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खुले में काम करने वाले श्रमिक और हीट वेव

संदर्भ 

भारतीय मौसम विज्ञान विभाग (IMD) की एक हालिया रिपोर्ट के अनुसार, विगत 50 वर्षों में हीट वेब के कारण 1700 से अधिक मौतें हुई हैं, जबकि भारत के असंगठित क्षेत्र एक बड़ा वर्ग भीषण गर्मी के दौरान भी खुले में कृषि और निर्माण कार्यों में संलग्न होने के लिये मजबूर हैं, अतः सरकार द्वारा इनके हितों पर ध्यान दिये जाने की आवश्यकता है।

दक्षिण एशिया में गर्मी का संभाव्य आँकड़ा

  • हीटवेव का प्रभाव दुनिया भर में है। यह यूरोप के लिये सबसे घातक जलवायु आपदा साबित हो रही है। दक्षिण एशिया में भारत गर्मी के सबसे बड़े जोखिम प्रभावों का सामना कर रहा है। 
  • दक्षिण एशिया में हीटवेव की तीव्रता एवं आवृत्ति बढ़ रही है तथा आगामी वर्षों में स्थिति और भी खराब हो सकती है। आई.एम.डी. के अनुसार, भारत में अप्रैल माह का औसत तापमान विगत 122 वर्षों में सर्वाधिक है। 
  • विगत 100 वर्षों में वैश्विक तापमान में 1.5 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि हुई है और इस दर से वर्ष 2100 तक तापमान में 4 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि हो सकती है। इसके अतिरिक्त अभी तक वर्ष 2022 रिकॉर्ड में पांचवाँ सबसे गर्म साल है।
  • भारत समेत विश्व भर में तापमान में वृद्धि स्थानीय कारकों के साथ-साथ वैश्विक तापन का भी परिणाम है। हरित गृह गैसों का उत्सर्जन महासागरों की उष्णता में वृद्धि करता है, जिससे वैश्विक तापमान में वृद्धि होती है।

उच्च क्षति

मानवीय क्षति

  • एक अध्ययन के अनुसार, 1971-2019 के दौरान भारत में चरम मौसम के कारण एक लाख चालीस हज़ार से अधिक मौतें हुई है, जिनमें से सत्रह हज़ार से अधिक मृत्यु भीषण गर्मी के कारण हुई। साथ ही, अप्रैल माह के दौरान मृत्यु दर में दो-तिहाई की वृद्धि हुई है।
  • भारत में 40 डिग्री सेल्सियस से अधिक दैनिक तापमान पर खुले में कार्यरत श्रमिक जलवायु आपदा से सर्वाधिक प्रभावित होंगे। अतः खुले में कार्य करने वाले श्रमिकों की सुरक्षा के लिये तापमान वृद्धि को 2 डिग्री सेल्सियस से नीचे रखने का प्रयास करना होगा।

आर्थिक क्षति

  • एक अनुमान के अनुसार यदि वैश्विक तापन में 2 डिग्री सेल्सियस से अधिक की वृद्धि होती है तो वैश्विक स्तर पर आर्थिक क्षति 1.6 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर (₹1.6 लाख करोड़) तक पहुँच सकती है। 
  • भारत, चीन, पाकिस्तान और इंडोनेशिया में खुले में कार्य करने वाले श्रमिकों की संख्या अत्यधिक है, अतः इन देशों के आर्थिक हित अधिक प्रभावित होंगे।

जलवायु परिवर्तन शमन संबंधी उपाय 

  • संयुक्त राज्य अमेरिका, यूरोपीय संघ, चीन और भारत जैसे बड़े उत्सर्जकों की ओर से अर्थव्यवस्थाओं का जलवायु शमन या डीकार्बोनाइजेशन एक अनिवार्य आवश्यकता है।
  • अनुकूलन का एक महत्त्वपूर्ण पहलू बेहतर पर्यावरणीय संरक्षण है जो शीतलन में भी योगदान करता है। 
  • खराब भूमि और निरंतर वनों की कटाई हीटवेव को बढ़ाने में जिम्मेदार है, यह वनाग्नि को भी बढ़ावा देते हैं। अतः वनीकरण को बढ़ावा दिया जाना चाहिये जिससे ग्लोबल  वार्मिंग को कम करने में मदद मिल सके। 
  • लू प्रभावित क्षेत्रों में जल गहन कृषि अच्छा परिमाण नहीं देती है, इसलिये कम जल आश्रित कृषि पद्धतियों को बढ़ावा देना एक बेहतर समाधान होगा।
  • बाहरी श्रमिकों की वर्तमान दुर्दशा की प्रतिक्रिया को जलवायु अनुकूलन से जोड़ा जा सकता है। वित्तीय हस्तांतरण को लक्षित किया जा सकता है ताकि किसानों को पेड़ लगाने में मदद मिल सके और उनके लिये बेहतर उपयुक्त उपकरण खरीदे जा सकें।

