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बाह्य अंतरिक्ष का बढ़ता सामरिक महत्त्व

(प्रारंभिक परीक्षा : राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय महत्त्व की सामयिक घटनाएँ)
(मुख्य परीक्षा : सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र 2 – द्विपक्षीय, क्षेत्रीय और वैश्विक समूह और भारत से संबंधित और/अथवा भारत के हितों को प्रभावित करने वाले करार।)

संदर्भ

विगत दिनों भारतीय प्रधानमंत्री ने अपने क्वाड भागीदारोंसंयुक्त राज्य अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया तथा जापान- के साथ संवाद के दौरानबाह्य अंतरिक्ष सहयोग’ (Outer Space Cooperation) बढ़ाने पर ज़ोर दिया है।

ंतरिक्ष सहयोग पर ज़ोर

  • भारत तेज़ी से बढ़ते इस डोमेन में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाने के लिये इच्छुक है। बाह्य अंतरिक्ष में भारत की बढ़ती रुचि दो महत्त्वपूर्ण मान्यताओं पर आधारित है-
    • पहला, 21वीं सदी की विश्व व्यवस्था को आकार देने के दृष्टिकोण से ‘उभरती प्रौद्योगिकियों’ (Emerging Technologies) की केंद्रीयता।
    • दूसरा, बाह्य अंतरिक्ष में शांति और स्थिरता को बरक़रार रखने के लिये नए नियम बनाने की आवश्यकता। 
  • ंतरिक्ष सहयोग पर भारत और उसके क्वाड भागीदारों का ज़ोर देना एक बृहद् प्रौद्योगिकी एजेंडे का भाग है।
  • भारत और अमेरिका की द्विपक्षीय वार्ता के पश्चात् जारी संयुक्त वक्तव्य में दोनों देशों ने नए डोमेन और उभरती प्रौद्योगिकियों, जैसे-  अंतरिक्ष, साइबर, स्वास्थ्य सुरक्षा, अर्द्धचालक, कृत्रिम बुद्धिमता, 5जी, 6जी, दूरसंचार प्रौद्योगिकी, तथा ब्लॉकचेन में साझेदारी बढ़ाने का आह्वान किया है।

प्रौद्योगिकी सहयोग

  • प्रौद्योगिकी सहयोग हमेशा से ही भारत-अमेरिका संबंधों का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा रहा है। वर्तमान में उभरती प्रौद्योगिकियाँ वैश्विक आर्थिक व सुरक्षा संरचनाओं में महत्त्वपूर्ण बदलाव कर रही हैं, तो ऐसे में दोनों देशों को भी अपने प्रौद्योगिकी इंटरफेस को व्यापक बनाने की आवश्यकता है।
  • इस बदलाव को अनुकूलित करने के लिये भारत के वाणिज्यिक क्षेत्र को अपनी गति तेज़ करने की आवश्यकता है। साथ ही, वाशिंगटन में क्वाड संवाद के दौरान उल्लिखित महत्त्वाकांक्षी प्रौद्योगिकी एजेंडे को क्रियान्वित करने के लिये कॉरपोरेट्स के मध्य सीमा-पार सहयोग को भी बढ़ाना होगा।
  • पिछले दो दशकों में प्रौद्योगिकीय प्रगति ने मानव हस्तक्षेप के लिये नए क्षेत्रों का सृजन किया है। इन्ही में से एक ‘साइबरस्पेस’ है, जिसने आधुनिक जीवन की प्रगति में काफी योगदान दिया है और इसी कारण वैश्विक स्तर पर नीति-निर्माता इसकी तरफ आकर्षित हो रहे हैं।

सामरिक सहयोग

  • पारंपरिक रूप से समुद्री क्षेत्र भारत और अमेरिका के द्विपक्षीय संबंधों तथा क्वाड के भीतर सामरिक सहयोग की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण मुद्दा रहा है। उदाहरणार्थ, ‘वार्षिक मालाबार नौसैनिक अभ्यास’ लगभग तीन दशक पूर्व वर्ष 1992 में एक द्विपक्षीय अभ्यास के रूप में शुरू हुआ था लेकिन वर्ष 2020 में ऑस्ट्रेलिया की भागीदारी के साथ यह ‘चतुर्भुज अभ्यास’ बन गया।
  • क्वाड का विचार वर्ष 2004 के अंत में पूर्वी हिंद महासागर में आई सुनामी से उत्पन्न मानवीय संकट के जवाब में भारत, अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया और जापान की नौसेनाओं के मध्य स्वाभाविक सहयोग से उत्पन्न हुआ था। 
  • क्वाड का उत्थान, पतन और पुनरुत्थान भी एक नए समुद्री भूगोल - हिंद-प्रशांत क्षेत्र - के गठन से संबंधित है। चीन द्वारा हिंद और प्रशांत महासागर में समुद्री शक्ति को बढ़ाने के आलोक में इन महासागरों के भू-राजनीतिक सातत्य को पुनर्कल्पित किया गया है।

