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छोटे मॉड्यूलर परमाणु रिएक्टर (SMR)

प्रारंभिक परीक्षा - समसामयिकी, SMR, डीकार्बोनाइजेशन, 123 समझौता
मुख्य परीक्षा – सामान्य अध्ययन, पेपर-3

संदर्भ- 

  • संयुक्त राष्ट्र सतत विकास लक्ष्य 7 में सभी के लिए सस्ती, विश्वसनीय, टिकाऊ और आधुनिक ऊर्जा तक पहुंच सुनिश्चित करने का लक्ष्य रखा गया है । ऐसे में क्या छोटे मॉड्यूलर परमाणु रिएक्टर भारत को नेट-शून्य हासिल करने में मदद कर सकते हैं?

मुख्य बिंदु-

  • दुनिया डीकार्बोनाइज करने की तकनीकी की खोज के लिए प्रयासरत है।  
  • चूँकि दुनिया अभी भी अपनी 82% ऊर्जा आपूर्ति के लिए जीवाश्म ईंधन पर निर्भर है, इसलिए बिजली क्षेत्र को डीकार्बोनाइज़ करना महत्वपूर्ण है 
  • 2050 तक अंतिम ऊर्जा खपत में बिजली की हिस्सेदारी भी 80-150% बढ़ जाएगी। 
  • सौर और पवन ऊर्जा में वृद्धि के बावजूद यूरोप में कोयले की खपत में हालिया वृद्धि से पता चलता है कि ऊर्जा सुरक्षा के साथ-साथ बिजली उत्पादन के डीकार्बोनाइजेशन को सुनिश्चित करना महत्वपूर्ण है।
  • ऐसी स्थिति में छोटे मॉड्यूलर रिएक्टर भारत के लिए सहायक हो सकते हैं।
  • SMR ऐसे परमाणु रिएक्टर होते हैं जो केवल 10 से 300 मेगावाट बिजली उत्पादित करते हैं। इनके मॉड्यूलर डिजाइन और छोटे आकार के चलते ज़रूरत के मुताबिक एक ही साइट पर इनकी कई यूनिट्स लगाई जा सकती है।

srm

डीकार्बोनाइजेशन की चुनौतियाँ-

  • डीकार्बोनाइजेशन वातावरण में कार्बन उत्सर्जन को कम करने की प्रक्रिया है, विशेष रूप से कार्बन डाइऑक्साइड (CO2)को। 
  • इसका लक्ष्य कम उत्सर्जन वाली वैश्विक अर्थव्यवस्था हासिल करना और ऊर्जा संक्रमण के माध्यम से जलवायु तटस्थता हासिल करना है।
  • कोयला आधारित बिजली संयंत्र से स्वच्छ ऊर्जा स्रोतों में संक्रमण सभी देशों के लिए बड़ी चुनौतियां उत्पन्न करता है 
  • ऐसी स्थिति में अनेक देशों के नीति निर्माताओं के बीच व्यापक सहमति बनी है, कि केवल सौर और पवन ऊर्जा सभी के लिए विश्वसनीय और सस्ती ऊर्जा प्रदान करने के लिए पर्याप्त नहीं होंगे।
  • नवीकरणीय ऊर्जा के लिए डीकार्बोनाइज्ड तकनीक को जोड़ने से ग्रिड विश्वसनीयता में सुधार हो सकता है और लागत भी कम हो सकती है।
  • अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी के अनुसार, स्वच्छ ऊर्जा उत्पादन प्रौद्योगिकियों के लिए आवश्यक लिथियम, निकल, कोबाल्ट और दुर्लभ पृथ्वी तत्वों जैसे महत्वपूर्ण खनिजों की मांग 2030 तक 3.5 गुना तक बढ़ने की संभावना है। 
  • यह उछाल अनेक वैश्विक चुनौतियां उत्पन्न करेगा, जिनमें नई खदानों और प्रसंस्करण सुविधाओं को विकसित करने के लिए बड़े पूंजी निवेश शामिल हैं।
  • थोड़े समय के भीतर चीन, इंडोनेशिया, अफ्रीका और दक्षिण अमेरिका में अनेक नई खानों और संयंत्रों को विकसित करने से कई पर्यावरणीय और सामाजिक दुष्प्रभाव भी उत्पन्न होंगे।
  • स्थिति यह भी है कि शीर्ष तीन खनिज उत्पादक और प्रसंस्करण करने वाले देश 50-100%  भाग को नियंत्रित करते हैं। 
  • वर्तमान वैश्विक निष्कर्षण और प्रसंस्करण क्षमताएं भू-राजनीतिक और अन्य जोखिम पैदा करती हैं।

