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सुप्रीम कोर्ट  हैंडबुक

प्रारंभिक परीक्षा - समसामयिकी, हैंडबुक ऑन कॉम्बैटिंग जेंडर स्टीरियोटाइप्स
मुख्य परीक्षा - सामान्य अध्ययन पेपर-1 एवं पेपर-2

चर्चा में क्यों-

भारत के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ द्वारा सुप्रीम कोर्ट  हैंडबुक जारी की गई है। 

प्रमुख बिंदु-

  • यौन रूढ़िवादिता में सुधार के लिए भारत के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ द्वारा 'हैंडबुक ऑन कॉम्बैटिंग जेंडर स्टीरियोटाइप्स' बुक जारी की गई है।
  • 30 पन्नों की इस पुस्तिका का उद्देश्य महिलाओं के बारे में रूढ़िवादिता को पहचानने, समझने और उसका मुकाबला करने में न्यायाधीशों और कानूनी समुदाय की सहायता करना है।

पुस्तक की प्रस्तावना-

भारत के मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ लिखते हैं कि-

न्यायिक निर्णय लेने में पूर्व निर्धारित रूढ़िवादिता पर भरोसा करना न्यायाधीशों के प्रत्येक मामले को उसके गुणों के आधार पर स्वतंत्र और निष्पक्ष रूप से निर्णय लेने के कर्तव्य का उल्लंघन है।

हैंडबुक क्या है?

  • सुप्रीम कोर्ट हैंडबुक 30 पन्नों की एक पुस्तिका है, जिसका उद्देश्य महिलाओं के बारे में रूढ़िवादिता को पहचानने, समझने और उसका मुकाबला करने में न्यायाधीशों और कानूनी समुदाय की सहायता करना है।
  • हैंडबुक महिलाओं के बारे में इस्तेमाल किए जाने वाले सामान्य रूढ़िवादी शब्दों और वाक्यांशों की पहचान करती है, जिनमें से कई नियमित रूप से निर्णयों में पाए जाते हैं।
  • इसमें लिंग-अन्यायपूर्ण शब्दों की शब्दावली शामिल है और वैकल्पिक शब्द या वाक्यांश सुझाए गए हैं जिनका उपयोग दलीलों के साथ-साथ आदेशों और निर्णयों का मसौदा तैयार करते समय किया जा सकता है।
  • कुछ शब्द जिनका उपयोग न्यायायिक प्रक्रिया में करने से बचें; जैसे- व्यभिचारिणी, रखैल,वेश्या, ट्रांससेक्सुअल, अविवाहित मां आदि।
  • इसमें कहा गया है कि "यौन हिंसा से प्रभावित व्यक्ति खुद को "उत्तरजीवी" या "पीड़ित" के रूप में पहचान सकता है।
  • हैंडबुक भारतीय न्यायपालिका से लैंगिक रूढ़िवादिता के गहरे प्रभाव को पहचानने और अपनी सोच, निर्णय लेने और लेखन से उन्हें खत्म करने के लिए सक्रिय रूप से काम करने का आह्वान करती है।

हैंडबुक सबसे सामान्य प्रकार की लिंग रूढ़िवादिता को सूचीबद्ध करती है जो महिलाओं को रूढ़िवादिता के रूप में संदर्भित करती है-

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रूढ़िवादिता के प्रभाव-

  • सूक्ष्म स्तर पर, रूढ़िवादिता कार्यस्थलों, शैक्षणिक संस्थानों और सार्वजनिक स्थानों पर बहिष्कार और भेदभाव को जन्म देती है।
  • रूढ़िवादिता अक्सर अवचेतन में होती है और हमें किसी स्थिति की वास्तविकता को समझने से रोक सकती है।

 न्याय मेंरूढ़िवादिता के प्रभाव-

  • कानूनी प्रक्रिया में स्थिति का निष्पक्ष मूल्यांकन करने के बजाय रूढ़िवादिता का उपयोग करना, 'कानूनों की समान सुरक्षा' के संवैधानिक सिद्धांत के खिलाफ जाता है।
  • न्यायलय में रूढ़िबद्ध भाषा का उपयोग किसी मामले के नतीजे में बदलाव नहीं करता है, जबकि रूढ़िबद्ध भाषा हमारे संवैधानिक लोकाचार के विपरीत विचारों को मजबूत कर सकती है।
  • न्यायाधीशों द्वारा रूढ़िबद्ध धारणाओं का उपयोग रूढ़िवादिता को मजबूती देता है।
  • यदि न्यायाधीशों द्वारा हानिकारक रूढ़िवादिता पर भरोसा किया जाता है, तो इससे कानून के उद्देश्य और निष्पक्ष अनुप्रयोग में विकृति आ सकती है और भेदभाव कायम रह सकता है। 

पुस्तक में उल्लिखित कुछ रूढ़ियाँ-

  1. एक रूढ़ि है कि "सभी महिलाएं बच्चे पैदा करना चाहती हैं" जबकि ऐसा वास्तविकता में हो जरूरी नहीं है।माता-पिता बनने का निर्णय लेना एक व्यक्तिगत पसंद है।
  2. रूढ़ि है-“पत्नियों को अपने पति के माता-पिता की देखभाल करनी चाहिए” जबकि सही मायने मेंपरिवार में बुजुर्ग व्यक्तियों की देखभाल की जिम्मेदारी सभी लिंगों के व्यक्तियों पर समान रूप से आती है।
  3. जिन महिलाओं पर पुरुषों द्वारा यौन उत्पीड़न किया जाता है, वे अवसादग्रस्त हो जाती हैं या आत्महत्या कर लेती हैं। कई बार इज्जत के डर से अपने साथ हो रहे शोषण का भी जिक्र नहीं कर पाती है।

प्रश्न - सुप्रीम कोर्ट  हैंडबुक का सम्बन्ध है-

(a) आन्तरिक सुरक्षा के नियम

(b) यातायात नियमावली

(c) यौन रूढ़ता सुधार के सम्बन्ध में

(d) लिफ्ट नियमावली

उत्तर - (c) 

मुख्य परीक्षा के लिए प्रश्न - न्यायिक प्रक्रिया में रूढ़िवादिता के प्रभाव की चर्चा करते हुए यौन रूढ़िवादिता पर सुप्रीम कोर्ट हैण्डबुक की समीक्षा कीजिए।

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