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चंद्रमा की सतह पर नया क्रेटर 

(प्रारंभिक परीक्षा- राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय महत्त्व की सामयिक घटनाएँ)
(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 3: अंतरिक्ष)

संदर्भ

हाल ही में, चंद्रमा से एक अंतरिक्ष मलबे के टकराने से उसकी सतह एक गर्त/क्रेटर का निर्माण हुआ है। कथित तौर पर इसे चीन के एक रॉकेट के तीसरे चरण का मलबा माना जा रहा है। चंद्रमा की सतह से अंतरिक्ष मलबे के निरुद्देश्य पूर्ण (Unintentional) तरीके से टकराने का यह पहला दर्ज (Recorded) मामला है।

प्रमुख बिंदु

moon

  • इस मलबे की लंबाई लगभग 40 फीट (12 मीटर), व्यास लगभग 10 फीट (3 मीटर) और वजन लगभग 4 टन है। चंद्रमा की ओर बढ़ते समय इसकी गति लगभग 9300 किमी. प्रति घंटे थी।
  • वैज्ञानिक अनुमान के अनुसार, इस मलबे की टक्कर से लगभग 65 फीट का एक गर्त निर्मित हुआ है। 
  • प्रक्षेपवक्र के अध्ययन के आधार पर यह निष्कर्ष निकाला गया है कि संबंधित मलबा चीन द्वारा अक्टूबर 2014 में लॉन्च किये गए लूनर मिशन से संबंधित चांग’ई 5-टी1 (Chang'e 5-T1) के प्रक्षेपण यान का है।
  • हालाँकि, चीन ने इसका प्रतिकार करते हुए तर्क दिया है कि संबंधित रॉकेट पृथ्वी के वायुमंडल में पुनः प्रवेश कर वायुमंडलीय घर्षण के कारण जलकर समाप्त हो गया था।
  • उल्लेखनीय है कि यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी के अनुसार, वर्तमान में 10 सेमी. से बड़े आकार के 36,500 अंतरिक्ष मलबे हैं।

अंतरिक्ष मलबा (Space Junk)

  • अंतरिक्ष मलबा, पृथ्वी की परिक्रमा करने वाली उन कृत्रिम सामग्रियों को कहते है, जो वर्तमान में कार्यात्मक स्थिति में नहीं हैं। इसे ‘अंतरिक्ष कबाड़’ (Space Debris) भी कहा जाता है। अधिकांश अंतरिक्ष मलबा पृथ्वी की निचली कक्षा में पाया जाता है।
  • मुक्त अवस्था में अंतरिक्ष मलबा परिचालन एवं संचार उपग्रहों के लिये खतरा उत्पन्न कर सकता है। इसके टकराने से उपग्रह निष्क्रिय हो सकते हैं। इसे ‘केसलर सिंड्रोम’ के रूप में जाना जाता है।
  • अंतरिक्ष मलबे से आणविक क्रियाशीलता, अंतरिक्ष यात्राओं और पृथ्वी की संचार व्यवस्था में बाधा, संचलन की लागत में वृद्धि, अंतरिक्ष प्रौद्योगिकियों के सतत् उपयोग में बाधा आदि खतरें उत्पन्न हो सकते हैं।
  • अंतरिक्ष मलबों से संबंधित चुनौतियों से निपटने के लिये राष्ट्रीय तथा अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर किये जाने वाले प्रयासों में ‘अंतरिक्ष के मलबे पर निगरानी हेतु इसरो की नेत्र (NETRA) परियोजना’, ‘यू.के. की टेकडेमोसैट प्रणाली का प्रक्षेपण’, ‘जापान द्वारा एंड ऑफ लाइफ सर्विसेज बाई एस्ट्रोस्केल डिमोंस्ट्रेशन (Elsa-D) का आरम्भ’, ‘यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी की क्लियरस्पेस-1 परियोजना’, नेट कैप्चर और हार्पून कैप्चर इत्यादि शामिल हैं।

प्रभाव एवं प्रकृति 

  • उपग्रह चित्रों के माध्यम से इस टक्कर के प्रभावों की पुष्टि में समय लग सकता है। नासा का ‘लूनर टोही ऑर्बिटर’ (Lunar Reconnaissance Orbiter) और इसरो का ‘चंद्रयान-2 ऑर्बिटर’ वर्तमान में दो सक्रिय चंद्र मिशन हैं जो क्रेटर का अवलोकन करने और उसका चित्र लेने में सक्षम हैं।
  • यह टक्कर चंद्रमा पर पृथ्वी से दूर वाले हिस्से में हुई है, अत: इसके प्रभाव का आकलन करना और क्रेटर का तुरंत चित्र लेना एवं उसका अध्ययन करना कठिन है।
  • पृथ्वी और चंद्रमा से क्षुद्रग्रहों जैसी कई वस्तुएँ टकराती रहती हैं, किंतु पृथ्वी की तुलना में चंद्रमा पर क्रेटर अधिक स्थायी प्रकृति के होते हैं। इसका कारण क्षरण, विवर्तनिकी और ज्वालामुखी जैसी प्रक्रियाएँ हैं।
  • ये तीनों प्रक्रियाएँ पृथ्वी की सतह को क्रेटर मुक्त कर देती हैं। वर्तमान में पृथ्वी पर 200 से कम ज्ञात क्रेटर हैं जबकि चंद्रमा पर हजारों क्रेटर विद्यमान हैं।

चंद्रमा पर क्रेटर के स्थायी होने के कारण 

  • विदित है कि चंद्रमा मौजूद क्रेटर का व्यास 1,600 मील (2,500 किमी.) तक है। चंद्रमा पर उल्का पिंड, क्षुद्रग्रह और अंतरिक्ष मलबे की टक्कर होती रहती है।
  • चंद्रमा का अपना वायुमंडल नहीं है अर्थात यहाँ पर कोई पवन प्रणाली या मौसम मौजूद नहीं है। अत: चंद्रमा पर अपक्षय की प्रक्रिया नहीं होती है, जिसके परिणामस्वरुप ये गर्त स्थायी हो गए हैं। 
  • विवर्तनिकी की अनुपस्थिति के कारण चंद्रमा की सतह पर नई चट्टानों का निर्माण या मौजूदा सतह के पैटर्न में बदलाव नहीं हो पाता है। साथ ही, ज्वालामुखी की अनुपस्थिति के कारण क्रेटर या गर्त की पुन: पूर्ति असंभव हो जाती है।

प्रमुख लूनर क्रेटर

  • चंद्रमा पर कुछ प्रमुख क्रेटर- अल्बेटेग्नियस (Albategnius), बैली, क्लावियस (Clavius), हम्बॉल्टड (Humboldt), मेटियस (Metius), रसेल, टाइको (Tycho), केप्लर, कॉपरनिकस, प्लेटो हैं।
  • दक्षिणी ध्रुव में स्थित ऐटकेन बेसिन (Aitken Basin) को चंद्रमा पर स्थित सबसे बड़े क्रेटरों में से एक माना जाता है।
  • ‘मित्र क्रेटर’ का नाम भारतीय रेडियो भौतिक विज्ञानी शिशिर कुमार मित्रा के नाम पर रखा गया है।
  • जुलाई 2020 में चंद्रयान-2 ने मेअर सेरेनिटैटिस पर ‘साराभाई क्रैटर’ का प्रतिबिंब लिया। साराभाई क्रेटर का नाम भारतीय खगोल भौतिकी वैज्ञानिक डॉ. विक्रम अंबालाल साराभाई के नाम पर रखा गया है।
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