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जनगणना आधारित आँकड़ों की प्रासंगिकता

(प्रारंभिक परीक्षा: आर्थिक और सामाजिक विकास- जनसांख्यिकी और सामाजिक क्षेत्र में की गई पहल आदि)
(मुख्य परीक्षा: सामान्य अध्ययन प्रश्पत्र-2: विषय- केंद्र एवं राज्यों द्वारा जनसँख्या के अति सम्वेदनशील वर्गों के लिये कल्याणकारी योजनाएँ और इन योजनाओं का कार्य निष्पादन) 

संदर्भ

  • भारत में विभिन्न हितधारक जाति आधारित जनगणना कराने पर बहस करने में व्यस्त हैं, जबकि महामारी के कारण ‘नियमित जनगणना’ भी समय से आयोजित नहीं की जा सकी है।
  • भारत में जनगणना की शुरुआत होने के बाद से ऐसा पहली बार हुआ है, जब दशकीय जनगणना समय से आयोजित नहीं की जा सकी है।
  • इसे विडंबना ही कहा जाएगा कि इस दौरान विभिन्न चुनाव संचालित किये गए और लोग कोविड-19 नियमों का उल्लंघन करते हुए चुनावी रैलियों में एकत्रित हुए।

जनगणना संबंधी आँकड़ों का औचित्य 

  • जनगणना आयोजित कराने के दौरान इसके डिज़ाइन में सुधार किया जा सकता है। वर्तमान समय को देखते हुए एक ‘डिजिटल जनगणना’ इस समय में बेहतर गुणवत्ता, कवरेज और त्वरित परिणाम सुनिश्चित करेगी।
  • जनगणना आयोजित कराने में अनिश्चितता को देखते हुए जनगणना के भीतर जातिगत गणना करने की माँग करना केवल भ्रम को बढ़ाएगा।
  • उल्लेखनीय है कि जनगणना संबंधी आँकड़ों की नीति-निर्माण में व्यापक भूमिका होती है और यह कवायद केवल जनसंख्या की गिनती तक ही सीमित नहीं होता है।
  • हालाँकि, एकत्र की गई सीमित सूचनाएँ और जनगणना संबंधी आँकड़ों के कम उपयोग ने नीति निर्माण में जनगणना की भूमिका को कम कर दिया है।

भारत में जनगणना

  • भारत में वर्ष 1872 से नियमित दशकीय जनगणनाओं की एक लंबी परंपरा रही है। विगत जनगणना वर्ष 2011 में संपन्न हुई थी, जबकि अगली जनसंख्या वर्ष 2021 में प्रस्तावित है।
  • ये जनगणना वर्ष 1872 से सतत् क्रम में 16वीं जनगणना होगी तथा स्वतंत्रता के पश्चात् 8वीं जनगणना है। वर्ष 2021 की जनगणना को दो चरणों में पूरा किया जाएगा।
  • प्रथम चरण में मकान सूचीकरण तथा मकानों की गणना तथा द्वितीय चरण में जनांकिकीय, सामाजिक-सांस्कृतिक, आर्थिक मापदंडों के साथ प्रवास और प्रजनन संबधी अनेक आँकड़ें एकत्रित किये जाएँगे। 
  • जनगणना संबंधी कार्य भारत के महारजिस्ट्रार एवं जनगणना के कार्यालय द्वारा किया जाता है। यह गृह मंत्रालय से संबद्ध एक कार्यालय है। 
  • भारत का महारजिस्ट्रार एवं जनगणना का कार्यालय निम्नलिखित कार्य करवाता है:-
    1. मकानों तथा जनसंख्या की गणना
    2. सिविल पंजीकरण प्रणाली
    3. नमूना पंजीकरण प्रणाली
    4. राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर
    5. मातृभाषा सर्वेक्षण

घटती सार्थकता

  • जनगणना का महत्त्व तब और कम हो जाता है, जब भारत सरकार के विभिन्न मंत्रालय बड़े पैमाने पर सर्वेक्षणों का वित्तपोषण करते हैं। गौरतलब है कि ये सर्वेक्षण समय-समय पर आवश्यकतानुसार आयोजित किये जाते हैं।
  • हालाँकि जनगणना के महत्त्व खोने का मूल कारण यह है कि एकत्रित आँकड़ों में प्रौद्योगिकी का उपयोग होने के बावजूद भी इसे समय पर प्रसारित नहीं किया जाता है।
  • इसका प्राथमिक कारण यह है कि सरकार अपने लाभ-हानि के आधार पर जनगणना के आँकड़ों को जारी करती है। इसका मुख्य उद्देश्य ये होता है कि जनगणना के आँकड़ों में उसके ‘राजनीतिक एजेंडे’ को नुकसान पहुँचाने की क्षमता है या नहीं।
  • उदाहरणार्थ, वर्ष 2011 की जनगणना में एकत्र किये गए ‘आंतरिक प्रवास’ संबंधी आँकड़ों को तभी सार्वजनिक किया गया, जब मुख्य आर्थिक सलाहकार ने वर्ष 2017 के आर्थिक सर्वेक्षण में प्रवास संबंधी एक अध्याय लिखने का निर्णय किया था।
  • ध्यातव्य है कि एक सदी से भी अधिक पुराना यह दशकीय आयोजन देश के लिये गौरव और विशिष्टता का विषय रहा है लेकिन नीति निर्माताओं द्वारा इसकी क्षमता का शायद ही उपयोग किया गया है।
  • विगत कुछ दशकों से सारा सरोकार सिर्फ जातियों और अल्पसंख्यकों को गिनने तक सीमित हो गया है क्योंकि इससे राजनीतिज्ञों के हितों की पूर्ति होती है।

