(प्रारंभिक परीक्षा : राष्ट्रीय महत्त्व की सामयिक घटनाएँ, आर्थिक और सामाजिक विकास)
(मुख्य परीक्षा : सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र 2 - सरकारी नीतियों और विभिन्न क्षेत्रों में विकास के लिये हस्तक्षेप और उनके अभिकल्पन तथा कार्यान्वयन के कारण उत्पन्न विषय।)
संदर्भ
- नीति आयोग ने भारत में ‘शहरी नियोजन क्षमता’ बढ़ाने के उपायों पर एक विस्तृत रिपोर्ट प्रस्तुत की है। इस रिपोर्ट का शीर्षक ‘भारत में शहरी नियोजन क्षमता में सुधार’ (Reforms in Urban Planning Capacity in India) है।
- इस रिपोर्ट को नीति आयोग ने संबंधित मंत्रालयों तथा शहरी एवं प्रादेशिक नियोजन के क्षेत्र में प्रतिष्ठित विशेषज्ञों के परामर्श से विकसित किया है।
- यह रिपोर्ट 9 माह की अवधि में किये गए व्यापक विचार-विमर्श और परामर्श का एक संक्षिप्त परिणाम प्रस्तुत करती है।
शहरी नियोजन क्षमता में सुधार की आवश्यकता
- कुल वैश्विक शहरी जनसंख्या में भारत की हिस्सेदारी 11 प्रतिशत है। वर्ष 2027 तक भारत, चीन को पीछे छोड़ कर सर्वाधिक जनसंख्या वाला राष्ट्र बन जाएगा।
- अनियोजित शहरीकरण भारतीय शहरों पर बहुत दबाव डालता है। वस्तुतः कोविड -19 महामारी ने शहरों के ‘नियोजन और प्रबंधन’ की आवश्यकता को रेखांकित किया है।
- शहरी नियोजन शहरों, नागरिकों और पर्यावरण के एकीकृत विकास की नींव है। हालाँकि, अब तक इस पर उचित ध्यान नहीं दिया गया है।
- मौजूदा शहरी ‘नियोजन एवं प्रशासन’ का ढाँचा बेहद जटिल है, जो अक्सर अस्पष्टता और जवाबदेही की कमी की ओर ले जाता है।
रिपोर्ट की सिफारिशें
1. स्वस्थ शहरों के नियोजन के लिये कार्यक्रम आधारित हस्तक्षेप
- प्रत्येक शहर को वर्ष 2030 तक 'सभी के लिये स्वस्थ शहर' बनने की आकांक्षा रखनी चाहिये।
- रिपोर्ट में 5 वर्ष की अवधि के लिये एक केंद्रीय क्षेत्रक योजना ‘500 स्वस्थ शहर कार्यक्रम’ लॉन्च करने की सिफारिश की गई है, जिसमें राज्यों और स्थानीय निकायों द्वारा संयुक्त रूप से प्राथमिकता वाले शहरों एवं कस्बों का चयन किया जाना चाहिये।
2. शहरी भूमि के इष्टतम उपयोग के लिये कार्यक्रम आधारित हस्तक्षेप
- प्रस्तावित ‘स्वस्थ शहर कार्यक्रम’ के तहत सभी शहरों और कस्बों की शहरी भूमि या नियोजन क्षेत्र की दक्षता को अधिकतम करने के लिये वैज्ञानिक साक्ष्य पर आधारित ‘विकास नियंत्रण विनियमों’ (Development Control Regulations) को मज़बूत करना चाहिये।
- रिपोर्ट इस उद्देश्य के लिये एक उप-योजना ‘विकास नियंत्रण विनियमों की तैयारी’ की सिफारिश करती है।
3. मानव संसाधन में अभिवृद्धि
- सार्वजनिक क्षेत्र में शहरी योजनाकारों की कमी को दूर करने के लिये रिपोर्ट में सिफारिश की गई है कि राज्यों और संघ राज्यक्षेत्रों को ‘नगर योजनाकारों’ के रिक्त पदों को भरने की आवश्यकता है।
- इसके अतिरिक्त, 3 से 5 वर्षों के लिये ‘लेटरल एंट्री’ के द्वारा 8268 अतिरिक्त नगर योजनाकारों के पदों को भरने की आवश्यकता भी हो सकती है।
4. शहरी नियोजन में योग्य पेशवरों की भागीदारी
- राज्य के नगर एवं ग्राम नियोजन विभागों को नगर नियोजकों की भारी कमी का सामना करना पड़ रहा है। विडंबना यह है कि कई राज्यों में नगर नियोजन से संबंधित नौकरियों के लिये आवश्यक मानदंडों को निर्धारित नहीं किया गया है।