बीमा के माध्यम से सहयोग

  • सरकार और बीमा कंपनियों को भीषण गर्मी से होने वाली आपदाओं सहित चरम मौसमी परिघटनाओं से होने वाले नुकसान की अधिक कवरेज प्रदान करने में सहयोग करने की आवश्यकता है।
  • बीमा योजनाएँ औद्योगिक, निर्माण और कृषि श्रमिकों पर भीषण गर्मी के जोखिमों को कुछ हद तक बीमाकर्ताओं को हस्तांतरित करती है।
  • प्राकृतिक खतरों के विरुद्ध बीमा सुरक्षा न केवल भारत में बल्कि संपूर्ण एशिया में न्यूनतम है, आमतौर पर यहाँ 10% से कम नुकसान कवर किया जाता है। 
  • बीमा को अधिक प्रभावी बनाने के लिये हस्तांतरण और बीमा भुगतान को स्थानीय स्तर पर किये जाने वाले उपायों में निवेश से जोड़ा जा सकता है। जैसे कि शहरी वातावरण को बहाल करना जिससे गर्मी में कमी आती है।
  • दिल्ली का अरावली जैव विविधता पार्क एक असाधारण उदाहरण है जिसने एक बंजर परिदृश्य को हरियाली और जैव विविधता की रक्षा करने वाले वन परिक्षेत्र में बदल दिया।
  • चूँकि हीटवेव से गंभीर रूप से प्रभावित क्षेत्रों की गरीबी-प्रवणता की संभावना सर्वाधिक होती है, अतः ऐसे क्षेत्रों में फसल नुकसान की गारंटी सहित सुदृढ़ बीमा पैकेज की आवश्यकता है। 
  • उपर्युक्त स्थिति को दृष्टिगत रखते हुए हीटवेव की घटनाओं का मानचित्रण कर प्रभावित स्थानों को लक्षित रूप से धन का हस्तांतरण किया जा सकता है। इसी प्रकार प्रोत्साहन योजनाओं को जोखिम की तीव्रता में वार्षिक परिवर्तनों के अनुरूप बनाया जा सकता है।
  • आई.एम.डी. के भविष्योन्मुखी अनुमानों का उपयोग केंद्र सरकार, राज्य और जिला स्तर पर जलवायु परिवर्तन के प्रति अनुकूल कार्रवाइयों यथा सब्सिडी और बीमा योजनाओं को विकसित करने में कर सकती है। 
  • बीमा योजनाओं के लिये सार्वजनिक और निजी क्षेत्रों को संयुक्त रूप से जोखिम-साझाकरण तंत्र स्थापित करने की आवश्यकता होती है, जिसका लाभ खुले में कार्य करने वाले श्रमिक उठा सकेंगे।

आगे की राह

  • भारत राष्ट्रव्यापी स्तर पर खाद्य और ईंधन सब्सिडी प्रदान करता है, परंतु अधिकांशतः खराब तरीके से लक्षित की जाती हैं। उदाहरण के लिये, केरोसिन सब्सिडी से ग्रामीण परिवारों को मामूली वित्तीय लाभ ही प्राप्त होता है, अनुमानित तौर पर सब्सिडी मूल्य का केवल 26% ही सीधे गरीबों तक पहुँचता है। 
  • चूँकि मौजूदा सब्सिडी की दक्षता और वितरण समता पुनार्वेक्षण के दायरे में है, अतः सरकार के लिये जलवायु लचीलापन निर्माण से जुड़े हस्तांतरण और बीमा का प्रावधान प्राथमिता होनी चाहिये।
  • राज्य और स्थानीय स्तर पर हरित निवेश के लिये नकद हस्तांतरण और बीमा योजनाओं को जोड़ने से न केवल खुले में कार्य करने वाले श्रमिकों के लिये वित्तीय कवर प्राप्त होगा, बल्कि हीटवेव के लिये आवश्यक लचीलापन में सूक्ष्म पैमाने पर निवेश को भी प्रेरित करेगा।
  • लक्षित हस्तांतरण लाभार्थियों को अपनी स्थिति को स्वयं सुधारने के प्रयासों में मददगार होगा, जैसे- हीटवेब से बचाव कर सकने वाली अनुकूलतम कृषि प्रथाओं को अपनाना।
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