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चक्रवातों की त्वरित गहनता

(प्रारम्भिक परीक्षा: राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय महत्त्व की सामयिक घटनाएँ, भारत एवं विश्व का भूगोल)
(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 1: भूकम्प, सुनामी, ज्वालामुखी विस्फोट, चक्रवात आदि जैसी महत्त्वपूर्ण भू-भौतिकीय घटनाएँ)

पृष्ठभूमि

उष्णकटिबंधीय चक्रवात ख़तरनाक प्राकृतिक जलवायु संकटों में से एक है, जिससे जीवन व सम्पत्ति के साथ-साथ बुनियादी ढाँचे की अत्यधिक हानि होती है। वैश्विक तापन के परिणाम स्वरूप पहले से ही उच्च तीव्रता वाले चक्रवातों की संख्या में वृद्धि के साथ-साथ उनकी गहनता में भी वृद्धि हो रही है।

चक्रवातों की त्वरित गहनता (द्रुत उत्कटता / तीव्र घनी भूतीकरण) (Rapid Intensification of Cyclone- RI)

  • 24 घंटे की समयावधि में किसी चक्रवाती तूफ़ान की अधिकतम निरंतर हवा की गति में कम से कम 55 किमी./घंटा (या 30 kts) की वृद्धि को त्वरित गहनता कहा जाता है।
  • उल्लेखनीय है कि हाल ही में आए चक्रवाती तूफान ‘अम्फन’ की गति 24 घंटे की एक निश्चित समयावधि में 30 kts से भी दोगुनी तीव्रता से बढ़ गई थी। इस समयावधि में इसकी गति 45 kts से बढ़कर 115 kts (70 kts वृद्धि) हो गई थी।
  • कई अध्ययनों के अनुसार, जलवायु परिवर्तन के कारण उष्णकटिबंधीय चक्रवातों की संख्या में वृद्धि के साथ-साथ उनकी त्वरित गहनता में भी वृद्धि देखी जा रही है।
  • इस तरह से हवा की गति में त्वरित वृद्धि (Acceleration) का कारण ‘चक्रवात की आँख’ में बने दबाव के क्षेत्र में तेज़ी से गिरावट है।
  • चक्रवात के निम्न-दबाव के क्षेत्र को ‘चक्रवात की आँख’ कहा जाता है। आँख में दबाव जितना कम होगा, चक्रवात उतना ही तीव्र होगा। आँख के चारों ओर तेज़ हवाओं व भारी बारिश के क्षेत्र को ‘आँख की दीवार’ कहा जाता है। यह चक्रवात का सबसे विनाशकारी हिस्सा होता है।
  • त्वरित गहनता (आर.आई.) के कारण चक्रवातों के पूर्वानुमान और राहत उपायों में कठिनता आ रही है। साथ ही, आर.आई. के साथ तीव्र चक्रवातों की संख्या में भी वृद्धि की उम्मीद है।
  • चक्रवात की उत्पत्ति के बाद उसकी तीव्रता व ट्रैक करने सम्बंधी पूर्वानुमान दुनिया भर में काफी परिपक्कव हैं। हालाँकि, चक्रवातों के उत्पन्न होने तथा उसमें होने वाले अचानक परिवर्तन के कारणों की समझ में कमी पूर्वानुमान के लिये बहुत कम समय प्रदान करती है। उदाहरण स्वरुप किसी कम दबाव वाले तंत्र का अचानक से उष्णकटिबंधीय तूफान में बदलने की घटना।

चक्रवात की उत्पत्ति तथा त्वरित गहनता के लिये ज़िम्मेदार कारक

  • अभी तक की जानकारी के अनुसार, चक्रवात की उत्पत्ति के लिये वायुमंडलीय कारक ही महत्त्वपूर्ण हैं। इन कारकों में सबसे महत्त्वपूर्ण किसी कम दबाव के क्षेत्र का सतह पर चक्रण करना या उसका भंवर बनना है।
  • इसके अतिरिक्त, इस कम दबाव के तंत्र में हवा की ऊर्ध्वाधर गति, समुद्र की सतह का तापमान या उपलब्ध गर्म जल की मात्रा तथा मध्य वातावरण में उपलब्ध आर्द्रता की मात्रा के साथ-साथ उर्ध्वाधर कतरनी (Vertical Shear) या सतह से ऊपरी वायुमंडल में हवाओं में परिवर्तन जैसे कारक भी चक्रवात उत्पत्ति के लिये महत्त्वपूर्ण हैं। साथ ही, पृथ्वी का घूर्णन भी चक्रवात को उसी दिशा में चक्रण (Rotate) करने के लिये बल प्रदान करता है।
  • चक्रवात एक प्रकार से टरबाइन की तरह है जो महासागर द्वारा जलवाष्प के रूप में ऊर्जा की आपूर्ति द्वारा ड्राइव होता है। उर्ध्वाधर गति और मध्य स्तरीय आर्द्रता समुद्र द्वारा टरबाइन में पम्प की जाने वाली गति व ऊर्जा की मात्रा है।
  • इन सबके अतिरिक्त त्वरित गहनता में वृद्धि का एक कारण महासागरों का गर्म पानी है। ऐसा माना जाता है कि महासागरों के गर्म पानी का कारण हरित गृह गैसें हैं। शोध से पता चलता है कि उच्च महासागरीय तापमान उत्तरी हिंद महासागर में चक्रवातों के तीव्र होने के लिये अनुकूल होता है।
  • महासागरों की सतह पर अधिक तापमान या गर्म पानी के कारण कम दबाव का क्षेत्र बन जाता है। बंगाल की खाड़ी में जल का तापमान मई माह में रिकॉर्ड स्तर पर था। अध्ययन में पाया गया है कि प्रबल तूफानों का अनुपात एक दशक में लगभग 8 % बढ़ रहा है।

