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नेट जीरो

संदर्भ-

  • नेट जीरो से तात्पर्य है कि सभी देशों को जलवायु परिवर्तन रोकने के लिए कार्बन न्यूट्रैलिटी यानी कार्बन के उत्सर्जन में तटस्थता लानी है। 

मुख्य बिंदु-

  • नेट जीरो का यह मतलब बिल्कुल नहीं है कि कोई देश कार्बन के उत्सर्जन को शून्य पर पहुंचा दे (जो कि असंभव है)
  • बल्कि नेट जीरो का अर्थ है कोई भी देश के उत्सर्जन का आंकड़ा वायुमंडल में उसकी ओर से भेजी जा रही ग्रीनहाउस गैसों के जमाव को स्थिर रखे। 

ग्रीनहाउस गैस

  • दुनिया भर में जलवायु परिवर्तन के लिए ग्रीनहाउस गैसों को जिम्मेदार माना जा रहा है। 
  • ग्रीनहाउस गैस वो गैसें है, जिनका ज्यादा उत्सर्जन पूरी दुनिया में ग्लोबल वॉर्मिंग का कारण बन रहा है। 
  • प्रमुख  है ग्रीनहाउस गैसें हैं- जल वाष्प, कार्बन डाईऑक्साइड, मीथेन, नाइट्रस ऑक्साइड, ओजोन, कार्बन मोनोऑक्साइड, फ्लोरिनेटेड गैसें, क्लोरोफ्लोरोकार्बन (सीएफसी), ब्लैक कार्बन (कालिख), ब्राउन कार्बन आदि।
  • इसके अलावा इंसानों द्वारा बनाए गए कुछ कार्बन और फ्लोरीन गैस के कंपाउंड भी ग्रीनहाउस गैस में गिने जाते हैं, क्योंकि यह भी वायुमंडल में ऊर्जा छोड़ती हैं, जिससे अंततः ग्लोबल वॉर्मिंग की समस्या उत्पन्न होती है। 
  • इन गैसों का ज्यादा उत्सर्जन धरती पर गर्मी का कारण बनता है। 

नेट जीरो का लक्ष्य-

  • मनुष्य का पूरा जीवन ही कार्बन पर निर्भर है। 
  • मनुष्य के शरीर से लेकर उसके आसपास मौजूद चीजें भी कार्बन और अन्य तत्वों के योग से बनी हैं, अतः कार्बन उत्सर्जन को कभी खत्म नहीं किया जा सकता। 
  • जिस स्तर पर मौजूदा समय में इसका उत्सर्जन हो रहा है, उसे नियंत्रण में लाया जा सकता है। 
  • कोई देश वातावरण में कार्बन आधारित ग्रीनहाउस गैसों का जितना उत्सर्जन कर रहा है, उतना ही उसे सोख और हटा भी दे तो, उसकी तरफ से वातावरण में ग्रीन हाउस गैसों का योगदान न के बराबर हो। इसी को नेट जीरो कहा जाता है। 

नेट जीरो का लक्ष्य हासिल करना आवश्यक क्यों-

  • हाल के वर्षों में नेट जीरो के लक्ष्य की प्राप्ति पर लगातार जोर दिया जा रहा है। 
  • विकसित देशों का कहना है कि अगर 2050 तक इस लक्ष्य को पूरा नहीं किया गया, तो 2015 में हुए पेरिस समझौते को पूरा नहीं किया जा सकेगा। 
  • पेरिस समझौते का लक्ष्य 2030 तक पृथ्वी के तापमान को 2 डिग्री सेल्सियस से ज्यादा बढ़ने से रोकना है। 
  • वर्तमान में जिस तरह से उत्सर्जन का स्तर जारी है, उससे सदी के अंत तक पृथ्वी का तापमान 3 से 4 डिग्री तक बढ़ने की आशंका जताई जा रही है।

कैसे हासिल होगा नेट जीरो का लक्ष्य-

  • दुनिया में जीवाश्म ईंधन से चलने वाले वाहनों (कार, बस, जहाज, आदि) और फ्रिज, एसी में बढ़ते सीएफसी के इस्तेमाल की वजह से ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन भी ज्यादा हुआ है। 
  • बढ़ते उत्सर्जन को हरे-भरे जंगलों के जरिए कम किया जा सकता है। 
  • पेड़ कार्बन डाइऑक्साइड सोखकर ऑक्सीजन छोड़ते हैं, वे ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन को कम कर सकते हैं। 
  • कुछ तकनीकों के जरिए भी उत्सर्जन पर लगाम लगाई जा सकती है। 
  • ये तकनीकें जीवाश्म ईंधन के इस्तेमाल को कम करने में भी प्रयोग हो सकती हैं।उदाहरण के लिए  
    1. सौर ऊर्जा का प्रयोग अब हर तरह की मशीन को चलाने में हो रहा है। 
    2. बिजली और ग्रीन फ्यूल से चलने वाले वाहनों पर जोर दिया जा रहा है। 
  • इन तकनीकों के कारण प्रदूषण के साथ-साथ कार्बन उत्सर्जन में भी कमी आ सकती है और कई देश जितना ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन में योगदान दे रहे हैं, उसे जीरो तक या निगेटिव स्तर तक भी पहुंचा सकते हैं। 
  • मौजूदा समय में भूटान और सूरीनाम दो देश हैं, जो कि नेट जीरो उत्सर्जन का लक्ष्य हासिल कर चुके हैं, क्योंकि वे जितना कार्बन छोड़ रहे हैं, उससे ज्यादा उन्हें सोख लेते हैं। 

