(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 1: भारतीय संस्कृति, कला के रूप, साहित्य और वास्तुकला के मुख्य पहलू)
संदर्भ
संथाली सोहराई भित्ति चित्र विभिन्न क्षेत्रों में अलग-अलग रूप में पाए जाते हैं, जिनमें प्रमुख रूप से ज्यामितीय आकृतियाँ शामिल हैं। वास्तुकला के दृष्टिकोण से भित्ति चित्रों में ज्यामितीय सटीकता के कारण इसे संथाल समुदाय के गौरव से जोड़ा जा सकता है।
सोहराई भित्ति चित्र
संथाली महिलाएँ आमतौर पर दिवाली या काली पूजा के साथ होने वाले फसल उत्सव सोहराई को चिह्नित करने के लिये घरों की दीवारों को भित्ति चित्र के रूप में पेंट करती हैं। विवाह और प्रसव जैसे विशेष अवसरों या समारोहों के दौरान भी दीवारों पर यह चित्रकारी की जाती है।
प्रमुख क्षेत्र
- भित्ति चित्र संथाली समुदाय की एक लंबी परंपरा का हिस्सा हैं जो मुख्यतः ओडिशा के क्योंझर और मयूरभंज जिलों में पाए जाते है। इसके अतिरिक्त, झारखंड के पूर्वी सिंहभूम और सरायकेला-खरसावां जिले और पश्चिम बंगाल के पुरुलिया जिले में भी यह जनजाति पाई जाती है।
- विदित है कि वर्ष 2020 में झारखंड की सोहराई-कोहबर चित्रकला को भौगोलिक संकेतक (G.I. Tag) प्राप्त हुआ है, जो विशेष रूप से हजारीबाग जिले में महिलाओं द्वारा बनाई जाने वाली भित्ति चित्रकला है। ये संथाल जनजाति द्वारा बनाए जाने वाले भित्ति चित्रों से काफी अलग होती है।
अंतर
- हजारीबाग के सोहराई-कोहबर भित्ति चित्र विभिन्न रूपांकनों के साथ अधिक प्राचीन हैं, जबकि संथाली सोहराई चित्रकला में केवल ज्यामितीय आकृतियों का प्रयोग किया जाता हैं।
- हजारीबाग की भित्ति चित्रों के लिये केवल पार्थिव रंगों (लाल, काले और सफेद) का प्रयोग किया जाता है। विदित है कि इस जिले की उत्तरी कर्णपुरा घाटी और इसकी सातपहाड़ एवं सती पर्वत श्रृंखलाएँ कोयला, लोहा तथा मैंगनीज से समृद्ध हैं। इस प्रकार, इन पहाड़ियों से बहने वाली नदियाँ मैंगनीज युक्त काली मिट्टी ले जाती हैं, जिसका उपयोग चित्रकारी के लिये किया जाता है।
- जब ये नदियां विस्तृत क्षेत्र से प्रवाहित होती हैं, तो उन स्थानों से सफ़ेद चिकनी मिट्टी या काओलिन (Kaolin) प्राप्त किया जाता है, जबकि लाल रंग इस घाटी के रॉक शेल्टर या प्रागैतिहासिक गुफाओं में हेमेटाइट या लौह अयस्क भंडार से प्राप्त होता है।
- संथाली महिलाएँ काले और सफेद रंग के लिये इसी प्रकार की मिट्टी की सामग्री का उपयोग करती हैं किंतु लाल रंग के लिये वे हेमेटाइट के बजाय बजरी या मोरम का उपयोग करती हैं। मोरम को दीमक प्रतिरोधी माना जाता है और वर्षा से ये आसानी से विवर्ण (Fade) नहीं होते हैं।
वर्तमान में परिवर्तन
- वर्तमान में संथाली महिलाएँ सोहराई भित्ति चित्र के लिये कई अन्य रंगों का उपयोग करने लगी हैं। कुछ महिलाएँ दो या दो से अधिक रंगों को मिलाकर नए रंग भी तैयार करती हैं।
- मिट्टी (कच्चे) मकानों की जगह पक्के घरों में भी पारंपरिक सोहराई कला बनाई जाती है। पक्के मकानों की तुलना में मिट्टी की दीवारों पर चित्र बनाते समय अधिक मात्रा में रंगों की आवश्यकता होती है। साथ ही, मानसून के दौरान कच्चे मकानों के भित्ति चित्र धुल जाते हैं, जबकि पक्के मकानों पर बने भित्ति चित्र लंबे समय तक चलते हैं।