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हड़ताल : मौलिक अधिकार नहीं

(प्रारंभिक परीक्षा : राष्ट्रीय महत्त्व की घटनाएँ, संविधान, अधिकारों संबंधी मुद्दे से संबंधित प्रश्न)
(मुख्य परीक्षा : सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र 2 - भारतीय संविधान के महत्त्वपूर्ण प्रावधान, मौलिक अधिकार, सरकारी नीतियों से संबंधित प्रश्न)

संदर्भ

हाल ही में, रक्षा मंत्री ने लोकसभा में आवश्यक रक्षा सेवाओं के रखरखाव के लिये ‘आवश्यक रक्षा सेवा विधेयक, 2021’ (Essential Defence Services Bill) पेश किया। यह विधेयक जून 2021 में जारी किये गए अध्यादेश को प्रतिस्थापित करेगा।

विधेयक के प्रमुख बिंदु

  • यह विधेयक सरकार को इसमें उल्लिखित सेवाओं को ‘आवश्यक रक्षा सेवाओं’ के रूप में घोषित करने का अधिकार देता है।
  • साथ ही, ऐसी सेवाओं में लगे किसी भी ‘औद्योगिक प्रतिष्ठान या इकाई’ में हड़ताल, तालाबंदी और छंटनी को भी प्रतिबंधित करने का अधिकार प्रदान करता है।
  •   सरकार यदि आवश्यक समझे तो इस प्रकार के आदेश को निम्न परिस्थितियों में जारी कर सकती है -
    • भारत की संप्रभुता और अखंडता
    • किसी भी राज्य की सुरक्षा
    • सावर्जनिक व्यवस्था
    • भारत की गरिमा
    • नैतिकता
  • यह विधेयक सार्वजनिक उपयोगिता सेवाओं के तहत आवश्यक रक्षा सेवाओं को शामिल करने के लिये ‘औद्योगिक विवाद अधिनियम, 1947’ में संशोधन करता है।
  • इसके अलावा, विधेयक में हड़ताल और दंड को भी परिभाषित किया गया है।
  • साथ ही, विधेयक के तहत सभी दंडनीय अपराध ‘संज्ञेय और गैर-ज़मानती’ होंगें।

आवश्यक रक्षा सेवाएँ

  • इसके अंतर्गत किसी भी प्रतिष्ठान या उपक्रम से जुड़ी वह सेवाएँ शामिल हैं,
    • जो किसी भी रक्षा संबंधी उद्देश्यों या सशस्त्र बलों की स्थापना या उनकी रक्षा से संबंधित आवश्यक वस्तुओं या उपकरणों के उत्पादन से संबंधित हैं।
    • इनमें ऐसी सेवाएँ भी शामिल हैं, जो बंद होने पर ऐसी सेवाओं में लगे प्रतिष्ठान या उसके कर्मचारियों की सुरक्षा को प्रभावित करती हैं।
  • इसके अलावा, सरकार किसी भी सेवा को एक आवश्यक रक्षा सेवा के रूप में घोषित कर सकती है, यदि इसकी समाप्ति निम्नलिखित को प्रभावित करती है-
    • रक्षा उपकरण या माल का उत्पादन
    • ऐसे उत्पादन में लगे औद्योगिक प्रतिष्ठानों या इकाइयों का संचालन या रखरखाव
    • रक्षा से जुड़े उत्पादों की मरम्मत या रखरखाव।

हड़ताल की परिभाषा

  • विधेयक के अनुसार, हड़ताल को एक-साथ कार्य करने वाले व्यक्तियों के एक निकाय द्वारा काम की समाप्ति के रूप में परिभाषित किया गया है। इसमें शामिल हैं-
    • सामूहिक आकस्मिक अवकाश।
    • किसी भी संख्या में व्यक्तियों द्वारा काम को जारी रखने या रोज़गार स्वीकार करने से मना करना।
    • ओवरटाइम काम करने से मना करना।
    • जहाँ आवश्यक रक्षा सेवाओं के रखरखाव के लिये ऐसा काम करना आवश्यक है।
      • कोई अन्य आचरण, जिसके परिणामस्वरूप आवश्यक रक्षा सेवाओं के काम में बाधा उत्पन्न होती है या उत्पन्न होने की संभावना है।

    अवैध तालाबंदी या छंटनी के लिये दंड

    • अवैध तालाबंदी या छंटनी के माध्यम से निषेध आदेश का उल्लंघन करने वाले नियोक्ताओं को ‘एक साल तक की कैद या 10,000 रूपए के ज़ुर्माने अथवा दोनों से’ दंडित किया जाएगा।

