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सफाई कर्मियों के कल्याणार्थ उठाए गए सुधारवादी कदम

(सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र-1,2 व 3 ; समाज : सामाजिक सशक्तीकरण, शहरीकरण, उनकी समस्याएँ और उनके रक्षोपाय;  सामाजिक न्याय : अति संवेदनशील वर्गों की रक्षा एवं बेहतरी के लिये गठित तंत्र, विधि, संस्थान एवं निकाय; योजना)

संदर्भ

कोविड-19 महामारी के दौरान अग्रिम पंक्ति के कार्यकर्ताओं के रूप में, सफाई कर्मियों को बड़े जोखिमों का सामना करना पड़ा। हाल ही में शुरू किये गए, स्वच्छ भारत मिशन के दूसरे चरण ने सफाई कर्मियों की सुरक्षा और कल्याण की ओर ध्यान आकर्षित किया है।

भारत में सफाई कर्मचारियों की स्थिति

  • भारत में सफाई का कार्य जाति-आधारित व्यावसायिक भूमिकाओं से जुड़ा हुआ है। ये कार्य सामान्यतः अनुसूचित जाति और कुछ क्षेत्रों में अनुसूचित जनजाति के लोग करते हैं।
  • वस्तुतः सफाई कर्मचारियों को वर्षों से भेदभाव और छुआछूत का सामना करना पड़ा है। इनमें से सबसे अधिक कलंकित उन लोगों को माना जाता है, जो सीवरों, सेप्टिक टैंकों, गड्ढों और नालियों की हाथ से सफाई करते हैं।
  • हाथ से मैला उठाने वाले कर्मियों के नियोजन का प्रतिषेध और उनका पुनर्वास अधिनियम, 2013’ के लागू होने के बावजूद यह प्रथा बदस्तूर जारी है। यद्यपि स्थानीय निकायों द्वारा हाथ से मैला ढोने वालों का प्रत्यक्ष नियोजन नहीं इया जाता है, तथापि उनके द्वारा स्वच्छता-कार्य निजी व्यवसायों और अनौपचारिक कामगारों को दे दिया जाता है। इससे यह प्रथा समाप्त नहीं हो पाती है।
  • ‘छठी आर्थिक जनगणना, 2013’ के अनुसार, जलापूर्ति, सीवरेज, अपशिष्ट प्रबंधन और उपचारात्मक गतिविधियों में संलग्न करीब 1.7 लाख व्यवसायों में से करीब 82% निजी क्षेत्र से संबद्ध हैं।

स्वच्छता योजनाएँ : सफाई की माँग में वृद्धि

  • शहरीकरण से सफाई-कार्य की माँग बढ़ी है, जो ‘स्वच्छ भारत मिशन’ के पहले चरण में शौचालयों के सफलतापूर्वक निर्माण के बाद और तेज़ हुई है।
  • इन कार्यक्रमों के तहत शहरी और ग्रामीण, दोनों क्षेत्रों में बनाए गए शौचालयों के साथ सेप्टिक टैंकों और गड्ढों का निर्माण भी किया गया है।
  • ‘कायाकल्प और शहरी परिवर्तन के लिये अटल मिशन’ (AMRUT) के माध्यम से सीवरेज नेटवर्क के विकास और सीवरेज उपचार संयंत्र जैसे बड़े ‘स्वच्छता बुनियादी ढाँचे’ के विकास पर ज़ोर दिया गया है।
  • हालाँकि भारत में लगभग 4,041 शहर उपस्थित हैं। इनमें से मुख्यतः 500 शहरों पर ध्यान केंद्रित किये जाने की आवश्यकता है क्योंकि ये शहर अपर्याप्त सीवरेज नेटवर्क और उपचार संयंत्रों की कमी के कारण कचरे के सुरक्षित निपटान से पिछड़ जाते हैं।
  • सफाई और अन्य स्वच्छता सेवाओं की अधिकांश माँग निजी ‘वैक्यूम ट्रक ऑपरेटरों’ द्वारा पूरी की जाती है। इनकी कार्यप्रणाली न सिर्फ ‘हाथ से मैला ढोने पर लगाए गए प्रतिबंध’ की अनदेखी करती है, बल्कि अन्य सुरक्षा मानकों का भी उल्लंघन करती है।

नवीन आँकड़े

  • ‘सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय’ द्वारा किये गए ‘मैनुअल स्कैवेंजिंग सर्वे’ के अनुसार, अक्टूबर 2020 तक 66,692 मैला ढोने वालों की गणना की गई थी, लेकिन इस अनौपचारिक क्षेत्र में संलग्न कर्मियों की संख्या का सटीक अनुमान लगाना चुनौतीपूर्ण है।
  • नवीनतम ‘राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण, 2019’ के आँकड़ों के अनुसार, देश में 65% से अधिक घरों में निर्मित शौचालय ‘सेप्टिक टैंक या गड्ढों’ से संबद्ध नहीं हैं। शहरों व गाँवों के लिहाज़ से देखा जाए तो देश में 10 लाख से कम आबादी वाले करीब 68% शहरों तथा करीब 73% गाँवों के शौचालयों की भी यही स्थिति है।
  • अतः ‘स्वच्छ भारत मिशन’ (ग्रामीण और शहरी) एवं ‘अमृत मिशन’ (AMRUT) के दूसरे चरण का उद्देश्य स्वच्छ शौचालयों का निर्माण करना और कचरे के सुरक्षित उपचार एवं निपटान को प्राथमिकता देना है। यहाँ मूल बात यह है कि ये योजनाएँ स्वच्छता कर्मचारियों के कल्याण को ध्यान में रखकर लागू की जानी चाहिये।

