New
July Offer: Upto 75% Discount on all UPSC & PCS Courses | Offer Valid : 5 - 12 July 2024 | Call: 9555124124

कानून का शासन बनाम स्वतंत्रता का अधिकार

प्रारंभिक परीक्षा- अनु. 14, अनु. 21, अनु. 142
मुख्य परीक्षा- सामान्य अध्ययन, पेपर- 2

संदर्भ-

  • 8 जनवरी, 2024 को सुप्रीम कोर्ट ने बिलकिस बानो मामले में दोषियों को छूट देने के गुजरात सरकार के फैसले को रद्द कर दिया।

law

मुख्य बिंदु-

  • सुप्रीम कोर्ट ने अनु. 21 के तहत मौलिक अधिकार के रूप में व्यक्तिगत स्वतंत्रता के महत्व को स्वीकार किया।
  • सुप्रीम कोर्ट ने इस सवाल का भी समाधान करने की भी कोशिश की कि क्या अनु. 21 पर विधि का शासन लागू हो सकता है।

अनुच्छेद -21 – 

  • किसी व्यक्ति को उसके प्राण या दैहिक स्वतंत्रता से विधि द्वारा स्थापित प्रक्रिया के अनुसार ही वंचित किया जाएगा अन्यथा नहीं। 
  • अनुच्छेद 21 के तहत सिर्फ मनमानी कार्यकारी प्रक्रिया के विरुद्ध सुरक्षा उपलब्ध है न कि विधानमंडलीय प्रक्रिया के विरुद्ध।
  • इसने इस मुद्दे को भी रेखांकित किया कि क्या दोषियों को वापस जेल भेजा जाना चाहिए या उन्हें स्वतंत्रता का लाभ दिया जाना चाहिए, जबकि उनकी रिहाई का आधार "अवैध" और "अधिकार क्षेत्र से बाहर" था।
  • पीठ दोषियों की उस याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें उन्होंने संविधान के अनु. 142 के तहत अपनी विशेष शक्तियों का प्रयोग करने की मांग की थी।

अनु. 142-

  • अनु. 142 सुप्रीम कोर्ट को विवेकाधीन शक्ति प्रदान करता है।
  • इसके अनुसार, सर्वोच्च अदालत अपने अधिकार क्षेत्र का प्रयोग करते हुए ऐसा निर्देश दे सकता है, जो उसके समक्ष लंबित किसी भी मामले या मामलों में पूर्ण न्याय सुनिश्चित करने के लिये आवश्यक हो।
  • जिस विषय पर क़ानून नहीं बना है, सुप्रीम कोर्ट अनु. 142 के तहत उस पर अपना फ़ैसला दे सकता है।
  • दोषियों ने मांग की कि उन्हें अगस्त, 2022 में उनकी रिहाई के आदेश को रद्द करने के बावजूद उन्हें स्वतंत्र रहने दिया जा सके।

विधि का शासन-

  • 1780 के मैसाचुसेट्स संविधान के निर्माता जॉन एडम्स ने विधि के शासन को इस प्रकार परिभाषित किया है-
  • कानून की सरकार, न कि व्यक्ति की सरकार।
  • विधि का शासन एक अवधारणा है जो कार्यपालिका के न्याय विरुद्ध कार्य की जांच करता है।
  • कोई भी अधिकारी या प्रशासक विधायी मंजूरी के बिना किसी व्यक्ति को गिरफ्तार नहीं कर सकता है।
  • बिलकिस बानो मामले में कोर्ट ने विधि के शासन की व्याख्या इस प्रकार की-
  • यदि सरकार अपने कर्तव्यों का पालन करने में विफल रहती है, तो कोर्ट यह सुनिश्चित करने के लिए कदम उठाएगा कि “कानून की प्रक्रिया के दुरुपयोग होने पर कानून का शासन प्रभावी रहे।“ 
  • कोर्ट के अनुसार, विधि के शासन का ऐसा दुरुपयोग निष्क्रियता, अपराधियों को बचाने के लिए मनमानी कार्रवाई या विधि के अनुसार दायित्वों का निर्वहन करने में विभिन्न अधिकारियों की विफलता के कारण हो सकता है।
  • विधि के शासन का उल्लंघन अनु. 14 में उल्लिखित समानता के अधिकार के उल्लंघन के बराबर है।

