(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 3: विषय – कृषि)
चर्चा में क्यों?
- हाल ही में, बिजनौर और पास के क्षेत्रों में किसानों द्वारा जैविक कृषि या आर्गेनिक फार्मिंग के फलसवरूप न सिर्फ अच्छी पैदावार हुई है, बल्कि किसानों को आर्थिक रूप से भी अधिक फायदा हुआ है।
- विगत कुछ वर्षों से किसानों में जैविक कृषि को लेकर विभिन्न आशंकाएँ थीं जो अब धीरे-धीरे दूर हो रही हैं।
- प्रधानमंत्री ने भी मन की बात कार्यक्रम में जैविक कृषि की फायदों पर ज़ोर दिया था।
- पर्यावरण और स्वास्थ्य पर रासायनिक कृषि के गम्भीर दुष्प्रभावों को देखते हुए धीरे-धीरे ही सही लेकिन जैविक व प्राकृतिक कृषि की ओर लोगों का झुकाव बढ़ रहा है। यह कृषि अपार सम्भावनाओं का दरवाजा खोलती है।
- हालाँकि भारत में यह कृषि अब भी सीमित क्षेत्रफल में ही हो रही है। राज्य सरकारों व केंद्र सरकार द्वारा अभी भी काफी कुछ किया जाना बाकी है।
जैविक कृषि : प्रमुख बिंदु
- विज्ञान एवं पर्यावरण केंद्र (CSE) की रिपोर्ट के अनुसार, रसायन मुक्त कृषि को बढ़ावा देने के लिये बड़े स्तर पर सुनियोजित, महत्वाकांक्षी, बड़े बजट वाले देशव्यापी कार्यक्रम की सख्त ज़रूरत है, जिससे विभिन्न विभाग, मंत्रालय, केंद्र और राज्य सरकारें एकजुट होकर समन्वित प्रयास कर सकें।
- सरकार द्वारा किसानों के लिये एक अच्छे जैविक बाज़ार को उपलब्ध कराना अति आवश्यक है। उच्च गुणवत्ता के देसी बीज, जैविक और बायो फर्टिलाइजर, जैविक खाद आदि की उपलब्धता सस्ते मूल्य पर सुनिश्चित करानी होगी।
- रासायनिक खाद की सब्सिडी को जैविक खाद की तरफ मोड़ना चाहिये, जिससे किसानों को जैविक का विकल्प मिल सके।
- स्थानीय स्तर पर कृषि विस्तार सेवाओं को इस बड़े बदलाव के लिये सक्षम बनाए जाने की सख्त ज़रुरत है।
- जैविक सर्टिफिकेशन व्यवस्था में सुधार कर इसे किसानों की आवश्यकता के अनुरूप ढालना होगा। पी.जी.एस. सर्टिफिकेशन द्वारा पैदा किये उत्पाद को फूड प्रोक्योरमेंट प्रोग्राम और मिड डे मील जैसी योजनाओं से जोड़ने की ज़रुरत है, जिससे किसानों का जैविक उत्पाद खरीदा जा सके।
- कृषि राज्य का विषय है, अंत: खासतौर पर राज्य सरकारों को विभिन्न दिशाओं में समुचित और समन्वित प्रयास करने होंगे, जैसे- जैविक बीज और खाद, किसानों का प्रशिक्षण, मार्केट लिंकेज, ऑर्गेनिक वैल्यू चैन डेवलपमेंट और किसानों के लिये जैविक उत्पादों का लाभकारी मूल्य मिलना सुनिश्चित करना होगा।
- ये सभी प्रयास प्राकृतिक और जैविक कृषि का मार्ग प्रशस्त करेंगे।
जैविक और प्राकृतिक कृषि की बाधाएँ
- रसायन मुक्त कृषि अब भी मुख्यधारा में आने के लिये संघर्ष कर रही है। केंद्र और राज्य सरकारों की तरफ से इस दिशा में अभी तक गम्भीर प्रयास नहीं हुए।
