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म्यांमार में पैठ जमाने की ताक में रूस

(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 2: द्विपक्षीय, क्षेत्रीय और वैश्विक समूह)

संदर्भ

इस वर्ष फ़रवरी में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद् ने म्यांमार में आपातकाल लगाए जाने और उसके बाद के घटनाक्रम पर गहरी चिंता व्यक्त की थी। म्यांमार के संबंध में 12 फ़रवरी को संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद् में पेश प्रस्ताव से रूस और चीन ने स्वयं को अलग कर लिया था। रूस ने म्यांमार में आपातकाल लागू किया जाना उसका आंतरिक मामला माना है। नवंबर 2020 में हुए चुनावों में धांधली का आरोप सेना पर लगता रहा है। चुनावों में ‘सू ची’ की नेशनल लीग फ़ॉर डेमोक्रेसी (NLD) ने विजय प्राप्त की थी।    

रूस का दृष्टिकोण 

  • रूस संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद् में म्यांमार को लेकर अतीत में भी ऐसा ही रुख़ अपनाता रहा है। म्यांमार से जुड़े मामले पर चीन और रूस ने वर्ष 2007 और 2017 में वीटो का प्रयोग किया था। वर्ष 2007 में म्यांमार में मानवाधिकारों के उल्लंघन पर संयुक्त राष्ट्र के निंदा प्रस्ताव के ख़िलाफ़ वीटो का प्रयोग हुआ था, जबकि वर्ष 2017 में रोहिंग्या मुसलमानों के साथ म्यांमार में हो रहे बर्ताव के ख़िलाफ़ संकल्प को रोकने के लिये रूस ने वीटो लगाया था।
  • रूस एक संप्रभु राष्ट्र के मामलों में दखलंदाज़ी न करने की नीति के चलते म्यांमार का एक अहम साझीदार बन गया है। रूसी वैक्सीन स्पूतिनक वी के आपात प्रयोग को मंज़ूरी देने वाला म्यांमार दक्षिण-पूर्व एशिया का पहला देश है। 

रक्षा संबंधों में मज़बूती

  • रूस और म्यांमार के बीच रक्षा सहयोग में भी काफ़ी बढ़ोत्तरी हुई है। म्यांमार में आपातकाल की घोषणा से कुछ दिन पूर्व ही रूस के रक्षा मंत्री ने म्यांमार का आधिकारिक दौरा किया था। इसी दौरान सतह से हवा में मार करने वाली मिसाइल प्रणाली पेंटसिर–एस1, निगरानी ड्रोन और रडार उपकरणों की आपूर्ति से जुड़े सौदों पर हस्ताक्षर हुए। इसके साथ ही रूस ने पहली बार ‘ड्रोन के निर्यात से जुड़े कारोबार’ में प्रवेश किया।
  • म्यांमार में सैन्य तख्तापलट के प्रमुख किरदार जनरल मिन आंग लेंग और रूसी रक्षा मंत्री दोस्त हैं। वो अब तक 6 बार मॉस्को का दौरा कर चुके हैं और आख़िरी बार वर्ष 2020 में रूसी ‘विक्ट्री डे परेड’ की 75वीं वर्षगांठ में शामिल हुए थे। 
  • रूसी रक्षा मंत्री भी वर्ष 2013 में पहले दौरे के बाद से ही नियमित अंतराल पर म्यांमार का दौरा करते रहे हैं। वर्ष 2011 से ही म्यांमार अपने सैन्य बलों में सुधार लाने और उसे आधुनिक बनाने में लगा था। दोनों देशों के बीच सैन्य सहयोग को लेकर सबसे अहम द्विपक्षीय समझौता वर्ष 2016 में हुआ। 
  • इस समझौते से ‘खुफ़िया जानकारियों के आदान–प्रदान, नौसैनिक जहाज़ों के अधिक नियमित दौरों और शांति स्थापना पर गठजोड़‘ का मार्ग प्रशस्त हुआ। वर्ष 2018 में म्यांमार के तट पर रूसी युद्धपोतों के प्रवेश को सुगम बनाने वाला करार हुआ। साथ ही, 6 सुखोई-30 लड़ाकू विमानों की आपूर्ति का भी सौदा हुआ।
  • रूस–म्यांमार द्विपक्षीय संबंधों का सबसे महत्त्वपूर्ण बिंदु हथियारों की बिक्री ही है। म्यांमार को हथियार आपूर्ति के मामले में चीन के बाद रूस दूसरे स्थान पर है। सिपरी (SIPRI) के अनुमानों के अनुसार, वर्ष 2015 से 2019 के बीच म्यांमार में हथियारों के कुल आयात में चीन का हिस्सा 49% जबकि रूस का 16% और भारत का 14% रहा था।
  • रक्षा से जुड़े इन उपकरणों के रखरखाव और उन्हें आधुनिक बनाने के लिये म्यांमार में एक साझा केंद्र बनाया गया है। रूस ने म्यांमार के हज़ारों टेक्निशियनों और सैन्य अधिकारियों को प्रशिक्षित किया है। म्यांमार की सशस्त्र सेना ‘कावकाज़-2020’ सैन्य अभ्यास में भी शामिल हुई थी।

