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ठोस अपशिष्ट प्रबंधन : चुनौतियां एवं समाधान

संदर्भ

बृहत बेंगलुरु महानगर पालिका ने प्रत्येक घर के लिए प्रति माह 100 का ठोस अपशिष्ट प्रबंधन उपकर लगाने का प्रस्ताव रखा है। इस प्रस्ताव ने निवासियों और हितधारकों के बीच बहस और आलोचना को जन्म दिया है।

ठोस अपशिष्ट प्रबंधन

  • ठोस अपशिष्ट प्रबंधन (Solid Waste Management : SWM) समाज द्वारा उत्पादित विभिन्न प्रकार के अपशिष्टों के प्रबंधन की प्रक्रिया है। 
  • घटक : एस.डब्ल्यू.एम. सेवाओं में मोटे तौर पर चार घटक होते हैं : संग्रहण, परिवहन, प्रसंस्करण और निपटान। 
  • प्रकार : ठोस अपशिष्ट के तीन मुख्य प्रकार हैं- 
    • नगरपालिका ठोस अपशिष्ट (MSW)
    • औद्योगिक ठोस अपशिष्ट (IW)
    • खतरनाक अपशिष्ट

वेस्ट वाइज सिटीज पहल

  • यूएन-हैबिटेट ने वैश्विक कचरा प्रबंधन संकट को संबोधित करने के लिए “वेस्ट वाइज सिटीज” (Waste Wise Cities) प्रोग्राम लॉन्च किया है।
  • इस पहल के अंतर्गत ठोस अपशिष्ट प्रबंधन रणनीति में 12 प्रमुख सिद्धांतों को शामिल किया गया  है :
    1. निवासियों, प्रतिष्ठानों और व्यवसायों द्वारा उत्पन्न अपशिष्ट की मात्रा और प्रकार का आकलन करें।
    2. अपशिष्ट के संग्रहण एवं परिवहन में सुधार करें।
    3. अपशिष्ट का पर्यावरण की दृष्टि से सुरक्षित निपटान सुनिश्चित करें।
    4. कचरे से अधिकतम मूल्य प्राप्त करने के लिए 5 आर को बढ़ावा दें - पुनर्विचार करें, कम करें, पुनः उपयोग करें, पुनर्चक्रण करें और एकल-उपयोग वाली वस्तुओं के उपयोग से इंकार करें।
    5. नागरिक समाज, गैर सरकारी संगठनों, निजी और अनौपचारिक क्षेत्रों को सशक्त बनाना और उनके साथ मिलकर काम करना। 
    6. अपशिष्ट प्रबंधन में लगे कर्मचारियों के लिए बेहतर कार्य स्थितियां स्थापित करें, चाहे वे औपचारिक या अनौपचारिक रोजगार में हों। 
    7. नवीन तकनीकी विकल्पों का सावधानीपूर्वक मूल्यांकन और क्रियान्वयन करें, जैसे अपशिष्ट से ऊर्जा योजनाएं, तथा अन्य शहरों से सीखें। 
    8. शहरीकरण के लिए दीर्घकालिक रणनीतिक योजनाएं बनाएं, जिसमें ठोस अपशिष्ट उत्पादन और उपचार पर पूर्ण रूप से विचार किया जाए। 
    9. वित्तीय और अन्य प्रोत्साहनों की रूपरेखा तैयार करें, जिससे अधिक चक्रीय अर्थव्यवस्था की ओर संक्रमण को बढ़ावा मिले और अपशिष्ट में कमी आए। 
    10. अपशिष्ट के प्रति जनता के दृष्टिकोण को बदलने के लिए सार्वजनिक शिक्षा और जागरूकता प्रयासों के माध्यम से “अपशिष्ट पर पुनर्विचार” को प्रोत्साहित करें। 
    11. शहर में नगरपालिका ठोस अपशिष्ट प्रबंधन की प्रगति की नियमित समीक्षा करें। 
    12. सतत विकास लक्ष्यों के साथ-साथ पेरिस समझौते और नए शहरी एजेंडे के लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए प्रयास करना।
  • इस पहल के अंतर्गत यूएन-हैबिटेट उन शहरों को सहायता भी प्रदान करता है, जो निम्नलिखित कार्य क्षेत्रों में अपशिष्ट प्रबंधन में जागरूक बनना चाहते हैं:
    • अपशिष्ट डेटा और निगरानी (उदाहरण के लिए उपलब्ध डेटा पर फीडबैक, वेस्ट वाइज सिटीज टूल के साथ डेटा संग्रह में सहायता)
    • ज्ञान और अच्छे अभ्यासों को साझा करना (जैसे समाचार पत्रिका, शहर-दर-शहर साझेदारी, वेस्ट वाइज अकादमी)
    • वकालत और शिक्षा (जैसे शैक्षिक टूलकिट, जागरूकता बढ़ाने वाली सामग्री)
    • परियोजना वित्त एवं बैंकिंग सहायता (उदाहरणार्थ परियोजना प्रस्ताव तैयार करने, बाज़ार के लिए)
  • भारत में इस पहल के अंतर्गत नीति आयोग निगरानी संस्था के रूप में कार्य करती है, और नगरपालिका ठोस अपशिष्ट प्रबंधन में सर्वोत्तम अभ्यास के लिए सभी शहरों को प्रेरित करती है।