- किसान, उपभोक्ता और सरकारों के सामने भी रसायन मुक्त उत्पाद को बढ़ावा न देने के अपने कारण हैं। इन बाधाओं की वजह से जैविक और प्राकृतिक कृषि के विस्तार पर नकारात्मक असर पड़ा है।
- आज देश में जैविक कृषि पर कोई राष्ट्रीय स्तर का मिशन या महत्वाकांक्षी एक्शन प्लान नहीं है। राष्ट्रीय जैविक कृषि नीति निष्क्रिय-सी हो चुकी है। एक तरफ जहाँ रासायनिक उर्वरकों को साल में सरकार की तरफ से 70 से 80 हज़ार करोड़ की सब्सिडी दी जाती है, वहीं जैविक कृषि की मुख्य योजनाओं को सिर्फ कुछ सौ करोड़ ही दिये जाते हैं।
- आश्चर्य की बात है कि अब तक वैज्ञानिक समुदाय और नीति निर्माताओं ने जैविक और प्राकृतिक कृषि के सम्पूर्ण फायदों जैसे- पर्यावरण, आर्थिक, सामाजिक, पोषण और सतत् विकास लक्ष्य सम्बंधी तथ्यों को पूरी तरह से या तो समझा नहीं या समझकर भी नीति निर्माण में महत्त्व नहीं दिया।
- एक तरफ जहाँ रासायनिक कृषि को बढ़ावा देने के लिये एग्रो-केमिकल इंडस्ट्रीज़ की बड़ी लॉबी रहती है, वहीं बहुत सारी आशंकाओं के चलते रसायन मुक्त कृषि को उच्च स्तर पर राजनैतिक सहयोग भी हासिल नहीं हो पाता।
- देश की कृषि शिक्षा व्यवस्था और वैज्ञानिक समुदाय रासायनिक कृषि पर ही बात करता है और रसायन मुक्त कृषि को बड़े स्तर पर ले जाने की ओर अग्रसर नहीं है।
- हमारे देश का कृषि तंत्र किसानों का सही मार्गदर्शन और सहयोग प्रदान करने में विफल रहा है। किसानों को उत्पादों का सही मूल्य लेने के लिये संघर्ष करना पड़ता है और काफी समय बाज़ार की भागदौड़ में निकालना पड़ता है।
- वर्तमान में जैविक मार्केट लिंकेज की सरकार द्वारा लगभग नगण्य व्यवस्था है या जहाँ है भी तो बहुत ही छोटे स्तर पर है। रसायन मुक्त कृषि का तेज़ी से प्रचार-प्रसार न होने का एक बड़ा कारण उचित मूल्य न मिल पाना भी है।
- सरकार की किसी भी योजना में किसानों द्वारा योजना के तहत उत्पादित कृषि उत्पादों को खरीदने का कोई प्रावधान नहीं है। इसी के साथ किसानों को उत्तम गुणवत्ता और उचित दाम पर जैविक बीज, जैविक खाद आदि की व्यवस्था नहीं है।
आगे की राह
- जैविक और प्राकृतिक कृषि से होने वाले अनेक फायदे, जैसे- पर्यावरण संरक्षण, जल संरक्षण, जैव विविधता, जलवायु परिवर्तन अनुकूलता, मिट्टी का स्वास्थ्य, मनुष्यों और पशुओं के स्वास्थ्य पर होने वाले सकारात्मक परिणाम आदि पर वास्तविक वैज्ञानिक डाटा विकसित करना चाहिये, जिससे नीतिगत फैसले लेते समय इन कारकों को भी ध्यान में रखा जाए।
- जैविक या प्राकृतिक कृषि की तरफ मुड़ने वाले किसानों को भी न केवल रासायनिक कृषि की तरह बराबर का सहयोग मिलना चाहिये बल्कि उनकी समस्याओं को समझकर उनका समुचित मार्गदर्शन भी करना चाहिये।
- अनुभवी किसानों को रसायन मुक्त कृषि के ज्ञान का प्रचार- प्रसार करना चाहिये।