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आरंभिक सार्वजनिक निर्गम का विनियमन

(प्रारंभिक परीक्षा : आर्थिक घटनाक्रम)
(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 3 : संसाधनों को जुटाने से संबंधित विषय)

संदर्भ 

  • आरंभिक सार्वजनिक निर्गम (IPO) की प्रक्रिया में तेजी लाने के लिए भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (SEBI) ने मसौदा दस्तावेज दाखिल करते समय लीड मैनेजरों (LM) से अतिरिक्त जानकारी की मांग की है।
  • ड्राफ्ट रेड हेरिंग प्रॉस्पेक्टस (DRHP) को मंजूरी देने में सेबी को लगने वाला औसत समय वर्ष 2024 में घटकर 90 दिनों से भी कम हो गया है। DRHP एक ऐसा दस्तावेज है जिसे कंपनियों को सार्वजनिक धन तक पहुंच से पहले सेबी के पास दाखिल करना होता है। 

PROCESS

क्या है आई.पी.ओ. 

  • आई.पी.ओ. (Initial Public Offering) वह प्रक्रिया है जिसके माध्यम से एक निजी कंपनी पहली बार जनता को अपने शेयरों की पेशकाश करती है और सार्वजनिक रूप से कारोबार करने वाली कंपनी बन जाती है।
  • सार्वजनिक निर्गम के माध्यम से अपने शेयरों की पेशकश करने वाली कंपनी को 'जारीकर्ता' के रूप में जाना जाता है। आई.पी.ओ. के बाद शेयर बाजार में कंपनी के शेयर सूचीबद्ध हो जाते हैं और आगे भी निवेशकों द्वारा एक्सचेंज में कारोबार किया जा सकता है।

आई.पी.ओ. के प्रकार

  • आई.पी.ओ. दो प्रकार का होता है : निश्चित मूल्य निर्गम (Fixed Price Issue) और बुक बिल्डिंग निर्गम (Book Building Issue)।
  • इन आई.पी.ओ. के बीच प्रमुख अंतर निवेशकों को दी जाने वाली कीमत है। फिक्स्ड प्राइस इश्यूज में केवल एक कीमत होती है और सभी निवेशकों को केवल उस कीमत पर आवेदन करने की आवश्यकता होती है। 
  • बुक बिल्डिंग इश्यू में प्राइस बैंड होता है और निवेशकों के पास प्राइस बैंड के बीच किसी भी रेट पर बोली लगाने का ऑप्शन होता है।

आई.पी.ओ. के लिए निवेशकों के प्रकार

  • खुदरा व्यक्तिगत निवेशक (RII) : आई.पी.ओ. में 2 लाख रुपये से कम के शेयरों के लिए आवेदन करने वाले निवेशकों को खुदरा व्यक्तिगत निवेशक (Retail Individual Investors) के रूप में माना जाता है।
    • इस श्रेणी के निवेशकों को आई.पी.ओ. में 35 फीसदी का आवंटन होता है।
  • गैर-संस्थागत निवेशक (NII) और उच्च निवल संपत्ति वाले व्यक्ति (HNI) : 2 लाख रुपये से अधिक का निवेश करने की इच्छा रखने वाले व्यक्तियों को एच.एन.आई. के रूप में वर्गीकृत किया गया है। 
    • इसी तरह, जो संस्थान 2 लाख रुपये से अधिक की सदस्यता लेना चाहते हैं, उन्हें गैर-संस्थागत निवेशक (Non-institutional Investors) कहा जाता है। 
    • इन निवेशकों को क्यू.आई.बी. की तरह सेबी के साथ पंजीकृत होने की आवश्यकता नहीं है। इस श्रेणी के निवेशकों को आई.पी.ओ. में 15 फीसदी का आवंटन होता है।
  • योग्य संस्थागत बोलीदाता (QIBs) : वित्तीय संस्थानों, बैंकों, एफआईआई और एमएफ जो सेबी के साथ पंजीकृत हैं, उन्हें क्यू.आई.बी. (Qualified Institutional Bidders) कहा जाता है। आमतौर पर, आईपीओ में क्यूआईबी को 50% शेयर आवंटित किए जाते हैं।
  • पहला आधुनिक आई.पी.ओ. मार्च 1602 में लाया गया था जब डच ईस्ट इंडिया कंपनी ने पूंजी जुटाने के लिए जनता को कंपनी के शेयरों की पेशकश की।
  • भारत में रिलायंस 1977 में सार्वजनिक होने वाली पहली भारतीय कंपनी थी। जिसने नियामक - भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (सेबी) के गठन से पहले ही आई.पी.ओ. प्रस्तुत किया था। 
  • 1990 के दशक के दौरान, भारत ने विदेशी पूंजी के लिए अपने दरवाजे खोल दिए और आर्थिक उदारीकरण की यात्रा शुरू कर दी। इस युग में महत्वपूर्ण ऐतिहासिक आईपीओ की एक लहर दिखाई दी।

