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नेपाल में राजनीतिक संकट

(प्रारंभिक परीक्षा- राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय महत्त्व की सामयिक घटनाएँ)
(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 2 : भारत के हितों पर विकसित तथा विकासशील देशों की नीतियों तथा राजनीति का प्रभाव, भारत एवं इसके पड़ोसी संबंध)

संदर्भ

हाल ही में, नेपाल के प्रधानमंत्री के.पी. ओली ने संसद के निचले सदन ‘प्रतिनिधि सभा’ को भंग करने की अनुसंशा की, जिसे राष्ट्रपति विद्या देवी भंडारी ने मंजूरी प्रदान कर दी है। इससे पाँच वर्ष पुराने संविधान के समक्ष नई चुनौती के साथ-साथ आंतरिक राजनीतिक संकट पैदा हो गया है। भारत का पडोसी देश होने के कारण नेपाल में उत्पन्न राजनीतिक अस्थिरता और अशांति का आकलन आवश्यक है।

वर्तमान समस्या

  • संसद के भंग होने के बाद नेपाल के प्रधानमंत्री के घोषणा के अनुसार नए चुनाव अगले वर्ष अप्रैल और मई में होंगे और तब तक वे कार्यवाहक सरकार का नेतृत्व करेंगे। साथ ही, इस समय नेपाल में उसे पुन: हिंदू राज्य बनाने की माँग को लेकर आंदोलन भी चल रहा है।
  • पार्टी में विभाजन के बाद ओली अल्पमत में है। हालाँकि, संसद के भंग होने और उनके कार्यों को राष्ट्रपति का समर्थन प्राप्त होने के कारण ओली के पास किसी के प्रति जवाबदेह हुए बिना शासन की शक्ति होगी।
  • प्रधानमंत्री के खिलाफ लगाए गए भ्रष्टाचार के आरोपों की जाँच के लिये एक स्थाई समिति की बैठक से कुछ समय पूर्व ही प्रतिनिधि सभा को भंग कर दिया गया।

समस्या का कारण

  • पार्टी में ओली का विरोध कर रहे पुष्प कमल दहल प्रचंड ने मुख्यधारा की राजनीति में आने से पहले एक दशक (1996-2006) तक माओवादी विद्रोह का नेतृत्व किया है।
  • ओली हिंसा की राजनीति के विरोधी थे। हालाँकि, उन्होंने वर्ष 2017 में माओवादी दलों से अपनी पार्टियों को आपस विलय करने के लिये संपर्क किया। यह ओली के प्रधानमंत्री बनने की महत्वाकांक्षा का ही परिणाम था।
  • ओली कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ नेपाल-यूनिफाइड मार्क्सवादी लेनिनवादी का नेतृत्व कर रहे थे और प्रचंड नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) का प्रतिनिधित्त्व करते थे। विलय के बाद दोनों नेताओं ने सहमति व्यक्त की कि वे बारी-बारी से सरकार का नेतृत्व करेंगे। हालाँकि, इस वादे को ओली ने नहीं निभाया और इस प्रकार दलीय विभाजन का मार्ग प्रशस्त हुआ।
  • एक अन्य मुद्दा हाल ही में लाया गया एक संशोधन अध्यादेश है। आरोप है कि संवैधानिक परिषद अधिनियम में संशोधन नियंत्रण और संतुलन को कमज़ोर करेगा तथा महत्वपूर्ण नियुक्तियाँ करने में प्रधानमंत्री को अधिक शक्ति प्रदान करेगा।

संविधान के समक्ष चुनौती

  • वर्तमान घटनाक्रम ने वर्ष 2015 के संविधान और इसकी प्रमुख विशेषताओं, जैसे- संघवाद, धर्मनिरपेक्षता और गणतंत्र पर एक प्रश्न चिह्न लगा दिया है। दो-तिहाई बहुमत वाली पार्टी में फूट से सरकार और व्यवस्था के प्रणालीगत पतन की चिंता जताई जा रही है।
  • नेपाल में समय से पूर्व सदन का विघटन कोई नई बात नहीं है, परंतु वर्ष 2015 के नए संविधान के बाद यह पहला ऐसा उदाहरण है। नए संविधान में समय पूर्व विघटन के विरुद्ध सुरक्षा प्रदान की गई है।
  • नए संविधान में वैकल्पिक सरकार के गठन की संभावना के बिना इस तरह के कदम की परिकल्पना नहीं है। नेपाल का नया संविधान सदन को भंग करने की अनुमति तभी देता है, जब पाँच वर्ष का कार्यकाल समाप्त हो गया हो और त्रिशंकु की संभावना हो तथा कोई भी दल सरकार बनाने में सक्षम न हो।
  • चूँकि राष्ट्रपति ने प्रतिनिधि सभा के विघटन को मंजूरी प्रदान कर दी है, इसलिये अब इस मुद्दे पर सर्वोच्च न्यायालय द्वारा निर्णय लिया जाएगा।
  • विदित है कि वर्ष 1991 के संविधान में प्रधानमंत्री के पास संसद को भंग करने का विशेषाधिकार प्राप्त था। इस संविधान को वर्ष 2006 में समाप्त कर दिया गया, जिसके अंतर्गत अदालत ने माना था कि कार्यपालिका को विधायिका के समक्ष विचाराधीन मुद्दे को छीनने का अधिकार नहीं है।

