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पर्यावरण-संवेदनशील क्षेत्र (इको सेंसिटिव जोन) पर सुप्रीम कोर्ट का निर्णय 

प्रारंभिक परीक्षा - इको सेंसिटिव जोन, पर्यावरण संरक्षण अधिनियम,1986
मुख्य परीक्षा : सामान्य अध्ययन प्रश्नप्रत्र 3 – पर्यावरण संरक्षण

सन्दर्भ 

  • हाल ही में, सुप्रीम कोर्ट द्वारा देश भर में संरक्षित वनों, राष्ट्रीय उद्यानों और वन्यजीव अभ्यारण्यों के आसपास न्यूनतम एक किलोमीटर के अनिवार्य पर्यावरण-संवेदनशील क्षेत्र (ESZ) बनाने के अपने पूर्व निर्णय को संशोधित कर दिया गया। 

महत्वपूर्ण तथ्य 

  • 3 जून, 2022 को सुप्रीम कोर्ट ने संरक्षित क्षेत्रों के 1 किलोमीटर के बफर जोन को इको सेंसिटिव जोन घोषित करने का आदेश दिया था। 
  • जिसके बाद, केंद्र सरकार और केरल सहित कई राज्यों ने इस निर्णय में संशोधन की मांग की थी
    • केंद्र सरकार और राज्यों के अनुसार, इस न्यायिक निर्देश ने संरक्षित क्षेत्रों की परिधि में सैकड़ों गांवों को प्रभावित किया है।
  • अब सुप्रीम कोर्ट ने अपने निर्णय में कहा कि जून 2022 के फैसले का सख्ती से पालन करने से लाभ से ज्यादा नुकसान होगा, इससे मानव-पशु संघर्ष बढ़ेगा।
  • सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इको सेंसिटिव जोन घोषित करने का उद्देश्य नागरिकों की दिन-प्रतिदिन की गतिविधियों में बाधा डालना नहीं है। 
  • यदि जून 2022 में जारी किए गए निर्देश को जारी रखा जाता है, तो यह निश्चित रूप से इको सेंसिटिव जोन में रहने वाले नागरिकों की दिन-प्रतिदिन की गतिविधियों में बाधा उत्पन्न करेगा, इसीलिए इन दिशा को संशोधित करने की आवश्यकता है।
  • सुप्रीम कोर्ट के अनुसार, इको सेंसिटिव जोन पूरे देश में एक समान नहीं हो सकता, इसे "संरक्षित क्षेत्र-विशिष्ट" होना चाहिए।
  • सुप्रीम कोर्ट ने यह स्पष्ट कर दिया कि "राष्ट्रीय उद्यान और वन्यजीव अभयारण्य के भीतर और ऐसे राष्ट्रीय उद्यान और वन्यजीव अभयारण्य की सीमा से एक किलोमीटर के क्षेत्र के भीतर खनन की अनुमति नहीं होगी"।

इको सेंसिटिव जोन

ESZ

  • इको सेंसिटिव जोन ऐसे क्षेत्र होते है, जिन्हें संरक्षित क्षेत्रों ( राष्ट्रीय पार्कों, वन्यजीव अभ्यारणों ) के आस-पास के क्षेत्र को और अधिक सुरक्षित बनाने के लिए बफर जोन के रूप में निर्मित किया जाता है। 
  • इको सेंसिटिव जोन घोषित करने का उद्देश्य संरक्षित क्षेत्रों के आसपास की गतिविधियों को विनियमित और प्रबंधित करके एक शॉक अब्जॉर्बर क्षेत्र का निर्माण करना है।
  • पर्यावरण संरक्षण अधिनियम,1986 की धारा 3 के अंतर्गत पर्यावरण एवं वन मंत्रालय द्वारा इको सेंसिटिव जोन को अधिसूचित किया जाता है। 
  • केंद्र सरकार ने इको सेंसिटिव जोन पर दिशा-निर्देश ज़ारी करते हुए इसकी सीमा संरक्षित क्षेत्रों से 10 किलोमीटर तक निर्धारित की थी।
    • संवेदनशील गलियारों, कनेक्टिविटी और पारिस्थितिक रूप से महत्वपूर्ण स्थानों के मामले में, 10 किलोमीटर की सीमा से बाहर के क्षेत्रों को भी इको सेंसिटिव जोन में शामिल किया जा सकता है।
  • सर्वोच्च न्यायालय ने अपने एक निर्णय में निर्देश दिया था,  कि देश में प्रत्येक संरक्षित वन, राष्ट्रीय उद्यान और वन्यजीव अभयारण्य में उनकी सीमाओं से कम-से-कम एक किमी. का अनिवार्य इको सेंसिटिव ज़ोन होना चाहिये।
  • पर्यावरण की रक्षा के लिए इन क्षेत्रों में गतिविधियों को विनियमित किया जाता है। 
    • इको सेंसिटिव जोन में गतिविधियों को तीन श्रेणियों में वर्गीकृत किया जाता है। 

1. प्रतिबंधित गतिविधियाँ-

      1. वाणिज्यिक खनन।
      2. प्रदूषक उद्योगों की स्थापना। 
      3. बड़ी जल विद्युत् परियोजनों की स्थापना। 

2. विनियमित गतिविधियाँ-

      1. पेड़ों की कटाई।
      2. होटल और रिसॉर्ट की स्थापना।
      3. प्राकृतिक जल का व्यावसायिक उपयोग।
      4. कृषि प्रणाली में भारी बदलाव।
      5. कीटनाशकों का उपयोग।
      6. सड़कों का चौड़ीकरण।

3. अनुमति प्राप्त गतिविधियाँ-

      1. वर्षा जल संचयन।
      2. जैविक खेती।
      3. कृषि और बागवानी। 

इको-सेंसिटिव जोन से जुड़े मुद्दे 

  • इस क्षेत्र में विभिन्न गतिविधियों पर प्रतिबंध लगा दिये जाने के कारण क्षेत्र में रहने वाले लोगों की आजीविका खतरे में पड़ जाती है। 
  • इन क्षेत्रों में रहने वाले परिवारों को विस्थापन के लिए मजबूर किया जा सकता है।
  • कई राज्यों द्वारा इस क्षेत्र में पाए जाने वाले खनिज संसाधनों के कारण भी इको सेंसिटिव जोन घोषित किये जाने का विरोध किया जाता है।

प्रश्न - भारत में संरक्षित क्षेत्रों की निम्नलिखित में से किस एक श्रेणी में स्थानीय लोगों को बायोमास एकत्र करने और उपयोग करने की अनुमति नहीं है? (UPSC-2012) 

(a) बायोस्फीयर रिज़र्व 

(b) राष्ट्रीय उद्यान 

(c) रामसर कन्वेंशन के तहत घोषित आर्द्रभूमि 

(d) वन्यजीव अभयारण्य

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