मैडेन-जूलियन ऑसिलेशन (MJO- एम.जे.ओ.) और चक्रवात

  • मैडेन-जूलियन ऑसीलेशन (MJO) एक समुद्री-वायुमंडलीय घटना है जो वैश्विक मौसम की गतिविधियों को प्रभावित करती है। यह उष्णकटिबंधीय क्षेत्र के मौसम में बड़े बदलाव के लिये ज़िम्मेदार मानी जाती है।
  • एम.जे.ओ, अक्टूबर से अप्रैल के दौरान, उष्णकटिबंधों में पश्चिमी हिंद महासागर से पूर्वी हिंद महासागर के साथ-साथ प्रशांत महासागर में इंडोनेशियाई समुद्र के पार तक फैलकर प्रभावी रहता है।
  • एम.जे.ओ. हिंद और प्रशांत महासागर के ऊपर घूर्णनकारी निम्न दबाव के तंत्र की उत्पत्ति हेतु ज़िम्मेदार है। एम.जे.ओ, विशेषकर मॉनसून के बाद के मौसम में, चक्रवात की उत्पत्ति में अत्यधिक सहायक होता है।
  • मॉनसून के दौरान हिंद महासागर के ऊपर उत्तर की ओर भी तरंगों का प्रसार होता हैं, जिसे मॉनसून इंट्रा सीज़नल ऑसिलेशन (MISO) कहते हैं। मॉनसून इंट्रा सीज़नल ऑसिलेशन पूर्व-मानसून मौसम के दौरान चक्रवात उत्पत्ति को प्रभावित करते हैं।

अन्य तथ्य

  • लम्बे समय के लिये, अल नीनो और ला नीना जैसी घटनाएँ न केवल चक्रवात की उत्पत्ति की संख्या को प्रभावित करती हैं बल्कि उसकी स्थिति के साथ-साथ गर्म जल के विस्तार को भी प्रभावित करती हैं।
  • उदाहरण के लिये, जिस वर्ष ला नीना की परिघटना होती है उस वर्ष प्री-मॉनसून सीज़न के दौरान बंगाल की खाड़ी में गर्म पानी के क्षेत्र में वृद्धि हो जाती है। इस परिघटना के कारण, अल नीनो की परिघटना वाले वर्ष की अपेक्षा चक्रवात न केवल लम्बी दूरी तय करते हैं बल्कि काफी शक्तिशाली भी होते हैं।
  • दूसरी ओर, प्रशांत महासागर के ऊपर अल नीनो ही अत्यधिक मात्रा में गर्म पानी की पट्टियों का निर्माण करने के साथ-साथ अधिक तीव्र चक्रवात पैदा करता है।
  • पश्चिमी अफ्रीका क्षेत्र में ईस्टरली पवनें उत्पन्न होतीं हैं। ये पवनें पश्चिम में स्थल से उष्णकटिबंधीय अटलांटिक महासागर में प्रसरित होते हुए अधिकांश हरिकेन की उत्पत्ति का कारण बनती हैं।

हानियाँ

  • त्वरित गहनता एक गम्भीर खतरा है क्योंकि इससे चक्रवात के व्यवहार के बारे में पूर्वानुमान लगाना कठिन हो जाता है। ऐसी स्थिति में, चक्रवात के स्थल से टकराने से पूर्व तैयारी करना मुश्किल हो जाता है।
  • ऐसी सम्भावना है कि जलवायु परिवर्तन के साथ ही इस सदी में त्वरित गहनता की घटनाएँ लगातार होती रहेंगी।
  • वर्ष 2019 में नेचर पत्रिका में प्रकाशित एक अध्ययन के अनुसार, भारत व बांग्लादेश वर्ष 2050 तक नाटकीय वार्षिक तटीय बाढ़ का अनुभव कर सकते हैं, जिससे भारत में लगभग 36 मिलियन लोग व बांग्लादेश में लगभग 42 मिलियन लोगों के प्रभावित होने की सम्भावना है।
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