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समाज में महिलाओं की भागीदारी बढ़ाने की आवश्यकता 

संदर्भ

प्रतिवर्ष 8 मार्च को अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस मनाया जाता है। वर्ष 2022 के महिला दिवस का विषय 'एक स्थायी कल के लिये आज लैंगिक समानता' (Gender Equality Today for a Sustainable Tomorrow) है। भारत सहित विश्व भर में महिलाओं के लिये अनौपचारिक कार्यबल के साथ-साथ अन्य क्षेत्रों में लैंगिक असमानता का मुद्दा अभी भी चिंतनीय है। भारत में अभी भी राजनीति समावेशी नहीं बन सकी है। महिलाओं का राजनीति में पर्याप्त प्रतिनिधित्त्व नहीं है। 

अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस : पृष्ठभूमि

अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस प्रतिवर्ष 8 मार्च को महिलाओं की सांस्कृतिक, राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक उपलब्धियों को याद करने के लिये मनाया जाता है। न्यूजीलैंड में शुरू हुए सार्वभौमिक महिला मताधिकार आंदोलन से प्रेरित होकर इसकी शुरुआत 20वीं शताब्दी के प्रारंभ में उत्तरी अमेरिका और यूरोप में श्रमिक आंदोलनों से हुई थी।

गरीबी और मातृत्व लाभ 

  • विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के अनुसार, ‘गरीबी के नारीकरण’ (Feminisation of Poverty) का प्रमुख कारण महिलाओं का अनौपचारिक कार्यों में संलग्न होना है। गरीबी का नारीकरण गरीबी में बढ़ते लैंगिक अंतर के कारण पुरुषों और महिलाओं के मध्य जीवन स्तर में बढ़ती असमानता की प्रवृत्ति को दर्शाता है।
  • भारत मातृ स्वास्थ्य लाभ के क्षेत्र में कई उन्नत देशों से आगे है। साथ ही, ये वैधानिक मातृत्व अवकाश के मामले में विश्व स्तर पर शीर्ष तीन देशों में से एक है।
  • मातृत्व लाभ (संशोधन) अधिनियम, 2017 के अंतर्गत महिला कर्मचारियों के लिये सवैतनिक मातृत्व अवकाश की अवधि को दोगुना से अधिक करके 26 सप्ताह कर दिया गया है। इस अवधि के बाद भी नियोक्ता के साथ आपसी समझौते के आधार पर घर से कार्य करने का विकल्प मौजूद है।
  • साथ ही, 50 या उससे अधिक महिलाओं को रोज़गार प्रदान करने वाले प्रतिष्ठानों के लिये क्रेच सुविधाओं को अनिवार्य कर दिया गया है। हालाँकि, इसका अधिकांश लाभ औपचारिक क्षेत्र की महिला श्रमिकों को ही मिल पाता है, महिला कर्मचारियों में जिनकी संख्या 5% से भी कम हैं।

श्रम बल में महिलाओं की भागीदारी

  • अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) के वर्ष 2018 के एक अध्ययन के अनुसार, भारत की 95% से अधिक कामकाजी महिलाएँ अनौपचारिक क्षेत्र में कार्यरत हैं, जो बिना किसी सामाजिक सुरक्षा के और कम भुगतान में अत्यधिक श्रमप्रधान कार्य करती हैं। साथ ही, अनौपचारिक क्षेत्र की नौकरियों में अनिश्चितता भी अधिक होती है।
  • गुणवत्तापूर्ण चाइल्डकेयर सेवाओं तक पहुँच की कमी के कारण भी महिला श्रमिकों को रोज़गार छोड़ने पर मज़बूर होना पड़ता है, जिससे उनकी आय प्रभावित होती है और उन्हें आर्थिक जोखिम का सामना करना पड़ता है। इससे लिंग एवं वर्ग असमानता में वृद्धि हो सकती है।
  • भारत ने अनौपचारिक क्षेत्र में चाइल्डकेयर सहायता से संबंधित चिंताओं को दूर करने पर कम ध्यान दिया है। महिलाओं को अधिक उत्पादक बनाने तथा मातृ एवं शिशु स्वास्थ्य परिणामों में सुधार के लिये निम्नलिखित तीन बिंदुओं पर ध्यान दिया जा सकता है- 
    • एकीकृत बाल विकास सेवाओं के बुनियादी ढाँचे का विस्तार करना
    • राष्ट्रीय शिशु गृह योजनाओं को पुनर्जीवित करना 
    • मातृत्व लाभ में सुधार करना।