रूस के लिये अनुकूलता

  • चीन पर ज़रूरत से अधिक निर्भरता से बचने के लिये म्यांमार विश्व के अन्य देशों के साथ भी अपने रिश्ते मज़बूत करना चाह रहा है। ऐसे में भारत, थाईलैंड और जापान के साथ–साथ रूस भी म्यांमार का एक अहम साझीदार बन सकता है। रूस का म्यांमार के स्थानीय मुद्दों से कोई सीधा सरोकार नहीं है, जिससे उसे यहाँ एक निष्पक्ष या तटस्थ शक्ति के रूप में देखा जाता है।
  • म्यांमार पर पश्चिमी देशों से प्रतिबंध का ख़तरा मंडरा रहा है, जिससे रूस और म्यांमार के बीच क़रीबी बढ़ रही है। दूसरे देशों की संप्रभुता और उनके मुद्दों में दखलंदाज़ी न करने की नीति के मामले में रूस और म्यांमार एक जैसी सोच रखते हैं।
  • साथ ही, आसियान देशों के साथ रूस अपने रिश्ते सुधारना चाहता है। पूर्वी एशिया में पैठ बनाने की रूसी नीति का ये अहम हिस्सा है और म्यांमार से मज़बूत होते रिश्तों से रूस को मदद मिल सकती है। वर्ष 2014 में पश्चिम के साथ रिश्तों में तल्खी आने के बाद से ही रूस ने पूरब की ओर ध्यान देना शुरू कर दिया है।
  • रूस एशिया–प्रशांत क्षेत्र में अपना प्रभाव बढ़ाना चाहता है। ऐसे में उसकी मल्टी–वेक्टर विदेश नीति के दृष्टिकोण से भी म्यांमार से रिश्तों में मज़बूती आवश्यक है। पूर्वी एशिया का क्षेत्र वैश्विक भू-राजनीति और भू-अर्थव्यवस्था का केंद्र बनता जा रहा है। ऐसे में रूस का लक्ष्य इस क्षेत्र में स्वयं को महत्त्वपूर्ण तरीके से स्थापित करना है।   