स्वच्छता कर्मियों के कल्याण के लिये विभिन्न प्रयास

बैंडिकूट :

  • यह जेनरोबोटिक्स द्वारा निर्मित विश्व का पहला स्केवेंजर रोबोट है। इससे सीवर, सेप्टिक टैंक आदि में मानव का प्रवेश रोका जा सकेगा तथा ‘हाथ से मैला उठाने वाले कर्मियों के नियोजन का प्रतिषेध और उनका पुनर्वास अधिनियम, 2013’ का प्रभावी क्रियान्वयन सुनिश्चित किया जा सकेगा।
  • इस रोबोटिक मशीन को मूलतः मैनहोल के रास्ते सीवर की सफाई करने के लिये बनाया गया है। रोबोट में दो प्रमुख इकाइयाँ होती हैं– एक, स्टैंड यूनिट और दूसरी, रोबोटिक ड्रोन यूनिट।
  • ‘सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय’ हाथ से मैला उठाने वालों के पुनर्वास के लिये अपनी ‘संशोधित’ स्व-रोज़गार योजना के माध्यम से इस दिशा में प्रयास कर रहा है। वस्तुतः इस योजना के तहत एकमुश्त नकद सहायता, रियायती दरों पर ऋण, सब्सिडी और कौशल विकास प्रशिक्षण प्रदान किया जाता है।
  • ‘राष्ट्रीय सफाई कर्मचारी वित्त और विकास निगम’ स्थानीय निकायों के स्तर पर स्वच्छता क्षेत्र की क्षमता निर्माण का कार्य कर रहा है। इसके अंतर्गत सरकारी एजेंसियों को गाद (Scum) निकालने वाली मशीनें, इससे संबंधित ट्रक (Desludging Trucks) आदि उपलब्ध कराए जा रहे हैं। इसके अलावा, इन प्रयासों के अंतर्गत सफाई कर्मचारियों और उनके आश्रितों को वित्तीय सहायता भी प्रदान की जा रही है।
  • प्रस्तावित ‘मशीनीकृत स्वच्छता पारितंत्र के लिये राष्ट्रीय कार्रवाई’ (NAMSE) के अंतर्गत, स्वच्छता सेवाओं और निजी स्वच्छता सेवा संगठनों की देख-रेख के लिये ज़िला और स्थानीय निकाय के स्तर पर इकाइयाँ स्थापित की जाएँगी।
  • ये सभी पहलें समेकित से, रूप हाथ से मैला ढोने की प्रथा को समाप्त करने और सफाई कर्मियों का कल्याण को सुनिश्चित करने का मार्ग प्रशस्त करेंगी।

अस्पृश्यता और मैन्युअल स्कैवेंजिंग के निवारण से संबंधित प्रावधान एवं समितियाँ

  • भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14, 17, 19, 21, 23 और 47 सम्मिलित रूप से ‘अस्पृश्यता की प्रथा’ को समाप्त करते हैं। अनुच्छेद 17 में उल्लिखित है कि “अस्पृश्यता को समाप्त कर दिया गया है और इसका किसी भी रूप में अभ्यास प्रतिबंधित है। 'अस्पृश्यता' से उत्पन्न होने वाली किसी भी अक्षमता को लागू करना दंडनीय अपराध होगा।”
  • सर्वप्रथम मैला ढोने वालों की निर्वाह स्थिति की जाँच करने के लिये वर्ष 1949 में ‘वी.एन. बर्वे समिति’ गठित की गई थी। इसने इनकी स्थिति में सुधार की अनुशंसा की थी।
  • वर्ष 1957 में जाति विशेष के ‘हाथ से मैला उठाने के प्रथागत अधिकारों’ के उन्मूलन की जाँच करने के लिये ‘एन.आर. मलकानी समिति’ का गठन किया गया था।
  • ‘नागरिक अधिकार संरक्षण अधिनियम, 1955’ और ‘अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989’ अस्पृश्यता के लिये संकल्पित हैं।
  • ‘मैला ढोने वालों का नियोजन और शुष्क शौचालयों का निर्माण (निषेध) अधिनियम, 1993’ मैला ढोने के रोज़गार या सूखे शौचालयों के निर्माण को दंडनीय अपराध घोषित करता है।
  • हाथ से मैला उठाने वाले कर्मियों के नियोजन का प्रतिषेध और उनका पुनर्वास अधिनियम, 2013’ सभी प्रकार के हाथ से मैला ढोने के कार्यों को प्रतिबंधित करता है तथा उन लोगों के लिये दंड का प्रावधान करता है, जो इस अभ्यास को जारी रखते हैं। यह कानून वैकल्पिक आजीविका और अन्य सहायता प्रदान करने का प्रावधान भी करता है।
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