सेना और चीन

  • नेपाली सेना ने स्पष्ट कर दिया है कि वह वर्तमान राजनीतिक घटनाक्रम में तटस्थ रहेगी। इसका तात्पर्य यह है कि अगर ओली कानून-व्यवस्था बनाए रखने और सुरक्षा बलों की मदद से शासन करने की कोशिश करते हैं, तो सेना के रवैये को लेकर अनिश्चितता बनी रहेगी।
  • वर्ष 2006 के बाद से नेपाल की आंतरिक राजनीति में चीन एक बड़ा कारक रहा है। यह प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष तरीके से नेपाली राजनीति में लॉबिंग में संलग्न रहा है। चीन के द्वारा नेपाल में अपनी उपस्थिति बढ़ाने का कारण वर्ष 2006 के राजनीतिक परिवर्तन में भारत की महत्वपूर्ण भूमिका होने की धारणा है।
  • चीन ने व्यापार व निवेश, ऊर्जा, पर्यटन तथा भूकंप के बाद पुनर्निर्माण जैसे महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों में भी निवेश किया है। साथ ही, यह नेपाल में एफ.डी.आई. का सबसे बड़ा स्रोत भी है।

भारत और नेपाल

  • भूकम्प के बाद नेपाल में वर्ष 2015 में पाँच महीने की नाकेबंदी के बाद से भारत और नेपाल के सम्बंध तनावपूर्ण रहे हैं। नेपाल के आर्थिक व राजनीतिक मामलों में चीन के बढ़ते हस्तक्षेप और भारत के साथ सीमा-विवाद के कारण भी दोनों देशों के मध्य सम्बंध सामान्य नहीं हैं।
  • दोनों देशों का एक-दूसरे के प्रति अपरिवर्तनशील दृष्टिकोण भी संबंधों में तनाव का एक कारण है। नेपाल के राजनेता तथा राजनीतिक दल राष्ट्रवादी होने और स्वंय को भारत-विरोधी दिखाने के लिये प्रयत्नशील रहते हैं।
  • साथ ही, नेपाल के नक्शे में नया क्षेत्र जोड़कर ओली ने फिर से राष्ट्रवादी भावनाओं को हवा दी। भारत की सोच है कि वह नेपाल में सहायता व विकास परियोजनाओं को गति प्रदान करके नेपालियों के दिल में जगह बना सकता है, परंतु नेपाल में दशकों से अरबों रुपए लगाने के बावज़ूद भी ऐसा नहीं हो पाया है।
  • भारत और चीन द्वारा नेपाल को दी जाने वाली सहायता में नीतिगत अंतर भी दोनों के मध्य संबंधों में परिलक्षित होता है। भारत को नेपाल के सरकारी बजट के बाहर सहायता प्रदान करने में चीन के साथ प्रतिस्पर्धा करनी पड़ती है और इसके लिये चीन धरातल पर दिखाई देने वाली व मूर्त परियोजनाओं के साथ-साथ रणनीतिक अवस्थिति की परियोजनाओं को चुनताहै।

निष्कर्ष

नेपाल के राजशाही से गणतंत्रीय लोकतंत्र की ओर संक्रमण के बीच वर्ष 2017 में सरकार गठन के बाद ओली के पास कई संकटों के बीच लोकतंत्र को बचाने का मौका था। अर्थव्यवस्था में मंदी, महामारी के संकट और कई चुनौतियों के बीच नेपाल में राजनीतिक अस्थिरता भारत व चीन सहित दक्षिण एशिया पर व्यापक प्रभाव डालेगी। चीन और भारत के बीच की तल्खी इस समस्या में वृद्धि कर सकती है। वर्तमान स्थिति में भारत को कूटनीति प्रयासों के साथ-साथ नेपाल से जन-से-जन सम्पर्क में वृद्धि और नेपाल युवाओं को भारतीय युवाओं से जोड़ने का प्रयास करना चाहिये।

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