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शहरी क्षेत्रों में आवारा पशुओं का विनियमन  

संदर्भ

  • हाल ही में, गुजरात के शहरी क्षेत्रों में आवारा पशुओं को नियंत्रित करने के लिये गुजरात शहरी क्षेत्र में मवेशी नियंत्रण (पालन एवं आवाजाही) विधेयक, 2022 को विधानसभा में बहुमत से पारित किया गया। नया कानून गुजरात आवश्यक वस्तु (नियंत्रण) अधिनियम, 2005 का स्थान लेगा।
  • यह विधेयक, अधिनियम बनने के बाद गुजरात के नगर निगम वाले आठ प्रमुख शहरों अहमदाबाद, वडोदरा, सूरत, राजकोट, गांधीनगर, जामनगर, भावनगर और जूनागढ़ तथा नगरपालिकाओं वाले 162 कस्बों में लागू होगा।

आवारा पशुओं से संबंधित विद्यमान अन्य कानून

  • वर्तमान में गुजरात प्रांतीय नगर निगम अधिनियम, 1948 तथा गुजरात नगरपालिका अधिनियम, 1963 के द्वारा शहरी क्षेत्रों में पशु उपद्रव के नियंत्रण के लिये प्रावधान किया जाता है। 
  • नगर निगमों के अंतर्गत ‘पशु उपद्रव नियंत्रण विभाग’ (ANCD) द्वारा आवारा मवेशियों को पकड़ने, उन्हें मवेशीखाने (Cattle Pounds) में रखने, यदि मालिकों द्वारा एक सप्ताह के भीतर दावा नहीं किया जाता है, तो उन्हें जब्त करके पशु कल्याण के लिये कार्य कर रहे धर्मार्थ संगठन में भेजा जाता है।
  • ए.एन.सी.डी. गुजरात पुलिस अधिनियम, 1951 की धारा 91 के तहत मवेशियों पर अपना दावा करने वाले मालिकों पर आपराधिक कार्रवाई की जाती है। नगर निगम द्वारा जब्त किये गए मवेशियों पर अपना दावा करने वाले मालिकों से 1,000 रुपये जुर्माना और प्रति मवेशी प्रति दिन 700 रुपये तक रखरखाव लागत वसूलते हैं।

प्रस्तावित कानून के प्रावधान

  • प्रस्तावित कानून में भैंस, गाय, बछड़े, बैल, बकरी, भेड़ और गधों आदि को रखने के लिये स्थानीय प्राधिकरण से लाइसेंस प्राप्त करना अनिवार्य कर दिया गया है।
  • इस तरह का लाइसेंस प्राप्त करने के लिये पशु-मालिक को एक मवेशी-शेड का विवरण प्रस्तुत करना होगा, जहाँ वह अपने मवेशियों को रखेगा। इसके अलावा, मालिकों को प्रत्येक पशु को टैग करवाना और उसका विवरण स्थानीय प्राधिकरण को प्रस्तुत करना होगा। लाइसेंस प्राप्त पशु-शेड के बाहर किसी भी मवेशी को जब्त कर लिया जाएगा। 
  • यह विधेयक अधिसूचित क्षेत्रों में चारे की बिक्री को प्रतिबंधित करता है और उल्लंघन के लिये चारा-विक्रेताओं के दंड का प्रावधान करता है। 
  • प्रस्तावित कानून में यह प्रावधान किया गया है कि स्थानीय प्राधिकरण एकमुश्त शुल्क का भुगतान कर मालधारियों (पशुपालकों) से अनुत्पादक या अवांछित मवेशियों को प्राप्त कर सकते हैं और उन्हें सरकारी, निजी हितधारकों व नागरिक समाज की सहायता से स्थापित किये जाने वाले स्थायी पशु-शेड में रख सकते हैं।
  • इसके अतिरिक्त, स्थानीय प्राधिकरण के पास जब्ती के दौरान मवेशियों की मृत्यु होने की स्थिति में शवों के निपटान के लिये पशुपालकों को भुगतान करना होगा। 

दंडात्मक प्रावधान

  • प्रस्तावित कानून के तहत दर्ज अपराध संज्ञेय लेकिन जमानती होंगे। इस अधिनियम के अधिसूचित होने के तीन महीने के भीतर, शहरी क्षेत्रों में पशु-मालिकों को लाइसेंस प्राप्त करना अनिवार्य होगा। इसके बाद अगर किसी व्यक्ति को बिना लाइसेंस के मवेशी रखने का दोषी पाया जाता है, तो उसे एक वर्ष की कैद या 20,000 रुपये तक का जुर्माना या दोनों हो सकता है।
  • यदि कोई पशु-मालिक अपने जब्त किये गए मवेशियों पर दावा करता है, तो उसे पहली बार में 5,000 रुपये और दूसरी बार में 10,000 रुपये का भुगतान करना होगा।
  • यदि उसी मवेशी को तीसरी बार जब्त किया जाता है, तो 15,000 रुपये का जुर्माना होगा और उसके मालिक के खिलाफ आपराधिक मामला दर्ज किया जाएगा।

खतरे की गंभीरता

  • राज्य के लगभग सभी बड़े शहर और कस्बे आवारा पशुओं की समस्या से जूझ रहे हैं। पिछले आठ वर्षों में, राजकोट नगर निगम ने शहर की सड़कों पर भटक रहे 72,000 मवेशियों को जब्त किया है। 
  • शहर की सड़कों पर मवेशियों के कारण होने वाली दुर्घटनाओं से शारीरिक और मानव जीवन की क्षति के साथ-साथ भारी वित्तीय लागत की समस्या का सामना भी करना पड़ता है।
  • विदित है कि ग्रामीण क्षेत्रों में बैलों एवं अनुत्पादक गायों सहित जंगली मवेशियों द्वारा तैयार फसलों को नष्ट कर दिया जाता है।

प्रस्तावित कानून का विरोध

  • गुजरात के मालधारी समुदाय या चरवाहे प्रस्तावित कानून का विरोध कर रहे हैं। शहरी क्षेत्रों के अन्य पिछड़ा वर्ग में शामिल इस समुदाय में रबारी, भरवाड़, गढ़वी, अहीर और जाट मुस्लिम समुदायों के सदस्य आते हैं। 
  • इस समुदाय की मांग है कि नया कानून बनाने से पहले उन्हें अपने मवेशियों को रखने के लिये पर्याप्त स्थान उपलब्ध कराया जाए अन्यथा वे अपनी आजीविका का स्रोत खो देंगे। 
  • विदित है कि यह समुदाय गुजरात की आबादी का लगभग 10% हैं,  जो मुख्य रूप से सौराष्ट्र, कच्छ और उत्तरी गुजरात में निवास करते हैं।
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