New
July Offer: Upto 75% Discount on all UPSC & PCS Courses | Offer Valid : 5 - 12 July 2024 | Call: 9555124124

जलवायु परिवर्तन के समय में पशुचारण

संदर्भ

  • भारत के 13 मिलियन लोगों सहित दुनिया भर के तक़रीबन 100-200 मिलियन लोगों के लिये पशुपालन आज भी एक अहम आर्थिक गतिविधि है। पृथ्वी की सतह का एक चौथाई भाग चारागाह के तौर पर प्रयोग होता है। प्राय: कठिन जलवायवीय परिस्थितियों वाले क्षेत्र, जो हमेशा से सर्वाधिक संसाधन-दुर्लभ रहे हैं, चराई के लिये प्रयुक्त होने वाले प्रमुख क्षेत्र हैं।
  • पशुपालक क्षेत्रीय और राष्ट्रीय सीमाओं को पार करते हुए चारागाह के लिये निजी एवं सार्वजनिक दोनों भूमियों का उपयोग करते हैं। चारागाहों की व्यवस्था फसल प्रणाली के इर्दगिर्द भी पनपती है क्योंकि ये एक दूसरे को लाभान्वित करती हैं : कृषि अवशेष पशुओं ले लिये चारे के रूप में प्रयुक्त होते हैं और पशु मल से किसानों को खाद प्राप्त होता है।

आधुनिक समय में पशुचारण

  • आधुनिक व्यवस्थाएँ पशुचारण को अनावश्यक मानते हुए खारिज कर रहीं हैं। दुनिया भर के पर्यावरणविद् चराई को जलवायु के लिये संकट करार देते हैं। समय के साथ विकसित कृषि नीतियों ने कृषि उत्पादकता को बढ़ावा देने के लिये व्यवस्थित कृषि एवं मवेशी फार्म को प्राथमिकता दी है।
  • जब खाद्य एवं कृषि संगठन ने ‘मेकिंग वे: डेवलपिंग नेशनल लीगल एंड पालिसी फ्रेमवर्क फॉर पैस्टोरल मोबिलिटी’ नामक दस्तावेज़ जारी किया तो इस दिशा में आशा की एक किरण दिखाई दी। न केवल पशुपालकों को पिछड़ा और अनुत्पादक माना जाता है बल्कि इनके लिये हमेशा से एक प्रतिकूल और सहायक कानून की कमी भी रही है।
  • पशुचारक संसाधनों के समायोजन, खानाबदोश आबादी की बसावट और गतिशीलता पर प्रतिबंधों के प्रति संवेदनशील हैं। चूंकि उन्हें उत्पादक क्षेत्रों से बाहर कर दिया जाता है, इसलिये वे सीमित चराई संसाधनों पर ध्यान केंद्रित करने एवं चारागाह के लिये प्रतिस्पर्धा करने हेतु मजबूर होते हैं। गतिशीलता के विनियमन एवं सुरक्षा प्रदान करने वाले कानून के अभाव में पशुपालक अन्य संसाधनों के उपयोगकर्ताओं के साथ संघर्ष करने के लिये विवश हैं।

पशुपालन के लाभ

  • पशुचारण को पर्यावरण के लिये हानिकारक करार देने के साथ-साथ आर्थिक गतिविधि के लिये अपर्याप्त माना जाता है। हालाँकि, यूरोप, अफ्रीका और एशिया सहित कई देशों में इसका पुनरुद्धार करने और मान्यता देने से कई लाभ भी दृष्टिगत हुए हैं।
  • पशुचारक प्राकृतिक खाद के उत्पादक और वितरक होते हैं, जिसकी कीमत अनुमानत: 45 अरब अमेरिकी डॉलर वार्षिक है। अध्ययनों से पता चलता है कि इन प्रणालियों में गहन प्रणालियों की तुलना में प्रति यूनिट खाद्यान्न में अधिक प्रोटीन उत्पादन होता है।
  • भारत में पशुचारण कुल मांस उत्पादन के 70% से अधिक और दूध उत्पादन के 50% के लिये जिम्मेदार हैं। एक गैर-लाभकारी संस्था ‘हेनरिक बोल’ और ‘फ्रेंड्स ऑफ द अर्थ यूरोप’ द्वारा प्रकाशित ‘मीट एटलस 2021’ के अनुसार, भारत की कुल जी.डी.पी. (GDP) में पशुपालन क्षेत्र का योगदान 5% है, जिसमें दो-तिहाई पशुचारण उत्पादन से आता हैं।
  • कठिन भौगोलिक क्षेत्रों में निवास करने वाले सबसे गरीब समुदायों द्वारा भी पशुपालन का कार्य किया जाता है। इस क्षेत्र को मिलने वाला नीतिगत समर्थन सबसे कठिन जलवायु में रहने वाले सर्वाधिक गरीब लोगों को आर्थिक लचीलापन प्रदान करेगा।
Have any Query?

Our support team will be happy to assist you!

OR