New
July Offer: Upto 75% Discount on all UPSC & PCS Courses | Offer Valid : 5 - 12 July 2024 | Call: 9555124124

चुनावी व्यय सीमा में वृद्धि की संभावना  

(प्रारंभिक परीक्षा- भारतीय राज्यतंत्र और शासन- संविधान, राजनीतिक प्रणाली)
(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 2: जन प्रतिनिधित्व अधिनियम की मुख्य विशेषताएँ)

संदर्भ

चुनावी व्यय की मौजूदा सीमाओं के पुनर्मूल्यांकन के लिये चुनाव आयोग ने एक विशेष समिति का गठन किया है। 

व्यय सीमा 

  • व्यय सीमा, वह राशि है जिसे कोई चुनावी उम्मीदवार अपने चुनाव अभियान के दौरान कानूनी रूप से खर्च कर सकता है। चुनाव आयोग की नियम पुस्तिका के अनुसार, प्रत्येक उम्मीदवार को चुनाव परिणाम घोषित होने के 30 दिनों के भीतर चुनाव अभियान में किये गए खर्च का विवरण दर्ज कराना आवश्यक होता है। 
  • यदि कोई उम्मीदवार निर्धारित सीमा में व्यय का विवरण दर्ज नहीं करता है, तो इसे ‘चुनाव आचरण नियम, 1961’ के नियम- 90 का उल्लंघन माना जाता है और यह ‘जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951’ की धारा 123 (6) के तहत भ्रष्ट आचरण की श्रेणी में आता है।
  • विदित है कि चुनावी खर्च की सीमा ‘चुनाव आचरण नियम, 1961’ के नियम 90 के तहत निर्दिष्ट होती है। इस नियम में किसी भी बदलाव के लिये कानून मंत्रालय की मंजूरी तथा अधिसूचना आवश्यक होती है।
  • व्यय मदों में मुख्य रूप से चुनावी अभियान में प्रयोग होने वाले वाहनों, प्रचार सामग्रियों, चुनावी रैलियों, इलेक्ट्रॉनिक और प्रिंट मीडिया, बैनर, पैम्फलेट और क्षेत्र के दौरे पर होने वाला खर्च शामिल होता है। वर्तमान में सोशल मीडिया और सार्वजानिक प्रचार (Publicity) खर्च के सबसे बड़े स्रोत बनते जा रहे हैं।

पूर्व में संसोधन

  • पिछली बार फ़रवरी, 2014 में लोकसभा चुनाव से ठीक पहले व्यय सीमा को संशोधित किया गया था, जबकि विभाजन के बाद आंध्र प्रदेश और तेलंगाना के लिये अक्तूबर, 2018 में इसमें संशोधन किया गया था।
  • हालाँकि, कोविड-19 महामारी के चलते पिछले वर्ष कुछ विशेष दिशा-निर्देशों के साथ विधानसभा और लोकसभा चुनावों के लिये चुनावी खर्च की अधिकतम सीमा में भी 10% की वृद्धि की गई है। यह वृद्धि स्थाई है अथवा अस्थाई, इसको लेकर अभी अस्पष्टता की स्थिति है। 

वर्तमान परिदृश्य व संभावनाएँ

  • चुनावी खर्च की अधिकतम सीमा राज्यों के अनुसार अलग-अलग होती है। बिहार, उत्तर प्रदेश और तमिलनाडु जैसे बड़े राज्यों में विधानसभा चुनाव में व्यय सीमा 28 लाख रूपए है, जिसे वर्तमान में (कोविड के कारण 10% की वृद्धि) 30.8 लाख रूपए कर दिया गया है।
  • इसी प्रकार, बड़े राज्यों में लोकसभा चुनाव लड़ने वाले उम्मीदवारों के लिये चुनावी खर्च की संशोधित सीमा 70 लाख रुपए के बजाय वर्तमान में (कोविड के कारण 10% की वृद्धि) 77 लाख रूपए कर दी गई है।
  • गोवा, अरुणाचल प्रदेश, सिक्किम और कुछ केंद्र शासित प्रदेशों में निर्वाचन क्षेत्रों एवं जनसंख्या के आकार के आधार पर चुनावी खर्च की सीमा कम है।
  • ऐसे राज्यों में कोविड के कारण 10% की वृद्धि के साथ लोकसभा उम्मीदवार के लिये अधिकतम व्यय सीमा अब 59.4 लाख रूपए है, जबकि विधानसभा उम्मीदवार के लिये अधिकतम व्यय सीमा 22 लाख रूपए तक है।
  • लोकसभा चुनाव लड़ने वाले उम्मीदवारों के लिये व्यय सीमा को संशोधित करके 90 लाख से 1 करोड़ रुपये के बीच किया जा सकता है। इसी प्रकार, विधानसभा चुनाव लड़ने वाले उम्मीदवारों के लिये व्यय सीमा को लगभग 35 से 38 लाख रुपये के बीच किया जा सकता है। 

वृद्धि का कारण

  • चुनावी सीमा में वृद्धि का प्रमुख कारण मतदाताओं की संख्या और लागत मुद्रास्फीति सूचकांक (Cost Inflation Index) में वृद्धि को माना जा रहा है।
  • पिछले 6 वर्षों में व्यय सीमा में कोई वृद्धि (कोविड के कारण हुई वृद्धि को छोड़कर) नहीं की गई है, जबकि इस दौरान मतदाताओं की संख्या 834 मिलियन से बढ़कर वर्ष 2019 में 910 मिलियन हो गई थी। वर्तमान में मतदाताओं की संख्या बढ़कर 921 मिलियन हो गई है।
  • इसके अलावा लागत मुद्रास्फीति सूचकांक में भी वृद्धि हुई है। पिछले 6 वर्षों में यह 220 से बढ़कर वर्ष 2019 में 280 और वर्तमान में 301 के स्तर पर पहुंच गई है।
  • उम्मीदवार का वास्तविक व्यय तय सीमा से बहुत अधिक होता है, किंतु कानूनी पहलुओं के कारण इसकी घोषणा नहीं की जाती है। साथ ही, इससे खर्च को छुपाने के साथ-साथ अवैध तंत्र का भी विकास होता है। ऐसा तर्क है कि व्यय सीमा में वृद्धि से चुनावी खर्च की घोषणाओं में अधिक पारदर्शिता आएगी।
  • उल्लेखनीय है कि भारतीय निर्वाचन आयोग ने चुनावी व्यय की सीमा को लेकर पिछले वर्ष श्री हरीश कुमार और श्री उमेश सिन्हा की सदस्यता में एक समिति का भी गठन किया था।
Have any Query?

Our support team will be happy to assist you!

OR