बाह्य अंतरिक्ष 

  • वाशिंगटन में संपन्न हुई द्विपक्षीय वार्ता में ‘बाह्य अंतरिक्ष’ को अंतरिक्ष सहयोग के एक नए क्षेत्र के रूप में प्रस्तुत किया गया है। द्विपक्षीय स्तर पर दिल्ली और वाशिंगटन अंतरिक्ष सहयोग को तेज़ करने पर सहमत हुए हैं।
  • इसके अतिरिक्त, क्वाड के अंतर्गत अंतरिक्ष से संबंधित मुद्दों पर चर्चा करने के लिये एक नए कार्य समूह का गठन भी किया गया है।
  • अंतरिक्ष कार्य समूह सहयोग के नए अवसरों को चिह्नित करेगा तथा शांतिपूर्ण उद्देश्यों, जैसे - जलवायु परिवर्तन की निगरानी, आपदा के विरुद्ध प्रतिक्रिया एवं तैयारी, समुद्री संसाधनों के सतत् उपयोग आदि के लिये उपग्रह आधारित आँकड़ों को साझा करेगा।
  • क्वाड के सदस्य देशों ने बाह्य अंतरिक्ष के सतत् उपयोग को सुनिश्चित करने के लिये नियमों, मानदंडों, दिशानिर्देशों तथा सिद्धांतों पर परामर्श करने का भी वादा किया है।
  • यद्यपि अंतरिक्ष में मानव का प्रवेश 20वीं शताब्दी के मध्य में शुरू हुआ था लेकिन इसके वाणिज्यिक और सुरक्षा निहितार्थ हाल के दशकों में नाटकीय रूप से बढ़े हैं।
  • चूँकि बाह्य अंतरिक्ष आकर्षक व्यवसाय के साथ-साथ राष्ट्रों के मध्य सैन्य प्रतिस्पर्द्धा का भी स्थान बन गया है, इस कारण आने वाले वर्षों में क्वाड सदस्यों के मध्य अंतरिक्ष सहयोग बढ़ने की संभावना है।
  • कुछ समय पहले तक बाह्य अंतरिक्ष में देशों के स्वामित्व वाली  संस्थाओं का एकमात्र प्रभुत्व रहा है लेकिन वर्तमान में निजी संस्थाएँ भी अंतरिक्ष के वाणिज्यिक लाभ की तरफ आकर्षित हो रही हैं।
  • रक्षा विशेषज्ञों का मानना है कि जैसे-जैसे पृथ्वी पर सैन्य शक्ति को संतुलित करने में अंतरिक्ष एक महत्त्वपूर्ण कारक बनता जाएगा, वैसे-वैसे राष्ट्रों के मध्य प्रतिस्पर्द्धा भी बढ़ती जाएगी।
  • उल्लेखनीय है कि बाह्य अंतरिक्ष के वाणिज्यिक अनुप्रयोग में अमेरिका का पारंपरिक रूप से दबदबा रहा है। हालाँकि रूस के साथ अमेरिका की बढ़ती सैन्य प्रतिस्पर्द्धा के कारण इसे अंतरिक्ष के सैन्य अनुप्रयोग पर ध्यान केंद्रित करना पड़ रहा है।
  • इसके अतिरिक्त, नागरिक और सैन्य क्षेत्र में चीन एक प्रमुख अंतरिक्ष शक्ति के रूप में खगोल-राजनीति (Astropolitics) को नया आकार दे रहा है।