अनुच्छेद 14-

  • राज्य, भारत के राज्यक्षेत्र में किसी व्यक्ति को विधि के समक्ष समता से या विधियों के सामान संरक्षण से वंचित नहीं करेगा।
  • नैसर्गिक न्याय (Natural Justice) और कानून के शासन(Rule Of Law) का सिद्धांत अनुच्छेद 14 से निकलकर आता है। 
  • कोर्ट ने कहा यदि विधि के शासन का विषय न्यायिक जांच का विषय नहीं रहेगा तो “विधि के समक्ष समानता" स्वयं में एक निरर्थक शब्द रह जाएगा। 
  • पीठ ने कहा, ''न्यायपालिका कानून के शासन की संरक्षक और लोकतांत्रिक देश का केंद्रीय स्तंभ है।''
  • विधि के शासन का अर्थ है कि कोई भी कितना ऊंचा या नीचा हो, विधि से ऊपर नहीं है।
  • यह शासन और लोकतांत्रिक राजव्यवस्था का मूल सिद्धांत है।
  • कोर्ट के अनुसार, यह अवधारणा कोर्ट के न्यायिक फैसले के साथ नजदीकी से जुड़ा हुआ है।  
  • न्यायपालिका को विधि के शासन के पक्ष में अपने दायित्वों का पालन करना होगा।
  • इसे विधि के शासन को कायम रखने के लिए एक मार्गदर्शक के रूप में अपनाना चाहिए।
  • यदि इसे नहीं अपनाया जाता है तो ऐसी स्थिति उत्पन्न हो सकती है, जब देश की सभी अदालतें विधि के शासन को "चयनात्मक रूप से" लागू करेंगी और लापरवाह हो जाएंगी।
  • यह हमारे लोकतंत्र के लिए एक खतरनाक स्थिति उत्पन्न करेगी।
  • जहां विधि का शासन लागू होता है, वहां अनुकंपा और सहानुभूति की कोई जरुरत नहीं है।
  • विधि का शासन लोकतंत्र का आधार है। 
  • विधि के शासन को संरक्षित किया जाना चाहिए और अदालतों द्वारा बिना किसी भय, पक्षपात, लगाव या दुर्भावना के लागू किया जाना चाहिए।
  • विधि के शासन के तंत्र में सभी को सिस्टम को स्वीकार करना चाहिए, दिए गए आदेशों का पालन करना चाहिए और अनुपालन में विफलता की स्थिति में उसे दंडित किया जाना चाहिए।
  • विधि के शासन का अस्तित्व और विधि के दायरे में लाए जाने का डर उन लोगों के लिए निवारक के रूप में काम करता है, जिन्हें दूसरों की हत्या करने में कोई संकोच नहीं है।
  • दिवंगत न्यायमूर्ति वी.आर. कृष्णा अय्यर ने कहा था, "विधि के शासन का सबसे अच्छा समय वह है जब कानून जीवन को अनुशासित करता है और उपलब्धियों को स्वीकार करता है।
  • न्याय को विधि के शासन के प्रति वफादार रहना चाहिए।
  • एडीएम, जबलपुर बनाम शिवाकांत शुक्ला (1976) में न्यायमूर्ति एचआर खन्ना के असहमतिपूर्ण फैसले का उल्लेख करते हुए, कोर्ट ने कहा, "विधि का शासन निरंकुशता का विरोधी है।“
  • सूर्य बख्श सिंह बनाम यूपी राज्य के 2014 अपने फैसले का हवाला देते हुए कोर्ट ने कहा-
  • न्याय की अवधारणा में केवल दोषी के अधिकार शामिल नहीं हैं, बल्कि पीड़ितों और समाज के नियमों का पालन करने वाले वर्गों के अधिकार भी शामिल हैं। 
  • ये लोग शांति के संरक्षक और अपराध पर अंकुश लगाने के लिए अदालतों को महत्वपूर्ण साधन" मानते हैं। 
  • यदि दोषी अपनी दोषसिद्धि के परिणामों को टाल सकते हैं, तो समाज में शांति, अमन-चैन और सद्भाव एक कल्पना बनकर रह जाएगा।

स्वतंत्रता का अधिकार-

  • स्वतंत्रता की सुरक्षा के लिए दोषियों की याचिका को खारिज करते हुए, कोर्ट ने कहा कि विधि का शासन कायम रहना चाहिए और सजा माफी के आदेश को रद्द कर दिया जाना चाहिए। 
  • संविधान के अनु. 142 को दोषियों के संबंध में लागू नहीं किया जा सकता है ताकि उन्हें जेल से बाहर रहने की अनुमति मिल सके। 
  • यह विधि के शासन की अनदेखी करने और ऐसे व्यक्तियों की सहायता करने का सुप्रीम कोर्ट के अधिकार का एक उदाहरण बन जाएगा, विधि की नजर में मान्य नहीं हैं।
  • विधि के शासन के सिद्धांत का अनुपालन में बिलकिस बानो मामले में दोषियों को स्वतंत्रता से वंचित करना उचित है, क्योंकि वे विधि के विपरीत, ग़लती से आज़ाद कर दिए गए थे।

प्रारंभिक परीक्षा के लिए प्रश्न-

प्रश्न- निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए।

  1. विधि के समक्ष समता का उल्लेख अनु. 14 में है। 
  2. नैसर्गिक न्याय और कानून के शासन का सिद्धांत अनुच्छेद 14 से निकलकर आता है।
  3. अनु. 142 सुप्रीम कोर्ट को विवेकाधीन शक्ति प्रदान करता है।

उपर्युक्त में से कितना/कितने कथन सही है/हैं?

(a) केवल एक

(b) केवल दो

(c) सभी तीनों

(d) कोई नहीं

उत्तर- (c)

मुख्य परीक्षा के लिए प्रश्न-

प्रश्न- विधि के शासन को संरक्षित किया जाना चाहिए और अदालतों द्वारा बिना किसी भय, पक्षपात, लगाव या दुर्भावना के लागू किया जाना चाहिए। विवेचना कीजिए।

Have any Query?

Our support team will be happy to assist you!

OR