(प्रारंभिक परीक्षा : पर्यावरण एवं पारिस्थितिकी से संबंधित प्रश्न)
(मुख्य परीक्षा : सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र 3 - विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी तथा संरक्षण, पर्यावरण प्रदूषण और क्षरण, पर्यावरण प्रभाव के आकलन से संबंधित प्रश्न)
संदर्भ
देश की राजधानी में वायु प्रदूषण से निपटने के लिये उच्चतम न्यायालय के हस्तक्षेप के उपरांत दिल्ली के कनॉट प्लेस नामक स्थान पर ‘देश के पहले स्मॉग टावर’ का मुख्यमंत्री द्वारा उद्घाटन किया गया। इस परियोजना का उद्देश्य ‘स्थानीयकृत’ क्षेत्र में शुद्ध वायु को उपलब्ध कराना है।
स्मॉग टावर के अवयव
- टावर की संरचना 24 मीटर ऊँची (लगभग 8 मंजिला इमारत) 18 मीटर कंक्रीट से निर्मित है, जो 6 मीटर की ऊँची छत से ऊपर है। इसके आधार पर 40 पंखे (प्रत्येक तरफ़ 10 पंखे) लगे हुए हैं।
- प्रत्येक पंखा प्रति सेकंड 25 क्यूबिक मीटर वायु का शोधन कर सकता है, जो पूरे टावर के लिये 1000 क्यूबिक मीटर प्रति सेकंड तक हो सकता है।
- टावर के अंदर दो परतों में 5000 फिल्टर लगे हुए हैं। गौरतलब है कि, इन फिल्टर और पंखों को अमेरिका से आयात किया गया है।
टावर की कार्यप्रणाली
- परियोजना के प्रभारी इंजीनियर ने बताया कि टावर ‘मिनेसोटा विश्वविद्यालय’ द्वारा विकसित एक ‘डाउनड्राफ्ट वायु शोधन प्रणाली’ का उपयोग करता है।
- प्रौद्योगिकी की प्रतिलिपि बनाने के लिये आई.आई.टी.-बॉम्बे ने अमेरिकी विश्वविद्यालय के साथ सहयोग किया है। इसे ‘टाटा प्रोजेक्ट्स लिमिटेड’ की वाणिज्यिक शाखा द्वारा कार्यान्वित किया गया है।
- इसके अंतर्गत प्रदूषित वायु को 24 मीटर की ऊँचाई पर अवशोषित किया जाएगा और फ़िल्टर की गई वायु को टावर के नीचे, जमीन से लगभग 10 मीटर की ऊँचाई पर छोड़ा जाएगा।
- जब टावर के निचले हिस्से में पंखे कार्य करते हैं, तो एक नकारात्मक दबाव बनने के कारण ऊपर से वायु को अवशोषित किया जाता है।
- फिल्टर में 'मैक्रो' परत 10 माइक्रोन और उससे बड़े कणों को पकड़ती है, जबकि 'सूक्ष्म' परत लगभग 0.3 माइक्रोन के छोटे कणों को फ़िल्टर करती है।
- डाउनड्राफ्ट प्रणाली चीन में उपयोग की जाने वाली प्रणाली से अलग है। चीन के जियान शहर में 60 मीटर का स्मॉग टावर 'अपड्राफ्ट' प्रणाली का उपयोग करता है।
- इस प्रणाली में वायु को जमीन के पास से अवशोषित किया जाता है और हीटिंग तथा संवहन द्वारा ऊपर की ओर धकेला जाता है और अंत में फ़िल्टर की गई वायु को टावर के शीर्ष पर से छोड़ा जाता है।
टावर के संभावित प्रभाव
- आई.आई.टी.-बॉम्बे द्वारा ‘कम्प्यूटेशनल फ्लूड डायनामिक्स मॉडलिंग’ से पता चलता है कि टावर से 1 कि.मी. तक की वायु की गुणवत्ता पर असर पड़ेगा।
- दो वर्ष के पायलट अध्ययन में आई.आई.टी.-बॉम्बे और आई.आई.टी.-दिल्ली द्वारा वास्तविक प्रभाव का आकलन किया जाएगा।
- साथ ही, यह भी निर्धारित किया जाएगा कि विभिन्न मौसम स्थितियों में टावर कैसे कार्य करता है और वायु के प्रवाह के साथ पी.एम. 2.5 का स्तर किस प्रकार बदलता है।
- टावर में एक स्वचालित पर्यवेक्षी नियंत्रण और डेटा अधिग्रहण (स्काडा) प्रणाली वायु गुणवत्ता की निगरानी करेगी।
- तापमान और आर्द्रता के अलावा पी.एम.2.5 और पी.एम.10 के स्तर को लगातार मापा जाएगा और उसे टावर के ऊपर एक बोर्ड पर प्रदर्शित किया जाएगा।
- इसके प्रभाव को निर्धारित करने के लिये जल्द ही टावर से विभिन्न दूरियों पर मॉनिटर लगाए जाएँगे।
उच्चतम न्यायालय का निर्देश
- वर्ष 2019 में, उच्चतम न्यायालय ने पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश में पराली जलाने के कारण राष्ट्रीय राजधानी में वायु प्रदूषण से संबंधित एक मामले की सुनवाई के दौरान केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (C.P.C.B.) और दिल्ली सरकार को वायु प्रदूषण से निपटने के लिये स्मॉग टावर लगाने की योजना बनाने का निर्देश दिया था।
- जनवरी 2020 में उच्चतम न्यायालय ने निर्देश दिया कि पायलट प्रोजेक्ट के तौर पर अप्रैल तक दो टावर लगाए जाएँ।
- पूर्वी दिल्ली के आनंद विहार में नोडल एजेंसी के रूप में सी.पी.सी.बी. के साथ दूसरा टावर बनाया जा रहा है।
- सी.पी.सी.बी. की वर्ष 2016 की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि वर्ष 2009 के बाद से, दिल्ली में पी.एम.10 की सांद्रता में 258 प्रतिशत से 335 प्रतिशत की वृद्धि देखी गई है।
- लेकिन रिपोर्ट में कहा गया कि दिल्ली और आसपास के इलाकों में सबसे प्रमुख प्रदूषक पी.एम.2.5 है।
प्रमाण की कमी
- भारत में बड़े पैमाने पर बाहरी वायु शोधन प्रणाली के साथ यह पहला प्रयोग है।
- नीदरलैंड और दक्षिण कोरिया में छोटे स्मॉग टावर बनाए गए हैं जबकि बड़े टावरों को चीन में स्थापित किया गया है।
- विशेषज्ञों का कहना है कि इस बात के पर्याप्त साक्ष्य नहीं हैं कि स्मॉग टावर काम करते हैं।
- उनके पास ऐसा कोई स्पष्ट डेटा नहीं है जिससे पता चल सके कि स्मॉग टावरों ने भारत या दुनिया के अन्य हिस्सों में किसी शहर की बाहरी परिवेशी वायु गुणवत्ता में सुधार करने में मदद की है।
- दिल्ली में गौतम गंभीर फाउंडेशन द्वारा कृष्णा नगर, गांधी नगर और लाजपत नगर में तीन छोटे एयर प्यूरीफायर (लगभग 12 फीट लंबे) स्थापित किये गए हैं, जो अनिवार्य रूप से इनडोर एयर प्यूरीफायर के बड़े संस्करण हैं।