जनगणना का महत्त्व

  • जनगणना आधारित जानकारी ऐसे समय में महत्त्वपूर्ण होती है, जब रोज़गार, शिक्षा आदि जैसी विभिन्न विशेषताओं के साथ जनसंख्या परिवर्तन की गतिशीलता को मापने का कोई वैकल्पिक तरीका नहीं होता है।
  • हालाँकि इस तथ्य से भी इनकार नहीं किया जा सकता है कि सूचना के वैकल्पिक स्रोतों ने जनांकिकीय गतिशीलता की समझ को समृद्ध किया है तथा कार्यक्रम व नीति केंद्रित हस्तक्षेप की सुविधा भी प्रदान की है।
  • नौकरशाही विनियमों के कारण सूचना देर से जारी की जाती है। साथ ही, आँकड़ों के सूक्ष्म अन्वेषण में वैज्ञानिक समुदाय की रुचि में कमी भी देखी जा रही है।
  • बुनियादी जनांकिकीय विशेषताएँ, जिनके आधार पर जनगणना आँकड़ों को संरचित किया जाता है, वे भविष्य के रुझानों को समझने, व्याख्यायित तथा अन्वेषण करने में सहायक होती हैं।
  • इसके अतिरिक्त, जनगणना के आँकड़ों का निरीक्षण नीति-निर्माताओं को समय के साथ बदलती जनांकिकीय गतिशीलता के संदर्भ में भी जानकारी प्रदान करता है।
  • वस्तुतः जनगणना के प्रति आकर्षण और जुड़ाव, दो चिंताओं तक सीमित रहा है, पहला  लिंगानुपात और कार्य भागीदारी (विशेष रूप से महिलाओं की कार्य भागीदारी)।
  • यदि जनगणना के आँकड़ों का पक्षपात रहित और प्रतिनिधित्व संबंधी मुद्दों पर व्यवस्थित रूप से अध्ययन किया जाए, तो इसमें सूचनाओं से संबंधित बहुत अधिक संभावनाएँ व्याप्त हैं।

विशेषीकृत सूचनाएँ

  • जनगणना-आधारित सूचनाओं का एकत्रीकरण मुख्यतः निवास, आयु, लिंग, प्रशासनिक इकाइयाँ, अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों तथा धर्म के आधार पर किया जाता है।
  • लोगों की विशिष्टता आधारित सूचना एकत्रित करने का उद्देश्य नीति निर्माताओं को नीतिगत हस्तक्षेप करने में मदद करना है।
  • वस्तुतः नीतिगत हस्तक्षेप के लिये जाति या धर्म संबंधी आँकड़ें एकत्रित करने से संरक्षण का परिवेश उत्पन्न होता है, जो राजनीतिक दृष्टि से वोट-बैंक की राजनीति को बढ़ावा दे सकता है।
  • हालाँकि, इस तथ्य से इनकार नहीं किया जा सकता है कि समाज में जातिगत विषमताएँ मौजूद नहीं हैं। परंतुसे संबोधित करने की आवश्यकता है, केवल आँकड़े एकत्रित करने से इस समस्या को हल नहीं किया जा सकता

भावी राह

  • जाति और धर्म जैसी ‘निर्धारित पहचानों’ की गणना करना, ‘अर्जित पहचानों’ की तुलना में कम प्रगतिशील है। उल्लेखनीय है कि अर्जित पहचानों में शिक्षा, पेशा या भूमि, घर तथा अन्य टिकाऊ उपभोक्ता वस्तुओं का स्वामित्व शामिल होता है।
  • इसके अतिरिक्त, किसी भी प्रतिकूलता को एक निर्धारित पहचान के साथ जोड़ने से  नीतिगत हस्तक्षेप में मदद मिल सकती है लेकिन ऐसा प्रयास किसी पहचान की परवाह किये बिना प्रतिकूलता को दूर करने पर होना चाहिये। दूसरे शब्दों में, ज़रूरी नहीं कि अन्याय या गलत कार्यों को ‘निर्धारित पहचान’ से जोड़ा जाए।
  • किसी विशेष पहचान से परे जाकर परिस्थितिजन्य विफलता की जाँच करना, चिंताओं को दूर करने में अधिक प्रभावी हो सकता है।
  • उक्त अवधारणा को इस आधार पर समझा जा सकता है कि किसी समुदाय की उच्च प्रजनन दर के लिये उसे दोषी ठहराए जाने की बजाय उसकी सामाजिक-आर्थिक परिस्थिति का विश्लेषण करना ज़्यादा उचित होगा।

निष्कर्ष

निष्कर्षतः कहा जा सकता है कि जनगणना और विशिष्टताएँ समान रूप से महत्त्वपूर्ण हैं लेकिन परिवर्तनशील विशिष्टताएँ रूपांतरण की कुंजी होती हैं।

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