परमाणु ऊर्जा से जुड़े मुद्दे-

  • परमाणु ऊर्जा संयंत्र(NPP) दुनिया की 10% बिजली पैदा करते हैं और हर साल 180 बिलियन क्यूबिक मीटर प्राकृतिक गैस की मांग और 1.5 बिलियन टन CO2 के उत्सर्जन से बचने में मदद करते हैं।
  • एनपीपी की ग्रिड एकीकरण लागत परिवर्तनीय नवीकरणीय ऊर्जा (वीआरई) स्रोतों से जुड़ी लागत से कम है क्योंकि एनपीपी सभी प्रकार के मौसम में 24x7 बिजली उत्पन्न करते हैं। 
  • परमाणु ऊर्जा प्रौद्योगिकी, विनिर्माण और संचालन में उच्च कौशल वाली नौकरियों जैसे मूल्यवान सह-लाभ भी प्रदान करती है।
  • पारंपरिक एनपीपी आम तौर पर समय और लागत में बढ़ोतरी से प्रभावित हुए हैं।
  • एक विकल्प के रूप में कई देश पारंपरिक एनपीपी के पूरक के लिए छोटे मॉड्यूलर रिएक्टर (SMR) विकसित कर रहे हैं। 
  • मौजूदा बुनियादी ढांचे का पुन: उपयोग करके एसएमआर को निष्क्रिय थर्मल पावर प्लांट साइटों में स्थापित किया जा सकता है।
  • इस प्रकार मेजबान देश को मौजूदा साइट सीमा से परे अधिक भूमि अधिग्रहण करने और/या लोगों को विस्थापित करने से बचाया जा सकता है।

एसएमआर के लाभ-

  • एसएमआर को पारंपरिक एनपीपी की तुलना में छोटी कोर क्षति आवृत्ति (दुर्घटना से परमाणु ईंधन को नुकसान पहुंचने की कम संभावना) के साथ डिजाइन किया गया है। इनमें उन्नत भूकंपीय सुरक्षा तंत्र भी शामिल है।
  • एसएमआर की डिज़ाइन पारंपरिक एनपीपी की तुलना में सरल हैं और इसमें कई निष्क्रिय सुरक्षा विशेषताएं शामिल हैं, जिसके परिणामस्वरूप पर्यावरण में रेडियोधर्मी सामग्रियों के अनियंत्रित रिसाव की संभावना कम हो जाती है।
  • एसएमआर परियोजना में संग्रहित परमाणु ईंधन की मात्रा भी पारंपरिक एनपीपी की तुलना में कम होगी। 
  • अध्ययनों में पाया गया है कि एसएमआर को कई ब्राउनफील्ड साइटों पर सुरक्षित रूप से स्थापित और संचालित किया जा सकता है। 
  • यूरोप में छोटे परमाणु रिएक्टर रूस से आयातित ऊर्जा स्रोतों  के विकल्प के रूप में उभरे हैं। 
  • एसएमआर को 90% से अधिक क्षमता कारकों के साथ 40-60 वर्षों तक संचालित करने के लिए डिज़ाइन किया गया है। 
  • अपनी तरह की पहली एसएमआर परियोजनाएं 2030 तक चालू हो जाएंगी, यू.एस. में एसएमआर के लिए वर्तमान पूंजीगत लागत लगभग 6,000 डॉलर प्रति मेगावाट है।
  • 2030 के बाद लागत में तेजी से कमी आने की संभावना है, क्योंकि यूरोपीय देशों द्वारा पहले से ही ऑर्डर की गई कई एसएमआर परियोजनाएं 2035 तक ऑनलाइन हो जाएंगी।
  • जब बीएचईएल, एलएंडटी या गोदरेज इंडस्ट्रीज जैसी एनपीपी निर्माण में अनुभव वाली प्रतिष्ठित कंपनियां विदेशों से प्रौद्योगिकी हस्तांतरण के साथ भारत और दुनिया के लिए एसएमआर का निर्माण करेंगी, तो भारत में भी एसएमआर निर्माण लागत में भारी गिरावट आएगी।
  • इससे सरकारी खजाने पर अनावश्यक बोझ डाले बिना, ग्रीन क्लाइमेट फंड और अंतरराष्ट्रीय निवेशकों से हरित वित्त प्राप्त कर शून्य-कार्बन परमाणु ऊर्जा का विस्तार करने की अनुमति मिलेगी। 
  • इसी कारण जून 2023 में प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी की अमेरिकी राष्ट्रपति जो बिडेन से मुलाकात के बाद संयुक्त बयान में एसएमआर को शामिल किया गया था।

