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सतनामी संप्रदाय

(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 1 : 18वीं सदी के लगभग मध्य से लेकर वर्तमान समय तक का आधुनिक भारतीय इतिहास- महत्त्वपूर्ण घटनाएँ, व्यक्तित्व, विषय)

 संदर्भ

मध्य छत्तीसगढ़ के बलौदा बाजार ज़िले में सतनामी धार्मिक संप्रदाय के सदस्यों ने हिंसक प्रदर्शन किया। ये लोग सतनामी संप्रदाय के लिए पवित्र धार्मिक स्थल ‘अमर गुफा’ के अपमान से आहत थे।

अमर गुफा के बारे में 

  • जैतखाम के नाम से प्रसिद्ध यह धार्मिक स्थल 18वीं सदी के संत गुरु घासीदास के जन्मस्थान पर स्थित है। छत्तीसगढ़ के सतनामी समुदाय इनसे अपनी धार्मिक वंशावली जोड़ते हैं।
  • अनुसूचित जाति के सतनामी समाज या सतनाम पंथ के सदस्य मुख्यत: छत्तीसगढ़ एवं मध्य प्रदेश के समीपवर्ती क्षेत्रों में रहते हैं। यह गुफा बलौदा बाजार जिले में ही स्थित है। 

सतनामी समुदाय के बारे में 

  • ‘सत नाम’ शब्द :  सत नाम (शाब्दिक रूप से ‘सच्चा नाम’) शब्द 15वीं सदी के भक्ति कवि कबीर द्वारा प्रचलित किया गया था। 
    • संभवतः इस शब्द को उनसे पहले ही गढ़ा गया था।
  • संप्रदाय की स्थापना : 1657 ई. में कबीर की शिक्षाओं से प्रेरित होकर बीरभान नामक एक भिक्षु ने वर्तमान हरियाणा के नारनौल में एक सतनामी संप्रदाय की स्थापना की।
  • संबंधित समुदाय : आरंभ में ज़्यादातर सतनामी चमड़े के कार्य में संलग्न एक ‘अछूत’ जाति से थे। हालाँकि, समय के साथ यह समुदाय इस पेशे से दूर हो गया है।

सतनामियों के विषय में इतिहासकारों के कथन 

  • मुगल दरबारी इतिहासकार खफी खान (1664-1732) के अनुसार, “सतनामी नारनौल एवं मेवात के परगना में लगभग चार या पांच हजार गृहस्थ थे... उनकी आजीविका और पेशा आमतौर पर कृषि और छोटी पूंजी के साथ बनिया [या कारीगर] की तरह व्यापार करना है”। 
  • इरफ़ान हबीब के अनुसार, “सतनाम संप्रदाय में कर्मकांड एवं अंधविश्वास की निंदा की गई और स्पष्ट रूप से कबीर के प्रति निष्ठा व्यक्त की गई.....आस्थावानों के समुदाय के भीतर जातिगत भेदभाव निषिद्ध था.....गरीबों के प्रति सहानुभूति तथा सत्ता व धन के प्रति शत्रुता का रवैया [सतनामी उपदेशों में] स्पष्ट है”।
  • निर्गुण भक्ति परंपरा के प्रणेता कबीर ने मूर्तिपूजा एवं संगठित धर्म की रूढ़िवादिता को अस्वीकार किया। 
  • उन्होंने एक अविरल व निराकार परम की पूजा को अपनी कई कविताओं में ‘सत नाम’ या ‘सत्य नाम’ के रूप में संदर्भित किया है।

औरंगजेब के विरुद्ध सतनामियों का विद्रोह 

  • विद्रोह का कारण : सन् 1672 में वर्तमान पंजाब एवं हरियाणा में रहने वाले सतनामियों ने औरंगज़ेब की लगातार बढ़ती कर मांगों (जैसे जजिया को पुनर्जीवित करना) के खिलाफ़ विद्रोह कर दिया। 
  • विद्रोह की प्रकृति : यह विद्रोह ग्रामीण दंगे के रूप में शुरू हुआ। वस्तुतः यह एक किसान एवं सैनिक के बीच मामूली झड़प से शुरू हुआ।
  • विद्रोह का परिणाम : अंततः मुगलों ने विद्रोह को कुचल दिया और हज़ारों सतनामियों को मार दिया गया। औरंगजेब ने इस समुदाय को पूरी तरह से नष्ट कर दिया, जिसका पुनरुत्थान केवल 18वीं सदी के मध्य में ‘जगजीवनदास के तहत वर्तमान उत्तर प्रदेश में’ और ‘घासीदास के तहत वर्तमान छत्तीसगढ़ में’ हुआ।

