संदर्भ
जलवायु परिवर्तन पर पेरिस समझौते के पाँच वर्ष पूर्ण होने के उपरांत भारत इस समझौते के बिंदुओं का अनुपालन करने वाला एकमात्र जी-20 देश है। इसके अतिरिक्त, ‘जर्मनवॉच, कैन इंटरनेशनल तथा न्यू क्लाइमेट इंस्टीट्यूट’ द्वारा प्रकाशित ‘जलवायु परिवर्तन प्रदर्शन सूचकांक’ में भारत लगातार दो वर्षों से शीर्ष 10 देशों में शामिल रहा है।
पृष्ठभूमि
- उक्त उपलब्धियों के बावजूद नवंबर 2021 में ग्लासगो में होने वाले कॉप-26 (Conference of the Parties-COP26) के लिये भारत पर वैश्विक दबाव तेज़ हो रहा है।
- इस वर्ष के आरंभ में, कॉप-26 के अध्यक्ष आलोक शर्मा और जलवायु के संबंध में अमेरिकी राष्ट्रपति के विशेष दूत जॉन केरी ने भारत का दौरा किया था।
- जुलाई में अमेरिका ने हर महत्त्वपूर्ण अर्थव्यवस्था को वर्ष 2030 तक कार्बन उत्सर्जन में ‘सार्थक’ कमी करने के लिये कहा।
वैश्विक तुलनात्मक अध्ययन की आवश्यकता
- जलवायु समझौतों के क्रियान्वयन को लेकर बढ़ते दबाव के बीच यह प्रश्न उठता है कि क्या ‘राष्ट्रीय अभिनिर्धारित योगदान’ (Nationally Determined Contributions-NDC) को बढ़ाने के लिये भारत पर दबाव बनाना उचित है?
- विश्व बैंक के आँकड़ों से ज्ञात होता है कि क्योटो प्रोटोकॉल के दो दशकों के पश्चात् वर्तमान दर पर, चीन और अमेरिका, दोनों वर्ष 2030 में भारत की अपेक्षा पाँच-गुना अधिक CO2 उत्सर्जन (प्रति व्यक्ति मीट्रिक टन) कर सकते हैं।
- यूनाइटेड किंगडम का उत्सर्जन स्तर भारत से डेढ़-गुना अधिक हो सकता है। ब्राजील, अपने सघन वनावरण के साथ भारत के समान स्तर पर उत्सर्जन कर सकता है।
चीन और संयुक्त राज्य अमेरिका
- विगत वर्ष चीन, जो विश्व का सबसे बड़ा जी.एच.जी. उत्सर्जक देश है, ‘रेस टू ज़ीरो’ में शामिल हुआ तथा वर्ष 2060 तक ‘कार्बन तटस्थता’ का लक्ष्य रखा है।
- इसके अतिरिक्त, उसने अपने उत्सर्जन में कमी लाने के लिये वर्ष 2030 को ‘पीक ईयर के रूप’ घोषित किया है।
- ‘क्लाइमेट एक्शन ट्रैकर’, जो एक स्वतंत्र वैज्ञानिक विश्लेषण के द्वारा सरकारों के कार्यों पर नज़र रखता है, ने भी चिंता व्यक्त करते हुए कहा, सबसे चिंताजनक बात यह है कि जहाँ बाकि विश्व कोयले पर अपनी निर्भरता को कम कर रहे हैं, वहीं चीन कोयले पर अपनी निर्भरता बढ़ा रहा है।
- हाल ही में, अमेरिका पेरिस समझौते में पुनः सम्मिलित हो गया। उसने घोषणा की है कि वह वर्ष 2030 तक उत्सर्जन को 50-52 प्रतिशत तक कम करने तथा वर्ष 2050 तक ‘नेट- ज़ीरो उत्सर्जन’ लक्ष्य को प्राप्त करने के लिये प्रतिबद्ध है।
- इस तरह की महत्त्वाकांक्षाओं की प्राप्ति के लिये अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन को $2.3 ट्रिलियन की अवसंरचना पैकेज की तुलना में बहुत अधिक निवेश करने की आवश्यकता होगी।
फ्राँस और ऑस्ट्रेलिया
- कोरोना वायरस महामारी के दौरान फ्राँसीसी सरकार ने अपने विमानन उद्योग को सहायता प्रदान करने के एवज में ‘हरित शर्तें’ निर्धारित की हैं।
- हालाँकि, विश्लेषकों का कहना है कि घरेलू उड़ानों के द्वारा उत्सर्जन को कम करने की कोई ‘आधार रेखा’ तय नहीं की गई थी, साथ ही यह स्पष्ट नहीं किया गया कि घरेलू यात्रा में रेलवे को बढ़ावा देने के लिये क्या उपाय किये गए हैं।
- वर्ष 2018 में एक ऑस्ट्रेलियाई प्रधानमंत्री उत्सर्जन में कमी के द्वारा जलवायु परिवर्तन को संबोधित करने के प्रस्ताव पर अपनी कुर्सी गँवा चुके हैं।
- ऑस्ट्रेलिया की जटिल घरेलू राजनीति ने ‘जलवायु-सुभेद्य देश तथा प्रसिद्ध ग्रेट बैरियर रीफ के क्षरण में वृद्धि’ होने के बावजूद इन समस्या को संबोधित करने से रोक दिया है।
- ऑस्ट्रेलिया में यह कम से कम तीसरा ऐसा उदाहरण था, जब जलवायु मुद्दों ने प्रधानमंत्री की सत्ता को चुनौती दी है।
- इस प्रकार, यह स्पष्ट है कि सरकारों के लिये जलवायु परिवर्तन के संबंध में नीतियाँ विकसित करना कितना मुश्किल है।
