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पशुपालन में महिलाओं की भूमिका

(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नप्रत्र-3 : पशुपालन संबंधी अर्थशास्त्र)

संदर्भ   

हाल ही में, 15 अक्तूबर को अंतर्राष्ट्रीय ग्रामीण महिला दिवस का आयोजन किया गया। यह अंतर्राष्ट्रीय दिवस पशुपालन में महिलाओं की भूमिका को पहचानने और पशुधन विकास के सभी पहलुओं में महिलाओं को शामिल करने की आवश्यकता पर बल देता है।  

पशुधन और महिलाएँ 

  • पशुधन क्षेत्र भारत की ग्रामीण अर्थव्यवस्था के सबसे तेजी से बढ़ते घटकों में से एक है, जो वर्ष 2018-19 में राष्ट्रीय आय का 5% और कृषि सकल घरेलू उत्पाद का 28% है। पिछले छह वर्षों में, पशुधन क्षेत्र में 7.9% (स्थिर कीमतों पर), जबकि कृषि कार्य में 2% की वृद्धि हुई। 
  • यह व्यापक रूप से स्वीकृत है कि ग्रामीण क्षेत्रों में अधिकांश महिला श्रमिक (72%) कृषि गतिविधियों में सलंग्न हैं। हालांकि डेयरी सहकारी समितियों में व्यापक भागीदारी के बावजूद पशुधन अर्थव्यवस्था में महिलाओं की भूमिका को व्यापक रूप से नहीं जाना गया है और न ही इस पर कोई विशेष चर्चा होती है।
  • वर्ष 2015-16 में डेयरी सहकारी समितियों में पाँच मिलियन महिला सदस्य थीं, जो वर्ष 2020-21 में बढ़कर 5.4 मिलियन हो गई। विदित है कि वर्ष 2020-21 में डेयरी उत्पादक सहकारी समितियों के सभी सदस्यों में महिलाओं की हिस्सेदारी 31% थी।
  • भारत में महिला डेयरी सहकारी समितियों की संख्या वर्ष 2012 में 18,954 से बढ़कर वर्ष 2015-16 में 32,092 हो गई है।

महिला पशुपालकों की भूमिका

  • वर्ष 2011-12 के रोजगार और बेरोजगारी सर्वेक्षण के अनुसार, 12 मिलियन ग्रामीण महिलाएँ पशुधन पालन में कार्यरत थीं।
  • जबकि वर्ष 2019 में राष्ट्रीय समय उपयोग सर्वेक्षण (National Time Use Survey) के आँकड़ों के अनुसार वास्तव में पशुधन अर्थव्यवस्था में लगी महिलाएँ आधिकारिक अनुमान से चार गुना अधिक अर्थात् लगभग 48 मिलियन थीं। 

समय उपयोग सर्वेक्षण

समय उपयोग सर्वेक्षण (Time Use Survey) आम लोगों द्वारा विभिन्न गतिविधियों पर समय के उपयोग को मापने के लिये एक रूपरेखा प्रदान करता है। यह मानव गतिविधियों के विभिन्न पहलुओं पर बिताए गए समय के बारे में जानकारी देता है,चाहे वह वैतनिक हो या अवैतनिक। विदित है कि राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (एनएसओ) ने जनवरी - दिसंबर, 2019 के दौरान भारत में पहली बार इस सर्वेक्षण का आयोजन किया था।

  • वर्ष 2013 की राष्ट्रीय पशुधन नीति (NLP) का उद्देश्य पशुधन उत्पादन और उत्पादकता में सतत् वृद्धि करना है। इस नीति के अनुसार पशुधन क्षेत्र के कुल श्रम में लगभग 70% हिस्सेदारी महिलाओं की है। 
  • वर्ष 2014-15 में शुरू किये गए राष्ट्रीय पशुधन मिशन (NLM) का उद्देश्य पशुधन क्षेत्र के विकास के लिये चारे की उपलब्धता, विस्तार सेवाएँ (Extension Services) एवं पशुपालकों को ऋण सुविधाएँ उपलब्ध कराने पर ध्यान केंद्रित करना है।  

प्रमुख बाधाएँ 

  • पशुपालन संबंधी व्यापक आँकड़ों की कमी के कारण महिला पशुपालक नीति निर्माताओं की नीतियों में शामिल नहीं होते हैं। 
  • महिला पशुपालकों तक विस्तार सेवाओं की पहुँच नहीं होती है। आधिकारिक रिपोर्टों के अनुसार, वर्ष 2021 में देश भर में 80,000 पशुपालकों को प्रशिक्षित किया गया था, लेकिन इसमें कितनी महिला किसान थीं, इसकी कोई जानकारी नहीं है। 
  • विभिन्न सर्वेक्षणों के अनुसार निर्धन परिवारों की महिलाओं को बैंकों से पशुधन खरीदने के लिये ऋण लेने में कई बाधाओं का सामना करना पड़ता है। वर्ष 2020-22 के दौरान किसान क्रेडिट कार्ड (KCC) योजना के तहत पशुपालकों को लगभग 15 लाख नए के.सी.सी. प्रदान किये गए। इसमें भी महिला किसानों के संबंध में कोई जानकारी उपलब्ध नहीं है। 
  • महिला पशुपालकों के पास पशुओं के नस्ल चयन एवं पशु चिकित्सा देखभाल पर तकनीकी ज्ञान की कमी देखी जा सकती है।  
  • महिलाओं को डेयरी बोर्डों की संरचना और कार्यों के बारे में जानकारी कम होती है। साथ ही, महिलाओं की डेयरी सहकारी समितियों में भी निर्णय पुरुषों द्वारा ही लिये जाते हैं।  

निष्कर्ष 

निष्कर्षतः कहा जा जा सकता है कि आधिकारिक आँकड़ों में महिला पशुपालकों की अनुपस्थिति के कारण नीति निर्माताओं द्वारा इस क्षेत्र में महिलाओं के योगदान को ठीक से आंकलित नहीं किया जा सका है। पशुधन अर्थव्यवस्था के लिये महिलाओं का श्रम अति महत्त्वपूर्ण है। अतः महिलाओं को निर्णय लेने और पशुधन क्षेत्र के विकास के प्रत्येक चरण में शामिल किया जाना चाहिये।

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