एस.डब्ल्यू.एम. उपकर के बारे में 

  • शहरी स्थानीय निकाय (ULBs) ठोस अपशिष्ट प्रबंधन नियम, 2016 के प्रावधानों के अनुसार उपयोगकर्ता शुल्क या एस.डब्ल्यू.एम. उपकर लगाते हैं। 
  • इन नियमों के अनुसार, शहरी निकायों को एस.डब्ल्यू.एम. सेवाओं की पूर्ति के लिए उपयोगकर्ता शुल्क/उपकर वसूलने का अधिकार प्राप्त होता है। 
  • हालांकि, इन नियमों में एस.डब्ल्यू.एम. उपकर के लिए कोई निर्दिष्ट दर निर्धारित नहीं की गई है।

भारत में एस.डब्ल्यू.एम. बाजार 

  • 2021-2026 के दौरान भारत में ठोस अपशिष्ट प्रबंधन का बाजार 7.5% के सीएजीआर से बढ़ने की उम्मीद है। 
    • यह वृद्धि बढ़ते शहरीकरण, अपशिष्ट प्रबंधन के बारे में बढ़ती जागरूकता और अपशिष्ट प्रबंधन बुनियादी ढांचे में बढ़ते निवेश जैसे कारकों से प्रेरित।
  • द एनर्जी एंड रिसोर्सेज इंस्टीट्यूट (TERI) की रिपोर्ट के अनुसार, भारत एक वर्ष में 62 मिलियन मीट्रिक टन (MMT) से अधिक कचरा उत्पन्न करता है। 
    • उत्पन्न कुल कचरे में से केवल 43 MMT ही एकत्र किया जाता है, 12 MMT का निपटान करने से पहले उसका उपचार किया जाता है और शेष 31 MMT को कचरे के ढेर में फेंक दिया जाता है।
  • भारतीय केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) के अनुमान के अनुसार, भारत में 2030 तक सालाना कचरा उत्पादन बढ़कर 165 MMT हो जाएगा।
  • अपर्याप्त अपशिष्ट संग्रह, परिवहन, उपचार और निपटान देश में पर्यावरण और सार्वजनिक स्वास्थ्य संबंधी चिंताओं के प्रमुख कारण बन गए हैं।

एस.डब्ल्यू.एम. के समक्ष प्रमुख चुनौतियां

वित्तीय दबाव 

  • एस.डब्ल्यू.एम. सेवाएँ प्रदान करना अत्यधिक जटिल और संसाधन गहन होता है और भारत में वित्तीय दबाव की चुनौती इसे और अधिक जटिल बना देती है। 
  • शहरी निकाय आमतौर पर शहर के निवासियों को एस.डब्ल्यू.एम. सेवाएँ प्रदान करने के लिए अपनी लगभग 80% जनशक्ति और अपने वार्षिक बजट का 50% तक का उपयोग करते हैं। 
  • संग्रहण और परिवहन संसाधन और श्रम-गहन कार्य हैं और एस.डब्ल्यू.एम. बजट का 85-90% तक खपत करते हैं, जबकि कचरे के प्रसंस्करण और निपटान पर केवल 10-15% खर्च किया जाता है।

परिचालन और राजस्व चुनौतियाँ

  • यद्यपि शहरी निकाय एस.डब्ल्यू.एम. सेवाओं पर काफी खर्च करते हैं, लेकिन इन सेवाओं से कोई गारंटीकृत राजस्व प्राप्त नहीं होता है। 
  • भारतीय शहरों में उत्पन्न ठोस अपशिष्ट में लगभग 55-60% गीला बायोडिग्रेडेबल पदार्थ और 40-45% गैर-बायोडिग्रेडेबल पदार्थ होते हैं। 
  • सूखे कचरे में पुनर्चक्रण योग्य सामग्री का हिस्सा न्यूनतम, केवल लगभग 1-2% होता है, बाकी ज्यादातर गैर-पुनर्नवीनीकरण और गैर-बायोडिग्रेडेबल अपशिष्ट होते हैं। 
  • यद्यपि 55% गीले कचरे को जैविक खाद या बायोगैस में परिवर्तित किया जा सकता है, लेकिन इसकी उपज केवल 10-12% ही है, जिससे ठोस कचरे से खाद और बायोगैस उत्पादन दोनों आर्थिक रूप से अव्यवहारिक होते हैं।
  • अपशिष्ट प्रसंस्करण सुविधाओं से प्राप्त राजस्व परिचालन व्यय का केवल 35-40% ही कवर करता है, बाकी शहरी निकायों द्वारा सब्सिडी दी जाती है।

