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रीसस बंदर का क्लोन

प्रारंभिक परीक्षा: क्लोनिंग, ट्रोफोब्लास्ट कोशिका, आर्टिफिशियल एम्ब्र्यो ट्विनिंग, सोमेटिक सेल न्यूक्लीयर ट्रांसफर
मुख्य परीक्षा: सामान्य अध्ययन, पेपर-3 (विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी- विकास एवं अनुप्रयोग)

संदर्भ:

चीन के वैज्ञानिकों ने रीसस बंदर का क्लोन बनाने का दावा किया है। यह दो वर्षों से जीवित है, जिसका नाम ‘रेट्रो’ रखा गया है।

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प्रमुख बिंदु:

  • यह शोध नेचर कम्यूनिकेशंस नामक पत्रिका में प्रकाशित हुआ है।
  • रेट्रो को तैयार करने के लिए उस तकनीक में बदलाव किया गया, जिससे ‘डाली’ नामक भेड़ का क्लोन बनाया गया था।
  • वर्ष 1996 में वैज्ञानिकों ने सोमैटिक सेल न्यूक्लियर ट्रांसफर नामक तकनीक से डाली का क्लोन बनाया था।
  • अब तक 20 से ज्यादा जानवरों के क्लोन बनाए जा चुके है।  
  • बंदर का क्लोन बनाने में विज्ञानियों को अब तक सफलता नहीं मिल पाई थी।
  • एक बार पहले इस बंदर के क्लोन का जन्म हुआ था।
    • यह 35 भ्रूणों में से एक अकेला बंदर जन्मा था। लेकिन उसकी एक ही दिन में मौत हो गई थी।
  • इसकी असफलता के मूल में क्लोन किए गए भ्रूण के प्लेसेंटा में समस्याएँ देखी गई थीं।
  • रेट्रो का क्लोन बनाने में शोधकर्ताओं ने उन कोशिकाओं (ट्रोफोब्लास्ट कोशिकाएं) को ही बदल दिया, जो बाद में प्लेसेंटा बनती हैं। 

ट्रोफोब्लास्ट कोशिकाएं:

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  • यह कोशिकाएं भ्रूण के विकास के लिए पोषक तत्व सप्लाई करती हैं।
  • ये पोषक तत्व ही भ्रूण को आक्सीजन और जरूरी तत्व उपलब्ध कराते हैं।

क्लोन या क्लोनिंग:

  • क्लोन एक ऐसी जैविक रचना है, जो एकमात्र जनक (माता अथवा पिता) से अलैंगिक विधि द्वारा उत्पन्न होता है।
  • विकसित ‘क्लोन‘ अपने जनक से शारीरिक और आनुवंशिक रूप से पूर्णत: समरूप होता है। 
  • इस प्रकार किसी भी जीव का प्रतिरूप बनाना क्लोनिंग कहलाता है।
  • क्लोनिंग द्वारा किसी कोशिका, कोई अन्य जीवित अंग या एक संपूर्ण जीव के शुद्ध प्रतिरूप का निर्माण किया जाता है।

क्लोंनिंग की तकनीक:

  1. आर्टिफिशियल एम्ब्र्यो ट्विनिंग (Artificial Embryo Twining)   
  2. सोमेटिक सेल न्यूक्लीयर ट्रांसफर (Somatic Cell Nuclear Transfer)

आर्टिफिशियल एम्ब्र्यो ट्विनिंग (Artificial Embryo Twining):

zygote

  • इसमें जनन की प्राकृतिक प्रक्रिया का ही अनुसरण किया जाता है।
  • यह प्रक्रिया मां के गर्भ की जगह पेट्री डिश (Petri Dish) में पूरी की जाती है।
  • पेट्री डिश में स्पर्म और अंडाणु के मिलने से विकसित भ्रूण कोशिकाओं को आरंभिक चरण में ही अलग कर लिया जाता है।
  • इन भ्रूण कोशिकाओं को अल्प समय तक पेट्री डिश में विकसित होने के बाद सरोगेट मां के गर्भ में धारण कराया जाता है।
  • एक ही निषेचित अंडे के विभाजन से जुड़वां बच्चों के विकसित होने के कारण वे दोनों अनुवांशिक रूप से समान होते हैं।

सोमेटिक सेल न्यूक्लीयर ट्रांसफर (Somatic Cell Nuclear Transfer, SCNT):

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  • यह क्लोन करने की आधुनिक तकनीक है।
  • इसके द्वारा भी किसी जीव का क्लोन तैयार होता है। 
  • इस प्रक्रिया में कायिक कोशिका (Somatic Cell) का किसी जीव से निष्कासन कर, उसके केन्द्रक को निकाल लिया जाता है।
  • अंडाणु (egg cell) से केंद्रक एवं सारे DNA को निकाल कर उसमें कायिक कोशिका   से निकाले गए केंद्रक को डाल दिया जाता है।

cloning

  • इससे यह निषेचित अंडे की तरह व्यवहार प्रदर्शित करने लगते हैं।
  • निषेचन क्रिया प्रारंभ करने हेतु इन पर विद्युत तरंगे प्रवाहित की जाती हैं, जिससे कोशिका विभाजन शुरू हो जाता है।
  • पूर्ण विकसित अंडाणु को मादा के गर्भ में आरोपित कराकर समरूप क्लोन प्राप्त किया जाता है।