        समस्याएँ : सीमित द्विपक्षीय जुड़ाव

        • दोनों देशों में शिक्षा क्षेत्र में सहयोग जारी है। ऊर्जा क्षेत्र में भी रिश्ते मज़बूत करने की अपार संभावनाएँ हैं। इसके बावजूद आर्थिक, व्यापारिक और निवेश के मामलों में दोनों देशों के बीच संपर्क अब भी काफी निम्न स्तर पर है।
        • म्यांमार में सबसे बड़े निवेशक चीन का बिजली, तेल, गैस और खनन में दबदबा है। चीन के ‘बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव’ से म्यांमार भी जुड़ा हुआ है, जिससे म्यांमार में चीनी निवेश बढ़ने के पूरे आसार हैं और रूस वर्तमान में म्यांमार के शीर्ष 10 निवेशकों में भी शामिल नहीं है। अपने सीमित संसाधनों के चलते रूस दक्षिण-पूर्व एशिया के साथ व्यापक संबंध बनाने में अब तक नाकाम रहा है। कोविड-19 के कारण यह समस्या और बढ़ सकती है। 
        • रूस दक्षिण-पूर्वी एशिया में हथियारों का सबसे बड़ा आपूर्तिकर्ता है। इसके बावजूद वो इस क्षेत्र का सबसे बड़ा भागीदार देश बनने में असफल रहा है। इसका कारण यह है कि दक्षिण-पूर्वी एशियाई देशों ने कई आपूर्तिकर्ता देशों से कारोबारी संबंध बना रखे हैं ताकि किसी एक देश पर आवश्यकता से अधिक निर्भरता न रहे। 
        • अन्य सैन्य आपूर्तिकर्ताओं ने भी इसी कालखंड में इस क्षेत्र में आर्थिक, कूटनीतिक और निवेश संबंधी संपर्क मज़बूत कर लिये हैं। रूस संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद् का स्थायी सदस्य और हथियारों का एक बड़ा आपूर्तिकर्ता है। इसके बावजूद म्यांमार में रूस की उपस्थिति आज भी कमज़ोर है।
        • रूस पारंपरिक तौर पर द्विपक्षीय संबंधों को सुधारने के लिये तेल और गैस निर्यात का सहारा लेता रहा है, किंतु दक्षिण पूर्व-एशिया में उसकी नीतियाँ स्पष्ट नहीं हैं। रूसी निर्यात के मुख्य केंद्र उत्तर-पूर्व एशिया के देश- चीन, जापान और दक्षिण कोरिया हैं। दक्षिण-पूर्व एशिया के बाज़ारों में रूस की पैठ अब भी काफ़ी निम्न है। इन्हीं कारणों से रूस को ‘सीमित सहयोग‘ ही मिल पा रहा है। 
        • रूस की ‘वैश्विक रणनीति‘ में दक्षिण-पूर्व एशिया को अहम स्थान प्राप्त है किंतु यह क्षेत्र अब भी रूसी विदेश नीति की शीर्ष वरीयता वाला क्षेत्र नहीं बन सका है। रूस की इन व्यापक कमज़ोरियों का असर म्यांमार सहित आसियान के अन्य सदस्य देशों के साथ रिश्तों पर पड़ रहा है। म्यांमार के साथ संबंध सुधारने में रूस को इन्हीं कमज़ोरियों का सामना करना पड़ रहा है।
        • म्यांमार अपनी विदेश नीति में विविधता लाना चाहता है। दूसरी ओर, वर्तमान में रूस की छवि चीन के क़रीबी राष्ट्र के तौर पर बन गई है। रूस के लिये अपनी तटस्थता बनाए रखना और वैकल्पिक तौर पर आसियान की नीतियों के अनुसार आगे बढ़ना ही समझदारी भरा कदम हो सकता है। यदि आसियान देशों को ये लगता है कि चीन पर रूस की निर्भरता अधिक है तो म्यांमार समेत दक्षिण-पूर्व एशिया के कुछ देश उसके प्रति सतर्क हो जाएँगे।

        निष्कर्ष

        • यह स्पष्ट है कि म्यांमार और रूस के बीच रिश्तों में और मज़बूती आने की संभावनाएँ मौजूद हैं। हालाँकि, म्यांमार में रूस की भूमिका सीमित है और संबंधों में मज़बूती के लिये रक्षा क्षेत्र के साथ–साथ आर्थिक, कारोबारी व निवेश संबंधों में सुधार लाना होगा।
        • स्थलीय व सामुद्रिक संपर्क मार्गों के हिसाब से म्यांमार की भौगोलिक स्थिति बेहद अहम है। म्यांमार सामरिक और आर्थिक रूप से महत्त्वपूर्ण होने के साथ-साथ तेल व गैस, खनिजों और क़ीमती जवाहरातों जैसे प्राकृतिक संसाधनों से भी संपन्न है।
        • भू-सामरिक दृष्टिकोण से भी म्यांमार महत्त्वपूर्ण है। यदि रूस, म्यांमार का महत्त्वपूर्ण साझीदार बनने में कामयाब हो जाता है तो इससे उसकी दक्षिण-पूर्व एशिया नीति में भी एक नया अध्याय जुड़ेगा। इससे दक्षिण-पूर्व एशिया से जुड़ी रूस की कमज़ोरियों से निपटने में कुछ हद तक मदद मिलेगी।
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