एकीकृत बाल विकास सेवाओं (ICDS) के बुनियादी ढाँचे का विस्तार

  • आई.सी.डी.एस. के तहत आंगनवाड़ी केंद्रों का प्राथमिक कार्य मातृ एवं शिशु पोषण सुरक्षा, स्वच्छ व सुरक्षित वातावरण एवं प्रारंभिक स्तर की शिक्षा प्रदान करना है। इस प्रकार महिलाओं को प्रसव पश्चात् कार्य पर पुन: लौटने को सुगम बनाना है। 
  • हालाँकि, इसकी दो प्रमुख सीमाएँ हैं- पहला, इसमें तीन वर्ष से कम आयु के बच्चे शामिल नहीं हैं। दूसरा, यह दिन में केवल कुछ घंटों के लिये कार्य करता है, जिससे कार्य के दौरान बच्चों को भेजने और लाने में असुविधा होती है।
  • आंगनवाड़ी केंद्रों में बच्चों को कम आयु में शामिल करने से दोहरा लाभ हो सकता है। इससे माताओं को वैतनिक कार्य के लिये समय मिल सकेगा और यह राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के अनुरूप भी होगा। शिक्षा नीति में 0-6 आयु वर्ग के बच्चों के लिये गुणवत्ता प्रारंभिक देखभाल और शिक्षा की परिकल्पना की गई है।
  • आंगनवाड़ी केंद्रों के समय का विस्तार करने से कामकाजी महिलाओं के लिये समय की कमी को भी दूर किया जा सकता है, जिसके लिये बुनियादी ढाँचे के विस्तार की भी आवश्यकता है।

राष्ट्रीय शिशु गृह योजनाओं को पुनर्जीवित करना

  • राष्ट्रीय क्रेच योजना में कामकाजी महिलाओं के लिये विशिष्ट प्रावधान है, किंतु इसे सरकारी वित्त में कमी का सामना करना पड़ रहा है। कार्यस्थल एवं कार्य की अवधि में विविधता लाने तथा इसके कार्यान्वयन अंतराल को दूर करने के लिये एक समावेशी दृष्टिकोण की आवश्यकता है। योजना को पुनर्जीवित करना तथा सार्वजनिक एवं कार्यस्थल पर क्रेच नेटवर्क को जोड़ना बेहद लाभकारी सिद्ध हो सकता है।
  • सार्वजनिक क्रेच को विभिन्न कार्यस्थल समूहों, जैसे- औद्योगिक क्षेत्रों, बाजारों, सघन एवं कम आय वाले आवासीय क्षेत्रों और श्रमिक केंद्रों में संचालित किया जा सकता है, जिससे क्रेच केंद्रों पर स्तनपान कराने के लिये तथा आपात स्थिति में शीघ्र पहुँचा जा सके। कुछ भारतीय शहरों में स्व-रोजगार महिला संघ (SEWA) संगिनी द्वारा इस मॉडल का सफलतापूर्वक परीक्षण किया जा चुका है।
  • निर्माण क्षेत्र के मामले में ‘बिल्डिंग एंड अदर कंस्ट्रक्शन वर्कर्स वेलफेयर बोर्ड’ क्रेच संचालन का आदेश देता है। निर्माण उपकर से एकत्र की गई धनराशि का प्रयोग निर्माण स्थलों पर क्रेच संचालन के लिये किया जा सकता है।