क्लोनिंग के प्रकार:

1. रिप्रोडक्टिव क्लोनिंग (Reproductive Cloning):

इसके अंतर्गत कायिक कोशिका स्थानान्तरण तकनीक या अन्य क्लोनिंग तकनीकों का उपयोग कर किसी जीव की प्रतिक्रति तैयार की जाती है।

2. थेराप्यूटिक क्लोनिंग (Therapeutic Cloning):

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इसके अंतर्गत क्षतिग्रस्त ऊतकों या अंगों को स्थानांतरित करने या उनमें सुधार करने के लिए  भ्रूणीय स्तंभ कोशिकाओं का उत्पादन किया जाता है।

3. जीन क्लोनिंग या आणिवक क्लोनिंग:

इसके अंतर्गत पहले जीन-अभियांत्रिकी के प्रयोग से ट्रांसजेनिक बैक्टीरिया का निर्माण किया जाता है, फिर उस आनुवांशिक रूप से संशोधित बैक्टीरिया के क्लोन प्राप्त किये जाते हैं।

स्तंभ कोशिका (Stem Cell):

यह जीवों में पाई जाने वाली कोशिकाओं का एक समूह है, जो समसूत्री विभाजन द्वारा विभिन्न प्रकार की कोशिकाओं को जन्म दे सकता है। इन कोशिकाओं में अलग-अलग प्रकार की अनेक कोशिकाओं में विभाजित होने की क्षमता होती है।

क्लोनिंग के लाभ:

  • पौधों की वृद्धि, रोग-निरोधक व रसायन-प्रतिरोधी क्षमता को उपयुक्तता प्रदान की जा सकती है।
  • विभिन्न जलवायुविक एवं प्रतिकूल कृषि मौसम दशाओं में उत्पादकता प्रदान करने वाली पादप-प्रजातियों का विकास संभव है।
    • जैसे- मरुस्थल में जल्दी से बढ़ने वाले पादपों की किस्मों को इसके तकनीक के द्वारा तैयार करना। 
  • क्लोनिंग तकनीक को राष्ट्रीय महत्व के वन-वृक्षों की फसल के विकास में प्रभावी माना गया है।
  • इस तकनीक की मदद से जानवरों की अच्छी नस्लों का क्लोन किया जा सकता है।
  • विलुप्तप्राय पशु पक्षियों का क्लोन तैयार कर उन्हें विलुप्त होने से बचाया जा सकता है।
  • इस तकनीक की मदद से प्लास्टिक सर्जरी आसानी से की जा सकती है।
  • इस तकनीक से इच्छुक व्यक्ति की अस्थि, मज्जा, वसा, कार्टिलिज और कोशिकाओं के समान जैविक संरचना का प्रतिरूप तैयार करना संभव है।
  • किसी दुर्घटना में व्यक्ति के क्षत-विक्षत अंगों को स्वस्थ किया जा सकता है।
  • इससे अंग प्रत्यारोपण सहज हो जाएगा।
  • कैंसर, हेपेटाइटिस और हृदय रोग जैसी कई खतरनाक बीमारियों के इलाज में सहायता मिलेगी।

क्लोनिंग से हानि:

  • इस तकनीक के कारण मानव जनसंख्या में विविधता हतोत्साहित होगी।
  • यह वर्तमान सामाजिक संरचना जैसे परिवार, विवाह, पारिवारिक सम्बन्ध आदि को नष्ट कर सकता है।
  • व्यक्ति की पहचान करना कठिन हो सकता है।
  • अपराध को बढ़ावा मिलेगा।
  • सफलता दर कम होने के कारण यह प्रक्रिया जानवरों को पीड़ित भी कर सकती है। 
  • वर्तमान समय में होने वाले शोध और विकास के आधार पर भविष्य में होने वाले कुप्रभावों का अन्दाजा नहीं लगाया जा सकता है।

भारत में क्लोनिंग:  

  • वर्ष 2009 में National Dairy Research Institute (NDRI) करनाल के वैज्ञानिकों ने भैंस के प्रथम क्लोन ‘समरूपा’ और उसके बाद ‘गरिमा’ को विकसित किया था। 
  • वर्ष 2013 में क्लोन भैंस ‘गरिमा II’ ने ‘महिमा’ को जन्म दिया था।

प्रश्न:- क्लोनिंग के सम्बन्ध में, निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए:

  1. किसी भी जीव का प्रतिरूप बनाना क्लोनिंग कहलाता है।
  2. क्लोन एकमात्र जनक (माता अथवा पिता) से लैंगिक विधि द्वारा उत्पन्न होता है।      
  3. क्लोन अपने जनक से शारीरिक रूप से समरूप होता है न कि आनुवंशिक रूप से। 

उपर्युक्त में से कितना/कितने कथन सही है/हैं?

(a) केवल एक

(b) केवल दो

(c) सभी  तीनों

(d) कोई नहीं

उत्तर- (a)

मुख्य परीक्षा के लिए प्रश्न: क्लोनिंग को परिभाषित करते हुए इसके लाभ और हानि की चर्चा कीजिए।

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