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राज्यसभा : सांसदों के कदाचार के लिये दंड

(प्रारंभिक परीक्षा : संसद से संबंधित प्रश्न)
(मुख्य परीक्षा : सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र 2 - संसद की संरचना, कार्य, कार्य-संचालन, शक्तियाँ एवं विशेषाधिकार और इनसे उत्पन्न होने वाले विषय से संबंधित प्रश्न)

संदर्भ

  • राज्यसभा सभापति के द्वारा, सदन में हुई हालिया अनुशासनात्मक घटनाओं के आलोक में सांसदों के विरुद्ध कार्यवाई करने पर विचार किया जा रहा है।
  • वहीं दूसरी तरफ़, सांसदों ने आरोप लगाया है कि नीली वर्दी में गैर-कर्मचारियों को सदन के अंदर प्रवेश दिया गया, जिन्होंने उनके साथ अभद्रता की।

सदन के नियम

  • सदन के नियमानुसार, सदन की कार्यवाही को सुचारू रूप से संचालित करने की सभी आवश्यक शक्तियाँ सभापति में निहित होती हैं।
  • ये नियम उन सांसदों के निलंबन का भी प्रावधान करते हैं, जो ‘अध्यक्ष के अधिकार की अवहेलना करते हैं या लगातार और जानबूझकर सदन के कामकाज में बाधा डालकर नियमों का दुरुपयोग करते हैं’।
  • हालाँकि, किसी सदस्य को निलंबित करने की शक्ति सदन में निहित होती है, सभापति में नहीं।
  • अध्यक्ष ऐसे सदस्य के नाम पर विचार करता है, जिस पर संसदीय कार्य मंत्री द्वारा प्रस्ताव पेश किया गया हो या कोई अन्य मंत्री जो सदस्य के निलंबन की मांग कर रहा हो।
  • नियमानुसार निलंबन की अधिकतम अवधि शेष सत्र के लिये होती है।
  • एक निलंबित सदस्य सदन में प्रवेश नहीं कर सकता है और न ही समितियों की किसी भी बैठक में शामिल हो सकता है। साथ ही, वह चर्चा या प्रस्तुत करने के लिये कोई नोटिस भी नहीं दे सकता है।
  • परंपरा के अनुसार, एक निलंबित सदस्य अपने प्रश्नों के जवाब पाने का अधिकार खो देता है। इस प्रकार, सदन की सेवा से निलंबन को एक गंभीर दंड माना जाता है।
  • लेकिन, आश्चर्यजनक रूप से इन नियमों में किसी निलंबित सदस्य की अक्षमताओं का उल्लेख नहीं किया गया है। ये अक्षमताएँ परंपराओं या परिपाटी के अनुसार आरोपित की जाती हैं।

निलंबन का प्रावधान

  • निलंबन ही एकमात्र ऐसी गंभीर सज़ा है, जिसके लिये सदन की नियमावली में प्रावधान किया गया है।
  • राज्यसभा के प्रक्रिया नियमों का नियम 256 कदाचार के कृत्यों को निर्दिष्ट करता है-
    • सभापति के अधिकारों की अवहेलना करना।
    • सदन के नियमों का लगातार उल्लंघन करना और जानबूझकर सदन के कामकाज में बाधा उत्पन्न करना।
    • एक सदस्य को इनमें से किसी भी कृत्य के लिये दंडित किया जा सकता है और आमतौर पर ऐसे मामले में सज़ा तत्काल होती है।
  • कदाचार की घटना के बाद लंबे समय तक सदस्यों को दंडित करना बहुत कठिन है।
  • शेष सत्र के लिये निलंबन तभी होता है, जब सभापति द्वारा कदाचार देखे जाने के तुरंत बाद उन्हें निलंबित कर दिया जाता है।
  • सदन के बाहर सांसदों द्वारा कदाचार के कृत्यों के लिये (जो सदस्य विशेषाधिकार का उल्लंघन या सदन की अवमानना ​​करते हैं) आमतौर पर विशेषाधिकार समिति मामले की जाँच करती है एवं कार्रवाई की सिफारिश करती है और सदन उस पर कार्य करता है।

निष्कासन समिति का गठन एवं उससे संबंधित पूर्ववर्ती मामलें

  • निष्कासन संबंधी विशेष समिति आमतौर पर तब नियुक्त की जाती है, जब कदाचार इतना गंभीर होता है कि सदन सदस्य को निष्कासित करने पर विचार कर सकता है।
  • निष्कासन का पहला मामला वर्ष 1951 में सामने आया, जब एक सांसद एच. जी. मुद्गल के आचरण की जाँच के लिये एक विशेष समिति नियुक्त की गई।
  • दरअसल, सदस्य ने सरकार और संसद में व्यावसायिक घरानों से उनके समर्थन के लिये वित्तीय लाभ को स्वीकार किया था।
  • समिति ने उन्हें कदाचार का दोषी पाया, जो संसद की गरिमा के लिये अपमानजनक था और सांसद को सदन से निष्कासित कर दिया गया था।
    • संसद में सवाल उठाने के लिये सांसदों द्वारा धन स्वीकार करने के मुद्दे की जाँच के लिये वर्ष 2005 में एक और विशेष समिति का गठन किया गया था।
    • यह खोजी पत्रकारों के एक निजी निकाय द्वारा किये गए एक स्टिंग ऑपरेशन के बाद हुआ था और इस प्रकरण में दस सांसदों को सदन से निष्कासित कर दिया गया था।
    • इसलिये, विशेष तदर्थ समितियों को केवल सदन के बाहर सांसदों द्वारा गंभीर कदाचार की जाँच के लिये गठित किया जाता है।
    • सदन के अंदर पीठासीन अधिकारी की उपस्थिति में किये गए कृत्य के लिये किसी विशेष समिति के गठन की आवश्यकता नहीं होती है।

    निष्कर्ष 

    • सदन के प्रक्रिया नियम एक विशिष्ट अवधि के लिये निलंबन के अतिरिक्त किसी भी सज़ा को मान्यता नहीं देते हैं।
    • वहीं, संविधान का अनुच्छेद 20 अपराध करने के समय प्रदान किये गए कानून की तुलना में अधिक दंड का निषेध करता है।
    • यह एक गंभीर विचार है कि सदन के नियम संसद को सदन में अव्यवस्था उत्पन्न करने के लिये निलंबन के अलावा उसके सदस्यों को कोई दंड देने का अधिकार नहीं देते हैं।
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