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प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन

(मुख्य परीक्षा सामान्य अध्ययन प्रश्नप्रत्र-3 : संरक्षण, पर्यावरण प्रदूषण और क्षरण, पर्यावरण प्रभाव का आकलन।)

संदर्भ 

केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) ने देश भर में लगभग 800 प्लास्टिक-अपशिष्ट पुनर्चक्रणकर्ताओं का राष्ट्रीय ऑडिट शुरू किया है। गुजरात, महाराष्ट्र और कर्नाटक में चार प्लास्टिक-रीसाइक्लिंग कंपनियों द्वारा 6 लाख से अधिक नकली प्रदूषण-व्यापार प्रमाणपत्र जारी किए जाने के बाद यह निर्णय किया गया है।

भारत में प्लास्टिक प्रदूषण 

  • प्लास्टिक वेस्ट मेकर्स इंडेक्स 2019 की रिपोर्ट के अनुसार, भारत विश्व स्तर पर एकल-उपयोग प्लास्टिक पॉलिमर उत्पादन में तेरहवां सबसे बड़ा निवेशक था।
  • भारत की रिलायंस इंडस्ट्रीज-3 मिलियन टन एकल-उपयोग प्लास्टिक कचरे का उत्पादन करती है-पॉलिमर बनाने वाली कंपनियों की सूची में आठवें स्थान पर है।
  • भारत विश्व स्तर पर तीसरे स्थान पर है, जो सालाना 5.5 मिलियन टन एकल-उपयोग प्लास्टिक कचरे का योगदान देता है।
    • भारत में प्रति व्यक्ति प्रति वर्ष औसतन 4 किग्रा. एकल-उपयोग प्लास्टिक कचरे का उत्पादन होता है।
  • संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (UNEP) के अनुसार, भारत अपने 85% प्लास्टिक कचरे को प्रभावी ढंग से प्रबंधित करने में विफल है।
    • इस प्रकार का कचरा मुख्य रूप से एकल-उपयोग वाला होता है और अक्सर इसे सड़कों के किनारे फेंक कर या जलाकर अनुचित तरीके से निपटाया जाता है।
  • प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन नियम (PWM), 2016 के कार्यान्वयन पर केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) की वार्षिक रिपोर्ट के अनुसार, भारत में वर्ष 2019-20 में 34.6 लाख टन और वर्ष 2020-21 में 41.2 लाख टन प्लास्टिक कचरा उत्पन्न हुआ।

