New
July Offer: Upto 75% Discount on all UPSC & PCS Courses | Offer Valid : 5 - 12 July 2024 | Call: 9555124124

शहरी रोज़गार सुरक्षा जाल की आवश्यकता

(मुख्य परीक्षा, सामान्य अधययन प्रश्नपत्र- 3: भारतीय अर्थव्यवस्था तथा योजना, संसाधनों को जुटाने, प्रगति, विकास तथा रोज़गार से संबंधित विषय)

संदर्भ

महामारी के दौरान बार-बार ‘जीवन बचाने’ बनाम ‘आजीविका की रक्षा’ का मुद्दा उठा है। अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष की अप्रैल, 2021 की ‘विश्व आर्थिक आउटलुक रिपोर्ट’ के अनुसार, चीन को छोड़कर लगभग सभी देशों में पिछले वर्ष आर्थिक संकुचन का प्रभाव पड़ा।वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद में लगभग 3.3% की कमी आई है।

अर्थव्यस्था में संकुचन और बेरोजगारी

  • अमेरिका, ब्राजील, जापान, कनाडा और यूरो क्षेत्र में संकुचन दर 3.5% से 7% के बीच थी। भारत की जी.डी.पी. में 8% की गिरावट आई। इसके विपरीत चीन ने 2.3% की वृद्धि दर्ज की।
  • रिपोर्ट में कहा गया है कि 95 मिलियन लोग अत्यधिक गरीबी की श्रेणी में आ गए हैं। यूरो क्षेत्र, अमेरिका और कनाडा में बेरोजगारी दर क्रमशः 7.1%, 8.1% और 9.6% तक बढ़ गई। स्पेन, ग्रीस, तुर्की, फिलीपींस, अर्जेंटीना, ब्राजील, कोलंबिया और पेरू सहित अन्य देश दो अंकों में बेरोजगारी दर का सामना कर रहे हैं।
  • भारतीय अर्थव्यवस्था निगरानी केंद्र (Centre for Monitoring Indian Economy’s) के अनुमानों के अनुसार, भारत में बेरोजगारी दर अप्रैल 2020 में 23.5% के उच्च स्तर तक पहुँच गई थी, जो फरवरी 2021 में गिरकर 6.9% हो गई।

ग्रामीण और शहरी आजीविका में अंतराल

  • आर्थिक मंदी के मद्देनजर आजीविका के नुकसान को कम करने की चुनौती है। परंपरागत रूप से सरकारों ने इस मुद्दे को समग्र रूप से नहीं बल्कि एक क्षेत्रीय दृष्टिकोण से हल किया है। समकालीन वास्तविकताओं को देखते हुएदो कारणों से आजीविका को ग्रामीण-शहरी दृष्टिकोण से देखने की आवश्यकता है।
  • पहला, जब कोई आर्थिक झटका लगता है, तो लोगों को आजीविका सुरक्षा जाल तक औपचारिक पहुँच प्रदान करना आवश्यक होता है। दूसरा, आजीविका सुरक्षा जाल का कवरेज व्यापक होना चाहिये।महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी योजना (मनरेगा) के माध्यम से ऐसा आजीविका सुरक्षा जाल केवल ग्रामीण क्षेत्रों में मौजूद है। शहरी भारत में ऐसी कोई व्यवस्था मौजूद नहीं है।
  • हालाँकि, भारत सरकार राष्ट्रीय शहरी आजीविका मिशन संचालित करती है, जो कौशल उन्नयन और बैंकों के माध्यम से क्रेडिट लिंकेज द्वारा स्वरोज़गार पर केंद्रित है। इसमें मनरेगा की तरह गारंटी शुदा रोज़गार व मजदूरी का प्रावधान नहीं है। पिछले वर्ष लॉकडाउन के दौरान बड़ी संख्या में प्रवासी मजदूरों का शहरों से ग्रामीण क्षेत्रों में पलायन ग्रामीण-शहरी आजीविका सुरक्षा विभाजन का लक्षण है। यदि आजीविका के नुकसान को कम करना है तो इस विभाजन को पाटने की जरूरत है।

