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एन.पी.ए. की समस्या और बैड बैंक

(प्रारंभिक परीक्षा: राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय महत्त्व की सामयिक घटनाएँ, आर्थिक और सामाजिक विकास, मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 3: भारतीय अर्थव्यवस्था; संसाधनों को जुटाने  संबंधी विषय)

संदर्भ

महामारी के परिणामस्वरूप अर्थव्यवस्था में संकुचन के कारण वाणिज्यिक बैंकों के एन.पी.ए. या दबावग्रस्त परिसंपत्तियों में वृद्धि देखने को मिली है, इसलिये हाल ही में, रिज़र्व बैंक बैड बैंक के निर्माण संबंधी प्रस्ताव पर विचार करने के लिये सहमत हुआ है। इसे रिज़र्व बैंक द्वारा महामारी के समय लागू किये गए 6 माह के ऋण अधिस्थगन की प्रतिक्रिया के रूप में भी देखा जा रहा है।

बैड बैंक क्या है?

  • बैड बैंक एक ऐसी वित्तीय संस्था है जो बैंकों तथा वित्तीय संस्थाओं से उनके एन.पी.ए. अथवा दबावग्रस्त ऋणों को मुख्यतः रियायती बाज़ार मूल्य पर खरीदती है। इसके उपरांत, बैड बैंक इन एन.पी.ए. अथवा दबावग्रस्त ऋणों की व्यावसायिक प्रबंधन, बिक्री अथवा पुनर्संरचना के माध्यम से रिकवरी अथवा वसूली करते हैं। अर्थात् यह एक प्रकार की परिसंपत्ति पुनर्निर्माण कंपनी (ARC) या एक परिसंपत्ति प्रबंधन कंपनी है।
  • यह बैंक ऋण नहीं देते और न ही जमाएँ स्वीकार करते हैं, लेकिन वाणिज्यिक बैंकों को अपनी बैलेंस शीट को अच्छी स्थिति में दर्शाने और दबावग्रस्त ऋण का समाधान करने में मदद करते हैं।
  • बैड बैंक को शुरू में सरकार द्वारा वित्त पोषित किया जाता है और ये बैंकों एवं अन्य निवेशकों के साथ नियत समय में सह-निवेश करते हैं।
  • बैड बैंक में सरकार की भूमिका को एन.पी.ए. के प्रबंधन में तेजी लाने के लिये एक साधन के रूप में देखा जाता है।
  • दबावग्रस्त ऋण का टेकओवर आम तौर पर ऋण की बुक वैल्यू से कम होता है और बैड बैंक बाद में अधिक से अधिक ऋण वसूली की कोशिश करते हैं। विदित है कि आर्थिक सर्वेक्षण 2016-17 में, 'सार्वजनिक क्षेत्र परिसम्पदा पुनःप्रतिष्ठापन एजेंसी' (PARA) को बैड बैंक के रूप में गठित करने का सुझाव दिया गया था। 

बैड बैंक के वैश्विक उदाहरण

  • बैड बैंक की अवधारणा को सर्वप्रथम वर्ष 1988 में वाणिज्यिक अचल सम्पत्ति पोर्टफोलियो सम्बंधी समस्या का समाधान करने के उद्देश्य से पिट्सबर्ग में प्रस्तुत किया गया था।
  • इसके बाद यह अवधारणा स्वीडन, फिनलैंड, फ्रांस और जर्मनी सहित अन्य देशों में लागू की गई। हालाँकि, रिज़ॉल्यूशन एजेंसियाँ या ए.आर.सी. बैंक के रूप में स्थापित हुए जो उधार या उधार की गारंटी देते थे परंतु यह जल्द ही लापरवाह उधारदाताओं में बदल गए।