तैयार उत्पादों के लिए सीमित बाजार

  • अपशिष्ट प्रसंस्करण सुविधाओं से तैयार उत्पादों के लिए सीमित बाजार की उपलब्धता एस.डब्ल्यू.एम. के समक्ष एक बड़ी चुनौती है। 
  • गैर-खाद योग्य और गैर-पुनर्चक्रण योग्य सूखे कचरे, जैसे कि एकल-उपयोग प्लास्टिक, कपड़ा अपशिष्ट और निष्क्रिय सामग्री का निपटान महंगा होता है क्योंकि सामग्री को सीमेंट कारखानों या अपशिष्ट-से-ऊर्जा परियोजनाओं में भेजना पड़ता है जो शहरों से लगभग 400-500 किमी दूर स्थित होते हैं।

स्थानीय समस्याएं 

  • शहरी स्थानीय निकायों को एस.डब्ल्यू.एम. सेवाओं से जुड़ी स्थानीय चुनौतियों का भी सामना करना पड़ता है, जैसे; 
    • खुले स्थानों और नालियों को साफ करने का अतिरिक्त काम, 
    • खुले में कूड़ा-कचरा फैलने से रोकना, 
    • कचरे के उत्पादन में मौसमी बदलाव और सफाई अभियान। 
  • हालांकि, वित्तीय व्यवहार्यता की कमी, स्रोत पर अपर्याप्त पृथक्करण और अपशिष्ट प्रसंस्करण संयंत्रों का संचालन अधिक चुनौतीपूर्ण है।

भविष्य के लिए रणनीतिक समाधान 

  • स्रोत पर कचरे का पृथक्करण : पृथक किए गए कचरे से खाद बनाने के कार्य से उपज में 20% तक की वृद्धि हो सकती है और अधिक सूखे कचरे को पुनर्चक्रण के लिए भेजा जा सकता है। 
    • इससे परिचालन लागत में कमी आ सकती है, हालांकि अनुपालन और व्यवहार परिवर्तन सुनिश्चित करने के लिए महत्वपूर्ण प्रयास की आवश्यकता है।
  • एकल-उपयोग प्लास्टिक को कम करना : गैर-पुनर्चक्रणीय एकल-उपयोग प्लास्टिक की सामग्री भारी होती है, जिससे इसे सीमेंट कारखानों या अपशिष्ट-से-ऊर्जा परियोजनाओं में भेजने के लिए परिवहन लागत बढ़ जाती है।
    • एकल-उपयोग प्लास्टिक को कम करने से परिचालन लागत कम हो सकती है।
  • विकेंद्रीकृत खाद बनाने की पहल : इस पहल द्वारा शहरी खाद निर्माण की समस्या का समाधान किया जा सकता है। 
    • तमिलनाडु और केरल के शहरों ने वार्ड स्तर पर माइक्रो कंपोस्टिंग सेंटर को सफलतापूर्वक लागू किया है, जिससे गीले कचरे को स्थानीय स्तर पर संसाधित किया जा रहा है और परिवहन लागत में कमी आ रही है।
  • खुले में कूड़ा फेंकने से रोकने के लिए सूचना, शिक्षा और जागरूकता : शहरी निकाय सड़कों की सफाई और नालियों से कचरा साफ करने पर व्यापक संसाधन खर्च करते हैं, लगभग दो-तिहाई कर्मचारी इन कार्यों के लिए तैनात किए जाते हैं। 
    • कूड़ा फेंकने और अनुचित तरीके से कचरा निपटान को रोकने के लिए सूचना, शिक्षा और जागरूकता गतिविधियों को लागू करने से इन कार्यों के लिए श्रमिकों की ज़रूरत कम हो सकती है, जिससे उन्हें कचरा प्रसंस्करण और मूल्य वसूली के लिए फिर से तैनात किया जा सकता है।
  • बड़े कचरा उत्पादक अपने कचरे को स्वयं संसाधित करें : पर्याप्त जगह वाले बड़े संस्थान इन-हाउस कचरा प्रसंस्करण सुविधाएं स्थापित कर सकते हैं। 
    • इससे शहरी स्थानीय निकायों पर भार कम होता है और कचरा उत्पादकों को स्वच्छ और हरित परिसर बनाए रखने में मदद मिलती है।

निष्कर्ष 

शहरी निकायों द्वारा वहन की जाने वाली परिचालन लागत को कम करने के लिए शहरी निकायों, अपशिष्ट उत्पादकों और निवासियों द्वारा पर्याप्त प्रयास और आपसी सहयोग की आवश्यकता है। राजस्व उत्पन्न किए बिना कुशल एस.डब्ल्यू.एम. सेवाएं प्रदान करना वित्तीय रूप से विवश शहरी निकायों के लिए एक गंभीर चुनौती है। एस.डब्ल्यू.एम. उपकर एवं उपयोगकर्ता शुल्कों को कुशल संचालन के साथ मिलाकर एक संतुलित दृष्टिकोण अपनाकर शहरों को स्वच्छ और रहने योग्य बनाने में मदद मिल सकती है।

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