कंपनी के लिए आई.पी.ओ. लाने के लाभ

  • कंपनी के विकास और विस्तार के लिए धन : आई.पी.ओ. कंपनी को विकास और विस्तार के लिए धन जुटाने में सक्षम बनाता है। कंपनियों के लिए अपनी प्रतिभूतियों को स्टॉक एक्सचेंजों पर सूचीबद्ध करने का यह प्राथमिक कारण है।
    • इसके माध्यम से कंपनी को नई शेयर पूंजी प्राप्त होती है, जिसका उपयोग पूंजीगत व्यय और परिचालन क्षमता को बढ़ाकर कंपनी के लाभ को बढ़ाने के लिए किया जा सकता है।
    • इस निधि का उपयोग कंपनी की ऋण देनदारियों को पूरा करने के लिए भी किया जा सकता है।
  • मौजूदा शेयरधारकों को अलग होने का अवसर : सार्वजनिक होने से मौजूदा शेयरधारकों (प्रारंभिक निवेशकों सहित) को कंपनी में अपनी हिस्सेदारी खत्म करने में मदद मिल सकती है।
    • आई.पी.ओ. बिक्री के लिए प्रस्ताव के माध्यम से कंपनी में अपने शेयर जनता को पेश करने में सक्षम बनाता है, जिसके अनुसार मौजूदा शेयरधारक अपनी हिस्सेदारी आंशिक या पूरी तरह से बेच सकते हैं।
  • कंपनी की प्रतिष्ठा और विश्वसनीयता में वृद्धि : सूचीबद्ध होने के पश्चात, कंपनी सेबी द्वारा निर्धारित कुछ अनुपालनों और प्रकटीकरणों का पालन करने के दायित्व के अंतर्गत आती है, जिससे अच्छे कॉर्पोरेट प्रशासन प्रथाओं का कार्यान्वयन सुनिश्चित होता है और हितधारकों को धोखाधड़ी और कुप्रबंधन से सुरक्षा मिलती है।
    • इससे कंपनी के प्रबंधन और परिचालन में शेयरधारकों का विश्वास बढ़ाने में मदद मिलती है।
  • विविधीकरण : जब कोई कंपनी अपनी प्रतिभूतियों को सूचीबद्ध करती है, तो निवेशक किसी एक्सचेंज पर शेयर खरीद और बेच सकते हैं।
    • परिणामस्वरूप, विविध प्रकार के निवेशकों को शामिल होने का अवसर मिलता है और किसी भी एक निवेशक के पास कंपनी के अधिकांश शेयर का हिस्सा नहीं होता है।

नियामक और प्रमुख विनियम

  • सेबी (SEBI): कंपनी अधिनियम निर्दिष्ट करता है कि सेबी भारत में आई.पी.ओ. प्रक्रिया के लिए शासी प्राधिकरण है।
    • सेबी भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड अधिनियम, 1992 के प्रावधानों के अनुसार 12 अप्रैल, 1992 को स्थापित एक वैधानिक निकाय है।
  • स्टॉक एक्सचेंज : भारत में मुख्य रूप से बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज (BSE) और नेशनल स्टॉक एक्सचेंज (NSE) इलेक्ट्रॉनिक प्लेटफॉर्म हैं जिन पर शेयरों को सूचीबद्ध किया जाता है और बाद में कारोबार किया जाता है।
    • प्रतिभूति अनुबंध (विनियमन) अधिनियम, 1956 - स्टॉक एक्सचेंजों को मान्यता और विनियमित करता है।
  • कंपनी अधिनियम, 2013 : इस अधिनियम का अध्याय-III सार्वजनिक निर्गमों और उनके लिए अपनाई जाने वाली लिस्टिंग प्रक्रिया को नियंत्रित करता है। यह कंपनियों के लिए सार्वजनिक होने का मूल आधार निर्धारित करता है।
  • सेबी (सूचीबद्धता दायित्व और प्रकटीकरण आवश्यकताएं) विनियम, 2015 : इन्हें लोकप्रिय रूप से 'सूचीबद्धता विनियम' के रूप में जाना जाता है। ये सभी सूचीबद्ध संस्थाओं के लिए कॉर्पोरेट प्रशासन मानदंड निर्दिष्ट करते हैं।
  • इनसाइडर ट्रेडिंग कोड : सेबी (इनसाइडर ट्रेडिंग का निषेध) विनियम, 2015 बाजार की निष्पक्षता और प्रतिस्पर्धात्मकता सुनिश्चित करने तथा आम जनता को ज्ञात होने से पहले अंदरूनी सूचना के आधार पर शेयरों के व्यापार को नकारने के लिए पालन किए जाने वाले अपेक्षित मानदंडों को निर्धारित करता है।
  • निर्गम सदस्यता : यह IPO के लिए प्राप्त बोलियों की संख्या को संदर्भित करता है। इस संख्या के आधार पर, एक निर्गम को ओवर-सब्सक्राइब या अंडर-सब्सक्राइब माना जा सकता है।
  • अंडर-सब्सक्राइब्ड निर्गम : अगर शेयरों के लिए प्राप्त बोलियों की संख्या आई.पी.ओ. में पेश किए गए शेयरों की तुलना में कम है, तो इसे अंडर-सब्सक्राइब्ड निर्गम माना जाता है। 
    • इससे पता चलता है कि शेयरों की मांग कम है। अगर निर्गम 90% से कम सब्सक्राइब होता है, तो इसे बाजार से वापस ले लिया जाएगा।
  • ओवर-सब्सक्राइब्ड निर्गम :  यदि प्राप्त बोलियों की संख्या पेश किए गए शेयरों से अधिक है, तो निर्गम को ओवर-सब्सक्राइब माना जाता है। 
    • इससे पता चलता है कि कंपनी के शेयरों की मांग अधिक है और बोलीदाताओं को आवेदन किए गए शेयरों की संख्या से कम मिलेगा।
  • ग्रीन शू विकल्प : यह एक ऐसा विकल्प है जिसका उपयोग जारीकर्ता द्वारा ओवर-सब्सक्रिप्शन के मामले में किया जा सकता है। इसके तहत जारीकर्ता आई.पी.ओ. में 15 फीसदी तक अतिरिक्त शेयर जारी कर सकता है।
  • कट-ऑफ मूल्य : यह आई.पी.ओ. के दौरान प्राप्त बोलियों के आधार पर जारीकर्ता द्वारा तय किया गया निर्गम मूल्य है और एक बुक बिल्डिंग आई.पी.ओ. के मूल्य बैंड के बीच रहता है।
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