New
July Offer: Upto 75% Discount on all UPSC & PCS Courses | Offer Valid : 5 - 12 July 2024 | Call: 9555124124

ग्रामीण आर्थिक संकट का समाधान

(प्रारंभिक परीक्षा- आर्थिक और सामाजिक विकास; मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 2 और 3 -स्वास्थ्य, शिक्षा, मानव संसाधनों से संबंधित सामाजिक क्षेत्र/सेवाओं के विकास और प्रबंधन से संबंधित विषय, गरीबी एवं भूख से संबंधित विषय, समावेशी विकास तथा इससे उत्पन्न विषय )

संदर्भ

  • महामारी की दूसरी लहर आखिरकार थमती नज़र रही है। संक्रमणों की आधिकारिक संख्या में कमी आई है, हालाँकि मौतों में वृद्धि जारी है। इसके अतिरिक्त, कई राज्यों में अभी भीलॉकडाउनबरकरार है, इसकाअनौपचारिक क्षेत्रके लोगों की आजीविका पर गंभीर प्रभाव पड़ने की आशंका है।
  • तथ्य के पर्याप्त प्रमाण हैं कि प्रवासी कामगार और गरीब ग्रामीण विगत एक वर्ष से भारी संकट का सामना कर रहे हैं। साथ ही, यह भी आशंका व्यक्त की जा रही है कि उनके ऊपरभोजन और काम का संकटऔर भी गहराने वाला है।

्रामीण क्षेत्र में व्याप्त चुनौतियाँ

  • आधिकारिक संख्या पर संदेह के अतिरिक्त, जो चिंता की बात है वह है संक्रमण का भौगोलिक प्रसार। इस बार महामारी ने ग्रामीण क्षेत्रों को अधिक प्रभावित किया है। ग्रामीण क्षेत्रों वाले राज्यों और ज़िलों में गरीबों की उच्च संख्या और स्वास्थ्य अवसंरचना की जर्जर स्थिति ने समस्या को और भी भयावह कर दिया है।
  • अधिकांश ज़िलों में स्वास्थ्य अवसंरचना की खराब स्थिति को देखते हुए, जो बड़ी संख्या में संक्रमित मामलों में योगदान दे रहे हैं, चुनौती केवल संक्रमण से निपटने से संबंधित नहीं है, बल्कि उनकी संख्या में कमी सुनिश्चित करने की भी है। 
  • अतः सबसे अच्छी रणनीति ऐसे ज़िलों में टीकाकरण की दर को बढ़ाने की होगी। दुर्भाग्य से, आँकड़े बताते हैं कि वास्तविकता इसके विपरीत ही रही है, ग्रामीण क्षेत्रों की तुलना में शहरी महानगरीय क्षेत्रों में टीकाकरण की दर अधिक है।
  • हालाँकि, वास्तविक परीक्षा तब शुरू होगी, जब संक्रमण नियंत्रित हो जाएगा तथा ग्रामीण अर्थव्यवस्था को पुनर्गठित करना होगा। हाल के नए आँकड़ों से स्पष्ट है किआय और रोज़गारकी दो उच्च आवृत्ति वाले संकेतक ग्रामीण संकट के बढ़ने की ओर संकेत कर रहे हैं।
  • श्रम ब्यूरो के आँकड़े बताते हैं कि मार्च 2021 की वास्तविक मज़दूरी मार्च 2019 की तुलना मेंकृषि और गैर-कृषि श्रमिकों’, दोनों के लिये कम थी। दूसरी ओर, ‘सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी’ (CMIE) के आँकड़ों से पता चलता है कि ग्रामीण बेरोज़गारी दर मार्च के पहले सप्ताह में 6 प्रतिशत से बढ़ कर हाल के सप्ताह में 14 प्रतिशत से अधिक हो गई है।

कृषि क्षेत्रक की चुनौतियाँ

  • चिंता की बात यह है कि विगत वर्ष के विपरीत, भारत का कृषि क्षेत्रक भी तनाव में वृद्धि के संकेत दे रहा है। हाल के आँकड़े ग्रामीण क्षेत्रों मेंइनपुट लागतमें वृद्धि तथा ऋण उपलब्धता में गिरावट का संकेत दे रहे हैं।
  • इसमें से कुछ कृषि मशीनरी की बिक्री में मंदी और उर्वरक खपत में गिरावट के संकेत पहले से ही दिखाई दे रहा है। दाल और खाद्य तेल जैसे आयात की जाने वाली वस्तुओं को छोड़कर, अधिकांश कृषि वस्तुओं की कीमतों में गिरावट के कारण माँग में गिरावट भी परिलक्षित हो रही है।
  • इसके अतिरिक्त, सब्जियों और अनाज की कीमतों में गिरावट से कृषि आय को नुकसान होने की आशंका है, जिससे ग्रामीण आर्थिक संकट और भी बढ़ सकता है।