 बैड बैंक की आवश्यकता

  • एन.पी.ए. की समस्या बैंकिंग क्षेत्र में लगातार बनी हुई है, विशेषकर कमज़ोर बैंकों के साथ, तो ऐसे में एक ऐसे तंत्र की आवश्यकता है जो एन.पी.ए. के प्रबंधन में सहायक हो।
  • पूर्व में, कई अन्य देशों ने वित्तीय प्रणाली में दबावग्रस्त परिसंपत्तियों की समस्या से निपटने के लिये अमेरिका के संस्थागत व्यवस्था राहत कार्यक्रम (TARP) जैसे संस्थागत तंत्र स्थापित किये थे।
  • बैड बैंक की आवश्यकता तब अधिक महसूस की गई जब आर.बी.आई ने बैंकों की परिसंपत्ति गुणवत्ता समीक्षा (AQR) शुरू की थी। इसमें आर.बी.आई ने पाया कि कई बैंकों ने बैलेंस शीट को अच्छी स्थिति में दिखाने के लिये दबावग्रस्त ऋणों को छिपाया था।
  • कई प्रक्रियात्मक मुद्दों के कारण ए.आर.सी. दबावग्रस्त ऋण का समाधान करने में विशेष सफल नहीं हो सके।
  • हालांकि, आम सहमति के अभाव में बैड बैंक का विचार केवल कागज़ों पर ही बना रहा।

रिज़र्व बैंक और सरकार का रुख

  • रिज़र्व बैंक ने काफी लम्बे समय से बैड बैंक के निर्माण के संदर्भ में विशेष रुचि नहीं दिखाई थी परंतु अब ऐसे संकेत हैं कि रिज़र्व बैंक इस पर विचार करेगा।
  • विशेषज्ञों का तर्क है कि इन परिसंपत्ति प्रबंधन कंपनियों के उद्देश्य को दबावग्रस्त परिसंपत्तियों के क्रमिक समाधान तक ही सीमित रखा जाना चाहिये।

महामारी और एन.पी.ए.

  • दबावग्रस्त ऋण के कारण अर्थव्यवस्था में संकुचन और अन्य कई क्षेत्रों में वित्तीय संकट के बढ़ने की संभावना बनी हुई है।
  • आर.बी.आई. ने अपनी हालिया वित्तीय स्थिरता रिपोर्ट में उल्लेख किया है कि बैंकिंग क्षेत्र का सकल एन.पी.ए. सितंबर 2020 में 7.5% से बढ़कर सितंबर 2021 तक 13.5% होने की संभावना है।
  • रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि अगर अर्थव्यवस्था में संकट की स्थिति लगातार बनी रहती है, तो यह अनुपात 14.8% तक बढ़ सकता है।

सुझाव

  • आर.बी.आई. के पूर्व गवर्नर आचार्य ने दबावग्रस्त परिसंपत्तियों की समस्या को हल करने के लिये दो मॉडल सुझाए। पहला, एक निजी परिसंपत्ति प्रबंधन कंपनी (PAMC) का निर्माण, जो दबावग्रस्त क्षेत्रों के लिये उपयुक्त हो और जहाँ ऋण माफी के मध्यम स्तर के साथ-साथ अल्पावधि में संपत्तियों के आर्थिक मूल्य का निर्धारण भी हो सके।
  • दूसरा मॉडल, नेशनल एसेट मैनेजमेंट कंपनी (NAMC) है, जो उन क्षेत्रों के लिये उपयुक्त होगा जहाँ समस्या न केवल अतिरिक्त क्षमता की है, बल्कि जहाँ मध्यम अवधि के लिये आर्थिक रूप से गैर-लाभकारी संपत्ति भी विद्यमान है।

क्या बैड बैंक उचित समाधान है?

  • महामारी से संबंधित आर्थिक संकटों का समाधान हो जाने के पश्चात् आने वाले वर्षों में भारत की आर्थिक व्यवस्था गैर-निष्पादित परिसंपत्तियों (NPA) का प्रबंधन करने के लिये पर्याप्त है।
  • वर्ष 2003-08 तक की अवधि में भारत की आर्थिक एवं साख वृद्धि उच्च थी जिसके कारण गैर-निष्पादित परिसंपत्तियों में भारी गिरावट दर्ज की गई थी।
  • बैंकों में प्रावधान कवरेज अनुपात (PCR) वर्ष 2016 में 42% से सितंबर 2020 में 72.4% हो गया था और मार्च 2020 में सकल एन.पी.ए. घटकर 2.8% हो गया था।
  • विदित है कि पी.सी.आर. किसी बैंक द्वारा गैर-निष्पादित परिसंपत्तियों के प्रबंधन हेतु अलग से फंड्स के प्रावधान को इंगित करता है।, इसके तहत कोई बैंक, दबावग्रस्त ऋण से होने वाले घाटे को पूरा करता है।
  • गौरतलब है कि दबावग्रस्त ऋणों में लगातार गिरावट आ रही है परिणामस्वरूप वर्तमान समय में बैड बैंक की स्थापना की विशेष आवश्यकता प्रतीत नहीं होती।
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