- नगर नियोजन पदों पर योग्य उम्मीदवारों के प्रवेश को सुनिश्चित करने के लिये राज्यों को अपने भर्ती नियमों में अपेक्षित संशोधन करने की आवश्यकता है।
5. शहरी प्रशासन को पुनर्व्यवस्थित करना
- शहरी चुनौतियों को संबोधित करने के लिये अधिक ‘संस्थागत स्पष्टता और बहु-विषयक विशेषज्ञता’ लाने की आवश्यकता है। रिपोर्ट, वर्तमान शहरी नियोजन प्रशासन संरचना को फिर से पुनर्व्यवस्थित करने के लिये एक उच्चाधिकार समिति के गठन की सिफारिश करती है।
- उक्त प्रयास में जिन प्रमुख पहलुओं पर ध्यान देने की आवश्यकता होगी, वे हैं:
(i) विभिन्न प्राधिकरणों की भूमिकाओं और ज़िम्मेदारियों का स्पष्ट विभाजन तथा नियमों एवं विनियमों का उपयुक्त संशोधन;
(ii) अधिक गतिशील सांगठनिक संरचना का निर्माण तथा नगर योजनाकारों और अन्य विशेषज्ञों की नौकरी के विवरण का मानकीकरण;
(iii) सार्वजनिक भागीदारी और अंतर-एजेंसी के समन्वय को बढ़ाने के लिये प्रौद्योगिकी का व्यापक प्रयोग।
6. प्रादेशिक और शहरी नियोजन से संबंधित अधिनियमों में संशोधन
- अधिकांश राज्यों ने प्रादेशिक और शहरी अधिनियम बनाए हैं, जो उन्हें ‘मास्टर प्लान’ तैयार करने, क्रियान्वित करने तथा अधिसूचित करने में सक्षम बनाते हैं।
- हालाँकि, इन अधिनियमों की समीक्षा करने की आवश्यकता है। इसलिये राज्य स्तर पर एक शीर्ष समिति का गठन किया जाए, ताकि नियोजन संबंधी कानूनों की नियमित समीक्षा किया जा सके।
7. नियोजन में नागरिकों को शामिल करना
- मास्टर प्लान की तकनीकी दृढ़ता को बनाए रखना जितना महत्त्वपूर्ण है, नियोजन में नागरिकों की भागीदारी भी उतना ही महत्त्वपूर्ण है।
- अतः रिपोर्ट में शहरी नियोजन को बेहतर बनाने के लिये एक ‘नागरिक आउटरीच अभियान’ की सिफारिश की गई है।
8. निजी क्षेत्रक की भूमिका को बढ़ाना
- रिपोर्ट में सिफारिश की गई है कि देश में समग्र नियोजन क्षमता में सुधार करने के लिये निजी क्षेत्र की भूमिका बढ़ाए जाने की आवश्यकता है।
- इनमें ‘प्रौद्योगिकी परामर्श सेवाओं’ की खरीद के लिये उचित प्रक्रियाओं को अपनाना तथा सार्वजनिक क्षेत्र में परियोजना संरचना और कौशल प्रबंधन को मज़बूत करना शामिल है।
9. शहरी नियोजन शिक्षा प्रणाली को मज़बूत करना
- केंद्रीय विश्वविद्यालयों और प्रौद्योगिकी संस्थानों को योजनाकारों की आवश्यकता को पूरा करने के लिये स्नातकोत्तर डिग्री कार्यक्रम प्रारंभ करने की आवश्यकता है।
- समिति यह भी सिफारिश करती है कि ऐसे सभी संस्थान ग्रामीण विकास मंत्रालय, पंचायती राज मंत्रालय तथा संबंधित राज्य के ग्रामीण विकास विभागों / निदेशालयों के साथ समन्वय स्थापित करें।
10. मानव संसाधन को सुदृढ़ करने के उपाय
- रिपोर्ट में भारत सरकार के तहत एक सांविधिक निकाय के रूप में ‘नेशनल काउंसिल ऑफ टाउन एंड कंट्री प्लानर्स’ के गठन की सिफारिश की गई है।
- इसके अतिरिक्त, शहरी मामलों के मंत्रालय के ‘नेशनल अर्बन इनोवेशन स्टैक’ के अंतर्गत एक ‘नेशनल डिजिटल प्लेटफॉर्म ऑफ़ टाउन एंड कंट्री प्लानर्स’ बनाने का सुझाव भी दिया गया है।
- यह पोर्टल सभी योजनाकारों के ‘स्व-पंजीकरण’ में सहायक होगा तथा संभावित ‘नियोक्ताओं एवं शहरी योजनाकारों’ के लिये एक बाज़ार के रूप में विकसित होगा।