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राजनीतिक खैरात बनाम लोक कल्याण

(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 2 : संवेदनशील वर्गों के लिये कल्याणकारी योजनाएँ और इनका कार्य-निष्पादन)

संदर्भ

वर्तमान में राजनीतिक खैरात और लोक कल्याण के बीच अंतर को लेकर बहस छिड़ी हुई है। जहाँ एक ओर राजनीतिक दल ‘राजनीतिक खैरात’ या 'रेवड़ी संस्कृति' के बहकावे में न आने की सलाह दे रहे हैं, वहीं दूसरी ओर एक जनहित याचिका पर सुनवाई के दौरान मुख्य न्यायाधीश ने ‘राजनीतिक खैरात’ को एक गंभीर मुद्दा माना है। साथ ही, केंद्र सरकार से इसे नियंत्रित करने के लिये कहा है, जिसके लिये वित्त आयोग से परामर्श करने का निर्देश दिया गया है। 

राजनीतिक खैरात से तात्पर्य

  • राजनैतिक खैरात ऐसे वादे होते हैं जो आर्थिक प्रकृति से विवेकपूर्ण होने के बजाए राजनीतिक रूप से अधिक प्रेरित होते हैं। चुनावों के समय राजनीतिक दलों द्वारा मतदाताओं को लुभाने के लिये कई नि:शुल्क सुविधाएँ देने का वादा किया जाता है, किंतु कई राजनीतिक दल वादे करने के बावजूद निर्वाचित नहीं हो पाते हैं।
  • यद्यपि देश में लगातार बढ़ती असमानता के बीच सार्वजनिक वितरण प्रणाली के तहत मुफ्त या रियायती राशन, मिड-डे-मील के तहत पका हुआ भोजन, आंगनवाड़ी केंद्र के माध्यम से पूरक पोषण और मनरेगा के तहत रोज़गार, उर्वरक सब्सिडी आदि को इसमें शामिल नहीं किया जाना चाहिये, क्योंकि ये सरकार के जन-कल्याणकारी पक्ष को प्रदर्शित करते हैं।
  • सार्वभौमिक स्वास्थ्य सेवा, स्वच्छ पेयजल तक पहुँच, उपभोक्ताओं को बिजली तक पहुँच को नि:शुल्क माने जाने को लेकर भी प्रश्नचिह्न है। हालाँकि, यह भी स्पष्ट किया जाना चाहिये कि आर्थिक रूप से अव्यवहार्य सभी 'कल्याणकरी योजनाओं' को खैरात नहीं कहा जा सकता है।
  • राजनैतिक खैरात का सबसे उपयुक्त उदाहरण कृषि क्षेत्र और कुछ घरों को एक सीमा में दी जाने वाली बिजली सब्सिडी है, जिसे कई राज्य और केंद्र शासित प्रदेश उपभोक्ताओं को मुहैया करा रहे हैं, जबकि डिस्कॉम की स्थिति चिंताजनक है।

भारतीय रिज़र्व बैंक का मत

  • भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) द्वारा जून में जारी की गई 'स्टेट फ़ाइनेंस : रिस्क एनालिसिस' रिपोर्ट में कहा गया है कि राज्यों द्वारा सामना किये गए व्यापक आर्थिक झटके (कोविड-19 और रूस-यूक्रेन युद्ध के कारण मूल्य वृद्धि सहित) के अलावा उनके वित्तीय जोखिम स्वयं द्वारा उत्पन्न किये गए हैं।
  • रिपोर्ट के अनुसार, यद्यपि खैरात की कोई स्पष्ट परिभाषा नहीं है किंतु उन्हें सार्वजनिक/मेरिट वस्तुओं से अलग करना आवश्यक है, जिस पर खर्च से आर्थिक लाभ होता है, जैसे-सार्वजनिक वितरण प्रणाली, रोजगार गारंटी योजनाएं, शिक्षा और स्वास्थ्य के लिये राज्यों द्वारा समर्थन आदि।
  • रिज़र्व बैंक के अनुसार, नि:शुल्क बिजली, नि:शुल्क पानी, नि:शुल्क सार्वजनिक परिवहन, लंबित विद्युत बिलों की माफी और कृषि ऋण माफी जैसे प्रावधानों को प्राय: राजनैतिक खैरात माना जाता है।

कल्याणकारी योजनाएँ 

  • आर.बी.आई. के अनुसार, राज्य की कुछ जिम्मेदारियों को खैरात नहीं माना जाता है। पूर्व में मध्याह्न भोजन योजना के वित्तीय प्रभावों की ओर संकेत करते हुए इसे मुफ्त करार दिया गया था।
  • यह कार्यक्रम तमिलनाडु में 1960 के दशक के प्रारंभ में शुरू किया गया था और वर्ष 2002 तक सर्वोच्च न्यायालय के आदेश द्वारा सभी भारतीय राज्यों में लागू किया गया था।
  • यह भी तर्क दिया जा सकता है कि राज्य या केंद्र द्वारा किसानों को प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण (DBT) जैसी योजनाएँ (उदाहरण- पी.एम. किसान सम्मान निधि) एक लोकलुभावन उपाय हैं किंतु अध्ययनों से पता चलता है कि वे किसानों के लिये एक आवश्यक ‘सुरक्षा जाल’ के रूप में कार्य करती हैं।
  • यद्यपि ये कृषि उत्पादकता को प्रभावित नहीं करती हैं, इसलिये आय समर्थन और उत्पादकता में वृद्धि के बिना डी.बी.टी. कृषि क्षेत्र में स्थायी समस्याओं को हल करने में सक्षम नहीं है।
  • कृषि आदानों (Agricultural Inputs) के लिये नकद हस्तांतरण का उपयोग सुनिश्चित करने के उद्देश्य से सरकार लाभार्थियों के खर्च पैटर्न को ट्रैक करने के लिये ई-वॉलेट और प्री-लोडेड उर्वरक डेबिट कार्ड जैसे समाधानों पर ध्यान दे रही है।

