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निजीकरण पर पुनर्विचार की आवश्यकता 

(प्रारंभिक परीक्षा :आर्थिक और सामाजिक विकास)
(मुख्य परीक्षा : सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 2: भारतीय अर्थव्यवस्था तथा योजना, संसाधनों को जुटाने, प्रगति, विकास तथा रोज़गार से संबंधित विषय)

संदर्भ

आर्थिक विशेषज्ञों के अनुसार, आर्थिक मंदी की पृष्ठभूमि में, सार्वजनिक उद्यमों के ‘आक्रामक निजीकरण’ पर पुनः विचार किये जाने की आवश्यकता है।

पृष्ठभूमि

  • बैंकों सहित सार्वजनिक क्षेत्र का निजीकरण, वर्ष 1991 से ही आर्थिक सुधारों की प्राथमिकताओं का हिस्सा रहा है। यह ‘वाशिंगटन सहमति’ (Washington Consensus) के मूल में था कि निजी क्षेत्र स्वाभाविक रूप से ‘अधिक कुशल’ है।
  • हालाँकि, भारत में लोकतांत्रिक राजनीति की ज़मीनी हकीकत वास्तविक निजीकरण के रास्ते में आड़े आती रही, लेकिन बाज़ार में सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों के शेयरों का ‘प्रगतिशील विनिवेश’ वर्षों से होता आ रहा है।
  • 2000 के दशक की शुरुआत में ‘राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन’ (NDA) ने कुछ निजीकरण किया, लेकिन व्यापक आलोचना के कारण इसे रोकना पड़ा।
  • यह संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (UPA) के एजेंडे में भी कभी नहीं था। एन.डी.ए.-II के शुरुआती छह वर्षों में भी इस पर ज़्यादा ध्यान नहीं दिया गया।
  • लेकिन अब इसे पूरे उत्साह के साथ आगे बढ़ाया जा रहा है। इसमें अत्यंत महत्त्वाकांक्षी लक्ष्यों के साथ उच्च प्राथमिकताएँ शामिल हैं, जो यूनाइटेड किंगडम के ‘थैचर युग’ की याद ताजा कराती है।

वर्तमान परिदृश्य

  •  भारत इस समय व्यापक आर्थिक संकट के दौर से गुज़र रहा है।
  • अर्थव्यवस्था में अब तक का सबसे अधिक संकुचन विगत वर्ष हुआ, बेरोज़गारी बढ़ी है, आय गिर रही है, बैंक ‘गैर-निष्पादित परिसंपत्तियों’ (NPA) से जूझ रहे हैं। इसके अतिरिक्त, राजकोषीय घाटा भी बढ़ रहा है।
  • उक्त परिस्थितियों के आलोक में, सार्वजनिक उद्यमों के आक्रामक निजीकरण के ‘पक्ष और विपक्ष’ के बारे में सोचना विवेकपूर्ण होगा।

उद्यमों की श्रेणियाँ

  • उद्यमों की वह श्रेणी, जो लंबे समय से रुग्ण (Sick) हैं, उनकी तकनीक, संयंत्र और मशीनरी अप्रचलित हैं। उनके प्रबंधकीय और मानव संसाधन का क्षरण हो चुका है तथा समीक्षाएँ इसी निष्कर्ष पर पहुँचती हैं कि ये छुटकारे (Redemption) से परे हैं।
  • इन्हें बंद किया जाना चाहिये और संपत्तियों की बिक्री की जानी चाहिये। लेकिन बाद की सरकारों के साथ यह मुश्किल रहा है, क्योंकि इन उद्यमों में श्रमिकों का एक ‘राजनीतिक क्षेत्र’ (Political Constituency) रहा है जिसने इन्हें बंद होने से रोका है।
  • सार्वजनिक क्षेत्र के ऐसे उद्यम भी हैं, जो आर्थिक रूप से रुग्ण हैं लेकिन उन्हें पुनः संचालित किया जा सकता है। ऐसे उद्यमों की कठिनाइयों का पता, विशेष रूप से प्रत्यक्ष उपभोक्ता इंटरफ़ेस वाले उद्यमों में, मंत्रिस्तरीय सूक्ष्म-प्रबंधन से लगाया जा सकता है।

समाधान

  • अपनी राजनीतिक ताकत के साथ सरकार को श्रम को महत्त्व देते हुए समयबद्ध तरीके से रुग्ण उद्यमों को बंद करना चाहिये था। मशीनरी को स्क्रैप में बेचने के बाद कीमती ज़मीन बचेगी।
  • इन भूखंडों के विवेकपूर्ण तरीके से निपटाने से आने वाले वर्षों में बड़ी आय प्राप्त होगी। इन सबके लिये कुशल क्षमता के निर्माण की आवश्यकता होगी, क्योंकि यह कार्य बहुत बड़ा और चुनौतीपूर्ण है।
  • इन उद्यमों को उनके मूल मंत्रालयों से हटाकर एक होल्डिंग कंपनी के तहत लाया जा सकता है, जिसके पास त्वरित शोधन और परिसंपत्ति बिक्री (Speedy Liquidation and Asset Sale) का एकमात्र अधिदेश होना चाहिये।
  • निजीकरण के माध्यम से निजी प्रबंधन या रणनीतिक साझेदारों को शामिल करना, इन उद्यमों के मूल्य को बहाल करने का सबसे अच्छा तरीका है, इसे प्राथमिकता के आधार पर आगे बढ़ाया जाना चाहिये।
  • एयर इंडिया और भारत पर्यटन विकास निगम (ITDC) के होटल इसके अच्छे उदाहरण हैं, लेकिन इसके लिये साहसिक फैसलों की ज़रूरत है।
  • एअर इंडिया को आदर्श रूप से ऋण मुक्त बनाया जाना चाहिये और नए प्रबंधन को कानून के तहत कार्मिक प्रबंधन में निवेशकों का हित प्राप्त करने की स्वतंत्रता होनी चाहिये।
  • एयर इंडिया को एक बार कर्ज मुक्त होने पर, 26 प्रतिशत हिस्सेदारी के साथ प्रबंधन नियंत्रण दिया जा सकता है। जैसे-जैसे पूँजीकरण बढेगा, सरकार अपनी हिस्सेदारी को और कम कर सकती है तथा अधिक धन प्राप्त कर सकती है।
  • यदि उद्यमों को अच्छी तरह से संभाला जाता है, तो सरकार को महत्त्वपूर्ण राजस्व प्राप्त होगा।