Nuclear-Reactor

कुशल विनियमन की आवश्यकता -

  • मौजूदा थर्मल पावर-प्लांट साइटों पर कोयला-से-परमाणु संक्रमण के द्वारा उचित अंतरराष्ट्रीय सुरक्षा मानकों  के तहत एसएमआर को स्थापित करने में तेजी लाने से भारत नेट-शून्य के करीब पहुंच सकता है।
  • इससे भारत के ऊर्जा सुरक्षा में सुधार होगा, किंतु भारत में यूरेनियम का बड़ा भंडार नहीं हैं। 
  • एसएमआर के लिए कम-संवर्धित यूरेनियम की आवश्यकता होती है, जिसकी आपूर्ति उन देशों द्वारा की जा सकती है जिनके पास यूरेनियम खदानें हैं ।
  • चूंकि एसएमआर ज्यादातर कारखाने में निर्मित होते हैं और साइट पर इकट्ठे होते हैं, इसलिए समय और लागत बढ़ने की संभावना भी कम होती है।
  • इसके अलावा, एसएमआर के क्रमिक निर्माण से कुशल विनियामक अनुमोदन और अनुभव भी प्राप्त होगा, जो संयंत्र के डिजाइन को सरल बनाकर लागत को कम कर सकता है।
  • यदि एसएमआर को बिजली क्षेत्र को डीकार्बोनाइजिंग करने में सार्थक भूमिका निभानी है, तो एक कुशल नियामक संस्था का होना अत्यंत महत्वपूर्ण है। 
  • यदि नेट-शून्य प्राप्त करना है, तो परमाणु ऊर्जा स्वीकार करने वाले सभी देश अपने संबंधित नियामकों को आपस में और अंतर्राष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी के साथ सहयोग करने का निर्देश दें ताकि वे अपनी नियामक आवश्यकताओं को सुसंगत बना सकें और मानक, सार्वभौमिक डिजाइन के आधार पर एसएमआर के लिए वैधानिक अनुमोदन में तेजी ला सकें।

भारत में एसएमआर में लूपिंग-

  • केंद्रीय विद्युत प्राधिकरण (सीईए) का अनुमान है कि भारत में कोयला आधारित थर्मल पावर प्लांट (टीपीपी) की उत्पादन क्षमता मौजूदा 212,000 मेगावाट से बढ़कर 2032 तक 259,000 मेगावाट हो जाएगा, जबकि परिवर्तनीय नवीकरणीय ऊर्जा (वीआरई) स्रोतों की उत्पादन क्षमता 486,000 मेगावाट तक बढ़ेगा।
  • सीईए का यह भी अनुमान है कि टीपीपी 2031-2032 तक भारत में उत्पादित बिजली का आधे से अधिक प्रदान करेगा जबकि वीआरई स्रोत और एनपीपी क्रमशः 35% और 4.4% का योगदान देंगे। 
  • भारत 2070 तक नेट-शून्य बनने के लिए प्रतिबद्ध है, अतः देश के परमाणु ऊर्जा में अधिक उत्पादन की जरूरत है। 
  • चूंकि एनपीपी विस्तार के लिए आवश्यक निवेश अकेले सरकार नहीं कर सकती, इसलिए भारत के ऊर्जा क्षेत्र को डीकार्बोनाइज करने के लिए निजी क्षेत्र (पीपीपी मोड में) से निवेश आकर्षित करना महत्वपूर्ण है।