    अवैध हड़ताल के लिये दंड

    • अवैध हड़ताल प्रारंभ करने या इसमें भाग लेने वाले व्यक्तियों को ‘एक साल तक की कैद या 10,000 रुपए के ज़ुर्माने अथवा दोनों से दंडित’ किया जाएगा।
    • अवैध हड़ताल जारी रखने के लिये उकसाने या ऐसी कार्रवाई करने वाले या जानबूझकर ऐसे उद्देश्यों के लिये पैसे की आपूर्ति करने वाले व्यक्तियों को ‘दो साल तक की कैद या 15,000 रुपए के ज़ुर्माने अथवा दोनों से दंडित’ किया जाएगा।
    • इसके अलावा, ऐसे कर्मचारी अपनी सेवा के नियमों और शर्तों के अनुसार बर्खास्तगी सहित अनुशासनात्मक कार्रवाई के लिये भी उत्तरदायी होंगे।
    • ऐसे प्रकरण में, यदि जाँच करना उचित रूप से व्यावहारिक नहीं हो, तो संबंधित प्राधिकारी के पास बिना किसी पूछताछ के कर्मचारी को बर्खास्त करने या हटाने का अधिकार होगा।

    नियम और अधिकार

    • यह पहली बार नहीं है, जब सरकार द्वारा सरकारी कर्मचारियों की हड़ताल को स्पष्ट रूप से अवैध बताया जा रहा है।
    • ‘मध्य प्रदेश (और छत्तीसगढ़) सिविल सेवा नियम, 1965’, सरकारी कर्मचारियों द्वारा किये जाने वाले प्रदर्शन और हड़ताल पर रोक लगाता है।
    • साथ ही, यह सक्षम अधिकारियों को निर्देश देता है कि उस अवधि के दौरान संबंधित कर्मचारियों को अनधिकृत अनुपस्थिति के रूप में मानें।
    • इस नियम के तहत हड़ताल में ‘काम की पूर्ण या आंशिक समाप्ति, कलमबंद हड़ताल (pen-down strike), ट्रैफिक जाम या ऐसी कोई भी गतिविधि’ शामिल है, जिसके परिणामस्वरूप काम की समाप्ति या मंदता होती है।
    • अन्य राज्यों में भी इसी तरह के प्रावधान मौजूद हैं।
      • संविधान के ‘अनुच्छेद 33’ के तहत, संसद कानून द्वारा सशस्त्र बलों के सदस्यों या सार्वजनिक व्यवस्था के रखरखाव के लिये बलों के अधिकारों को प्रतिबंधित या निरस्त कर सकती है, ताकि उनके कर्तव्यों का उचित निर्वहन और उनमें अनुशासन बनाए रखना सुनिश्चित किया जा सके। 
      • संघ बनाने के मौलिक अधिकार को भी ‘सार्वजनिक व्यवस्था और अन्य विचारों के हित’ में ‘अनुच्छेद 19(4)’ के तहत प्रतिबंधित किया जा सकता है।
      • उच्चतम न्यायालय द्वारा वर्ष 1986 में ‘दिल्ली पुलिस बनाम भारत संघ’ मामलें में ‘पुलिस बल (अधिकारों का प्रतिबंध) अधिनियम, 1966 तथा संशोधित नियम, 1970’ के आधार पर अराजपत्रित (Non-gazetted) पुलिसकर्मियों के संघ बनाने के अधिकार पर प्रतिबंधों को बरक़रार रखा।
      • वर्ष 2003 के ‘टी.के. रंगराजन बनाम तमिलनाडु सरकार’ मामलें में उच्चतम न्यायालय ने माना कि कर्मचारियों द्वारा हड़ताल का सहारा लेना कोई मौलिक अधिकार नहीं है।
      • इसके अलावा, तमिलनाडु सरकार के ‘कर्मचारी आचरण नियम, 1973’ के तहत, हड़ताल पर जाने पर भी रोक है।

      निष्कर्ष

      संविधान के ‘अनुच्छेद 19(1)(A)’ के तहत हड़ताल करना कोई मौलिक अधिकार नहीं है। हड़ताल को किसी भी न्यायसंगत आधार पर उचित नहीं ठहराया जा सकता। साथ ही, हड़ताल का एक हथियार के रूप में ज़्यादातर दुरुपयोग ही होता है, जिसके परिणामस्वरूप अराजकता उत्पन्न होती है।

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