चीनी मॉडल

  • कई ऐसे लाभदायक उद्यम हैं, जिन्हें विचारधारा की बजाय व्यावहारिकता के आधार पर मार्गदर्शित करने की आवश्यकता है।
  • लागत, गुणवत्ता एवं प्रौद्योगिकी में अपनी प्रतिस्पर्धात्मकता बढ़ाकर घरेलू और वैश्विक बाज़ारों में सफल होने के लिये चीनियों ने अपने राज्य के स्वामित्व वाले उद्यमों के साथ-साथ अपने निजी उद्यमों को विकसित करने का मॉडल चुना।
  • ‘फॉर्च्यून-500’ सूची में, चीनी उद्यमों की संख्या 124 है, और इनमें से 91 सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यम हैं। चीन ने अपने सार्वजनिक और निजी क्षेत्र के उद्यमों को बढ़ा कर आर्थिक महाशक्ति बनने की राह पर है।
  • रेटिंग एजेंसियों को लक्षित कम राजकोषीय घाटे दिखाने की बजाय बाज़ार की स्थितियों पर मध्यम अवधि में अधिकतम मूल्य प्राप्त करने के लिये  ‘कैलिब्रेटेड विनिवेश’ का लक्ष्य निर्धारित करना चाहिये।
  • साथ ही, सही लेखांकन अभ्यास में, वित्तीय घाटे की गणना के लिये परिसंपत्ति बिक्री को राजस्व आय के रूप में वर्गीकृत नहीं किया जाना चाहिये।
  • इसके समानांतर प्रबंधन को लंबा और स्थिर कार्यकाल दिया जा सकता है। साथ ही, सकरात्मक परिणाम प्राप्त करने के लिये अधिक लचीलापन और सुविचारित वाणिज्यिक जोखिम लेने हेतु भी अधिक विश्वस्त किया जा सकता है।
  • इसे अतीत में मारुति के समय किया गया। कई उद्यमों में वैश्विक चैंपियन बनने की क्षमता है। उन्हें रणनीतिक क्षेत्रों में पूँजी निवेश करने के लिये भी कहा जा सकता है, जहाँ जोखिम अधिक है, क्योंकि जोखिम से बचने वाला निजी क्षेत्र आसानी से निवेश नहीं कर सकता है। इसी कार्य को चीन ने बखूबी किया है।

निजी क्षेत्र का पुनर्निर्देशन

  • एकमुश्त निजीकरण के अन्य निहितार्थ हैं। सार्वजनिक क्षेत्र की फर्मों को खरीदने वाली भारतीय निजी फर्मों की संख्या बहुत ही कम है।
  • दिवालियापन प्रक्रिया के माध्यम से बड़ी संख्या में निजी फर्मों को बिक्री के लिये सीमित वित्तीय और प्रबंधकीय संसाधनों का बेहतर उपयोग किया जा सकेगा।
  • इन सफल बड़े निगमों को घरेलू और अंतरराष्ट्रीय बाज़ारों में ब्राउनफील्ड और ग्रीनफील्ड मोड में निवेश और विकास करने के लिये प्रोत्साहित करने की भी आवश्यकता है।
  • विदेशी संस्थाओं, फर्मों के साथ-साथ धन का निष्पक्ष मूल्यांकन उचित या कम बिक्री, ‘आत्मनिर्भर’ होने के परिप्रेक्ष्य से प्रतिकूल प्रभाव डाल सकता है, क्योंकि भारत को ग्रीनफील्ड विदेशी निवेश की जरूरत है ना की टेकओवर की।
  • सार्वजनिक उद्यम रोज़गार में आरक्षण प्रदान करते हैं, निजीकरण के साथ आरक्षण समाप्त हो जाता है तथा यह अनावश्यक रूप से सामाजिक अशांति उत्पन्न करेगा।
  • कोविड-19 संकट से निपटने में, सरकार बैंकों और सार्वजनिक उद्यमों को तत्काल आधार पर इतने सारे काम करने के लिये अपने स्वामित्व का प्रयोग करने में सक्षम रही है। निजी उद्यमों के पास ऐसा कोई विकल्प मौजूद नहीं  होता है।

निष्कर्ष

भारत के हित में होगा कि वह ‘रणनीतिक क्षमता’ को प्राप्त करे, जो उसके वित्तीय उद्यमों सहित अन्य सार्वजनिक उद्यमों का स्वामित्व उसे प्रदान करते हैं।

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