भूख और आर्थिक संकट

  • कुछ महीने पूर्वभोजन का अधिकार अभियान औरसेंटर फॉर इक्विटी स्टडीजने एकहंगर वॉचरिपोर्ट प्रकाशित की थी, जिसमें देशव्यापी लॉकडाउन के प्रभाव का आकलन करने के लिये विगत वर्ष की पूर्व-लॉकडाउन स्थिति की तुलना, अक्तूबर 2020 की स्थिति से की गई थी।
  • अक्तूबर 2020 में, सर्वे में शामिल 27 प्रतिशत लोगों ने कहा कि उनकी कोई आय नहीं है; 40 प्रतिशत ने कहा कि भोजन की पोषण गुणवत्ताबहुत खराबहो गई है; और 46 प्रतिशत ने कहा कि उन्हें अक्तूबर 2020 में दिन में कम से कम एक बार भोजन छोड़ना पड़ा।
  • अलग-अलग शहरों में लॉकडाउन की वजह से प्रवासी फिर से असुरक्षित हुए हैं। जहाँ कई लोग एक बार फिर अपने गाँवों को चले गए हैं, वहीं एक बड़ी आबादी देश के विभिन्न हिस्सों में बिना काम के फँस गई है।
  • सर्वे के अनुसार, जिन 81 प्रतिशत लोगों से राय ली गई थी, उन्होंने कहा कि कि अप्रैल 2021 से काम ज्यादातर बंद हो गया था और 76 प्रतिशत श्रमिकों ने कहा कि उनके पास भोजन और नकदी की कमी है, और उन्हें तत्काल सहायता की आवश्यकता है।

मनरेगा और सार्वजनिक वितरण प्रणाली

  • उक्त संदर्भ में, सार्वजनिक वितरण प्रणाली (PDS) और महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी योजना (MGNREGS) को मज़बूत करने की तत्काल आवश्यकता है।
  • सरकार ने मई और जून 2021 के लियेराष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम’ (NFSA) के तहत लाभार्थियों के लिये 5 किलो मुफ्त खाद्यान्न की घोषणा की है। सरकार को तुरंत पी.डी.एस. कवरेज का विस्तार करना चाहिये और सभी पात्र परिवारों को योजनाओं के तहत शामिल करना चाहिये।
  • एक स्वतंत्र अध्ययन के अनुसार, वर्ष 2011 की जनगणना के आधार पर दिनांकित डाटाबेस के कारण लगभग 100 मिलियन लोग राशन वितरण प्रणाली से बाहर हैं।
  • केंद्र को भी मुफ्त खाद्यान्न कार्यक्रम को दो महीने तक सीमित करने की बजाय एक वर्ष के लिये बढ़ा देना चाहिये, क्योंकि आर्थिक संकट लंबे समय तक रहने की आशंका है।
  • ये अभिलिखित आँकड़ें है कि भारत ने पिछले साल मंडियों के माध्यम से रिकॉर्ड मात्रा में चावल और गेहूँ की खरीद की थी। कुल खरीद पी.डी.एस. के लिये मौजूदा आवश्यकता से कहीं अधिक है। इस प्रकार एन.एफ.एस.. केसिक्योरिटी नेटका विस्तार करना संभव है।

अपर्याप्त प्रावधान

  • केंद्र सरकार ने मनरेगा के लिये वर्ष 2021-22 में ₹73,000 करोड़ आवंटित किये हैं तथा मजदूरी में लगभग 4 प्रतिशत की वार्षिक वृद्धि को अधिसूचित किया है।
  • ये दोनों प्रावधान ज़मीनी आवश्यकताओं को पूरा करने के लिये अपर्याप्त हैं। मनरेगा के लिये केंद्रीय आवंटन विगत वर्ष के संशोधित अनुमान से करीब ₹38,500 करोड़ कम है।
  • वर्ष 2020-21 में मनरेगा के तहत कार्य करने वाले 7.56 करोड़ परिवारों में से, भले ही 1 करोड़ परिवार इस वर्ष योजना से बाहर हो गए हों, फिर भी केंद्र को अभी भी आर्थिक संकट के मौजूदा स्तर को देखते हुए 6.5 करोड़ परिवारों के लिये वर्ष में 75-80 दिनों के रोज़गार का बजट प्रदान करना चाहिये।
  • उक्त तर्क से, ₹268/दिन/व्यक्ति की वर्तमान दर पर, कम से कम ₹1.3 लाख करोड़ का मनरेगा बजट करना होगा। 
  • सरकार को मनरेगा मज़दूरी में मात्र 4 प्रतिशत की वृद्धि के अपने निर्णय पर भी पुनर्विचार करना चाहिये और इसे कम से कम 10 प्रतिशत तक बढ़ाना चाहिये।

निष्कर्ष

देश की एक बड़ी आबादीभूख और नकदीकी कमी का सामना कर रही है। स्थिति और अधिक विकट होती जा रही है, क्योंकि महामारी का प्रकोप जारी है। इसलिये केंद्र सरकार को सभी के लिये भोजन और काम को प्राथमिकता प्रदान करने के लिये तुरंत नीतिगत सुधार करना होंगे।

Have any Query?

Our support team will be happy to assist you!

OR