प्लास्टिक कचरे का वैज्ञानिक प्रबंधन के प्रयास 

प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन नियम, 2016

  • उद्देश्य : 
    • प्लास्टिक अपशिष्ट उत्पन्न करने वालों को प्लास्टिक अपशिष्ट के उत्पादन को न्यूनतम करने के लिए आवश्यक कदम उठाने के लिए प्रेरित करना 
    • प्लास्टिक अपशिष्ट को फैलने से रोकने के प्रयास करना 
    • स्रोत पर अपशिष्ट का पृथक भंडारण सुनिश्चित करना
    • पृथक अपशिष्ट को नियमों के अनुसार एकत्र करने के लिए कदम उठाना
  • नियम निम्नलिखित की जिम्मेदारियाँ निर्धारित करता है:
    • नियमों में प्लास्टिक कचरे के प्रबंधन के लिए स्थानीय निकायों, ग्राम पंचायतों, अपशिष्ट उत्पादकों, खुदरा विक्रेताओं और स्ट्रीट वेंडरों की जिम्मेदारी तय की गई है।
    • पी.डब्लू.एम. नियम, 2016 उत्पादक, आयातक और ब्रांड मालिक पर विस्तारित उत्पादक उत्तरदायित्व (EPR) निर्धारित करता है और ई.पी.आर. उपभोक्ता-पूर्व और उपभोक्ता-पश्चात प्लास्टिक पैकेजिंग अपशिष्ट दोनों पर लागू होता है।
  • ईपीआर के लिए बाध्य संस्थाएँ : 
    • प्लास्टिक पैकेजिंग के निर्माता
    • सभी आयातित प्लास्टिक पैकेजिंग और/या आयातित उत्पादों की प्लास्टिक पैकेजिंग के आयातक
    • ब्रांड ओनर्स : जिसमें ऑनलाइन प्लेटफॉर्म/मार्केटप्लेस और सुपरमार्केट/रिटेल चेन के अलावा अन्य शामिल हैं, जो भारत सरकार के सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम मंत्रालय के मानदंडों के अनुसार सूक्ष्म और लघु उद्यम हैं।
    • सीमेंट भट्टों और सड़क निर्माण को छोड़कर अन्य सभी प्लास्टिक अपशिष्ट प्रसंस्करणकर्ता (PWP)
  • ईपीआर के अंतर्गत शामिल प्लास्टिक पैकेजिंग श्रेणियां : 
    • कठोर प्लास्टिक पैकेजिंग
    • एकल परत या बहुपरत (विभिन्न प्रकार के प्लास्टिक के साथ एक से अधिक परत) की लचीली प्लास्टिक पैकेजिंग, प्लास्टिक शीट या प्लास्टिक शीट से बने कवर, कैरी बैग, प्लास्टिक पाउच या थैलियां
    • बहु-परत प्लास्टिक पैकेजिंग (प्लास्टिक की कम से कम एक परत और प्लास्टिक के अलावा अन्य सामग्री की कम से कम एक परत)
    • पैकेजिंग के लिए इस्तेमाल की जाने वाली प्लास्टिक शीट या इसी तरह की सामग्री, साथ ही कम्पोस्टेबल प्लास्टिक से बने कैरी बैग
  • पी.डब्लू.एम. नियम की मुख्य विशेषताएं: 
    • वर्जिन या रिसाइकिल प्लास्टिक से बने कैरी बैग की मोटाई 31 दिसंबर 2022 के पश्चात् 120 माइक्रोन से कम नहीं होनी चाहिए।
    • FSSAI मानक और दिशानिर्देश के अनुसार ही पुनर्चक्रित प्लास्टिक से बने कैरी बैग या प्लास्टिक पैकेजिंग का उपयोग खाद्य सामग्री की पैकेजिंग के लिए किया जा सकता है।
    • प्लास्टिक सामग्री से बने पाउचों का उपयोग गुटखा, तंबाकू, पान मसाला के भंडारण, पैकिंग या बिक्री के लिए नहीं किया जा सकता है।
    • वस्तु को लपेटने वाली प्लास्टिक शीट या उसके समान की मोटाई पचास माइक्रोन से कम नहीं होनि चाहिए, सिवाय इसके कि ऐसी प्लास्टिक शीट की मोटाई से उत्पाद की कार्यक्षमता प्रभावित हो।
    • निर्माता, ब्रांड मालिक और आयातकों को अपने ईपीआर दायित्व को पूरा करने के लिए भारतीय बाजार में उनके द्वारा पेश किए गए प्लास्टिक कचरे की समतुल्य मात्रा के लिए एक तंत्र लागू किया गया है। 
      • इसमें सरकार अधिशेष ईपीआर प्रमाणपत्रों (EPR certificates) की बिक्री और खरीद की अनुमति देती है। 
    • ऐसी कोई भी प्लास्टिक पैकेजिंग, जिसका पुनर्चक्रण नहीं किया जा सकता या जिसे ऊर्जा के वैकल्पिक स्रोत के रूप में उपयोग नहीं किया जा सकता, को चरणबद्ध तरीके से समाप्त किया जा रहा है।
    • प्लास्टिक के निर्माता किसी भी अपंजीकृत उत्पादक को कच्चा माल नहीं बेच या उपलब्ध नहीं करा सकते हैं।
    • प्लास्टिक कचरे का पुनर्चक्रण के लिए आवश्यक बुनियादी ढांचे की स्थापना के लिएस्थानीय निकायों को जिम्मेदार बनाया गया है।

एकल उपयोग प्लास्टिक

प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन (संशोधन) नियम, 2021 के अनुसार, एकल-उपयोग प्लास्टिक (SUP) आइटम “एक प्लास्टिक वस्तु है जिसका निपटान या पुनर्चक्रण से पहले एक ही उद्देश्य के लिए एक बार उपयोग किया जाना है”।

एकल उपयोग प्लास्टिक के प्रभाव: 

    • एक ओर सामर्थ्य, टिकाऊपन, भारहीनता और स्वच्छता के कारण SUP का व्यापक रूप से उपयोग होता है, वहीं दूसरी ओर इन्हें पुनर्चक्रित करना चुनौतीपूर्ण है।
    • इसे विघटित होने में हजारों वर्ष लगते हैं, जिससे भूमि, जल और वन्य जीवन को खतरा पैदा होता है।
    • अधिकांश एकल उपयोग प्लास्टिक जैविक रूप से विघटित नहीं होते, बल्कि फोटोडिग्रेड होते हैं, जिसका अर्थ है कि वे धीरे-धीरे छोटे-छोटे टुकड़ों में विघटित हो जाते हैं।
  • प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन नियम 2016 और इसमें वर्ष 2018 और 2021 में किए गए संशोधन एकल-उपयोग वाले प्लास्टिक पर केंद्रित हैं।
    • यह 2022 तक चिन्हित एकल उपयोग वाली प्लास्टिक वस्तुओं पर प्रतिबंध लगाता है जिनकी उपयोगिता कम है और कूड़ा फैलाने की संभावना अधिक है।

प्रतिबंधित SUP वस्तुओं के उपयोग पर जुर्माना : 

    • कचरा फैलाने वालों पर 500 रुपये का जुर्माना
    • संस्थागत अपशिष्ट उत्पादकों पर 5000 रुपये का जुर्माना