भारत की दुविधाएँ

  • निजी क्षेत्र को एसएमआर स्थापित करने की अनुमति देने के लिए परमाणु ऊर्जा अधिनियम में संशोधन करने की आवश्यकता होगी।
  • सुरक्षा उपाय सुनिश्चित करने, परमाणु ईंधन और रेडियोधर्मी कचरे का नियंत्रण भारत सरकार के पास रहना चाहिए।
  • सरकार को डिज़ाइन अनुमोदन, साइट चयन, निर्माण, संचालन, ऑपरेटरों के प्रमाणीकरण और अपशिष्ट सहित परमाणु ऊर्जा उत्पादन चक्र के प्रत्येक चरण की देखरेख करने की विशेषज्ञता और क्षमता के साथ एक स्वतंत्र तथा सशक्त नियामक बोर्ड बनाने के लिए भी एक कानून बनाना होगा। 
  • एसएमआर के आसपास की सुरक्षा सरकारी नियंत्रण में रहनी चाहिए, जबकि परमाणु ऊर्जा निगम हैंड-होल्डिंग प्रक्रिया के दौरान निजी क्षेत्र एसएमआर को संचालित कर सकता है।
  • भारत-अमेरिका '123 समझौता', भारत को ईंधन आपूर्ति में व्यवधान से बचने के लिए परमाणु ईंधन का रणनीतिक भंडार विकसित करने की अनुमति देता है। 
  • यह भारत को अंतर्राष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (IAEA) के सुरक्षा उपायों के तहत एसएमआर से खर्च किए गए ईंधन को पुन: संसाधित करने की सुविधा स्थापित करने की भी अनुमति देता है। 
  • इसलिए भारत सरकार IAEA सुरक्षा उपायों के तहत राज्य-नियंत्रित सुविधा में सभी एसएमआर से परमाणु कचरे को पुन: संसाधित करने के लिए विदेशी आपूर्तिकर्ताओं के साथ बातचीत कर सकती है।
  • पुनर्संसाधित सामग्री भारत में अन्य एनपीपी में उपयोग के लिए भी उपयुक्त हो सकती है जो आयातित यूरेनियम का उपयोग करते हैं।
  • इस प्रकार, परमाणु ऊर्जा विभाग को भारत में अंतरराष्ट्रीय सुरक्षा उपायों के तहत काम कर रहे सिविल रिएक्टरों के व्यापक पर्यावरण और सार्वजनिक स्वास्थ्य डेटा का बेहतर प्रसार करके भारत में परमाणु ऊर्जा के बारे में सार्वजनिक धारणा में सुधार करना चाहिए।

प्रारंभिक परीक्षा के लिए प्रश्न- 

प्रश्न- निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए।

  1. SMR ऐसे परमाणु रिएक्टर होते हैं, जो केवल 10 से 300 मेगावाट बिजली उत्पादित करते हैं।
  2. '123 समझौता', भारत को परमाणु ईंधन का रणनीतिक भंडार विकसित करने की अनुमति देता है। 
  3. '123 समझौता' भारत और अंतर्राष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी के मध्य किया गया है। 

उपर्युक्त में से कितना/कितने कथन सही है/हैं?

(a) केवल एक

(b) केवल दो

(c) सभी तीनों

(d) कोई नहीं

उत्तर- (b)

मुख्य परीक्षा के लिए प्रश्न-

प्रश्न- छोटे मॉड्यूलर परमाणु रिएक्टर क्या हैं? यह भारत को 2070 तक नेट-शून्य बनाने में किस प्रकार सहयोगी साबित हो सकता है? मूल्यांकन करें।

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