अंतरिक्ष स्थितिपरक जागरूकता पर अंतर्राष्ट्रीय सहयोग

  • भारत ने विगत कुछ दशकों में अपनी अंतरिक्ष संबंधी क्षमताओं में अभिवृद्धि की है। अब, अमेरिका भी मानता है कि वह अंतरिक्ष व्यवस्था को एकतरफा परिभाषित नहीं कर सकता है और उसे ‘समानहित वाले भागीदारों’ की आवश्यकता है।
  • भारत-अमेरिका संयुक्त वक्तव्य में ‘अंतरिक्ष स्थितिपरक जागरूकता पर समझौता ज्ञापन’ (Space Situational Awareness Memorandum of Understanding) को अंतिम रूप देने पर सहमती व्यक्त की गई। इस समझौते के तहत बाह्य अंतरिक्ष से संबंधित गतिविधियों की दीर्घकालिक स्थिरता सुनिश्चित करने के लिये डाटा और सेवाओं को साझा किया जाएगा।
  • ‘अंतरिक्ष स्थितिपरक जागरूकता पर अंतर्राष्ट्रीय सहयोग’ समुद्री डोमेन की जागरूकता पर समझौतों के समान ही है, जो महासागर आधारित जानकारी साझा करने की सुविधा प्रदान करता है।
  • भारत द्विपक्षीय समझौतों के साथ-साथ गुरुग्राम स्थित ‘हिंद महासागर क्षेत्र के लिये सूचना संलयन केंद्र’ (IFC-IOR) के माध्यम से अपनी समुद्री क्षेत्र की जागरूकता को बढ़ा रहा है।

अंतरिक्ष स्थितिपरक जागरूकता

  • ‘अंतरिक्ष स्थितिपरक जागरूकता’ (SSA) के अंतर्गत अंतरिक्ष स्थित ऑब्जेक्ट्स - प्राकृतिक (उल्का) और मानव निर्मित (उपग्रह) की गति तथा अंतरिक्ष के मौसम पर निगरानी रखी जाती है।
  • प्रौद्योगिकी पर बढ़ती निर्भरता के दृष्टिकोण से अंतरिक्ष की गतिविधियों पर नज़र रखना आवश्यक है क्योंकि अंतरिक्ष आधारित संचार और भू-प्रेक्षण प्रणालियों में व्यवधान उत्पन्न होने से गंभीर परिणाम हो सकते हैं।
  • एस.एस.ए. पर हस्ताक्षर होने के पश्चात् भारत का अमेरिका के साथ इस तरह का पहला समझौता होगा। गौरतलब है कि एस.एस.ए. पर अमेरिका ने दो दर्जन से अधिक देशों के साथ समझौते किये हैं।
  • इसके अतिरिक्त, अमेरिकी और भारतीय प्रतिनिधिमंडल ने आर्टेमिस (Artemis) नामक एक समझौते पर भी चर्चा की है। आर्टेमिस, एक अमेरिका मिशन है, जो चंद्रमा और अन्य ग्रहों के ऑब्जेक्ट्स से संबंधित गतिविधियों के लिये मानदंड विकसित करना चाहता है।

भावी राह

  • बाह्य अंतरिक्ष की बढ़ती सामरिक महत्ता भारत द्वारा इस संबंध में ठोस नीतिगत कार्रवाई की माँग करती है। इस संबंध में भारत ने हाल के वर्षों में सुधार किये हैं, जैसे निजी क्षेत्र को अंतरिक्ष आधारित गतिविधियों में भाग लेने की अनुमति।
  • इसके अतिरिक्त, भारत ने बाह्य अंतरिक्ष से आ रही सैन्य चुनौतियों से निपटने के लिये संभावित कदम भी उठाए हैं। साथ ही, अमेरिका, जापान तथा फ्राँस जैसे करीबी सहयोगियों के साथ अंतरिक्ष सुरक्षा वार्ता भी शुरू की है।
  • बाह्य अंतरिक्ष में बढ़ती वाणिज्यिक और सैन्य गतिविधियों के आलोक में ‘बाह्य अंतरिक्ष संधि तथा मून ट्रीटी (1979) जैसे समझौतों के सुदृढीकरण एवं नवीनीकरण की आवश्यकता है।

    निष्कर्ष

    • बाह्य अंतरिक्ष में विद्यमान अवसर व चुनौतियाँ को संबोधित करने के लिये तत्काल कार्रवाई की आवश्यकता है, जिसे केवल उच्चतम राजनीतिक स्तर से ही किया जा सकता है।
    • वर्ष 2015 के उपरांत भारतीय प्रधानमंत्री ने विभिन्न मंचों से हिंद महासागर के मामलों को राष्ट्रीय महत्त्व का विषय बताया है। भारत को आज ‘बाह्य अंतरिक्ष’ के संबंध में भी हस्तक्षेप करने की आवश्यकता है।
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