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महासागरीय सेवाओं से जुड़ी प्रौद्योगिकी व ओ-स्मार्ट योजना

( प्रारंभिक परीक्षा : विज्ञान एवं तकनीक, राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय महत्त्व की सामयिक घटनाएँ ; मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र-3 : विषय - सूचना प्रौद्योगिकी, अंतरिक्ष, कम्प्यूटर, रोबोटिक्स, नैनो-टैक्नोलॉजी, बायो-टैक्नोलॉजी और बौद्धिक सम्पदा अधिकारों से सम्बंधित विषयों के सम्बंध में जागरूकता।)

चर्चा में क्यों?

  • केंद्रीय पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय ने हाल ही में ओ-स्मार्ट (O-SMART) योजना की प्रगति के बारे में जानकारी दी है।
  • ध्यातव्य है कि भारत का महत्त्वाकांक्षी ‘डीप ओशन मिशन’ ओ-स्मार्ट पहल के तहत ही एक छाता योजना (Umbrella Scheme) है।

O-स्मार्ट योजना

  • O-स्मार्ट योजना के तहत प्रदान की जाने वाली सेवाएँ तटीय और महासागरीय क्षेत्रों,जैसे- मत्स्य पालन,अपतटीय उद्योग,तटीय राज्यों, रक्षा, नौवहन, बंदरगाहों आदि में कई उपयोगकर्ता समुदायों को आर्थिक लाभ प्रदान करेंगी।
  • यह पहल सतत विकास लक्ष्य(SDG)14 से सम्बंधित मुद्दों के समाधान में सहायक होगी। ध्यातव्य है कि SDG 14 का उद्देश्य सतत विकास के लिये महासागरों एवं समुद्री संसाधनों के उपयोग का संरक्षण करना है।
  • यह ब्लू इकोनॉमी के विभिन्न पहलुओं के कार्यान्वयन के लिये आवश्यक वैज्ञानिक और तकनीकी पृष्ठभूमि भी प्रदान करती है।
  • अत्याधुनिक पूर्व चेतावनी प्रणाली या स्टेट ऑफ आर्ट अर्ली वार्निंग सिस्टम योजना सुनामी और तूफान की घटनाओं जैसी समुद्री आपदाओं से प्रभावी ढंग से निपटने में सहायक होगी।
  • विकसित की जा रही तकनीकों से भारत के चारों ओर के समुद्रों में उपस्थित जीवित और निर्जीव दोनों प्रकार के संसाधनों के दोहन में मदद मिलेगी।
  • अनुसंधानिक जहाज़ों का एक बेड़ा, जैसे- प्रौद्योगिकी प्रदर्शन पोत सागरनिधि,समुद्र विज्ञान अनुसंधान पोत सागरकन्या,मत्स्य और समुद्र विज्ञान अनुसंधान पोत सागरसम्पदा और तटीय अनुसंधान पोत सागरपुरी आदि को भी आवश्यक अनुसंधान सहायता प्रदान करने के लिये अधिगृहीत किया गया है।

O-स्मार्ट योजना के उद्देश्य:

  • भारतीय विशेष आर्थिक क्षेत्र (ई.ई.जेड.) में मरीन लिविंग रिसोर्सेज और भौतिक पर्यावरण के साथ उनके सम्बंधों के बारे में जानकारी प्राप्त करना और नियमित रूप से अपडेट करना।
  • समय-समय पर भारत के तटीय जल सम्पदा की गुणवत्ता के मूल्यांकन के लिये समुद्री जल प्रदूषकों के स्तर की निगरानी करना एवं प्राकृतिक और मानवजनित गतिविधियों के कारण तटीय क्षरण के आकलन के लिये तटरेखा परिवर्तन मानचित्र विकसित करना।
  • भारत में समुद्रों से वास्तविक समय के आँकड़ों के अधिग्रहण के लिये अत्याधुनिक महासागरीय अवलोकन प्रणालियों की एक विस्तृत श्रृंखला विकसित करना।
  • सामयिक लाभों के लिये महासागर की उपयोगकर्ता-उन्मुख जानकारी, सलाह, चेतावनी, आँकड़े और आँकड़ों से जुड़े उत्पादों का एक निकाय बनाना और प्रसारित करना।
  • समुद्र के पूर्वानुमान और पुनर्विश्लेषण प्रणाली के लिये उच्च रिज़ॉल्यूशन मॉडल विकसित करना।
  • तटीय अनुसंधान के लिये उपग्रहों से प्राप्त आँकड़ों के सत्यापन के लिये एल्गोरिदम विकसित करना और तटीय अनुसंधान में परिवर्तन की निगरानी करना।
  • तटीय प्रदूषण की निगरानी, पानी के नीचे के ​​विभिन्न घटकों के परीक्षण और उनसे जुड़ी प्रौद्योगिकियों के प्रदर्शन के लिये 2 नए तटीय अनुसंधान पोतों (Coastal Research Vessels-CRV) का अधिग्रहण करना।
  • मध्य हिंद महासागर बेसिन में संयुक्त राष्ट्र द्वारा भारत को आवंटित किये गए 75000 वर्ग किमी.के क्षेत्र में 5500 मीटर की पानी की गहराई से पॉलीमेटैलिक नोड्यूल्स (एम.पी.एन.) की खोज की दिशा में प्रयास करना।
  • अंतर्राष्ट्रीय समुद्री जल प्राधिकरण (International Seabed Authority) एवं संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा अंतर्राष्ट्रीय जलीय क्षेत्र में भारत को आवंटित किये गए 10000 वर्ग किमी.के क्षेत्र में रोड्रिग्स ट्रिपल जंक्शन के पास बहुरूपदर्शक सल्फाइड की खोज की दिशा में प्रयास करना।
  • वैज्ञानिक आँकड़ों द्वारा समर्थित विशेष आर्थिक क्षेत्र (Exclusive Economic Zone) के स्थलाकृतिक सर्वेक्षण द्वारा महाद्वीपीय शेल्फ पर भारत के दावे का प्रस्तुतीकरण करना।

नीली अर्थ व्यवस्था:

  • नीली अर्थव्यवस्था में वह आर्थिक गतिविधियाँ शामिल हैं, जिनमें समुद्र के संसाधनों का उपयोग इस तरह किया जाता है कि उससे समुद्री पर्यावरण व्यवस्था को कोई नुकसान ना हो।
  • इसमें मत्स्य कृषि, जलीय कृषि, मरीन जैव-प्रौद्योगिकी एवं जैव सम्भावना(Marine Biotechnology and Bioprospecting), अलवणीकरण के माध्यम से ताज़े पानी की प्राप्ति, नवीकरणीय ऊर्जा उत्पादन, मेरीटाइम परिवहन, बंदरगाह सेवाएँ व पर्यटन आदि शामिल हैं। इसके अलावा, जैव विविधता की रक्षा और तटीय क्षेत्रों का विकास व रक्षा भी इसमें शामिल हैं।
  • नीली अर्थव्यवस्था में आर्थिक वृद्धि व रोज़गार के अवसर में तेज़ी लाने की क्षमता है। यह नई औषधियों,कीमती रसायनों और प्रोटीनयुक्त खाद्य-पदार्थों का पता लगाने में सहायक हो सकती है, साथ ही जलवायु परिवर्तन के प्रभावों की जानकारी भी इसके द्वारा प्राप्त होती है।

आगे की राह :

  • महासागर मानव के लिये अनन्य सम्पदा के भंडार हैं, जिनका उपयोग मानव प्राचीन समय से ही करता आया है। वर्तमान में भी वैश्विक स्तर पर विभिन्न देश महासागरीय संसाधनों का उपयोग अपनी अर्थव्यवस्था को मज़बूत करने के लिये कर रहे हैं।
  • भारत ने भी विगत कुछ समय से नीली अर्थव्यवस्था की अवधारणा पर विशेष बल दिया है,जिससे महासागरीय संसाधनों का उचित उपयोग सुनिश्चित किया जा सके। भारत की भौगोलिक अवस्थिति इस अर्थव्यवस्था के विचार में सहायक की भूमिका निभाती है, किंतु इस क्षेत्र की चुनौतियों की वजह से बहुत समस्याएँ भी सामने आती रहती हैं।
  • जलवायु परिवर्तन, महासागरीय संसाधनों का अनुचित दोहन तथा इस क्षेत्र में किसी प्रमुख विनियामक ढाँचे की कमी अभी भी प्रमुख चुनौती बने हुए हैं।
  • भारत यदि अपनी कुशल अवसंरचना के विकास द्वारा महासागरीय संसाधनों के धारणीय उपयोग में सक्षम हो पाता है तो यह इस क्षेत्र में भारत की अर्थव्यवस्था को गति देने में प्रमुख भागीदार हो सकता है।
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