शहरी आजीविका सुरक्षा जाल की आवश्यकता

  • नीति विशेषज्ञों ने भारत में प्रवास को वास्तव में ग्रामीण से शहरी परिघटना ही माना है। इस महामारी ने यह मिथक तोड़ दिया है। ग्रामीण से शहरी प्रवास को रोकने के लिये तैयार किया गया मनरेगा ग्रामीण भारत में आजीविका सुरक्षा जालप्रदान करता है।
  • पिछले वर्ष की प्रवास त्रासदी (रिवर्स माइग्रेशन) और आर्थिक मंदी ने शहरी भारत में भी इसी तरह की आजीविका सुरक्षा जाल की आवश्यकता पर बल दिया है।

हिमाचल प्रदेश का उदाहरण

  • कुछ राज्यों ने मजदूरी-रोज़गार आधारित शहरी आजीविका योजना के साथ प्रयोग किया है। हिमाचल प्रदेशने पिछले वर्ष ‘मुख्यमंत्री शहरी आजीविका गारंटी योजना’ प्रारंभ की। इसका उद्देश्य शहरी क्षेत्रों में आजीविका सुरक्षा बढ़ाने के लिये वित्त वर्ष 2020-21 में प्रत्येक परिवार को न्यूनतम मजदूरी पर 120 दिनों की गारंटी शुदा मजदूरी व रोज़गार प्रदान करना है।
  • शहरी स्थानीय निकाय (Urban Local Body: ULB) के अधिकार क्षेत्र में रहने वाले परिवार का 65 वर्ष से कम आयु का कोई भी वयस्क सदस्य, जो नगर पालिका द्वारा निष्पादित की जा रही परियोजनाओं में अकुशल कार्य में संलग्न होने या स्वच्छता सेवाओं में संलग्न होने के इच्छुक हैं, इस योजना के तहत पंजीकरण कर सकते हैं।
  • लाभार्थी को पंजीकरण के सात दिनों के भीतर जॉब कार्ड जारी किया जाता है और एक पखवाड़े के भीतर रोज़गार प्रदान किया जाता है।रोज़गार प्राप्त न हो पाने की स्थिति में लाभार्थी ₹75 प्रति दिन की दर से मुआवजा पाने का पात्र है। इस नई योजना को शुरू करते समय महामारी के दौरान वित्त की कमी के चलते इस पर संदेह था। हालाँकि,सरकार ने राज्य और केंद्रीय वित्त आयोगों के तहत यू.एल.बी. को पहले से उपलब्ध अनुदान में से इसको निधि देने का निर्णय लिया।
  • इसके संचालन के एक वर्ष के भीतर एक चौथाई मिलियन मानव-दिवस सृजित हुए, जिससे हिमाचल प्रदेश के कुल शहरी परिवारों का लगभग 3% लाभान्वित हुआ। यदि इस योजना के दायरे को मस्टर-रोल आधारित कार्यों, अन्य नगरपालिका सेवाओं आदि को शामिल करके विस्तृत किया जाए, तो यह आजीविका के अवसरों को बढ़ा सकता है।

अनुभवजन्य निष्कर्ष

  • हिमाचल प्रदेश के अनुभव से कुछ महत्त्वपूर्ण सीख प्राप्त हुई है। पहला, शहरी आजीविका योजना मौजूदा वित्तीय व्यवस्था के भीतर शुरू की जा सकती है। वित्त के आभाव में संघ और राज्य मिलकर संसाधन उपलब्ध करा सकते हैं।
  • दूसरा, ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों के लिये अलग-अलग न्यूनतम मजदूरी शहरी क्षेत्रों में प्रवास का कारण नहीं बनती है, क्योंकि शहरी क्षेत्रों में रहने की उच्च लागत का एक ऑफसेट प्रभाव पड़ता है।
  • तीसरा, मुख्य ध्यान ‘परिसंपत्ति निर्माण’ से ‘सेवा वितरण’ की ओर केंद्रित करना चाहिये। इसे ‘परिसंपत्ति निर्माण’ या ‘मजदूरी-सामग्री अनुपात' तक सीमित करना शहरी व्यवस्था के लिये पूरी तरह से अनुकूल नहीं हो सकता है और नगरपालिका सेवाओं की गुणवत्ता बढ़ाने पर ध्यान दिया जाना चाहिये।
  • चौथा, ऐसी योजना एक 'आर्थिक वैक्सीन' की तरह है और बेरोजगारी को कम करने के लिये इसे राज्य स्तर की बजाय राष्ट्रीय स्तर पर संचालित किये जाने की आवश्यकता है।
Have any Query?

Our support team will be happy to assist you!

OR