कौन लगाता है जुर्माना : 

    • राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड और प्रदूषण नियंत्रण SUP वस्तुओं के डिफॉल्टर उत्पादकों पर जुर्माना लगाती है।
    • स्थानीय निकाय एकल उपयोग प्लास्टिक के खुदरा विक्रेता, विक्रेता और उपयोगकर्ता पर जुर्माना लगाते हैं।
    • सी.पी.सी.बी. द्वारा तैयार मूल्यांकन के दिशानिर्देशों के अनुसार जुर्माना लगाया जाता है।

प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन की चुनौतियाँ 

  • खराब ट्रैक रिकॉर्ड : केंद्रीय और राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड द्वारा मानदंडों को प्रभावी ढंग से नियंत्रित नहीं किया जाता है। दिल्ली, बेंगलुरु जैसे प्रमुख शहरों में प्लास्टिक नियमों के लगातार उल्लंघन से इसकी पुष्टि होती है।
    • प्लास्टिक अपशिष्ट पुनर्चक्रणकर्ता उनके द्वारा पुनर्चक्रित किए गए प्लास्टिक की तुलना कही अधिक EPR प्रमाणपत्र प्राप्त कर लेते हैं। 
  • भ्रष्टाचार : भ्रष्टाचार की व्यापकता नियमों के प्रभावी कार्यान्वयन में बाधा डालती है और उल्लंघन करने वालों पर पर्याप्त प्रतिबंध लगाने में विफल रहती है। 2023 के लिए भ्रष्टाचार धारणा सूचकांक में भारत 180 देशों में से 93वें स्थान पर है।
  • दृढ़ता : नियमों में प्लास्टिक के उपयोग को सीमित करने की बात कही गई है, लेकिन इसकी सस्ती कीमत और लागत प्रभावी विकल्पों की अनुपलब्धता के कारण इसके प्रति व्यापक झुकाव को आसानी से कम नहीं किया जा सकता है।
    • इसके अलावा अपशिष्ट संग्रहण की अनौपचारिक संरचना अपशिष्ट संग्रहकर्ताओं और प्रसंस्करण संयंत्रों के बीच एक मजबूत संबंध को बाधित करती है।
  • वैश्विक प्रतिबद्धता की कमी : वर्तमान में कोई समर्पित अंतर्राष्ट्रीय साधन मौजूद नहीं है जो विशेष रूप से संपूर्ण प्लास्टिक जीवनचक्र के दौरान प्लास्टिक प्रदूषण को रोकने के लिए बनाया गया हो।

प्लास्टिक अपशिष्ट को कम करने के उपाय 

  • बायो-प्लास्टिक को बढ़ावा : सरकार को टिकाऊ बायोप्लास्टिक्स के निर्माण का समर्थन करना चाहिए। ये प्लास्टिक जीवों, आमतौर पर सूक्ष्म जीवों की प्रतिक्रिया से पानी, कार्बन डाइऑक्साइड और बायोमास में विघटित हो सकते हैं।
  • जागरूकता : गैर सरकारी संगठनों के साथ सहयोग करके प्लास्टिक के उपयोग के प्रतिकूल प्रभावों के बारे में जनता को जागरूक किया जाना चाहिए।
    • अन्य देशों के उदाहरण : जनवरी 2016 में, एंटीगुआ और बारबुडा ने प्लास्टिक शॉपिंग बैग के आयात, निर्माण और व्यापार पर प्रतिबंध लगा दिया। पहले वर्ष में, प्रतिबंध ने एंटीगुआ और बारबुडा में लैंडफिल में छोड़े गए प्लास्टिक की मात्रा में 15.1% की कमी लाने में योगदान दिया
  • 2008 में रवांडा सरकार ने सभी प्लास्टिक बैगों के निर्माण, उपयोग, बिक्री और आयात पर प्रतिबंध लगा दिया। प्लास्टिक की थैलियों की जगह कागज के थैलों ने ले ली और नागरिकों ने भी कपास से बने पुन: प्रयोज्य थैलों का उपयोग करना शुरू कर दिया।
  • हरित रोजगार : सरकार को कचरा बीनने वालों को हरित रोजगार देकर उन्हें निरंतर रोजगार के अवसर प्रदान करने चाहिए। इससे देश में प्लास्टिक कचरे के प्रसंस्करण में उल्लेखनीय सुधार होगा और लैंडफिल निर्माण में कमी आएगी।
  • प्रबंधन नियमों के कार्यान्वयन की निगरानी : अपशिष्ट प्रबंधन के नियमों के विवेकपूर्ण कार्यान्वयन की निगरानी के लिए सुप्रीम कोर्ट द्वारा परिकल्पित एक स्वतंत्र पर्यावरण नियामक बनाया जाना चाहिए।
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