भारत के एन.डी.सी. लक्ष्य
- वर्ष 2005 के स्तर से वर्ष 2030 तक अपने जी.डी.पी. की उत्सर्जन क्षमता को 33 से 35 प्रतिशत तक कम करना।
- ‘ग्रीन क्लाइमेट फंड’ सहित प्रौद्योगिकी के अंतरण और कम लागत वाले अंतर्राष्ट्रीय वित्त की सहायता से वर्ष 2030 तक गैर-जीवाश्म ईंधन आधारित ऊर्जा संसाधनों से लगभग 40 प्रतिशत संचयी विद्युत संस्पादित क्षमता प्राप्त करना।
- वर्ष 2030 तक अतिरिक्त वन एवं वृक्षावरण के माध्यम से 2.5 से 3 बिलियन CO2 के समकक्ष कार्बन सिंक सृजित करना।
- जलवायु परिवर्तन, विशेषतः कृषि, जल संसाधन, हिमालयी क्षेत्र, तटीय क्षेत्रों, स्वास्थ्य और आपदा प्रबंधन के लिये संवेदनशील क्षेत्रों में विकास कार्यक्रमों में निवेश बढ़ाकर जलवायु परिवर्तन के प्रति अनुकूलन।
- आवश्यक संसाधन और संसाधन अंतराल के मद्देनज़र उक्त शमन और अनुकूलन कार्यों को कार्यान्वित करने के लिये विकसित देशों से अतिरिक्त निधियाँ एकत्रित करना।
- भारत में अत्याधुनिक जलवायु प्रौद्योगिकी के त्वरित प्रसार और ऐसी भावी प्रौद्योगिकियों के लिये संयुक्त सहयोगात्मक अनुसंधान और विकास क्षमताओं का निर्माण करना।
भारत की उपलब्धियाँ
- भारत, वर्ष 2030 तक गैर-जीवाश्म ईंधन-आधारित स्रोतों से 40 प्रतिशत विद्युत क्षमता प्राप्त करने की राह पर है। सरकारी आँकड़ों के अनुसार, नवंबर 2020 में यह हिस्सा 38.18 प्रतिशत तक पहुँच गया है।
- इसी प्रकार वर्ष 2020 तक जी.डी.पी. की उत्सर्जन क्षमता को 20-25 प्रतिशत तक कम करने की घोषणा के प्रतिउत्तर में भारत ने वर्ष 2005 से 2016 के मध्य उत्सर्जन क्षमता को 24 प्रतिशत तक कम कर दिया है।
- इससे भी महत्त्वपूर्ण तथ्य यह है कि भारत ने इन लक्ष्यों को, कोपेनहेगन समझौते (2009), जिसके तहत विकासशील देशों के लिये 100 बिलियन अमेरिकी डॉलर की सहायता प्रस्तावित की गई थी, में से लगभग 2 प्रतिशत के लक्ष्य को वर्ष 2015 में हासिल किया।
- अपने शमन प्रयासों में भारत वर्ष 2022 तक 175 GW तथा वर्ष 2030 तक 450 GW अक्षय ऊर्जा विस्तार कार्यक्रमों को लागू कर रहा है।
- भारत ने पर्यावरण संरक्षण को महामारी के पश्चात् पुनरुद्धार कार्यक्रमों के साथ भी जोड़ा है।
- राजकोषीय प्रोत्साहन के रूप में सरकार ने कई हरित उपायों की घोषणा की, जिसमें बायोगैस और क्लीनर ईंधन में $26.5 बिलियन, कुशल सौर फोटोवोल्टिक व उन्नत रसायन सेल बैटरी के उत्पादन में $3.5 बिलियन तथा वनीकरण कार्यक्रम के लिये $ 780 मिलियन का निवेश शामिल हैं।
- भारतीय नेतृत्व के इन प्रयासों की सराहना करने की आवश्यकता है, जिसके अंतर्गत ‘अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन तथा आपदा प्रतिरोधी बुनियादी ढाँचे के लिये गठबंधन’ जैसे वैश्विक संस्थान स्थापित किये गए।
भावी राह
- विकसित देश विशेषकर पेरिस समझौते के लक्ष्यों को पूरा नहीं करने के मामले में अपना दबाव बढ़ा सकते हैं। इस स्तर पर भारत स्वतंत्र अंतर्राष्ट्रीय आकलन के लिये अपनी सूचनाएँ साझा कर सकता है।
- सरकार के विभिन्न प्रयासों का ही प्रतिफल है कि भारत की जलवायु कार्रवाई 2 डिग्री सेल्सियस वैश्विक उष्मन लक्ष्य के अनुकूल है।
- किसी भी समता मानदंड के आधार पर वैश्विक उत्सर्जन में भारत की हिस्सेदारी काफी कम है।
निष्कर्ष
- निष्कर्षतः यह कहा जा सकता है कि भारत ने ‘जैसा कहा वैसा ही किया’ है। इसी आधार पर अन्य देशों को अपने लक्ष्यों को पूरा करते हुए कॉप-26 से पहले ठोस परिणाम प्रस्तुत करने चाहिये।
- अपने हितों की रक्षा के साथ-साथ भारत, वर्ष 2023 में प्रस्तावित प्रथम ‘स्टॉकटेक’ (पेरिस समझौते के कार्यान्वयन से संबंधित पंचवर्षीय आकलन) के उद्देश्य से एन.डी.सी. को भी ‘स्वप्रेरणा’ से संशोधित कर सकता है।
- हालाँकि, ये भी ध्यान रखने की आवश्यकता है कि संपूर्ण ग्रह को संरक्षित करने की ज़िम्मेदारी कुछ देशों की ही नहीं है, बल्कि इसके लिये सभी को प्रयास करने होंगे।