मातृत्व लाभ में सुधार

  • प्रसव और उसके बाद बच्चे की देखभाल के कारण भी महिलाओं को आर्थिक रूप से समस्याओं का सामना करना पड़ता है और कई महिलाएँ प्रसव के कुछ समय के भीतर ही काम पर लौटने के लिये मज़बूर हो जाती हैं।
  • राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम (NFSA) 2013 के तहत गर्भवती और स्तनपान कराने वाली माताओं को मिलने वाले न्यूनतम 6,000 रुपए के नकद हस्तांतरण से पूर्व तक अनौपचारिक क्षेत्र में संलग्न महिलाओं को मातृत्व लाभ नहीं मिलता था।
  • हालाँकि, इस उद्देश्य के लिये प्रारंभ की गई ‘प्रधानमंत्री मातृ वंदना योजना’ (PMMVY) के तहत यह लाभ पहले जन्म तक सीमित करते हुए प्रदान की जाने वाली राशि को घटाकर 5,000 रूपए कर दिया गया है।
  • यह राशि पोषण संबंधी ज़रूरतों के लिये अपर्याप्त एवं न्यूनतम मज़दूरी से कम होने के कारण प्रसव के छह माह से पूर्व ही माताओं को काम पर लौटना पड़ता है। 
  • तमिलनाडु (डॉ मुथुलक्ष्मी मातृत्व लाभ योजना), राजस्थान (इंदिरा गांधी मातृत्व पोषण योजना), ओडिशा (ममता योजना), गुजरात (कस्तूरबा पोषण सहाय योजना) और छत्तीसगढ़ (कौशल्या मातृत्व योजना) जैसे राज्य कुशल स्वास्थ्य व्यवहारों को प्रोत्साहित करके कवरेज अंतर को कम करने का प्रयास कर रहे हैं।

समावेशी लोकतंत्र की आवश्यकता 

  • दक्षिण एशिया में लोकतंत्र में राजनीतिक और नागरिक जीवन को मजबूत करने में महिलाओं की भूमिका बढ़ रही है। दक्षिण एशिया में विश्व के किसी भी क्षेत्र की तुलना में महिला राष्ट्राध्यक्षों की संख्या सर्वाधिक रही है।
  • उल्लेखनीय है कि वर्तमान लोकसभा में महिला सांसदों की संख्या 14.6% (78 सांसद) है, जो स्वतंत्रता के बाद से सर्वाधिक है। हालाँकि, लोकसभा और सभी राज्यों की विधानसभाओं में महिलाओं के लिये 33% सीटें आरक्षित करने वाला महिला आरक्षण विधेयक वर्ष 2010 से राज्यसभा में पारित होने के बाद से ही लंबित है। 
  • वर्ष 1962 में पुरुष मतदान महिलाओं की तुलना में 16% अधिक था, जबकि वर्ष 2019 के लोकसभा चुनावों में पहली बार महिलाओं की भागीदारी पुरुषों से अधिक हो गई। भारत की राजनैतिक, आर्थिक, सामाजिक एवं सांस्कृतिक व्यवस्थाओं में महिलाओं का योगदान निरंतर बढ़ रहा है, जो समावेशी लोकतांत्रिक व्यवस्था के लिये एक सफल प्रयास है।

निष्कर्ष

महिला मतदाताओं की बढ़ती संख्या राजनीतिक दलों की कार्यक्रम संबंधी प्राथमिकताओं को प्रभावित कर सकती है तथा यौन उत्पीड़न एवं लिंग आधारित हिंसा सहित महिला मतदाताओं के हितों, प्राथमिकताओं व चिंताओं के प्रति उनकी प्रतिक्रिया में सुधार कर सकती है। सस्ती एवं गुणवत्तापूर्ण चाइल्डकेयर सेवाओं और मातृत्व लाभों की कमी से अनौपचारिक महिला श्रमिकों पर बोझ बढ़ जाता है, जिससे लिंग एवं वर्ग असमानताएँ बढ़ जाती हैं। इस पर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है।

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