता है ताकि इसका दायरा और ज़्यादा विस्तृत हो सके और बड़े स्तर पर छात्रों को यह जोड़ सके।
  • डिजिटल शिक्षा न केवल नवाचार को अभिप्रेरित करती है बल्कि यह शिक्षा क्षेत्र के लोकतंत्रीकरण में भी सहायता करती है। इस प्रकार की परिस्थितियों को और ज़्यादा प्रोत्साहित किये जाने की आवश्यकता है ताकि शिक्षकों की स्वायत्तता बनी रहे।
  • पारम्परिक शिक्षा में ज़्यादा से ज़्यादा ऑनलाइन शिक्षा को समावेशित किया जानाचाहिये। हालाँकि, सामाजिक विकास के रूप में स्कूली शिक्षा अपरिहार्य और अनिवार्य है क्योंकि इससे एक छात्र न केवल शैक्षणिक ज्ञान हासिल करता है, बल्कि कई अन्य सामाजिक कौशल भी सीखता है।
  • पाठ्यक्रम के भीतर वैज्ञानिक साक्षरता सुनिश्चित करना: यह सही समय है जब पाठ्यक्रम में वैज्ञानिक सोच से जुड़ी शिक्षा का ज़्यादा से ज़्यादा प्रचार किया जाय ताकि अंधविश्वासों और गलत सूचनाओं से यह समाज सक्रिय रूप से लड़ सके, और बाल्यकाल से ही छात्रों में वैज्ञानिक कौशल का विकास हो सके।

निष्कर्ष :

कोविड-19 के द्वारा न सिर्फ हमें ऑनलाइन शिक्षा की उपयोगिता का ज्ञान हुआ है बल्कि यह भी पता चला है की संसाधनों के अभाव में यह असमानता को भी पोषित करती है। ऐसे में सरकार की यह ज़िम्मेदारी बन जाती है कि ऐसी असमानताओं पर न सिर्फ ध्यान दे बल्कि वैकल्पिक शिक्षा के रूप में ऑनलाइन या डिजिटल शिक्षा का और ज़्यादा प्रचार और प्रसार कर सके।

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