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आर्थिक सुधारों से अधिक विकास की आवश्यकता 

(मुख्य परीक्षा सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र-3, भारतीय अर्थव्यवस्था तथा योजना, संसाधनों को जुटाने, प्रगति, विकास तथा रोज़गार से संबंधित विषय) 

संदर्भ

भारत के आर्थिक इतिहास में 1991 एक महत्त्वपूर्ण विभाजक वर्ष है। इस वर्ष भारतीय अर्थव्यवस्था गंभीर भुगतान संकट का सामना कर रही थी। इस संकट के समाधान हेतु अर्थव्यवस्था में सुधार, पुनर्गठन तथा आधुनिकीकरण के लिये एक व्यापक आर्थिक कार्यक्रम प्रारंभ किया गया। इस प्रकार, यह संकट आर्थिक नीति में महत्त्वपूर्ण परिवर्तन लाने के अवसर में परिवर्तित हो गया।

महत्त्वपूर्ण निर्णय 

  • वर्ष 1991 के आर्थिक सुधारों से आर्थिक उदारीकरण एव बाज़ार आधारित आर्थिक विकास के नए युग का सूत्रपात हुआ। यह परिवर्तन तात्कालिक नीतियों में किये गए तीन महत्त्वपूर्ण परिवर्तनों पर आधारित था-

★ लाइसेंस, नियंत्रण एवं परमिट व्यवस्था की व्यापकता में कमी
★ राज्य की भूमिका का पुनर्निधारण तथा निजी कंपनियों के कार्य क्षेत्र का विस्तार
★ अंतर्मुखी विदेशी व्यापार नीति के स्थान पर वैश्विक अर्थव्यवस्था एवं व्यापार के साथ एकीकृत होना

  • वर्ष 1991 के सुधारों का नेतृत्त्व तत्कालीन वित्तमंत्री डॉ० मनमोहन सिंह द्वारा किया गया। इन्होंने परिवर्तन की आवश्यकता को स्पष्ट करने के साथ ही सुधारों का विवरण भी प्रदान किया।

र्थिक सुधारों का प्रभाव 

  • वर्ष 1991 के आर्थिक सुधारों के अंतर्गत प्रारंभ की गई विकास प्रक्रिया कुछ परिवर्तनों के साथ अभी भी जारी है। इसका उद्देश्य एक अखिल प्रतिस्पर्धी वातावरण का निर्माण करना तथा उत्पादकता एवं दक्षता में सुधार करना था।
  • आर्थिक उदारीकरण के बाद अर्थव्यवस्था के प्रदर्शन का आकलन करने के लिये तीन मानदंडों- विकास दर, चालू खाता घाटा तथा गरीबी में कमी का अध्ययन किया जाना आवश्यक है-

★ विकास दर: वित्तवर्ष 1992-93 से 2000-01 के मध्य साधन लागत पर सकल घरेलू उत्पाद में 6.20 प्रतिशत की दर से वृद्धि हुई। 2001-02 से 2010-11 के मध्य इसमें 7.69 प्रतिशत की दर तथा 2011-12 से 2019-20 की अवधि में 6.5 प्रतिशत की दर से वृद्धि हुई। 2005-06 से 2010-11 के मध्य सकल घरेलू उत्पाद में 8 .7 प्रतिशत की दर से वृद्धि हुई। विकास दर की दृष्टि से यह सबसे अच्छा प्रदर्शन था।

★ चालू खाता घाटा: उदारीकरण की प्रक्रिया के पश्चात भुगतान संतुलन की स्थिति सहज बनी हुई थी। तीन वर्ष ऐसे थे जिनमें चालू खाते में कुछ अधिशेष दिखया गया। वित्तवर्ष 2011-12 और 2012-13 इसके अपवाद थे। इस दौरान चालू खाता घाटा 4 प्रतिशत से अधिक था। देश के विदेशी मुद्रा भण्डार में भी वृद्धि हुई है। अगस्त 2021 के प्रथम सप्ताह में यह 621 अरब डॉलर तक पहुँच गया है।

★ गरीबी में कमी : विकास के अतिरिक्त आर्थिक नीति का एक प्रमुख उद्देश्य गरीबी रेखा से नीचे रहने वाले लोगों की संख्या में कमी लाना है। आर्थिक सुधारों के पश्चात गरीबी अनुपात में कमी देखी गई है। समग्र गरीबी अनुपात वित्तवर्ष 1993-94 के 45.3 प्रतिशत से घटकर 2004-05 में 37.2 प्रतिशत तथा 2011-12 में 21.9 प्रतिशत हो गया। वित्तवर्ष 2004-05 से 2011-12 के मध्य गरीबी अनुपात में प्रतिवर्ष 2.18 प्रतिशत की कमी आई है।

★ आर्थिक सुधारों के बाद से वित्तवर्ष 2011-12 की अवधि में गरीबी के अनुपात में उल्लेखनीय कमी देखी गई। इस अवधि में ग्रामीण रोज़गार गारंटी योजना एवं विस्तारित खाद्य सुरक्षा कार्यक्रम जैसी गरीबी में कमी लाने वाली योजनाओं का भी गरीबी में कमी लाने में महत्त्वपूर्ण योगदान है।

निरंतरता की आवश्यकता    

  • सुधारों  की प्रक्रिया को जारी रखने की आवश्यकता है। सबसे पहले उसी दिशा में प्रयास करने की आवश्यकता है जिसमें हम पिछले तीन दशकों से आगे बढ़ रहे हैं।
  • नीति निर्माताओं को उन क्षेत्रों की पहचान करनी चाहिये, जिसमें प्रतिस्पर्धी महौल बनाने एवं प्रदर्शन दक्षता में सुधार की आवश्यकता है। इस दृष्टिकोण से हमे वित्तीय प्रणाली, विद्युत क्षेत्र एवं सुशासन पर पुनः विचार होगा। इस प्रयास में केंद्र एवं राज्यों को संयुक्त रूप से भागीदार होने की आवश्यकता है।
  • सरकार द्वारा स्वास्थ्य एवं शिक्षा जैसे सामाजिक क्षेत्रों पर अधिक ध्यान दिये जाने की आवश्यकता है। सेवाओं के प्रावधान के संदर्भ में मात्रात्मक विस्तार के साथ ही गुणवत्ता पर भी बल दिये जाने की आवश्यकता है। कोविड महामारी ने हमारी अपर्याप्त स्वास्थ्य सेवाओं की कमी को उजागर कर दिया है।

िष्कर्ष 

अर्थव्यवस्था में उत्पादकता में वृद्धि एवं उच्च विकास दर प्राप्त करने के लिये सुधार आवश्यक हैं। सुधार की प्रक्रिया को बढ़ावा देने के साथ ही सामाजिक एकता एवं समानता के विचारों को भी बढ़ावा दिया जाना चाहिये। विकास का तात्पर्य केवल मुट्ठी भर लोगों का विकास नहीं है,बल्कि इसका स्वरूप पूर्ण समावेशी होना चाहिये।

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