गुरु घासीदास के अधीन सतनमियों का पुनरुद्धार

  • पुनर्स्थापना : सबसे महत्वपूर्ण सतनामी संप्रदाय की स्थापना मध्य भारत के छत्तीसगढ़ क्षेत्र में संत गुरु घासीदास ने की थी, जो एक कृषि सेवक एवं निचली (चमार) जाति से थे।
    • उनका सतनाम पंथ बड़ी संख्या में सतनामी सदस्यों को धार्मिक व सामाजिक पहचान प्रदान करने में सफल रहा।
    • गुरु घासीदास का जन्म 1756 ई. में हुआ था
  • गुरुओं की वंशावली : गुरु घासीदास ने गुरुओं की एक वंशावली निर्धारित की जो उनके बाद संप्रदाय का नेतृत्व करेंगे। इसकी शुरुआत उनके बेटे बालकदास से हुई।
  • संगठनात्मक संरचना : सन् 1800 के दशक के अंत तक दो-स्तरीय संगठनात्मक संरचना विकसित हुआ जिसमें गुरु सबसे ऊपर थे और उनके नीचे कई ग्राम-स्तर के पुजारी थे। मोटे तौर पर यह अब भी कायम है।
    • ये पुजारी विवाह संपन्न कराते थे, विवादों में मध्यस्थता करते थे, तपस्या करते थे और संगठन में मध्यस्थ के रूप में भी कार्य करते थे।
  • गुरु घासीदास की मृत्यु के समय उनके अनुयायियों की संख्या लगभग 25 लाख थी, जो लगभग पूरी तरह से एक विशेष अनुसूचित जाति से संबंधित थे। 

संत घासीदास की शिक्षाएँ 

ईश्वर के संबंध में 

  • पहला एवं सबसे महत्वपूर्ण नियम एक सच्चे ईश्वर की पूजा करना था अर्थात् उनके नाम 'सतनाम' के जाप करना था।
  • देवता पूजा की अस्वीकृति के साथ-साथ किसी भी प्रकार की छवि/मूर्ति पूजा के उन्मूलन पर जोर दिया गया। 

सामाजिक समानता के लिए

  • गुरु घासीदास ने अनुयायियों से अपने जाति का नाम छोड़ने और इसके बजाए ‘सतनामी’ का उपयोग करने के लिए प्रेरित किया।
  • मूर्ति पूजा के उन्मूलन से प्रभावी रूप से ‘अछूत’ सतनामियों को मंदिर में प्रवेश पर प्रतिबंधों से निज़ात पाने में सफलता प्राप्त हुई।
  • इन्होंने वैष्णव एवं कबीरपंथियों की तरह अपने अनुयायियों को तुलसी की माला पहनने के लिए कहा।

संयमित व स्वास्थकर आहार के लिए प्रेरणा 

  • गुरु घासीदास ने अपने अनुयायियों से मांस (और मांस कि तरह के फल जैसे बैंगन) खाने, शराब पीने, धूम्रपान करने या तंबाकू सेवन से परहेज करने को कहा।
  • उन्होंने मिट्टी के बर्तनों के बजाए पीतल के बर्तनों का उपयोग करने, चमड़े व शवों के साथ कार्य न करने पर बल दिया। 

वर्तमान में सतनामी संप्रदाय 

  • पिछले कुछ वर्षों में कई सतनामियों ने जाति, हिंदू प्रथाओं, विश्वासों एवं अनुष्ठानों को अपनाया और स्वयं को हिंदू धार्मिक मुख्यधारा का हिस्सा मानने लगे। 
  • कुछ ने हिंदू देवताओं की मूर्तियों की पूजा प्रारंभ कर दिया और राजपूत या ब्राह्मण वंश से होने का दावा किया।
  • वर्तमान में सतनामी एक मुखर राजनीतिक ताकत बन गए हैं। 
    • वस्तुतः सतनामी नेताओं का न केवल संप्रदाय के सदस्यों पर बल्कि छत्तीसगढ़ की शेष 13% अनुसूचित जाति आबादी पर भी दबदबा है।

इसे भी जानिए!

  • मुग़ल काल में पैदल सैनिकों (Foot-trooper) को ‘पियादा’ (Piyada) और पुलिस प्रमुख को ‘शिकदार’ कहा जाता था।
  • ‘मासिर-ए-आलमगिरी’ के लेखक साकी मुस्ताद खान मुगल इतिहासकार है। फारसी में लिखी इस पुस्तक में औरंगजेब के शासनकाल का वर्णन है।
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