सकारात्मक पक्ष

  • यह क्षेत्रीय असमानता और पिछड़े राज्यों के लोगों की अपनी बुनियादी जरूरतों की पूर्ति में सहायक होती हैं तथा चुनावों के समय लोगों की ओर से ऐसी उम्मीदें की जाती हैं, जो मुफ्त के ऐसे वादों से पूरी होती हैं।
  • कोविड-19 महामारी के दौरान सार्वजनिक वितरण प्रणाली, रोजगार गारंटी योजनाएँ, शिक्षा के लिये समर्थन और स्वास्थ्य व्यय को बढ़ाना लोगों के समग्र विकास के लिये महत्वपूर्ण सिद्ध हुए हैं।
  • मिड-डे-मील, रोजगार गारंटी योजना तथा पी.डी.एस. के तहत सब्सिडी वाले अनाज का वितरण आदि चुनावी लोकतंत्र के सकारात्मक संकेत हैं, जो बहुसंख्यक लोगों की जरूरतों को पूरा कर रहे हैं।
  • मिड-डे-मील स्कूलों में नामांकन बढ़ाने, पेंशन योजनाएँ (जैसे- वृद्धावस्था पेंशन, एकल महिला और विकलांग पेंशन), शहरी क्षेत्रों में सामुदायिक रसोई, सरकारी स्कूलों में नि:शुल्क पोशाक व पाठ्य-पुस्तकों का वितरण और नि:शुल्क स्वास्थ्य देखभाल सेवाएँ देश में सामाजिक सुरक्षा और बुनियादी अधिकारों तक पहुँच प्रदान करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं।

नकारात्मक पक्ष 

  • यह संस्कृति अर्थव्यवस्था के दृष्टिकोण से हानिकारक है, जो बुनियादी ढाँचे को कमजोर करती हैं तथा राजनीतिक व्यय प्राथमिकताओं को विकृत कर इसे केवल सब्सिडी केंद्रित कर देती है।
  • नि:शुल्क बिजली योजना का पर्यावरणीय पहलू भी है, जो प्राकृतिक संसाधनों के अधिक दोहन को बढ़ावा देगा और इससे अक्षय ऊर्जा के विकास की गति मंद हो सकती है।
  • लोकतांत्रिक प्रणाली में स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव होते हैं, परंतु ‘रेवड़ी संस्कृति’ के माध्यम से सार्वजनिक धन का दुरूपयोग कर नि:शुल्क वादे मतदाताओं को अनुचित रूप से प्रभावित करते हैं तथा चुनाव प्रक्रिया में विकृति उत्पन्न करते हैं।
  • इससे सरकारी राजकोष पर बुरा प्रभाव पड़ता है, जो राज्यों को क़र्ज़ के जाल की ओर धकेल देता है जबकि भारत के अधिकांश राज्यों में वित्तीय स्थिति अच्छी नहीं है तथा राजस्व के मामले में उनके पास बहुत सीमित संसाधन होते हैं।
  • यह प्रथा ऋण संस्कृति को कमजोर करती है और क्रॉस-सब्सिडी के माध्यम से कीमतों को विकृत करती है (लाभार्थियों को सहायता देने के लिये गैर-लाभार्थियों से अधिक कीमत वसूलना), संसाधनों के गलत आवंटन में वृद्धि करती है।
  • साथ ही, इसके कारण कर राजस्व में गिरावट आ रही है और यह निजी निवेश के लिये प्रोत्साहन आदि को कम कर देता है।
  • आर.बी.आई. के अनुसार, इस तरह की सब्सिडी में प्राय: रिसाव देखा जाता और ये अपने इच्छित लक्ष्यों को नहीं प्राप्त कर पाती हैं।

आगे की राह 

  • यह पहचानना महत्वपूर्ण है कि अधिकांश कल्याणकारी योजनाएँ मानव विकास परिणामों में सुधार करने में योगदान देती है, जिसके परिणामस्वरूप भविष्य में उच्च आर्थिक विकास की राह आसान होती है।
  • दीर्घकाल में अर्थव्यवस्था, जीवन की गुणवत्ता और सामाजिक सामंजस्य पर इनके प्रभाव तथा आर्थिक प्रभावों का आकलन करना आवश्यक है। साथ ही, सब्सिडी और मुफ्तखोरी में अंतर करना भी आवश्यक है क्योंकि सब्सिडी विशेष रूप से लक्षित लाभ हैं।
  • वास्तव में, इन कार्यक्रमों में कई कमियाँ होती हैं, जो कवरेज विस्तार, संसाधनों के अधिक आवंटन के साथ-साथ अधिक जवाबदेही और शिकायत निवारण के लिये तंत्र स्थापित करने की माँग करती हैं। वस्तुओं के मुफ्त वितरण के बजाए समस्याओं के स्थायी समाधान पर ध्यान केंद्रित किया जाना चाहिये। 
  • पूर्व मुख्य न्यायाधीश एन.वी. रमन्ना के अनुसार न्यायालय को यह परिभाषित करने की आवश्यकता होगी कि राजनैतिक खैरात क्या होती है। हालाँकि, राजनीतिक दलों को मतदाताओं से वादा करने से नहीं रोका जा सकता है। 
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