भारत की आपत्तियां-

  • विकसित देशों ने नेट जीरो वर्ष, 2050 तक हासिल करने का लक्ष्य रखा है, वहीं पीएम मोदी ने इस लक्ष्य को 2070 तक तय किया है। 
  • भारत शुरुआत से ही नेट जीरो के टारगेट को जल्दी हासिल करने पर आपत्ति जताता रहा है, क्योंकि-
    1. विकासशील देश होने की वजह से अभी भारत की निर्भरता जीवाश्म ईंधन पर सबसे ज्यादा है। 
    2. विकसित देशों के उलट भारत की अर्थव्यवस्था भी अभी लगातार बढ़ रही है, जिसकी वजह से ऊर्जा जरूरतें आगे भी बढ़ती रहेंगी और आगे दो-तीन दशकों तक भारत के उत्सर्जन स्तर के नीचे आने की कोई संभावना नहीं है। 
    3. भारत के लिए बढ़ते आधुनिक इन्फ्रास्ट्रक्चर की वजह से ज्यादा से ज्यादा वनीकरण भी काफी मुश्किल है। 
    4. कार्बन को वातावरण से हटाने की तकनीक भी या तो काफी महंगी है या फिर भरोसेमंद नहीं है।
  • यदि वन संपदा को बचाए भी रखा जाए, तो भी कम से कम अगले दो दशक तक भारत की तरफ से उत्सर्जन कम किया जाना काफी मुश्किल होगा। 
  • अंततः अधिक जनसंख्या के कारण आने वाले वर्षों में भारत को नेट जीरो का लक्ष्य हासिल करना बेहद मुश्किल है। 

क्या भारत की आपत्तियां सही हैं-

  • सैद्धांतिक तौर पर भारत की आपत्तियां सही भी मानी जा रही हैं। 
  • नेट जीरो का लक्ष्य 2015 के पेरिस समझौते का हिस्सा नहीं था।  
  • पेरिस समझौते में शामिल देशों को जलवायु परिवर्तन से लड़ने के लिए सिर्फ एक आधारभूत ढांचा खड़ा करना था और पांच से दस सालों के लिए लक्ष्य तय करने थे, जिससे वे यह दिखा सकें कि जलवायु परिवर्तन के लिए वे संवेदनशील हैं।
  • भारत ने भी 2030 तक कार्बन उत्सर्जन कम करने के साथ नवीकरणीय ऊर्जा को बढ़ावा देने का वादा किया है। दुनियाभर में सोलर एनर्जी अलायंस को बढ़ावा देना भारत की इसी नीति का हिस्सा है। 
  • अनेक रिपोर्टों में कहा गया है कि भारत जी-20 देशों में से इकलौता देश है, जो पेरिस समझौते के लक्ष्यों को पूरा करने और वैश्विक तापमान को दो डिग्री सेल्सियस से कम रखने के लक्ष्य को पूरा करने के लिए काम कर रहा है। 
  • यूरोपियन यूनियन (ईयू) और अमेरिका के कदम भी जलवायु परिवर्तन रोकने में अपार्यप्त करार दिए गए हैं। 
  • भारत अपनी जनसंख्या के हिसाब से अपनी जिम्मेदारियों का बेहतर तरीके से निर्वहन कर रहा है। 

प्रारंभिक परीक्षा के लिए प्रश्न-

प्रश्न-  नीचे दिए गए कथनों पर विचार कीजिए 

  1. भूटान 
  2. सूरीनाम
  3. मालदीव

उपर्युक्त में से कौन- सा/ से देश नेट जीरो उत्सर्जन का लक्ष्य प्राप्त कर चुके हैं।

(a) केवल 1

(b) केवल 1 और 2

(c) केवल 2 और 3

(d) 1, 2 और 3

उत्तर- (b)

मुख्य परीक्षा के लिए प्रश्न-

प्रश्न- यद्यपि नेट जीरो का लक्ष्य प्राप्त करना आवशयक है, किंतु भारत इस पर आपत्तियां जता रहा है. भारत के आपत्तियों के कारणों को स्पष्ट करें।

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